अपने मित्रों और विद्वान हितैषी को भी पोस्ट अग्रेषित करें
आपका एक नकारात्मक विचार माँ या पिता को आहत करेगा
और संतान भी माँ बाप से अलग हो जायेगा, समाज को दिशा दें
किन्तु निर्विकार विचार दें किसी कुंठा से परे हों
मैं रमाकांत आपका जीवन भर आभारी रहूँगा
ज़रा विचार करें क्यों टूटता जा रहा है एक प्रबुद्ध परिवार?
अहम् की तुष्टि?
बदलती परिस्थितियाँ?
समाज से अलग रहने की चाह?
स्वेच्छाचारिता?
नए युग की चाह?
नये युग का सूत्रपात?
सकारात्मक सोच ?
नकारात्मक विचार?
कहीं ऐसा तो नहीं?
किसी आकर्षण में?
बंधन मुक्त जीवन की आकांक्षा?
किसी को आहत करने के लिए?
किसी बहकावे में?
गलत संगत में?
कोई प्रयोग धर्मिता?
हमारी उदारता?
हमारी हठ धर्मिता?
या फिर
प्रेम की कमी?
सामंजस्य की कमी?
काम का दबाव?
शुरू से ही गलत जीवन शैली?
अभावों में जीवन?
महत्वाकांक्षा?
हमारी कोई कमजोरी?
हमने विचार कर लिया?
किसी का दुरुपयोग?
पारिवारिक दबाव?
कोई कुंठा?
किसी का आश्रय?
अलग बसने की चाह?
विश्वास की कमी?
विश्वास का टूटना?
धोखेबाजी अपनों की?
हम झेल रहे हैं
एक तरफा प्रताड़ना ?
किसी की भी मनमानी ?
हमेशा झूठ बोलना ?
कोई अफवाह ?
कोई बड़ा लाभ ?
हानि पहुँचाने की मंशा ?
अविश्वास की मार
चरित्रहीनता है नहीं
किन्तु गलतफहमी पैदा करने वालों से घिरे
आँखों पर किसी ने पट्टी बाँध दी हो?
बसा हुआ परिवार टूटता है कारण कुछ भी हो
उसकी आंच में जल उठते हैं जुड़े लोग अकारण
कोई बाध्यता नहीं फिर भी एक आग्रह तो है
हम सब अपनी सीमा में अपनी मर्यादा संग साथ रहें
कौन छोटा, कौन बड़ा, किस पैमाने से नापा जाये?
कौन नापेगा, राजा भोज के राज्य का गड़रिया
कहीं नाप तौल गलत हो गया तो किसकी खता?
जीवन हमारा है निर्णय हमारा ही हो विवेक से
ये वो मार्ग है जो वन वे है जाना या आना एक बार
ज़रा सोचो मैं मर गया तो दुबारा मिलूँगा तुम्हे?
अलगाव भी मृत्यु जैसी ही संवादहीनता है?
तब चाहकर भी कुछ नहीं किया जा सकता
हमारा दुर्भाग्य और प्रेम संग विश्वास की कमी?
अनुरोध
बनो विशाल, समाहित कर लो मुझे अपने में
समर्पित मेरे अपनों को जिनसे मेरा जीवन है
०१ सितम्बर २०१३
" प्रेम ही परमेश्वर है ।" इन यक्ष- प्रश्नों का एक ही उत्तर है । भाई ! शिकायत करना, झल्लाना कमजोरी का प्रतीक है यद्यपि यह बल की तरह दिखता है । मनुष्य प्रेम को कभी भी छीन कर नहीं पा सकता इसके लिए समर्पण चाहिए । प्रेम में हार ही जीत बन जाती है । कबीर ने कहा है " प्रेम न खेती ऊपजे प्रेम न हाट बिकाय । राजा परजा जेहि रुचय शीष देई लै जाय ।" अर्थात् प्रेम को प्रयास करके नहीं पा सकते ,उसे खरीद कर नहीं पा सकते ,फिर उसे पायें कैसे ? राजा हो या प्रजा हो मनुष्य अपने अहम् को त्याग कर , समर्पित होकर प्रेम को पा सकता है । समझदार वही है जो प्रेम में झुकता है ।
ReplyDeleteसवालों के बियाबां.
