मेरी माँ |
क्यूं नहीं सोचता
ये अनोखा रिश्ता?
मेरी माँ
बहन
बेटी
दादी
नानी
माँसी
बुआ
काकी
सहेली
और रिश्तों से जुड़े रिश्ते
जो हमारे अपने हैं?
हर युग में
रिश्तों का दर्द?
क्यूं?
पञ्च कन्यायें
मान्यताओं में ही?
क्यूं अविश्वास से भर गया
ये प्यार का रिश्ता?
मेरे पिता
भाई
बेटा
दादा
नाना
मौसा
फूफा
काका
मित्र
और तब लोग पुकारते थे
गाँव की बेटी अकलतरहीन ]
जो हमारे अपने थे
न जाने कैसे?
सिमट गये रिश्ते
आज सब अजनबी से क्यूं लगते हैं?
या सरोकार रह गया शरीर के माँ स से?
चित्र गूगल से साभार
समर्पित विश्व की माँ बहनों को
भादों मास कृष्ण पक्ष द्वादशी
२ सितम्बर २०१३
आज सब अजनबी से क्यूं लगते हैं?
ReplyDeleteया सरोकार रह गया शरीर के माँ स से?
शायद यही सच रह गया है
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मंगल कामनाएं मधुर रिश्तों को ..
ReplyDeleteबहुत सार्थक प्रश्न ..... लगता है सब रिश्ते तिरोहित हो गए हैं बस एक ही रिश्ता रह गया है ।
ReplyDeleteअजनबी से सब हैं क्योंकि अजनबी है खुद मानव स्वयं के लिए..
ReplyDeleteshayad ab log rishton men aatmiyta nahi dhudhte balki paisa aur jism yahi unki sacchai bn chuki hai par aise log jarurat ke samay bilkul akele hote hain ..marm ko jhakjhorti rachna ..
ReplyDeleteमाँ से रिश्ता जुड़ने के बाद ही सारे रिश्ते बनते है.बहुत ही सार्थक प्रश्न ...
ReplyDeleteभावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने.....
ReplyDeleteरिश्तों के भावनाओं का सुंदर सृजन ! बेहतरीन प्रस्तुति !!
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कुछ रिश्ते खून, बहुतेरे मन के.
ReplyDeleteरिश्ते तो समझने से होते हैं ... शायद आज समझ छोटी हो के रह गई है ...
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