एक सच मेरे अंक में
अपने पद चिन्ह छोड़ता
उम्र के इस पड़ाव पर
जायें तो कहां जायें?
चले भी गये तो
ठौर मिलता है?
किसी के घर जाने पर
या तो किसी की
निंदा सुननी पड़ती है
या कर बैठो
और शामिल हो जाओ
अकस्मात
किसी की निंदा-स्तुति में
और वह भी झूठी
ये दोनो ही
सुनने-सुनाने वालों पर
जाकर टिक जाता है
कि किस हद तक जाकर
निंदा वा स्तुति होती है
बैठे ठाले हमने भी
सीख लिया जीने का फन
न जाने कैसे आहिस्ता-आहिस्ता
आज खेल-खेल में
कैसे-कैसे गुर में
माहिर हो गये कदरदां
झूठी नैतिकता का लबादा ओढ़
पंथहीन बनकर
15.05.2012
चित्र श्री शांतिलाल पुरोहित जी अकलतरा
लक्ष्मी पुरोहित से साभार
सही कहा.. बहुत से लोगों का टाइम पास बन गया है यह!! बहुत बारीकी से परखा है आपने इसे!!
ReplyDeleteसच है.............................
ReplyDeleteआइना नहीं देखते वो......खुद को कहाँ परखते हैं.......
सादर.
निंदा स्तुति सबका शगल बन गया है .... सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteकैसे-कैसे गुर में
ReplyDeleteमाहिर हो गये कदरदां
झूठी नैतिकता का लबादा ओढ़
पंथहीन बनकर
बहुत सुंदर रचना,..अच्छी प्रस्तुति
MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: बेटी,,,,,
कैसे-कैसे गुर में
ReplyDeleteमाहिर हो गये कदरदां
झूठी नैतिकता का लबादा ओढ़
पंथहीन बनकर...सही कहा..सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति..रमाकान्त..बधाई
सही कहा..सब रसों से रसीला है निंदा या स्तुति रस ..
ReplyDeleteसबसे अच्छा है खुद के पास जाना..यानि खुदा के पास जाना...
ReplyDeletesahi bat.....
ReplyDeleteनिंदा-स्तुति, दोनों झूठी, यही सच है.
ReplyDeleteनिंदा व स्तुति का खेल खेलने वाले हमेशा जीत हासिल नहीं कर पाते।
ReplyDeleteये दोनो ही
ReplyDeleteसुनने -सुनाने वालों पर
जाकर टिक जाता है
कि किस हद तक जाकर
निंदा वा स्तुति होती है
सटीक पंक्तियाँ.....
और कुछ बात करने को है ही नहीं...
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
कैसे-कैसे गुर में
ReplyDeleteमाहिर हो गये कदरदां
झूठी नैतिकता का लबादा ओढ़
पंथहीन बनकर
बहुत ही बेहतरीन रचना...
कैसे-कैसे गुर में
ReplyDeleteमाहिर हो गये कदरदां
झूठी नैतिकता का लबादा ओढ़
पंथहीन बनकर
बहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति ।
बैठे ठाले हमने भी
ReplyDeleteसीख लिया जीने का फन
न जाने कैसे आहिस्ता-आहिस्ता
.....
झूठी नैतिकता का लबादा ओढ़
पंथहीन बनकर
- आज की जीव- पद्धति का सही निरूपण कर दिया आपने,यही होता है और यही है सारी विसंगतियों के मूल में !
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ReplyDeleteमधु से भी मीठा रस है ये और मधुमेह से भी घातक| ये फेन न सीखियेगा तो अव्यावहारिक, असामाजिक जैसे विशेषण सुनाने और सहन करने होंगे, फैसला अपने हाथ|
ReplyDeletebus woh-woh. badiya sundar
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