गुरुकुल ५

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Wednesday, 16 May 2012

पंथहीन

एक सच मेरे अंक में
अपने पद चिन्ह छोड़ता
उम्र के इस पड़ाव पर
जायें तो कहां जायें?
चले भी गये तो
ठौर मिलता है?

किसी के घर जाने पर
या तो किसी की
निंदा सुननी पड़ती है
या कर बैठो
और शामिल हो जाओ
अकस्मात
किसी की निंदा-स्तुति में
और वह भी झूठी

ये दोनो ही
सुनने-सुनाने वालों पर
जाकर टिक जाता है
कि किस हद तक जाकर
निंदा वा स्तुति होती है

बैठे ठाले हमने भी
सीख लिया जीने का फन
न जाने कैसे आहिस्ता-आहिस्ता
आज खेल-खेल में

कैसे-कैसे गुर में
माहिर हो गये कदरदां
झूठी नैतिकता का लबादा ओढ़
पंथहीन बनकर

15.05.2012
चित्र श्री शांतिलाल पुरोहित जी अकलतरा
लक्ष्मी पुरोहित से साभार

18 comments:

  1. सही कहा.. बहुत से लोगों का टाइम पास बन गया है यह!! बहुत बारीकी से परखा है आपने इसे!!

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  2. सच है.............................
    आइना नहीं देखते वो......खुद को कहाँ परखते हैं.......

    सादर.

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  3. निंदा स्तुति सबका शगल बन गया है .... सुंदर प्रस्तुति

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  4. कैसे-कैसे गुर में
    माहिर हो गये कदरदां
    झूठी नैतिकता का लबादा ओढ़
    पंथहीन बनकर

    बहुत सुंदर रचना,..अच्छी प्रस्तुति

    MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: बेटी,,,,,

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  5. कैसे-कैसे गुर में
    माहिर हो गये कदरदां
    झूठी नैतिकता का लबादा ओढ़
    पंथहीन बनकर...सही कहा..सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति..रमाकान्त..बधाई

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  6. सही कहा..सब रसों से रसीला है निंदा या स्तुति रस ..

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  7. सबसे अच्छा है खुद के पास जाना..यानि खुदा के पास जाना...

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  8. निंदा-स्‍तुति, दोनों झूठी, यही सच है.

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  9. निंदा व स्तुति का खेल खेलने वाले हमेशा जीत हासिल नहीं कर पाते।

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  10. ये दोनो ही
    सुनने -सुनाने वालों पर
    जाकर टिक जाता है
    कि किस हद तक जाकर
    निंदा वा स्तुति होती है

    सटीक पंक्तियाँ.....

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  11. और कुछ बात करने को है ही नहीं...
    शुभकामनायें आपको !

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  12. कैसे-कैसे गुर में
    माहिर हो गये कदरदां
    झूठी नैतिकता का लबादा ओढ़
    पंथहीन बनकर

    बहुत ही बेहतरीन रचना...

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  13. कैसे-कैसे गुर में
    माहिर हो गये कदरदां
    झूठी नैतिकता का लबादा ओढ़
    पंथहीन बनकर

    बहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति ।

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  14. बैठे ठाले हमने भी
    सीख लिया जीने का फन
    न जाने कैसे आहिस्ता-आहिस्ता
    .....
    झूठी नैतिकता का लबादा ओढ़
    पंथहीन बनकर
    - आज की जीव- पद्धति का सही निरूपण कर दिया आपने,यही होता है और यही है सारी विसंगतियों के मूल में !

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  15. This comment has been removed by a blog administrator.

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  16. मधु से भी मीठा रस है ये और मधुमेह से भी घातक| ये फेन न सीखियेगा तो अव्यावहारिक, असामाजिक जैसे विशेषण सुनाने और सहन करने होंगे, फैसला अपने हाथ|

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