गुरुकुल ५

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Saturday, 22 December 2012

विक्रम वेताल 7

यत्र नार्यस्त पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः?

राजन क्या आप ही
न्याय प्रिय विक्रमादित्य हो?
न्याय और विद्वान के संरक्षक?
तब आज जिह्वा पर ताला क्यों?

क्या बलात्कारी आपका पुत्र?
या आपका हितैषी?
राजदार जो संकट मोचक?
या जोरू का भाई?

क्या उसे कल भारत रत्न देना है?
या किसी महापुरूष की संतान?
है कोई  युग पुरुष?
जिसे फांसी  दे देने से

मानवता कलंकित हो जाएगी?

लोग सड़क पर उतरें?
एवज में बेटी के बलात्कार के?
क्यों कोई मुह ताके न्याय के?
न्याय बिन गुहार के मिले?

उम्र कैद उचित?
या तथाकथित अंग भंग?
या मानवाधिकार का सहारा लें?
बचा डालें अपनी बहन सौपने कल?

गैंग रेप कोई महान कृत्य?
जिस पर बहस ज़रूरी?

फांसी के अतिरिक्त कोई अन्य सजा कारगर?
संविधान में संशोधन ज़रूरी?

राजन
भोथरी हो गई तुम्हारी तलवार?
आज कोई गड़रिया चढ़ेगा टीला पर?
राजा भोज खोजेगा सिहासन बत्तीसी?

शायद त्वरित उचित न्याय ही रोके
जन आक्रोश और बलात्कार

21.12.2012
यह रचना *** अस्किनी *** संग 
हर बेटी, बहन, माँ, को समर्पित
चित्र गूगल से साभार
  

18 comments:

  1. शायद त्वरित उचित न्याय ही रोके
    जन आक्रोश और बलात्कार,,,,,,,

    सटीक सार्थक प्रस्तुति,,,,बधाई रमाकांत जी,,,

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  2. Rarest of the rare????
    क्या करेगा चमत्कार... चिंता जायज़ है... गहन अभिव्यक्ति... आभार

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  3. सच्‍चा न्‍याय और व्‍यवस्‍था तो वही, जो ऐसी स्थिति न आने दे.

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  4. न्याय व्यवस्था में उपयुक्त शोध की आवश्यकता है..
    तभी ऐसे कुकर्मी डरेंगे....

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  5. आज कोई गड़रिया चढ़ेगा टीला पर?

    विक्रम की आँखों पर बंधी पट्टियाँ खोलने

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  6. दिनांक 24/12/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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    1. यशवंत माथुर जी आपका ह्रदय से आभार

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  7. तलवारों में जंग लग गया है ,डरपोक हो गए हैं लोग.
    कहीं अन्याय होते देख नज़र चुरा कर चले जाते हैं ,कोई डर है..और इस डर को निका लने के लिए समाज में चेतना लानी ज़रुरी है ,न्याय और कानून व्यवस्था में विश्वास लाना ज़रुरी है उस के लिए आवश्यक हैं अति शीघ्र कुछ संशोधन .

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  8. आक्रोश मिश्रित विवशता का अजीब माहौल है। कितने प्रश्न और कितनी आशाएं मुंह बायें खड़ीं हैं, परन्तु जवाब अब तक शून्य है । एक लहर आई है बदलाव लाने की, कहीं ये भी टूट कर बिखर न जाए। मन भय से आशंकित है, कहीं क्रान्ति विफल न हो जाए।

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  9. सारे प्रश्न सार्थक. मेरे ख़याल से एक अति त्वरित न्यायिक कारवाई हो और इन्हें सरेआम फांसी पर चढ़ाना जाना चाहिए और शव को सागर में बहा देना चाहिए क्योंकि इनके आखिरी निशाँ भी मिटटी को कलंकित कर देंगे.

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  10. सार्थक रचना

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  11. बहुत सारे प्रश्न .... उत्तर एक कानून में संशोधन .... ऐसे कृत्यों पर न्याय प्रक्रिया त्वरित हो ... दंड विधान हो ऐसा कि लोग डरें .... सौ बार सोचें ऐसा कुछ करने से पहले । बलात्कार को मात्र क्षणिक आवेश न समझा जाए ।

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  12. इस प्रकारकी घटनाओं का स्थाई हल ढूंढना जरुरी है !
    सार्थक रचना ...

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  13. त्वरित उचित न्याय ...
    पर क्या मिल सकेगा आज के राजनितिक माहोल में ...
    सार्थक चिंतन करती रचना ...

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  14. सुन्दर सार्थक रचना |

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  15. सही सवाल उठाया है आपने! आज के इस दौर में अब हर लड़की को खुद ही दुर्गा बनना होगा और सामना करना होगा ऐसे राक्षसों का
    तभी मिलेगी नयी राह !! ,

    अपना आशीष दीजिये मेरी नयी पोस्ट

    मिली नई राह !!

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  16. गुनाह सामने ! गुनहगार सामने ! फिर क्या सोचना ? कैसा केस ? कैसी सुनवाई ?
    होना चाहिए, तो सिर्फ़ और सिर्फ़... सज़ा ! फिर देरी किस बात की... :(((
    ~सादर!!!

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  17. त्वरित आक्रोश के दौर से इतर अब सोचने विचारने का समय है।

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