ReplyDeleteजीवन एक यात्रा है और यहाँ हर कोई अपनी अपनी गति, मति से अपनी यात्रा करता है, मित्र, सम्बन्धी सब एक सीमा तक ही साथ दे सकते हैं, अंततः हरेक को अपना सुख-दुःख स्वयं ही सृजित करना है..
ReplyDeleteसमय के साथ परिवर्तन अवश्यम्भावी है. यदि ऐसा न होता तो विकास न होता। लेकिन हर विकास की कीमत चुकानी पड़ती है.
ReplyDeleteआपने सोचने पर मजबूर कर दिया रमाकांत जी.
परिवार टूटने के कारण कई हो सकते हैं हर किसी की अपनी कहानी होती है और उसे समझने के अलग अलग तरीके.
ReplyDeleteअक्सर गलतफहमियाँ और फिर संवादहीनता
ही बनती हैं अलगाव का कारण.
" नर हो न निराश करो मन को ।" भाई ! कोई दूसरा यदि आपको परेशान कर रहा है तो आप परेशान क्यों हो रहे हैं और यदि आप परेशान हो रहे हैं इसका मतलब यह है कि आप उसे प्यार करते हैं तो आप झुक कर उससे बात कर लीजिए न, समस्या सुलझ जाएगी । आप अपनी समस्याओं से बहुत बडे हैं आप अपनी प्रतिभा को पहचानिए और इस व्यूह से बाहर निकलिए । मैं आपके लिए बहुत चिन्तित हूँ । मैं अकलतरा आ जाऊँ क्या ?
ReplyDeleteसबसे बड़ी बात सहनशीलता की कमी,अपनत्व की भावना का अभाव ... हम से अलग मैं की अवधारणा ...और भी बहुत सी वजहें है... परिवार बिखरने की ... आपने जो लिखा सोचने पर मजबूर कर ही रहा है ..एक भी कारण ज्ञात हो तो हल निकालना ज्यादा जरूरी ...
ReplyDeletehttp://paricharcha-rashmiprabha.blogspot.in/2013/09/blog-post.html
ReplyDeleteकारण तो है ही - किसी भी बात की अति भयानक परिणाम देती है और प्रकृति इसका उदाहरण है - प्रेम,सीख,डांट-फटकार,शिक्षा,पैसा ------- अति होते कुछ भी नहीं रह जाता
ReplyDeleteसहनशीलता,की कमी अपनत्व,गलतफहमियाँ और फिर संवादहीनता
ReplyDeleteही अलगाव का कारण बनाती है,,,
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विचाराणीय प्रश्न, चिंताजनक स्थिति।
ReplyDeleteपरिवार टूटने के अपने कई निजी कारण होते है,
ReplyDeleteमुख्यतः सहनशीलता की कमी.
किसी समाज की सिविलिटी इस बता से तय होती है उसमें नारी का क्या स्थान है ?क्या वह महज़ भोग्या है ?शरीर है। आशारामों के लिए है।
ReplyDeleteऐसा मैं केन्द्रित,भोग केन्द्रित समाज टूटेगा टूटेगा लाख करे किन कोय।समाधान है जीवन का विज्ञान श्रीमदभगवतगीता।
नकारात्मक विचार दोषी हैं
ReplyDeleteअपनों पर अविश्वास दोषी है
परिवार टूटने के !
हमें अपनी पूरी इमानदारी से , अपनों पर भरोसा करना ही होगा !
शुभकामनायें !
परिवारों के टूटने के कई कारण होते हैं ... मुझे लगता है रिश्ता बना रहे तो जो भी मजबूरी है कम से कम टूटन तो नहीं होती ... आपसी व्यवहार ... संवाद ... ये जरूर बना रहना चाहिए ...
ReplyDeleteकिसी एक कारण से परिवार नहीं टूटते...प्रत्येक परिवार में अलग कारण होते हैं...केवल 'स्व' की बढ़ती हुई भावना, सहनशीलता की कमी अनेक कारण हैं...जहाँ अपना स्वार्थ ही महत्वपूर्ण हो वहां परिवार टूटेगा ही...
