गुरुकुल ५

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Thursday, 18 July 2024

***** अनाम दाई *****



बड़ दुख लागिस ......आँखि आंसू म झुंझरागे....
पर साल के आगू साल श्राद्ध  करे गयेन त बड़ नियम, धरम, नेंग चार, बुलऊआ पुरखा मन के नवा नवा बात जाने बर मिलिस ...
श्राद्ध, तरपन, फेर पिंडा दान करे बर लगारी लगाके ....
प्रयागराज ,फेर बनारस, फेर गया जी जाए बर परही .....
त सब्बो जगा पुरखा संग हितु पिरितु मन के पिण्ड दान करे बर परही ,, फेर महाराज कहिंन के सब्बो झन तो इही लोक के माया ले उबरे नई ये ,,,,, हम पूछ पारेंन त इंकर मुक्ति गति कईसे बनहि ।।
व्यास जी कहिंन जावा सब्बो झन ल सादा चाउर धरके नेवता पारके संग म ....धरा .... कहाँ ले ?  जावा मुर्दावली ओमन ल संगे संग धरा मुर्दावाली ले आउ संसार के मोह- माया  ले मुक्ति देहे बर ....फेर ओहि मनके आगू म पिंडदान करके ओमन ल बिदा करा नहीं त भटकत रहीं ओकर जी इहें .....
फेर जब पितर पाख म बलाहा अलग अलग तिथि म त आँहिं तुंहर ओरी छांव म तुंहर रान्धे पसाय जिनिस ल खाये जुड़ाय...

गांव, घर , परिवार, गोत म नेंग चार , धरम, करम आउ ......
लोकाचार , बेवहार एक नहीं सगरी परकार के निभाये बर परथे 
अकेल्ला तो जिनगी चलय नहीं संगी , संफरिहा, संगवारी, कमिया, कमैलीन, बुता करईया, चिरई, चुरगुन, गाय, गोरु, कतका ल गिनावव एकर संग खुद पिंडा परवईया के कुल, गोत, प्रवर, बंश, श्रेनी के महतारी पच्छ आउ ददा पच्छ के सात पीढ़ी तरी ऊपर कहि देवा के उत्ति बुड़ती सबके तरन-तारन होथे ।।
सोज्झे काय गुने म गिनाही खोज पांच पीढ़ी उत्ति ले ....
करमनीया डोलगे सबके ना सकेलत म .....

श्राद्ध करवाइया जजमान Ravindra Sisodia 
जात क्षत्रिय , कुल सिसौदिया, प्रवर .... श्रेणी ......... , कुल देबी ....., कुल देंवता........, अस्त्र........, शस्त्र......., बंश........,
सबके हिसाब किताब संग म ददा ...बबा...आजा... पर आजा... फेर ओकर बाप ....फेर ओकर बाप .....मिलगे आउ मिलिचगे
ए दे ....ए दे फदक गे दाई पच्छ म आके .......
श्राद्ध करवइया जजमान जस के तस बबा Ravindra Sisodia 
माताराम विद्यावती जौजे गो लोक बासी श्री भुवन भूषण सिंह (नक्की बाबू)बड़े भाई भुवन भाष्कर सिंग, ...तेकर बड़े भाई ..सत्रुघ्न सिंह उकील ददा.ओकरो बड़े भाई डॉ चंद्रभान सिंह... तकरो बड़े भाई ....बैरिस्टर ददा छेदीलाल जी......
दाई विद्यावती देवी इंकर सास सोन कुंवर दाई जी  फेर ...इनकर सास, ....अनाम इंकर बूढ़ी सास...आजी सास....पर आजी सास
बस ई ही महतारी मन जुरगें अपन नां संग गांव के नाम जइसे कुंती, माद्री, कौशल्या इहु घला मन उँकर जनम देश, गांव के नाम धरके
हूंत करावँय......भाष्करींन दाई घरवाला के सेतिर आज घला खटोला मालगुजारी के हमर दाई के चिन्हारी हवय ।

गोत्र ह तो मिली जाथे बर बिहाव मरनी हरनी म सुने सुनाय....
 *** अत्री, भारद्वाज, भृगु, गौतम, कश्यप, वशिष्ठ, विश्वामित्र ***
कोंहुँ न कोंहुँ त होबेच करथे .......मिली जाथे...
प्रवर :- जेमा कुल नाम, परम्परा संगे संग गोत्र आउ जिनगी के करम, धरम, नेंग चार , चरित्तर, गुन, दोस, अकार, परकार, रंग जम्मो कोंहुँ बेर अबेर छट्ठी, छेवारी आत जात दिख जाथे ...
कुल :- घलो ल पूछथे ईँ ह बड़ मुश्कुल हो जाथे काय....….?
लहू के मिजान ....मेल आय तो बड़ सहज, सरल, पानी कस आर पार दिखईया फेर नछत्र, गोत्र, संग पूजा पाठ, जे ह फोकटीहा 
लागथे ....बिज्ञान म लपटाय रथे हमर नेरूहा कस .....
कुल के पयडग़री बने रहय तेकर सेतिर पूछ पुछारी करे रथें ...

आके सटक जाथे बुद्धि सब्बो झन के महतारी कुल म....
मोर दाई के नाव कुमारी, ममा दाई तिरजुगी दाई, बूढ़ी ममा दाई पीली दाई अब ओकर आगू  आजी ममा दाई कोनरहींन दाई , पर आजी ममा दाई रिसदिहीन दाई, ओकर दाई फेर होगे नरियरहींन दाई...खोजत रही गयेन ना ...धराये रहिस होही फेर सुरता ....
होंगे हमर दाई मन  ***** अनाम *****
दाई जे ह हमर बंश ल जनम देथे तेकरे नाम ह अनाम हो जाथे
         ***** अनाम दाई *****
जेह ७ भाँवर किदर काय परिस ओकरे होगे जनमा दिस बाबू नोनी
घर के लच्छमी बनके आइस त दुनों कुल ल तार दिस ..…
मरगे देहरी नई डाँहकिस जनम भर  कुल के मरजाद खातिर ....
मनखे ल बाप के पदबी धरा दिस मुड़ी ले अंचरा नई ढ़रकिस
महतारी घर के बाहिर निकरिस नहीं फेर बाहिर म चिन्हारी दिस
अपन कुल, गोत्र, घर दुआर ल जनम भर तियाग के संग धरिस ...
दाई, ददा, भाई, बहिनी सबके मोह माया छोंड़ के आन घर आइस 
सुरुज उईस आउ बुडगे उमर भर मोर डेहरी कस छां बने रहिस
दाई के एक घं छां ह अलोप होईस त कुलुप अंधियार होगे जिनगी .
भले चारों कती बग बग ले सुरुज नारायन के अंजोर हवय .....
गुरु Rahul Kumar Singh  भला तूं ही बतावा तो ईँ ह आय ?
         ***** अनाम दाई *****

बस यूं ही बैठे-ठाले
१७ जुलाई २०२४

आइए स्मरण कर देखें पूर्वजों के नाम अपने नाम संग चढ़ते क्रम में
देखें हमने कितनी पीढ़ियों को सहेज रखा है मानस पटल पर
भूले से भी स्मरण करने का प्रयास न करें मातृ पक्ष की पीढ़ियों को 
पीड़ा होगी शायद हो जाये आत्मग्लानि कि हम कैसे भूल गए चार पीढ़ी ऊपर के हमारे कुल रक्षक जननियों के नाम को .....
बस स्मरण रहे उनके जन्मस्थान जिसने उन्हें नाम दिया ।।
    " अनाम दाई अकलतरहींन ,,

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