गुरुकुल ५

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Wednesday, 11 September 2013

रिश्ता / मेरी माँ

मेरी माँ

क्यूं नहीं सोचता
ये अनोखा रिश्ता?

मेरी माँ
बहन
बेटी
दादी
नानी
माँसी
बुआ
काकी
सहेली
और रिश्तों से जुड़े रिश्ते
जो हमारे अपने हैं?

हर युग में
रिश्तों का दर्द?
क्यूं?

पञ्च कन्यायें
मान्यताओं में ही?

क्यूं अविश्वास से भर गया
ये प्यार का रिश्ता?

मेरे पिता
भाई
बेटा
दादा
नाना
मौसा
फूफा
काका
मित्र
और तब लोग पुकारते थे
गाँव की बेटी अकलतरहीन ]
जो हमारे अपने थे

न जाने कैसे?
सिमट गये रिश्ते

आज सब अजनबी से क्यूं लगते हैं?
या सरोकार रह गया शरीर के माँ स से?

चित्र गूगल से साभार
समर्पित विश्व की माँ बहनों को
भादों मास कृष्ण पक्ष द्वादशी
२ सितम्बर २०१३

10 comments:

  1. आज सब अजनबी से क्यूं लगते हैं?
    या सरोकार रह गया शरीर के माँ स से?

    शायद यही सच रह गया है
    latest post: यादें

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  2. मंगल कामनाएं मधुर रिश्तों को ..

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  3. बहुत सार्थक प्रश्न ..... लगता है सब रिश्ते तिरोहित हो गए हैं बस एक ही रिश्ता रह गया है ।

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  4. अजनबी से सब हैं क्योंकि अजनबी है खुद मानव स्वयं के लिए..

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  5. shayad ab log rishton men aatmiyta nahi dhudhte balki paisa aur jism yahi unki sacchai bn chuki hai par aise log jarurat ke samay bilkul akele hote hain ..marm ko jhakjhorti rachna ..

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  6. माँ से रिश्ता जुड़ने के बाद ही सारे रिश्ते बनते है.बहुत ही सार्थक प्रश्न ...

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  7. भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने.....

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  8. रिश्तों के भावनाओं का सुंदर सृजन ! बेहतरीन प्रस्तुति !!

    RECENT POST : बिखरे स्वर.

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  9. कुछ रिश्‍ते खून, बहुतेरे मन के.

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  10. रिश्ते तो समझने से होते हैं ... शायद आज समझ छोटी हो के रह गई है ...

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