ReplyDeleteपरिवार आज से नहीं टूट रहे हैं, ये तो अनादिकाल से टूटते आ रहे हैं, और इसका सबसे बड़ा कारण है 'स्वार्थ', जब संबंधों में स्वार्थ आ जाए तो परिवार टूट ही जाते हैं, कैकेई के स्वार्थ ने राजा दशरथ का परिवार तोड़ दिया था
ReplyDeleteअलगाव भी मृत्यु जैसी ही संवादहीनता है ...
ReplyDeleteघर टूटने के बहुत से कारण भी बताये गए और निदान भी ...
पेड़ की जड़ अगर मजबूत हो तो वो हिलता नहीं ... और क्या कहूँ ...?
logon ka aham bada ho raha hai, ek doosre ko bardaasht nahin kar paa rahe , Ambitions badh rahe hain. sabko freedom chahiye. Shayad yahi sab kaaran hai !
ReplyDeleteचिंतन प्रकाशन के लिए आभार। सभी प्रश्न विचारणीय हैं और उत्तर भी इन्हीं संभावनाओं के गिर्द घूम रहे हैं। संसार में सब कुछ किसी नियम के तहत होता है लेकिन न तो सब नियम सार्वभौमिक होते हैं और न ही एक छोटे से जीवन में हम सब कुछ जान सकते हैं। सच पूछिए तो सब कुछ जानने की ज़रूरत भी नहीं है: बीती को बिसार के आगे की सुध लें ...
ReplyDeleteक्या कहें....
ReplyDeleteअभी कहीं पढ़ा---
वो मेरा दोस्त है सारे जहाँ को है मालूम
दगा करे वो किसी से तो शर्म आये मुझे
आपने वाकई यक्ष प्रश्न खडे कर दिये जिनका जवाब कोई युधिष्ठर ही दे सकता है. फ़िर भी आज के परिपेक्ष्य में सबके अपने अपने स्वार्थ सर्वोपरी हैं और जहां स्वार्थ सर्वोपरी हो वहां अन्य सब बातें गौण हो जाती हैं.
ReplyDeleteनिसंदेह आत्मा को झकझोरती पोस्ट.
रामराम.
सभी के लिए विचारणीय ...... सधे शब्दों में समेटे विचार
ReplyDeleteबहुत सटीक सवाल है आपके , सभी का जवाब हम सभी के पास है लेकिन सब अपनी -अपनी सहूलियत के अनुसार ही रहना और सोचना चाहते है।
ReplyDeleteकारण कुछ भी हो टूटन असहनीय, दुखदायी होती है ....
ReplyDeleteलेकिन स्वार्थ और मजबूरी के सेतु से तो टूटन और अलगाव भला…ग़हन चिंतन वाला विषय है , घर-घर की अलग-अलग कहानी
हर कोई टूटने तक की कगार पर है ...फिर भी उत्तर किसी के पास नहीं है
ReplyDeleteRachana sangrhneey hai .....adyatm ke sahare hi samadhan sambhav hai ......geeta me sare uttar uplabdh hain .
ReplyDeleteआपस में संवाद हीनता और एक दूसरे के प्रति विश्वास की कमी ... आपस के विचारों में बदलाव , सहिष्णुता की कमी ..... रोज़ की टकराहट से बेहतर है एकल परिवार ।
ReplyDeleteहम सभी एकाकी टूटे हारे हुए लोग हैं, दूसरों पर दोषारोपण करते हुए और खुद पर किए गए आरोपों को गलत ठहराते हुए. सामाज आज का हो या किसी युग का ऐसे ही बिखरा था. प्रगति के साथ अलगाव होना तो तय है. एक तरफ जहां वैश्वीकरण की बात है तो वहाँ संयुक्त परिवार का टूटना लाजिमी है. बस एक ही अंतिम बात है कि सिर्फ दूसरों को नहीं बल्कि हर एक को मानवीय होना होगा तभी इन सभी सवालों का सही जवाब मिलेगा और कई समस्याओं का निराकरण होगा.
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