गुरुकुल ५

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Thursday, 13 December 2012

मैं अहंकार



अहंकार बोल उठा?
1*
पिताजी ने एक दिन कहा
तुम मेरी तरह मत बनना
अन्यथा मेरी भांति मरने के बाद
लोग तुम्हें भी मूर्ख कहेंगे
2*
भाई ने राह चलते कहा
तुम इतने अच्छे क्यों हो?
मेरा काम तुमने कर दिया
मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकता
3*
माँ ने थकी सी आवाज में कहा
तुमने अपने पिता के दायित्वों का
कर दिया निर्वहन
मैं चलती हूँ अनंत यात्रा में
4*
यह तुम्हारा कर्तव्य था?
5*
मित्र ने सांझ की बेला में कहा टहलते
तुम भी निकले खानदानी जड़ भरत
दुनियादारी ही भूल गये
तुम्हारी चिता को आग कौन लगायेगा?
6*
एक लड़की बहुत प्यार कर बैठी
आप इतने भले क्यों हो?
आपने मेरा कितना ख्याल रखा
लेकिन मैं साथ नहीं दे सकती
7*
एक दिन लोगो ने सुना
रमाकांत चल बसा
अरे मर गया?
चलो अच्छा हुआ
मर गया, मर गया
8*
कुछ मन से कुछ अनमने
हो गये इकट्ठे झोकने आग में

एक कानाफूसी हुई

जीया भी तो किसके लिये?
और मर भी गया तो किसके लिये?

13.12.2012
chitra googal se sabhar
             

21 comments:

  1. क्या कहूँ रमाकांत जी....
    आपने तो निःशब्द कर दिया...
    दाद भी क्या दूँ इस अभिव्यक्ति पर...
    नमन..

    अनु

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  2. रमाकांत जी ये दुनिया ऐसी ही है, बहुत गहरी.....मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति....सादर

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  3. बहुत अच्छी सच्ची और बहुत कुछ कह गयें आप, दर्द को अच्छे से बयां किया है आपने...

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  4. जीया भी तो किसके लिये?
    और मर भी गया तो किसके लिये?

    ....उफ्फ..निशब्द करती बहुत गहन अभिव्यक्ति..

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  5. जीवन सच्‍चा, सारे शब्‍द निरर्थक, मेरी यह टिप्‍पणी भी, वैसे कविता सार्थक लगी.

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  6. हृदयस्पर्शी ....निशब्द करते भाव .....

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  7. जीया भी तो किसके लिये?
    और मर भी गया तो किसके लिये?
    ...यही जीवन का सच है ....आप किसीको भी तृप्त नहीं कर सकते ...क्योंकि उम्मीदें कभी ख़त्म नहीं होतीं . ....!

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  8. खुद के जीने के लिए थोडा स्वार्थी होना पड़ता है !
    वरना दुनिया के लोग अपना स्वार्थ साध लेते है
    प्यार से ही सही ...

    ReplyDelete
  9. खुद के जीने के लिए थोडा स्वार्थी होना पड़ता है !
    वरना दुनिया के लोग अपना स्वार्थ साध लेते है
    प्यार से ही सही ...

    ReplyDelete
  10. रचना में छुपा हुआ दर्द इसे मर्मस्पर्शी बना देता है.

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  11. जीया भी तो किसके लिये?
    और मर भी गया तो किसके लिये?
    गहन भाव लिये उत्‍कृष्‍ट लेखन ...
    आभार सहित

    सादर

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  12. नैराश्य , नैराश्य , नैराश्य

    अब तो वापस आ जाओ "तात"

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  13. जीया भी तो किसके लिये?
    और मर भी गया तो किसके लिये?



    निशब्द करती रचना,,,,बहुत उम्दा सृजन,,,, बधाई रमाकांत जी,,

    recent post हमको रखवालो ने लूटा

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  14. एक गहरे भावों से सजी और सोचने पर मजबूर करती कविता.. अंतिम छंद में अवाक करती हुई, कुछ कहना भी संभव नहीं!! विह्वल करने वाली अभिव्यक्ति!!

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  15. आह!
    झटका देती है रचना है .. स्तब्ध कर देती है।

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  16. यही संसार है और यही जीवन है..

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  17. रमाकान्त जी ये दुनिया ऐसी ही है..फिर भी दुनिया चल रही है,,बहुत ही सटीक रचना..

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  18. @ जिया भी, किसके लिए
    औ मर गया किसके लिए
    ...

    दुनिया वाले क्या पहचाने, रमाकांत की फितरत को !
    जोड़ घटाने की नगरी में,समझ न आयेंगे यह गीत !

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