गुरुकुल ५

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Thursday, 18 July 2024

गुरुदेव Rahul Kumar Singh सादर प्रणाम


संदर्भ आपका 07 जुलाई का पोस्ट
 अज्ञानी बेकूफ़ की टिप्पणी 
 " जानते हो किससे बात कर रहे हो ,,,मुझे पढ़ो फिर बात करो  ,, 

एक हाना सुरता आइस सर जी
कुंवार म कोल्हिया जनमिस, कथे अषाढ़ म बड़ पूरा आये रहिस

एक अक्षर ज्ञानी गंवार की टिप्पणी पर मेरा एतराज़ दर्ज  करें ...
सुनो  ससुर के नाती टिप्पणीकार ...उर्फ सरहा साहित्यकार ...
हे अक्षर ज्ञानी गंवार तुम हिंदी साहित्य के विकास के आदिकाल में पैदा हुए ही नहीं और भक्तिकाल की संतान लग नहीं रहे हो क्योंकि तुम्हारा  अहंकार तुम्हे उबरने नहीं दे रहा है लगता है कोई सामान्य पढ़ा लिखा व्यक्ति तुमसे चर्चा करे, रीतिकाल में जब तुम्हारे पूर्वजों ने पांव धरा ही नहीं तब इसकी चर्चा व्यर्थ है । अब आती है आधुनिक काल की  जिसकी संतति तुम हो ही नहीं सकते ।। यह मेरा भ्रम नहीं पूर्ण विश्वास है ।

कहीं पढ़े हो कि "" साहित्य समाज का दर्पण होता है ,,,,
सर्जक, लेखक , कवि, कवियत्री , व्यंगकार, कलाकार ....
इनकी भाषा , इनकी सम्प्रेषणीयता, इनका शिल्प विधान इन्हें सर्वकालिक, सर्वमान्य, सर्वग्राह्य और लोकप्रिय पूज्य बनाता है , 
ऐसा मेरा मानना है, किन्तु जो व्यक्ति किसी को पूर्णतः जानता ही नहीं वह अभद्र टिप्पणी करे यह नाकाबिले बर्दास्त है ।
रामायण, वेद, शास्त्र, पुराण, ग्रंथ, काव्य, सर्वकालिक .... हैं  ?
ये क्यों आज भी पूजे जाते हैं माथे से लगाये जाते हैं चिंतन करो ?

टिप्पणी कार का अभिमान कहता है .... मुझे पढ़ो.....
मैं और मेरी बात तो छोड़ो कोई भी तुम्हारी सड़ी पुस्तक पढ़े क्यों?
तुम महान हो तो नोबल पुरुष्कार जीतो और महान बनो ।
निश्चित ही तुम्हारी पुस्तक का स्तर *** पम्मी दीवानी *** सा होगा 
तुम्हे पढ़कर कोई भी व्यक्ति निश्चित ही भ्रमित होगा ही ...
क्या तुम्हारे पूर्वज या तुम हिंदी साहित्य के स्वर्णयुग से हो ?
या तुम्हारी तथाकथित रचना आदरणीय रामधारी सिंह दिनकर, सूरदास, मीरा, कबीर, रहीम, रसखान के समकक्ष है ?
दाऊ जी तुम्हारा वास्ता भी रीतिकाल / भारतेन्दु युग / शुक्ल युग 
के किन आदरणीय को स्पर्श करता है ?

तुम्हारी उदण्डता, तुम्हारे टिप्पणी में व्यक्त होती है वही तुम्हारे विचारों की अभिव्यक्ति में होगी यह मेरा दृढ़ विश्वास है ।
जरा चिंतन करो क्या तुम्हारी रचनाएं रीतिमुक्त काव्य धारा की हैं, 
जहां बिहारी जी के दर्शन होते हैं, या रीति सिद्ध काव्यधारा में चिंतामणि जी, केशवदास, रतिराम जी की रचनाओं के चरण रज के बराबर भी हैं ? कभी घनानंद जी, आलम, बोधा ठाकुर को पढ़ो और कढ़ो फिर किसी लेखन पठन, पाठन की चर्चा का औचित्य बनता है ।
एक बात स्मरण रखो आदरणीय निराला जी, पंत जी, महादेवी वर्मा, जयशंकर प्रसाद जी को छू पाना तुम्हारी औकात के बाहर है
रांगेय राघव जी का नाम तुमने सुना है ?????

तुम्हारा लेखन नवीन है या संकलन मात्र कभी बिचार करना 
तुम्हारा बौद्धिक स्तर किस महान लेखक ,साहित्यकार के समकक्ष
तुम्हारे साहित्य का मूल प्रतीक किसका प्रतिबिम्बन करता है
नवीन सोचो किन्तु नवीनता में कोपलों का सौंदर्य हो 
नवीनता की चाह में गन्दा सृजन न हितकारी न मंगलकारी....

बेवकूफ इंसान एक बात स्मरण करना भूल जाता है कि 
किसान किसी कृषि वैज्ञानिक से ज्यादा जानता है बस उसके पास लेखन, अभिव्यक्ति, आंकड़ों का संकलन, के लिये जीवन की आपाधापी में समय नहीं । 
 ***** मेरे जैसा सामान्य फेसबुकिया लेखक जिन लोगों के बीच बैठकर उनकी चर्चा सुनता है बस उनका लेखन नहीं सात दिन का लेखा जोखा एक खण्ड काव्य बन जायेगा  *****
पुरातत्व, धर्म, दर्शन, परम्परा, लोकजीवन, जीवनशैली, साहित्य,
समाज, जाति का अति सूक्ष्म ज्ञान इनके जीवनशैली के आभूषण हैं कभी बैठो ऐसे लोगों के बीच और सुनने की क्षमता बनाओ ...
आग्रह नहीं आदेश टिप्पणी के पूर्व अपनी प्रोफाइल का स्वयं आंकलन करो फिर अपनी बात करो ।।
जो व्यक्ति अपने जनक को मात्र मांसाहारी होने पर नीच कहे...
उसका स्तर क्या हो सकता है ? अति चिंतनीय....

बस यूं ही बैठे-ठाले 
14 जुलाई 2024 
अपमान मेरे किसी भी श्रद्धेय का माफी कदापि नहीं 
अपनी सीमाएं तय करके रखिये जनाब ....

छेड़ना नहीं सैलाब हूँ , बहा ले जाऊंगा  ।
साहिल पर ठहरता हूँ , घरी ....दो घरी  ।।

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