रामा { रमाकांत } का प्रणाम स्वीकारें |
एक कथा का आनंद लीजिये
पुराने समय में लीलागर नदी के तट पर रामा यादव अपने बेटा, बेटी, पत्नि के साथ
निवास करता था पूरा परिवार शिव भक्त था नदी के तट पर विराजित शिव जी की
नित्य सुबह शाम पूजा करता था अचानक एक दिन पत्नि को सांप ने डस लिया
और वह चल बसी रामा ने सोचा शिव की कृपा होगी,शिरोधार्य किया किन्तु बच्चों
की देखभाल में कमी आने लगी बच्चे बीमार पड़ गये और वे भी चल बसे
रामा उद्विग्न हो उठा मन उचट गया दीन दुनियां से लेकिन वक़्त कहाँ रुकता है
रामा मन में सोचने लगा मेरा क्या कसूर मेरी भक्ति भाव में कौन सी कमी रह गई
जो ऐसा हुआ अब वह प्रतिदिन सुबह शाम बिना नांगा सात लाठी शिव लिंग को
मारकर अपना क्रोध जताता रोज गाय बैल को खोलता दूध दुहता, लोगों को बांटता
शाम को सोने के पहले शिव जी को कोंसता, बन गया बिन बनाये रोजमर्रा का काम,
पागलों की तरह चल पड़ता बिन खाये पिये जंगल को
दिन बीतते गये, मौसम भी बदला, जेठ की दोपहरी ढलने लगी, आसमान में
बादल छाने लगे एक दिन सुबह से ही मौसम खराब होने लगा था जानवर
अनमने से यहाँ वहां जाने लगे रामा जानवरों को चराने नदी के पार रोज की
तरह चला गया, आज घर में चूल्हा भी नहीं जला था, शाम को अचानक
आसमान बादलों से भर गया, शुरू हो गई बारिस उमड़ घुमड़ कर
जल मग्न हो गया जंगल का कोना कोना बिखर गये सभी जानवर अपनी जान
बचाने में और रामा लहुलुहान हो गया इन्हें सकेलने में आज कोई सुध नहीं रह
गई थी किसी काम की थका हारा उफनती नदी को जानवरों संग तैरकर जैसे तैसे
घर पहुंचा, जो बन गई थी बाढ़ का हिस्सा मन खीझ उठा, लगा आज सुबह से ही
कुछ छुटता चला जा रहा है, लेकिन सुध बिसरा गया था कैसे? क्या छुट गया?
घर के बिखरे चीजों को देखते देखते अचानक याद आ गया भुला काम बस क्या था
चल पड़ा, न देखा अँधेरा न परवाह की अड़चन की, उफनती बौराती नदी को तैरकर
पहुंचा शिव मंदिर फिर क्या था, भांजी लाठी और तान तान कर सुबह और शाम का
हिस्सा दिया चौदह लाठी शिव जी के सिर पर झमाझम,
मारते वक़्त कहता जा रहा था
**ले तेरा दिया तेरे को ही दिया **मैंने तेरा क्या बिगाड़ा था
अचानक बिजली की कड़क और कौंध के साथ मृग छाला पहने शिव जी प्रकट हुए
और कहा रामा धन्य है तुम्हारी भक्ति और प्रेम इस बरसात में भी मैं तुम्हे याद रहा,
मांगो क्या चाहिये जो भी, अहा इतने कष्ट में भी यह अनन्य श्रद्धा
अचानक नंग धडंग शिव को मंदिर में देख रामा ने पूछा तुम कौन हो और यहाँ कैसे घर
जाओ बारिस में भींग जाओगे किन्तु उत्तर मिला
मैं शिव जी हूँ, रामा ने कहा अच्छा तो मैं हर हर महादेव हूँ, चलो जाओ अपने घर
शंकर जी ने कहा अरे भोले रामा मैं सचमुच शिव हूँ मैं तुम्हारी भक्ति पर प्रसन्न हूँ
हाँ तो, होगे शिव मैं क्या करूँ और मैं कैसे मानूं की तुम भगवान हो, चलो हो भी तो,
मुझे क्या लेना देना, जाओ अपने घर, खुद के पास पहनने को अंगरखा नहीं और …
भोलेनाथ मुस्कुराकर बोले चलो जो मन चाहे मांग लो मिल जायेगा बिना विलम्ब
रामा ने कहा अच्छा अभी बारिस बंद करो, बारिस बंद हो गई
अब चल पड़ा मांग और पूर्ति का खेल शुरू हुई मांग
घर चलो, शिव जी तुरत पहुंचे रामा को लेकर घर, घर बिखर गया है अभी ठीक करो,
गोठान को ठीकठाक करो, मेरा घर मेरी पत्नि और बच्चों के बिना सुना लगता है,
ये क्या बात मुंह से निकली और पूरी होते गई घर किलकारियों से गूंज गया
रामा मांगता गया और भोले महाराज देते गये रामा और बच्चों को अब ध्यान आया
अरे ये तो सचमुच ही शिव जी हैं पूरा परिवार चरणों में लोट गया
रामा कभी अवाक घर को देखता तो कभी भोले भंडारी को
शायद प्रेम और श्रद्धा लिये शब्द कम पड़ जाते है ये अनुभूति हो?
रामा { रमाकांत } का प्रणाम स्वीकारें और अड़हा पर कृपा बनाये रखें
चित्र गूगल से साभार
सुन्दर प्रस्तुति-
ReplyDeleteआभार आदरणीय-
बहुत खूब,सुंदर कथा !
ReplyDeleteRECENT POST : हल निकलेगा
Aabhar hamare blog par bhi apni ray de http://www.hinditechtrick.blogspot.com
ReplyDeleteचर्चा मंच अंक १३७५ के सभी सदस्यों का आभार आपने कथा को इस योग्य समझा
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कथा.
ReplyDeleteसुन्दर कथा ... सच कहा है जहां प्रेम हो श्रधा हो ... वहाँ शब्दों से वार्तालाप की जरूरत कहां रह जाती है ...
ReplyDeleteबेहतरीन अभिवयक्ति.....
ReplyDeleteवाह ! भगवान तो औघड़ दाता हैं ही..भक्ति करे कोई सूरमा..
ReplyDeletesundar.....
ReplyDeleteयह कहाँ मिले भाई ??
ReplyDeleteare waah bahut acchi kagi kahani ....dil khush ho gaya ....
ReplyDeletekagi nahi lagi
ReplyDeleteदिल को बहलाने के लिए ग़ालिब ये ख्याल अच्छा है
ReplyDeleteदिल को बहलाने के लिए ग़ालिब ये ख्याल अच्छा है
ReplyDeletevery good story
ReplyDeleteभगवान तो भाव के भूखे हैं । "ॐ नमः शिवाय ।"
ReplyDeletebahut badhiya kahani
ReplyDeleteकथा प्रस्तुति बाँधे रखती है..
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