नदियां बनीं हैं जैसे, बूंदों को बांध के
तू भी बन जाना, हाथों को थाम के
लम्बा यहां सफर है, रस्ते वीरान से
कांटे भरे डगर हैं, राहें पहचान ले
मिलती चुनौतियां हैं, अपने ही काम से
संघर्ष ही नियति है, इतना तू जान ले
शबनम बनीं हैं जैसे, कोहरे को छान के
तू भी बन जाना, हर सुबह शाम से,
लहरें यहां हैं ऊंची, कश्ती को थाम ले
मंजिल तेरी नियति है, इतना तू ठान ले
चलता ये कारवां है, मंजिल को मान के
सागर सा बन जाना, गिरतों को थाम के
सूरज बना है जैसे, किरणों के नाम से
तू भी बन जाना, कर्मों को बांध के,
मिले हैं जमीं-आसमां, इक दूजे को थाम के,
हम फिर सदा मिलेंगे, पर चेहरे अनजान से,
16/03/1978
छोटी बहन रेखा सिंह को जन्मदिन पर समर्पित
चित्र गूगल से साभार
मिले हैं जमीं-आसमां, इक दूजे को थाम के,
ReplyDeleteहम फिर सदा मिलेंगे, पर चेहरे अनजान से,
Aisa bhi hota hai.... Sunder Abhivykti
बहुत प्यार भरा उपहार ... यूँ तो कोई भी उपहार अनमोल होता है , पर ये भाव हमेशा रहेंगे
ReplyDeleteरेखा बहन को जन्मदिन की शुभकामनायें
बहन को जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाएं ......और भाई के इस यह प्यारभरे अनमोल उपहार की बधाई !
ReplyDeleteमिले हैं जमीं-आसमां, इक दूजे को थाम के,
ReplyDeleteहम फिर सदा मिलेंगे, पर चेहरे अनजान से,bahut accha isse bada uphar ho hi nhi sakta .....rekha ko meri taraf se bhi bahut bahut shubhkamna....
मिले हैं जमीं-आसमां, इक दूजे को थाम के,
ReplyDeleteहम फिर सदा मिलेंगे, पर चेहरे अनजान से,
रेखाजी को जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाएं और इस अमूल्य उपहार के लिए आपका आभार
वाह...................
ReplyDeleteकितना प्यारा तोहफा पाया है आपकी बहना ने..............
उन्हें और आपको बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ.
लहरें यहां हैं ऊंची, कश्ती को थाम ले
ReplyDeleteमंजिल तेरी नियति है, इतना तू ठान ले
चलता ये कारवां है, मंजिल को मान के
सागर सा बन जाना, गिरतों को थाम के
सूरज बना है जैसे, किरणों के नाम से
तू भी बन जाना, कर्मों को बांध के,
रेखा जी को जन्म दिन की बहुत२ बधाई शुभकामनाए,...
अनुपम भाव लिए सुंदर रचना...बेहतरीन पोस्ट
.
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: आँसुओं की कीमत,....
आत्मीयता से भरी स्नेहसिक्त रचना आपका लेखन भीड़ में अलग अपनी पृथक पहचान बनाये रके
ReplyDeleteलहरें यहां हैं ऊंची, कश्ती को थाम ले
ReplyDeleteमंजिल तेरी नियति है, इतना तू ठान ले
चलता ये कारवां है, मंजिल को मान के
सागर सा बन जाना, गिरतों को थाम के
सूरज बना है जैसे, किरणों के नाम से
तू भी बन जाना, कर्मों को बांध के,
बहुत सुंदर भाव और रेखा के जन्मदिन का सबसे सुंदर उपहार...बहुत बहुत बधाई !
बहुत बेहतरीन....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
लहरें यहां हैं ऊंची, कश्ती को थाम ले
ReplyDeleteमंजिल तेरी नियति है, इतना तू ठान ले
चलता ये कारवां है, मंजिल को मान के
सागर सा बन जाना, गिरतों को थाम के
सूरज बना है जैसे, किरणों के नाम से
तू भी बन जाना, कर्मों को बांध के,
उत्साह का संचार करती सुंदर रचना।
बहुत अच्छी कविता।
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना। आभार।
ReplyDeleteभाव बहुत सुन्दर हैं .
ReplyDeleteBahut sunder prastuti
ReplyDeleteरमाकांत जी, बहन को जन्मदिन की और आपको को बढ़िया अभिव्यक्ति की लिए ढेरों बधाईयाँ...!!!
ReplyDeleteजन्मदिन की शुभकामनाएं ..बहन को..
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ReplyDeleteजन्मे दोनों इस घर में हम
और साथ खेल कर बड़े हुए
घर में पहला अधिकार तेरा,
मैं, केवल रक्षक इस घर का
अब रक्षा बंधन के दिन पर, घर के दरवाजे बैठे हैं !
हम भरे ह्रदय,स्नेह सहित,कुछ याद दिलाने बैठे हैं !
पहले तेरे जन्मोत्सव पर
पहले तेरे जन्मोत्सव पर
त्यौहार मनाया जाता था,
रंगोली और गुब्बारों से !
घरद्वार सजाया जाता था
तेरे जाने के साथ साथ,घर की रौनक भी चली गयी !
राखी के प्रति अनुराग लिए, घर के दरवाजे बैठे हैं !
पहले इस नंदन कानन में
एक राजकुमारी रहती थी
घर राजमहल सा लगता था
हर रोज दिवाली होती थी !
तेरे जाने के साथ साथ ,चिड़ियों ने भी आना छोड़ा !
चुग्गा पानी को लिए हुए , उम्मीद लगाए बैठे हैं !
आंच से यहाँ आना हुआ .... जीवन में संघर्ष करने को प्रेरित करती अच्छी रचना
ReplyDeleteप्रेरणा देती खूबसूरत रचना....
ReplyDeleteबहिन को ढेरों बधाईयां
bahut hi bhavpurnaevam sunder kavita. ummeed hai aapki bahna ko jarur pasand aayee hogi. sunder prastuti.
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