अजगर करे न चाकरी पंछी करे न कांव ।
दास मलूका कह गईंन सबके दाता राम ।।
फेर एकरो लो ओ पार
फोकट के दाना हकन के खाना ,, मर जाना त का पछताना । ।
काबर करिन होहिं देवता आउ राछस मन सागर मंथन
जब देंवता मन ल मनषे भोग लगा देथे फेर ओकरो ले ओ पार
न देंवता ल खाये कमाए, भूख, पियास , नींद के संसो....
कुछु तो कमी बेसी लागिस होही तभे सब जुरीन फेर मथिन
मोर सोंच म नई सागर मंथन के पहिली ....
बिष, कामधेनु गाय, उच्चैश्रवा घोड़ा, ऐरावत हाथी, कौस्तुभमणि,
कल्पवृक्ष, रम्भा कस अप्सरा, लच्छमी जी, वारुणी, चंद्रमा, पारिजात के फूल, पाञ्चजन्य शंख, धन्वन्तरि आउ अमरित ...
देंवता आउ दानव के जुरना, एक संग एके बुता ब हं कहना...
बड़ मानमनौव्वल करे बर परिस होही सुमेरु परबत ल ओकर धरम मरजाद ले घुंच के बुता करे बर मनाए बर ,अटल अचल सुमेरु कईसे आइस होही सागर के बीचों बीच म , फेर एकरो ले ओ पार बासुकी नाथ नाग महाराज ल डोरी कस लपेट के मथानी कस मथना, झन डोलय सुमेरु तेकर बर खुदेच बिष्णु जी शंख, गदा, पद्म, चक्र संग सुमेरु के ऊपर म रखवार बन पहरा दिन ।।
मथागे जिनगी सागर कस निकरिस बिस लकलकात हरियर ....
एला पिहि कोन अब खोज चिमनी धरके जटाशंकर....
निकरगे लक्ष्मी अति चञ्चल खोज ओकर बर जोग्य बर...
सब्बो सोंचत हे अमर हो जांवां आउ फंदोत रहौ फांदा ...पियत रहौ धरम करम करईया मनखे के लहू .रोज रंच दव नवा लुकडु फांदा ..
मानले कतको चेत करे ओ ह बैमानी कर दिस त काटे सक ओकर नरी ल , कोन चलाही सुदर्शन चक्र जे ह फूंके सकय पाञ्चजन्य शंख ल , आउ कभू शंख के जगा अन्ते ह बाजगे त .....
वारुणी, कलप वृक्ष, कामधेनु ऐरावत सब्बो रत्न मन ल जोग्य हाथ धरना धराना घलो ह बड़ मुड़ पीरा के जिम्म्मेदारी आय ।
मथे बर परथे जिनगी ल त हिसाब किताब ह बरोबर होथे ....
जेकर खाये तेकर देहे बर परथे ...कभू कभू तोर बर नई आय तभो मांग जांच के देंहें हे हमर सियान मन जे ह माढे हवय त जियत हन
चलिस सुदर्शन चक्र सांप घलो मरिस आउ लाठी घलो नई टूटिस
रचें हवय भगवान ह संसार ल ....बने हवय पञ्चतत्व ले संसार.....
कर न जी ओकर रच्छा ओकरे बर तो तोला मनखे गढ़ीस ...
निमरा एक ठन ...करबे कुछू कहिके बुद्धि घलो दिस ....
झन काट बन म अपन मनके उपजे पेंड़ ल ..तोर ददा नई लगाये हे
खोज साजा, साईगौन, खम्हार आउ बना खईलर मथे बर दही
झन धरा टंगिया के बेंठ बन आउ अपने नाश करे बर...
जा खोज पटुवा नहीं त खोद खोज के परसा जरी ..फेर थूथर ओला नेत लगाके बना ढ़ेरा तेमा आंट त बनहि डोरी त खईलर रेंगहि जी
नई पावस ***** फोकट ***** म सब्बो जिनिस ल ....फोक्कट
दूध चुरहि कुंडेरा म... कुंडेरा बनहि सीझे माटी ले...भुंइया के सेवा करबो त ओ ह अपन गुन जस ल बनाये रखही...
