जेठ की धूप नरम लगती है?
चांद की किरण तेज लगती है?
मीठी बातें क्यों दिल में चुभती हैं?
भरे बाजार शरम लगती है?
सर्द राते क्यूं गरम लगतीं हैं?
सांची बातें ही भरम लगतीं हैं?
जिंदगी ऐसी है?
दिल हो खाली तो भली लगती है?
हाथ खाली तो बुरी लगती है?
18/08/2010
चित्र गूगल से साभार
बहुत सही रमाकांत जी ।
ReplyDeleteबधाई ।।
ये तो गजब की बात बन गई है.
ReplyDeleteदिल हो खाली तो भली लगती है?
ReplyDeleteहाथ खाली तो बुरी लगती है?
बहुत सुंदर प्रभावी रचना,..
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: गजल.....
दिल हो खाली तो भली लगती है?
ReplyDeleteहाथ खाली तो बुरी लगती है?
Sateek, Spasht....
जिंदगी ऐसी ही है.. अच्छी लगी..
ReplyDeleteबहुत सही कहा है आपने ...
ReplyDeleteसही कहा है...गागर में सागर !
ReplyDeletegajab kar rahe hai.guru
ReplyDeleteUmar ke iss padav par apki kami kuchh jyada hi khalati hai
ReplyDeleteUmar ke iss padav par apki kami kuchh jyada hi khalati hai
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteAAP KI YE KAVITA SOCHNE PAR MAZBUR KARTI HAI KI IS KAVITA KA SAMBANDH DIL SE KAISE HAI....KHAIR CHHODIYE..DIL KI BATE SAB KO SAMAJH ME AATI KAHAN HAIN?
ReplyDeleteMUJHE IS KAVITA KO SAMAJHNE ME KAFI PARESHANI HUI..LEKIN MAZA BHI AAYA..CHALIYE KISI KI KAVITA ME TO DIMAG KHAPANA PADAA..
ACHHA PRAYAAS..KEEP IT UP!
जिंदगी का फलसफा ही कुछ और है जनाब
Deleteहर किसी को समझ आ जाये वो क्या ज़िन्दगी है ..
AAP KA JAWAB LAJWAB HAI..AAP SE ISI JAWAB KI UMMEED THI..
DeleteAAP KA APNA-LUTFI.
बहुत खूब रमाकांत जी!
ReplyDeleteवाकई जिंदगी ऐसी ही है................
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना....
बहुत ही खूबसूरत
ReplyDeleteएकदम सटीक बात
ReplyDeleteसुन्दर रचना...