THE TREE NEVER STOPPED GIVING |
पू मा शा पाटियापाली विकास खण्ड करतला, कोरबा, छत्तीसगढ़ |
विद्यालय के मुख्य मार्ग और द्वार पर स्वागत करता आम का वृक्ष
जीर्ण शीर्ण ग्राम पंचायत भवन जिसे तोड़कर नया स्कुल भवन बनाने की मसक्कत जारी
है जन सहयोग से यहाँ इसी गर्मी की छुट्टी में निर्माण कार्य पूर्ण हो जायेगा
विद्यालय के निंजी सड़क पर दोनों ओर रोपित नीम और अशोक के पौधे अतिथियों
का स्वागत करते साथ ही खुले वातावरण में बच्चों के मध्यान्ह भोजन का बैठका
नीम का पेड़ जिसकी छाया में बैठकर चाय कि चुस्की ली जाती है और कभी कभार
भजिया, पकौड़े, पोहा, सेवई का आनंद ले लेते हैं कुक होते हैं बुधराम यादव जी { भृत्य }
हर आदमी सोचता है वह महान है किन्तु उसे श्रेष्ठ बनाते हैं उसकी परिधि के लोग
इसी तरह इन पौधों को पानी सींचा बच्चों ने रक्षा की गांव वालों ने और बाड़ को बाँधा
बच्चों संग मिलकर बुधराम यादव जी में भर दोपहरी तपती धूप में, तब ये बच पाये
मुझे सदा गर्व रहा अपने बच्चों के मेहनत पर विद्यालय को अनुशासित उन्होंने बनाया
स्वच्छता का पाठ हमने उनसे पढ़ा और पोथी के लेखक हम बना दिये गये, लो बोलो जी
विद्यालय मार्ग पर रोपे गये २० नीम के पौधे बच पाये ०७ पौधे, पर्याप्त है गांव के लोगों के
मुखारी के लिये, संतोष है चलो कुछ तो हुआ लोग कुछ बरस यादों को चबायेंगे तो सही
पार्श्व में दिखता बंज़र जमीन इसका ही हिस्सा है स्कुल भवन का सड़क और मैदान
बच्चों के मेहनत और लगन ने ही इसे आज इतना हरा भरा बना दिया कि बस
ये अशोक का पेड़ आज २० फीट से ज्यादा ऊँचा है इसे भी अन्य ४२ पौधों की भांति एक ही रात में
काट दिया गया था किन्तु जे. एस.कँवर जी ने मिट्टी की पुट्टी बांधकर इसे नया जीवन दिया
एक इमारती पेड़ कसही बरपाली रेल्वे स्टेशन के समीप से लाकर रोपित किया गया
नीम की तरह गर्मी माह में बहुत घनी छाया देता है और संयुक्त पत्तियां पायी जाती हैं
सबसे ज्यादा दातुन की त्रास सहने वाला नीम का पेड़ कई बार मुख्य डाल टूटने के बाद भी
अपनी अस्मिता को बचाये लोगों को प्रेम बांटता बिना किसी प्रतिरोध हँसता रोज
१९९८ में मेरी पदस्थापना की गई उच्च वर्ग शिक्षक किन्तु २००० में पू मा शा पाटियापाली
तब शाला में लड़कियों के लिये बाथरूम नहीं था गांडापाली के सरपंच अमर सिंह से ४ बोरी
सीमेंट अनुदान में प्राप्त कर अपने हाथों से बनाया बाथरूम, आज भले ही जीर्ण शीर्ण, भग्न
जीर्ण शीर्ण और भग्न बाथरूम { मेरे द्वारा निर्मित } |
बिजली नहीं थी तब इन्हीं पेड़ों ने ठण्डा रखा भवन को और बच्चों का अध्ययन और
हमारा अध्यापन भी अवरुद्ध नहीं हुआ ग्राम्य जीवन और विद्यालयों की यही शान
शाला भवन के सामने लगा बेल का पेड़ मेरे कमरे को ठण्डक और सुकून देता है
सावन के महीने में लोगों को पूजा के विल्व पत्र देता, ख़ुशी होती है महिलाओं को
अशोक के पौधे के साथ स्कुल की शोभा बढ़ाते बाड़ में लगे पौधे जहां मैं अक्सर खड़ा
अपने भाग्य को सराहता अपने विगत चौदह बरस की यादों में खो जाता हूँ
स्वागत में शाला के प्रवेश द्वार पर अशोक का वृक्ष शालीनता से खड़ा विगत कई बरसों से
विद्यालय के पीछे लगाया गया गुलमोहर पतझड़ कि मार सहकर किन्तु रुकिए
फूल लगेगे और लाल कर देगा शाला की छत को आसमान से लगकर झरने जमीं पर
बांस की बाड़ हर तीसरे दिन बांधते हैं और बच्चे शाम को क्रिकेट खेलते रोज बैठकर
उस पर झूलकर नीचे कर जाते है वो अपनी ज़िद पर अड़े हम भी अपनी ज़िद पर