महात्तम हवय सबो पंचतत्व के अपन अपन हिसाब म....
दूध ह हवा म नठा जाथे...चुरोये बर परथे आगी म ....त घोंस चकमक पथरा खोज लोहा ....बन अगरिया फेर उठा आगी आउ सिपचा गोरसी ल ...नहीं त अगोरा कर बन म बांस के रगराय के मिलहि आगी फेर धूंगिया जाहि अगास ले पताल तलक....
दूध ल कुकुर खा देहि के बिलाई पी देहि त बनाये बर परही कौड़ा
तेमा मुसुर मुसुर सिपचहि पलपला त मिठाहि अउंटे दूध ...
कुकुर बिलाई के छेंका बनथे तोपना…. माटी के ...किरा, मकोरा , कचरा , कूटा ले घला बांच जाथे..... आउ गुरतुर चुरथे ...
कतका कन असकट बुता करे बर परही रोजेच रोज ....
तेकर ले जा बजार 50 रुपिया फेंक चूरे दूध ल धर ला .....
फेर झन देख के पूछ के कोन तला, डबरी के पानी मिलिस के मिला दिस दूध बनाये बर चप्पल के रंग रोगन के मिलगे यूरिया खातू....
हमर सियान मन चलाईंन खईलर गियान के आउ मथ दिन जुग ल
त कुढ़ाये रहिस धान, औंहारी, गाय, गोरु, चारा, भूंसा, खरी, कोठा, संकरी, कोटना, पैरा, कोढ़ा, गहुँ, तिल, नून, अलमल....
त कहाइन गौंटिया, मालगुजार, जमींदार ..धाक रहिस 50 कोस म
चातर खेत मेंड़, पार जेमा बोंवाये रहत तील , राहेर ..…
धान कटिस त उतेर दिन अंकरी संग मटर आउ बटुरा दाना ...
खेत के उपज कभू फरक नई परिस कौंहु दिन बादर म ...
कन्हार म गरु, त मटासी म थोरकन हरू आउ टिकरा म कोदो कुटकी, रेगहा अधिया म आँखि मुंदके धरा दिन .....
त संझउति बेरा म कंडील के काँछ पोंछा जावय ...
गाय, गरुआ संग नांगर, गाड़ा, के बेंऊत बने रहय.....
आज सब्बो लेन देन ह लिख, पोंछ, फेंक, संग कलदार के माथा म माढ़गे , जेला देख तेला पों पों करत गाड़ी म आइस, बड़े बड़े रुख राई ल एके घरी म काट बोंगके डोहार दिस, नदिया नरवा ल राखड़ म पाट के नवा फैक्टरी लगा दिस, उड़त हवय धूंगिया बोहात हवय दवाई मिंझरा पानी नदिया म, बन रातों रात उजर जावत हे, रेंगत हवय रात दिन चिर चिट चिर चिट करत करेंट ह बड़े बड़े खंभा म
आंच आही संगवारी कुछु कर नवा जुन्ना नई त पठेरा कस कौड़ी दांत ल नीपोरे परे रहिबे अस्पताल के ढेंकी कुरिया म....
गुंथाये रहिही किसिम किसिम के नारा फांदा मुंह, कान, छाती, गोड़ ,आँखि म मनषे घटरत परे रही ......
नई मिले हवय फोकट म कुछु सोंच तो भगवान के देहे बेटा बेटी दाई ददा असमय कईसे देखते देखत दिया कस लौ अलोप होगे
संसार तोला दिस ओमा मिंझार मिला ओकर ले जादा ओला दे
बने रहिहि तखरी के कांटा बीच म ...तुंहर मन ....
पानी गिरत नई आय त चिंता पेल दिस ए बछर का होही
बस यूं ही बैठे-ठाले
08 जुलाई 2024
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