गुरुकुल ५
Monday, 21 May 2012
विनम्र आग्रह
एक विनम्र आग्रह
जो बदल सकती है
अटूट रिश्तों में
ये मानवीय संबंध
बंध जाते है संस्कारों में
लेन-देन परिवारों का
पुराने रिश्तों का
अक्सर ये होता है
हम जीवंत कर देते हैं
अपनी नर्इ पीढ़ी को
और कभी-कभी
व्यकितगत क्षुद्रता में
निजी कुंठा के कारण
गांठ बांध बैठते हैं
फन फैलाकर उठता है
हमारा मिथ्या अहंकार
कर देता है सत्यानाश
प्रेम और सृषिट का
क्यों करें विरोध?
कैसी प्रतिद्वंदिता?
नये संबंधों से?
जिन्हे अंकुरित करने
हमने ही लिया है संकल्प
रिश्ता बने न बने
पुराने रिश्तों में
न लगे घुन, न बढ़े कटुता
यही क्या कम है?
प्रेम-परिचय, दया-मया
मिले कल भी जस का तस
नये रिश्तों से ही
प्रेम का गाढ़ापन
बनता-बिगड़ता है?
न हो पाये रिश्ते
कोर्इ गम नहीं
इसी बहाने उसकी गर्मी का
ऐहसास तो हो जाता है
पल चाहे प्रतिकूल हो
रिश्तों का गाढ़ापन
कम नहीं होना चाहिए
क्योंकि रिश्ते हमेशा
सिक्त ही रहते हैं
बशर्ते हम उन्हे निभाना जानें
जो हमारे वश में होता है
वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकीन।
उसे एक खूबसुरत मोड़ देकर छोड़ना बेहतर ।।
20.05.2012
चित्र गूगल से साभार
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यह आग्रह हम भी करते हैं।
ReplyDeleteनया चिराग न जले तो कोई बात नही
ReplyDeleteजो चिराग रौशन है वह बुझ न पाए।
बहुत अच्छी सीख देती रचना ...
ReplyDeleteयदि रिश्तों की गर्माहट ही न रहे तो ...
वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकीन।
उसे एक खूबसुरत मोड़ देकर छोड़ना बेहतर ।।
पल चाहे प्रतिकूल हो
ReplyDeleteरिश्तों का गाढ़ापन
कम नहीं होना चाहिए
क्योंकि रिश्ते हमेशा
सिक्त ही रहते हैं
बशर्ते हम उन्हे निभाना जानें
RECENT POST काव्यान्जलि ...: किताबें,कुछ कहना चाहती है,....
रिश्ता बने न बने
ReplyDeleteपुराने रिश्तों में
न लगे घुन, न बढ़े कटुता
यही क्या कम है?
सुंदर पंक्तियाँ..... विचारणीय
कितना मुश्किल होता है अपनी सीमाओं के चलते इस तरह सोचना.
ReplyDeleteरिश्ता बने न बने
ReplyDeleteपुराने रिश्तों में
न लगे घुन, न बढ़े कटुता
यही क्या कम है.........बहुत सुन्दर भाव सुन्दर रचना..सस्नेह..
फन फैलाकर उठता है
ReplyDeleteहमारा मिथ्या अहंकार
कर देता है सत्यानाश
प्रेम और सृषिट का
Bahut sundar bhaav...
बहुत बढ़िया आग्रह कर रहे है आप..
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन विचार है ...
पल चाहे प्रतिकूल हो
रिश्तों का गाढ़ापन
कम नहीं होना चाहिए
क्योंकि रिश्ते हमेशा
सिक्त ही रहते हैं
बशर्ते हम उन्हे निभाना जानें
जो हमारे वश में होता है
एकदम सही कहा है --रिश्ते निभाना तो हमारे ही वश में है..
अब हम पर है की किस तरह निभा सके..
सुन्दर भाव व्यक्त करती उत्कृष्ट रचना...
कितने अजीब रिश्ते है यहाँ के
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी रचना ...आभार ।
ReplyDeleteकल 23/05/2012 को आपकी इस पोस्ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.
आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
... तू हो गई है कितनी पराई ...
रिश्ता बने न बने
ReplyDeleteपुराने रिश्तों में
न लगे घुन, न बढ़े कटुता
यही क्या कम है?
प्रेम-परिचय, दया-मया
मिले कल भी जस का तस
LAJAWAB ABHIVYAKTI...BEJOD RACHNA...BADHAI
पल चाहे प्रतिकूल हो
ReplyDeleteरिश्तों का गाढ़ापन
कम नहीं होना चाहिए
क्योंकि रिश्ते हमेशा
सिक्त ही रहते हैं
बशर्ते हम उन्हे निभाना जानें
कविता एक शाश्वत संदेश दे रही है।
रिश्तों को हर परिस्थिति में निभाना ही चाहिए।
रिश्ता बने न बने
ReplyDeleteपुराने रिश्तों में
न लगे घुन, न बढ़े कटुता
यही क्या कम है?
bahut sahi bat kahi hai lekhak ne... yah bahut jaroori hai jindagi me sukoon banaye rakhne ke liye.
रिश्ता बने न बने
ReplyDeleteपुराने रिश्तों में
न लगे घुन, न बढ़े कटुता
यही क्या कम है.........
khubsurat rachna...
मैंने हमेशा पुराने रिश्ते निभाए हैं.. और नए रिश्ते बनाए हैं.. ब्लॉग जगत में तो कई ऐसे रिश्ते बने हैं जिन्हें कभी देखा भी नहीं!!
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता!!
भावभीनी रचना के माध्यम से खुबसूरत आग्रह....
ReplyDeleteसादर.
सहमत हूँ, कड़वाहट जितनी कम रह सके उतना ही अच्छा!
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