चमकती पत्तियाँ प्रेम का सन्देश देती तुम मेरी सेवा करना मैं तुम्हे घनी छांव दूंगा
खम्हार का इमारती पेड़ पतझड़ कि कहानी बयां करता मेरी तरह अकेलेपन की
४२ पेड़ एक ही रात काट दिये गये थे जिनकी कहानी उनके ठूंठ ही की जबानी
किसी की नज़र लगी मुझे काट दिया गया |
मेरा क्या कुसुर मैं तो छाँव देता हूँ |
एक वृक्ष सौ पुत्रो के समान है? |
और करे अपराध और पाये फल भोग |
जल ही जीवन है तो वनस्पति? |
जंगल नहीं होता तो जंगल नहीं कटता |
इक्कीसवी सदी में भी लोग नासमझ हैं ? |
बेक़सूर था मैं फिर क्यूँ मुझे सजा मिली ? |
*हमारी उम्र बीत गई आशियाँ बसाने में इन्हे समय नहीं लगा आशियाँ जलाने में |
*आज भी मेरे लहू का रंग हरा हो जाता है और कोपलें बयां करती हैं धुप की कहानी |
कल तक जो जमीं बंज़र थी आज बच्चों ने अपने श्रमकणों से सींचकर हरा कर दिया
वो आम का पेड़ जिसकी छाया में हम विगत १४ बरसों से प्रार्थना करते आ रहे हैं यही नहीं
प्रति वर्ष इसी वृक्ष की छाया में गणतंत्र दिवस को सोल्लास सांस्कृतिक कार्यक्रम के रंग में डूबे
पुरे गांववासी एक छत के तले बिन भेद भाव सहज भाव से भूल जाते है दीन दुनिया
२६ जनवरी २०१४ को आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम को अपनी छाँव देता आम का पेड़
ईश्वर उस महान व्यक्ति को स्वर्ग में उच्च पद प्रदान करें जिसकी प्रेरणा से पेड़ लगे
स्वर्ग से भी ज्यादा संसार की सबसे खूबसूरत जगह मेरे विद्यालय का आँगन |
जिस उच्च उद्देश्य को ले कर आप चल रहे हैं ,जीवन की विकृतियों के बीच जो सुकृति और सुख के संदेश दे रहे हैं काश, कि और लोग भी उनका अनुकरण करें !
ReplyDeleteसुख से सना था शैशव मेरा चिन्ता से परिचय न था ।
ReplyDeleteवरद-हस्त था बडे-बडों का सुख-सपना अतिशय न था ।
अँजोरा भूरी शैल कुमारी प्यारी-प्यारी सखियॉ थीं ।
लडते मिलते इठलाते हम फूलझडी की लडियॉ थीं ।
जाने कब यह यौवन आया तितर-बितर कर गया हमें।
सखियॉ प्यारी गॉव में रह गईं गॉव छोडना पडा हमें ।
हमें पढाए जो बचपन में गुरु जी कितने अच्छे थे ।
प्रियाप्रसाद थे परसराम थे तिलकेश्वर गुरु भी सच्चे थे ।
बडे गुरु जी होरी लाल थे वे सचमुच ही थे गुरु-तर ।
पूरे गॉव में सम्मानित थे थे प्रणम्य वे गुरु घर-घर ।
लालटेन ले-कर जाते थे हम उनके घर में पढने ।
बडे प्रेम से हमें पढाते वे आए थे हमें गढने ।
अक्षर -अक्षर हमें पढाया गुरु है सचमुच भाग्य-विधाता ।
ReplyDeleteतमस हटा आलोक दिखाया गुरु ही तो है जीवन- दाता ।
छुआ - छुवौवल रेस - टीप भी गुरु - सँग खेला करते थे ।
नवा-गडी और नवा-दाम के नेंग भी गुरु पर चलते थे ।
कहॉ भूल पायेंगे हम उन खट्टी-मीठी स्मृतियों को ।
कुडिया पोखरी बॉधवा अॅधरी की खोई-खोई गलियों को ।
पावन ठौर सीत बावा का अब भी बसा है इस मन में ।
गुडी में राम-कृष्ण लीला की मोहक-स्मृति है जीवन में।
ग्राम-देव कोसला नमन है तुझ में बसा है मेरा बचपन ।
आत्मोन्नति का द्वार दिखाया जीवन यह कृतज्ञता-ज्ञापन।
पर्यावरण को हरा भरा बनाने की प्रेरणा देती सुंदर चित्रों से सजी पोस्ट !
ReplyDeleteसुंदर चित्रों के साथ प्रेरणा देती सुंदर पोस्ट..
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाई जी !!
ReplyDeleteWah! badi hi sunder line likhi hai apne, कल तक जो जमीं बंज़र थी आज बच्चों ने अपने श्रमकणों से सींचकर हरा कर दिया. Thanks, Read our Post: Mahadev Photo
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