दहक उठे पलाश
साथ बिताये पलों के
तुम्हारे साथ
सखी बसंत आया
मेरे मन के द्वार
अब की बार
अकस्मात्
20/04/2012
तथागत ब्लाग के सृजन कर्ता श्री राजेश कुमार सिंह
को समर्पित उनकी रचना धर्मिता पर
साथ बिताये पलों के
तुम्हारे साथ
सखी बसंत आया
मेरे मन के द्वार
अब की बार
अकस्मात्
20/04/2012
तथागत ब्लाग के सृजन कर्ता श्री राजेश कुमार सिंह
को समर्पित उनकी रचना धर्मिता पर
बढ़िया ।।
ReplyDeleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति,
ReplyDeleteMY RECENT POST...काव्यान्जलि ...:गजल...
धन्यवाद भाई रमाकांत जी ऐसा ही स्नेह संबध बनाये रखे विषयों में विभिनत्ता से आपका लेखन और परवान चढ़ेगा
ReplyDeleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteअति सुंदर...............
ReplyDeleteBahut Sunder....
ReplyDeleteबसंत उतर आए घर-आंगन में. (स्वागत कीजिए, द्वार पर न ठिठका रहे.)
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर भावों से सजी कविता..
ReplyDeleteWAAH RAMAKANTJI !!!!!
ReplyDeleteक्या कहा है.. वाह !
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