1*
बंजर जमीं पर
रोप दिए मैंने
बिना बुझे
नीम और जामुन
लोग तोड़ते हैं दातून
बच्चे खाते हैं जामुन
फैला जाते हैं कचरा?
खाद बनाने
2*
मेरे पूर्वजों ने
धरा में बना दिए गड्ढे
भर जाता है बारिश का जल
डूब जाते हैं जानवर और बच्चे
शरीर की अगन बुझाने
अन्न के लिये
आज वो जल भी दे जाता है
3*
एक नन्ही सी गौरैया
हर बरस बिन नागा
बनाती है अपना घोसला
आज वो बस गई है
मेरे पुराने चित्र के पीछे
मन सशंकित हो उठता है
कभी-कभी सोचता हूँ
मेरे जाने के बाद
ये घोसला न उजड़ जाये?
4*
परिवर्तन और परिवर्तन का खौफ
दिल और दिमाग पर
पैठ गया है जड़ें जमाकर
लेकिन क्या करें?
पुरखों ने सिखाया है
करम और विश्वास
चल पड़े हैं हम भी
पुरखों की राह पर?
05.06.2012
चित्र गूगल से साभार
एक नन्ही सी गौरैया
ReplyDeleteहर बरस बिन नागा..यह कविता ख़ास पसंद आई .
शेष भी बहुत अच्छी हैं..सभी में आज दार्शनिक पुट नज़र आ रहा है.
जो परिवर्तन से खौफ खाते हैं उन्हें मजबूरन पूर्वजों के रास्ते ही चलना पड़ता है.लेकिन समय के साथ ऊसूलों में थोड़े बदलाव की गुंजाईश तो रहनी ही चाहिए.
बेहतरीन क्षणिकाएं
ReplyDeleteबेहतरीन,भावपूर्ण सुंदर क्षणिकाएँ ,,,
ReplyDeleterecent post: वजूद,
अर्थपूर्ण बढ़िया क्षणिकाएं...
ReplyDeleteसरकती पीढि़यां, चलती दुनिया.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर सीपिकाएं ।
ReplyDeletesundar bhav abhivati.
ReplyDeleteभावपूर्ण सुन्दर क्षणिकाएं...आभार
ReplyDeleteसार्थक, भावपूर्ण और मनमोहक क्षणिकाएं!!
ReplyDeleteVERY APPEALING CREATION.
ReplyDeletehttp://www.parikalpnaa.com/2012/12/blog-post_22.html
ReplyDeleteआने वाले कल में बच्चे भी यही करेंगे, आने वाली पीढ़ियों के लिये नीम, जामुन रोप जायेंगे।
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