अहंकार बोल उठा?
1*
पिताजी ने एक दिन कहा
तुम मेरी तरह मत बनना
अन्यथा मेरी भांति मरने के बाद
लोग तुम्हें भी मूर्ख कहेंगे
2*
भाई ने राह चलते कहा
तुम इतने अच्छे क्यों हो?
मेरा काम तुमने कर दिया
मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकता
3*
माँ ने थकी सी आवाज में कहा
तुमने अपने पिता के दायित्वों का
कर दिया निर्वहन
मैं चलती हूँ अनंत यात्रा में
4*
यह तुम्हारा कर्तव्य था?
5*
मित्र ने सांझ की बेला में कहा टहलते
तुम भी निकले खानदानी जड़ भरत
दुनियादारी ही भूल गये
तुम्हारी चिता को आग कौन लगायेगा?
6*
एक लड़की बहुत प्यार कर बैठी
आप इतने भले क्यों हो?
आपने मेरा कितना ख्याल रखा
लेकिन मैं साथ नहीं दे सकती
7*
एक दिन लोगो ने सुना
रमाकांत चल बसा
अरे मर गया?
चलो अच्छा हुआ
मर गया, मर गया
8*
कुछ मन से कुछ अनमने
हो गये इकट्ठे झोकने आग में
एक कानाफूसी हुई
जीया भी तो किसके लिये?
और मर भी गया तो किसके लिये?
13.12.2012
chitra googal se sabhar
क्या कहूँ रमाकांत जी....
ReplyDeleteआपने तो निःशब्द कर दिया...
दाद भी क्या दूँ इस अभिव्यक्ति पर...
नमन..
अनु
रमाकांत जी ये दुनिया ऐसी ही है, बहुत गहरी.....मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति....सादर
ReplyDeleteबहुत अच्छी सच्ची और बहुत कुछ कह गयें आप, दर्द को अच्छे से बयां किया है आपने...
ReplyDeleteजीया भी तो किसके लिये?
ReplyDeleteऔर मर भी गया तो किसके लिये?
....उफ्फ..निशब्द करती बहुत गहन अभिव्यक्ति..
जीवन सच्चा, सारे शब्द निरर्थक, मेरी यह टिप्पणी भी, वैसे कविता सार्थक लगी.
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी ....निशब्द करते भाव .....
ReplyDeleteजीया भी तो किसके लिये?
ReplyDeleteऔर मर भी गया तो किसके लिये?
...यही जीवन का सच है ....आप किसीको भी तृप्त नहीं कर सकते ...क्योंकि उम्मीदें कभी ख़त्म नहीं होतीं . ....!
सच को कहती गहन रचना
ReplyDeleteखुद के जीने के लिए थोडा स्वार्थी होना पड़ता है !
ReplyDeleteवरना दुनिया के लोग अपना स्वार्थ साध लेते है
प्यार से ही सही ...
खुद के जीने के लिए थोडा स्वार्थी होना पड़ता है !
ReplyDeleteवरना दुनिया के लोग अपना स्वार्थ साध लेते है
प्यार से ही सही ...
रचना में छुपा हुआ दर्द इसे मर्मस्पर्शी बना देता है.
ReplyDeleteजीया भी तो किसके लिये?
ReplyDeleteऔर मर भी गया तो किसके लिये?
गहन भाव लिये उत्कृष्ट लेखन ...
आभार सहित
सादर
prabhaavshaali prstuti....
ReplyDeleteनैराश्य , नैराश्य , नैराश्य
ReplyDeleteअब तो वापस आ जाओ "तात"
जीया भी तो किसके लिये?
ReplyDeleteऔर मर भी गया तो किसके लिये?
निशब्द करती रचना,,,,बहुत उम्दा सृजन,,,, बधाई रमाकांत जी,,
recent post हमको रखवालो ने लूटा
एक गहरे भावों से सजी और सोचने पर मजबूर करती कविता.. अंतिम छंद में अवाक करती हुई, कुछ कहना भी संभव नहीं!! विह्वल करने वाली अभिव्यक्ति!!
ReplyDeleteआह!
ReplyDeleteझटका देती है रचना है .. स्तब्ध कर देती है।
यही संसार है और यही जीवन है..
ReplyDeleteरमाकान्त जी ये दुनिया ऐसी ही है..फिर भी दुनिया चल रही है,,बहुत ही सटीक रचना..
ReplyDelete@ जिया भी, किसके लिए
ReplyDeleteऔ मर गया किसके लिए
...
दुनिया वाले क्या पहचाने, रमाकांत की फितरत को !
जोड़ घटाने की नगरी में,समझ न आयेंगे यह गीत !
यक्ष प्रश्न है देव
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