खून खराबा और तबाही लेकर
आया हमारा हमदर्द बनकर
जुल्म और अत्याचार के दौर में
रौशनी के सहर के वादे संग
लेकर आ गया हिंसा और
आतंकवाद
स्वाधीनता के इतने सालों बाद भी
और हम आरोप-प्रत्यारोप में उलझे
बस सियासी आपाधापी में
दांव-पेंच लड़ाते
अहंकार में डूबे
पाक दामन बने
नफरत से सने
हम सब निर्विकार
समस्याओं संग जस के तस
विश्वास के साथ कफन ओढ़े
क्यों इंसान होने की घोषणा करते हैं?
08/08/1995
अपहरण और फिरौती पर सार्थक, ठोस,
सर्वकालिक कदम की अपेक्षा में
राष्ट्र प्रमुख, तथाकथित जननेताओं,
रोटी सेंकने वाले बिचौलियों, और
सचमुच समस्या के हल में समर्पित
लोगो को एक निवेदन,
चित्र गूगल से साभार
हम सब निर्विकार
ReplyDeleteसमस्याओं संग जस के तस
विश्वास के साथ कफन ओढ़े
क्यों इंसान होने की घोषणा करते हैं?
ज्वलन्त प्रश्नमय कविता...मर्मस्पर्शी...
वाकई हम इंसान है तो इंसानियत कहाँ है????
ReplyDeleteइस सार्थक रचना के लिए बधाई.
सादर.
हम सब निर्विकार
ReplyDeleteसमस्याओं संग जस के तस
विश्वास के साथ कफन ओढ़े
क्यों इंसान होने की घोषणा करते हैं?
....एक सशक्त रचना रमाकांत जी
सुंदर प्रस्तुति,एक अच्छी सशक्त रचना....रमाकांत जी,...
ReplyDeleteRESENT POST काव्यान्जलि ...: गजल.....
क्यों इंसान होने की घोषणा करते हैं?
ReplyDeleteप्रभावित करता है ये सवाल और इससे जुड़े आपके भाव....
कड़वी सच्चाई!
ReplyDeleteबढ़िया ।
ReplyDeleteबधाई ।।
हम सब निर्विकार
ReplyDeleteसमस्याओं संग जस के तस
विश्वास के साथ कफन ओढ़े
क्यों इंसान होने की घोषणा करते हैं?
सार्थकता लिए हुए सटीक लेखन ।
कवि के अंदर की बेचैनी, एक छटपटाहट खुल कर अभिव्यक्त हो रही है।
ReplyDeleteबहुत सटीक और सार्थक लेखन.
ReplyDeleteसत्य वचन!
ReplyDeleteवर्तमान दौर का बेबाक चित्रण।
ReplyDeleteभेडिया हँसता है,तुम मशाल जलाओ
ReplyDeleteतुममे और भेडिये में यही फर्क है
भेडिया मशाल नहीं जला सकता
क्यों इंसान होने की घोषणा करते हैं?
ReplyDeleteबहुत सुंदर....शुभकामनायें भैया !
sundar kavita.. aap prabhavshali likhte hain
ReplyDeletebahut sundar samsamyik kavita
ReplyDeleteप्रवाहमयी...सशक्त..गहन भाव लिए रचना.
ReplyDeleteक्योंकि अपने आप को हम मानते इंसान हैं ...
ReplyDeleteयह विषय मन को छू गया भाई ...इस पर गीत लिखने का दिल करता है !
शुभकामनायें !