गुरुकुल ५

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Friday, 25 May 2012

सबा


हर शाम सुहानी आये
खुशियों के सबा लाये
मौजे-तबस्सुम के
सुबहे-मसर्रत में
हर सफर बीत जाये



ज़ाम मए-तरब
हो मुबारक तुझे
रहगुजर के खिजा
खार दे दे मुझे
शबे-इंतजार भी
रौशन सहर लाये

शाम आती रहे
बिन्ते-महताब बन
रूए-ताबां रहे
हश्र की रात तक
ये अश्को-तबस्सुम का
कारवां भी गुजर जाये


17.08.1978
चित्र गूगल से साभार

सबा=प्रात: समीर, मौजे-तबस्सुम=मुस्कान तरंग, सुबहे-मसर्रत=खुशी का
सबेरा,बिन्ते-महताब=चांद की बेटी, रूए-ताबां=ज्योर्तिमय, हश्र=प्रलय,
अश्को-तबस्सुम=आंसू और मुस्कान, कारवां=काफिला, जाम मए-तरब=
आनंद रूपी मदिरा, खिजां=पतझड़, रहगुजर=रास्ता, शबे-इंतजार=प्रतीक्षा
की रात, रौशन=प्रकाशित, सहर=सुबह,

20 comments:

  1. बेहतरीन ग़ज़ल..

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  2. अच्छी गज़ल.....
    कुछ कठिन शब्दों के अर्थ भी दीजिए पाठकों को ज्यादा आनंद आएगा.

    सादर.

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  3. शाम आती रहे
    बिन्ते महताब बन
    रूए ताबा रहे
    हश्र की रात तक
    ये अश्को तबस्सुम का
    कारवां भी गुजर जाये

    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,बेहतरीन रचना,,,,,

    MY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि,,,,,सुनहरा कल,,,,,

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  4. ज़ाम मए तरब
    हो मुबारक तुझे
    राहगुजर के खिजा
    खार दे दे मुझे
    शबे इंतजार भी
    रौशन सहर लाये
    शानदार ग़ज़ल... सादर

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  5. खूब नब्‍ज पकड़ी है आपने.

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  6. बहुत सुन्दर गज़ल ...कुछ शब्दो के अर्थ समझ नही आया..अर्थ भी लिखा होता तो अच्छा होता...

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  7. ब्‍लाग जगत में मेरा प्रवेश देर से हुआ, आपकी उर्दू पर इस पकड़ से मैं अब तक वाकिफ नहीं था, अतः मेरे लिए आपकी यह प्रथम उर्दू रचना है, आपके ब्‍लाग का मैं प्रशंसक हूं ही, उर्दू से भी मुझे अत्‍यंत प्‍यार है, लेकिन जैसा कि आप जानते हैं कि प्‍यार अंधा होता है, उर्दू की मेरी समझ उतनी नहीं है, आगे की रचनाओं में क्लिष्‍ट उर्दू लफ्जों का इस्‍तेमाल और मिकदार कम कर सकें अथवा रचना के अंत में उर्दू शब्‍दों के मायने भी दें तो आपकी रचना उर्दूदां साहबानों तक महदूद न रह कर आमो-खास अवाम के लिए भी आनंददायक होगी. गुजारिश है.

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  8. बहुत कठिन रचना..यकीनन सुंदर होगी !

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  9. अच्छी नज्म....
    सादर।

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  10. इस नज़्म ने दिल को छुआ।

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  11. अर्थ के बाद अब कुछ और दुरूह हो गया है मामला.

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  12. जाम मए-तरब
    हो मुबारक तुझे
    रहगुजर के खिजा
    खार दे दे मुझे
    शबे-इंतजार भी
    रौशन सहर लाये

    लाजवाब करती पंक्तियां।

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  13. शाम आती रहे
    बिन्ते-महताब बन
    रूए-ताबां रहे
    हश्र की रात तक
    ये अश्को-तबस्सुम का
    कारवां भी गुजर जाये

    बहुत सुंदर । प्रेम सरोबर पर आपका आमंत्रण है ।

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  14. देर से आने का लाभ ये हुआ कि इस खूबसूरत गज़ल का अर्थ समझकर आनंद की फुल डोज़ मिली, वरना कठिन शब्दों के अंदाजे लगाने पढते| कल ही एक गज़ल सुन रहा था, 'हश्र' में फिर मिलेंगे मेरे दोस्तों, बेसाख्ता याद आ गई सुबह सुबह|

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  15. सुन्दर शब्द मोती जैसे और रचना सुन्दर माला जैसी ...

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  16. दिए गये अर्थों के साथ पढ़ना अच्छा लगा..उम्दा..शुक्रिया..

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  17. शाम आती रहे
    बिन्ते-महताब बन
    रूए-ताबां रहे
    हश्र की रात तक
    ये अश्को-तबस्सुम का
    कारवां भी गुजर जाये
    बहुत सुंदर ...

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  18. नज़्म के भाव बहुत अच्छे लगे।

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