कथे हमर सियान Ravindra Sisodia बूड़ गए रहिस संसार
मनु आउ सतरूपा बाँहचे रहिन हम सब ओकरे लोग लईका आन
पूरा संसार ...म तब नई रहिस होही जात, धरम, बरन , टूरि-टुरा...
पानी रहिस त बाँहच गयेन एला बैज्ञानिक मन कथें
जिनगी उहें ले सुरु होईस ...कथें किरा मकोरा फेर बनीस मनषे....
फेर आज मनखे के *** आँखि के पानी मरगे ***
सरेहन बीच रद्दा म माई लोग ल नंगरी किंदार दिस......
एकेक डेढ़ डेढ़ लाख के मुबाइल धरे मनषे फोटू खिंचते रहीगे
एक झन अपन अंगरखा म ओकर देंह ल नई तोपिन....
बड़ सोर गुल गुल होईस त गम पाइन बड़ खोज बिन म...
के अरे ए तो फलाना के बेटी आय जे ह देस रच्छा म सहीद आय
किस्सा नो हय न कंथुली रोज बीतत हवय....
मनषे के आँखि के पानी मरगे हवय.....
बड़े भाई चुनदिया के मारत हे दाई ददा ल घिल्ला घिल्ला....
छोटे बेटा डौकी के तोलगी धरे खेंडा चुहकत पर हे ....
परसंग ल बदल दे मोरे मुंह म करिया पोताय हवय ....
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फेर का बात रे मनराखन दाऊ काय करम करे रहिस होही
ओकर कस दान पुन्न करईया मनखे के*** देंह म पानी *** परगे
नित नियम बिहनियां पूजा पाठ करना, सांझ के बेरा म रमायन गाना ,सबके मरनी म बड़ मन लगाके चिता रंचना ओकर धरम....
बिहनियां के हे कृष्ण गोविंद ....के मण्डली के मुख करता धरता
फेर देखते देखत नख करिया परिस आउ अंगठि गर के गिरगे....
तभे कहय हमर बबा ह तोर उखाने म न बनय न बिगड़य...
कुछ करनी कुछ करम गति, कुछ पुरबल के भाग
बिगड़े रहिस होही जान अनजान म ...लोक परलोक म...
तभे भगवान के देहे चीज भगवान लेगे बिन कहे बोले .....
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मनषे सब गांव जात, धरम घर के देखेन फेर शसन गउँटिया एक लम्बर के ....बाप मरिस आँखि ले एक बूंद पानी नई गिरीस ....
मरगे बाप बेटा के मुंह ले दु आखर बने बने सुने बर...
जेवान बेटा पीपर पेंड़ म दबा के सांस छोंड़ दिस देंह छोड़ दिस ...
बहनोई ओकरे घर आके शरीर तियाग दिस .....
दाई उमर भर मोर नानकन मोर नानकन कहत थकगे...
बहिनी मरगे नान पन ले सेवा करत ....फेर का बात रे आँखि
न ऑंखि म आइस न दिखिस न ढ़रकीस कोकरो देखत म ...
मनषे बिदेह राजा ले ओ पार ....न हूँकिस न भुंकिस ....
" बिन मानी-बानी-पानी ,, के आज घला मुड़ उठा के जियत हे ।
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मरगे *** बिन पानी *** बछिया के धनसाय ......
एक ठन बेटा जनम भर बाप के मुंह ल नई देखिस ....
रख्खी डौकी के चक्कर म खेत-खार सब जँहड़ बिंहड़ होगे....
भादों के महीना म झोर झोर के *** पानी *** गिरीस
नदिया , नरवा , तला, झोरकी, गांव, गली, खोर जला थल होगे
जुन्ना कोठी के दीवार गिरगे मुंढर घर के ऊपर म.....मुंढर घर के देवार ह लदक दिस रेंगान के केड़ेरी ल, फेर का धारन डोलगे ... होगे बुता मुड़का गिरगे धनसाय के मूड़ म....
बिहनियां ***** पानी थिराइस ***** त मनखे निकरिन घर ले
देखा देखा म देखिन टारींन मुड़का मियार ल त पाइन...
मरगे रहिस ***** बिन पानी ***** धनसाय
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***** पानी उतरगे ***** देखते देखत त गम पाइस अपन औकात
जेला पावय तेला अपन गाड़ी, घोड़ा , सोन, चांदी, घर, खेत-खार
नौकरी, बंगला इंहा तलक सारे पोंसवा कुकुर के रंग आउ पूछी के टेढ़वा नीक ल बता के सबके अपमान करना अपना धरम समझय
बेटी ल परदा म राखय, कोंहुँ घर म आगे त रेंगान म बईठार के एक कप चाहा पिया के रेंगा देवय, बेटा बेटी होगे रहिन मनमुख्खी....
मनखे ल मनषे कम कुकुर ले जादा नई हेज़य....
किंदारिस भगवान घला ह अपन बाँसड़ा के लौड़ी ल.....
उतान परगे छत नारी जुड़ागे .... थू ...थू होगे ...
बेटी भागगे डरा वर संग सब्बो सोन चांदी ल धरके रातों रात...
बेटा लाज म घर छोंड़ के नौकरी म परदेश निकरगे ...
घरवाली ल बेटी के करम के जियान परगे त लुकुवा मार दिस
अब कुकुर के हागे उठात परे हवय घर म
तभे कथें बमरी मत बों, अंगूर नई फरय राम जी ।
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शिवरीनारायण म महानदी के पुल बुड़गे एकेच घरी म ...
कहाँ ले आइस होही रेला पानी के मंदिर के दुआरी ले चढ़के
महानदी के जल भगवान के चरन पखारे लागिस .....
पूरा ह खरौद के लखनेश्वर जी के घला पैलगी करे पहुंचगे ...
भुनेश्वर महाराज के मंझली बेटी सुकन्या सांवर देह के रहिस ,,,,
लागथे महतारी के छांव परे रहिस काय नाक नक्शा एक नम्बर फेर
सुंदर गत, गढ़न , बात, बेवहार, बानी, पानी, सुभाव होए के बाद घलो बिहाव नई हो पाए रहिस, परमात्मा के किरपा ले सुकन्या के बिहाव नरियरा व्यास परिवार म अनुज व्यास जी बर होगे ।।
ससुरार म सास, ससुर, जेठ, जेठानी सबके मया मिलिस आउ अपन बात बेवहार म सब ल रपोट डारिस *** चढ़गे पानी ***
पहिली पठौनी ले घर लहुटीस त महतारी जनकदुलारी रो डारिस
सांवर सुकन्या मंदिर के दुआरी चढीस आउ महाराज रामसुंदर दास जी के गोड़ छू के आशीष लिस त पुछिन के नोनी ह काकर बेटी आय ।।। # चढ़गे # पानी प्रेम, नेम आउ बिहाव के हरदी के ...
पानी देखके हमर पुरखा मन गांव म बसीन ,, पानी देखके बर बिहाव लगाइन ,, पानी बर तला कोड़वाइन आउ पानी बानी बर मर घलो गईंन ....फेर आज बदलगे काय जमाना के चलन ????
सुरुज घलो उत्ति बूड़ती होथे स्वागत करा नवा बिहान के
बस यूं ही बैठे-ठाले
निहारता महानदी के निर्मल जल को
04 जुलाई 2024
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