गुरुकुल ५

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Monday, 11 February 2013

मौत




वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभः
निर्विघ्नं कुरू मे देव सर्व कार्येषु सर्वदा

मंदिर, बारात, और मौत जहाँ रिश्ते नाते पड़ जाते हैं लघु?
दीर्घ हो जाता है जीवन कर्म और पात्र जो शामिल है उसमें?

1*****
ईश्वर के समक्ष मंदिर में किसी को भी प्रणाम करें?
हम ईश्वर के समक्ष उनसे भी बड़े हैं?
याचक होकर भी महानता का बोध?
तब केवल शिष्टाचार का निर्वहन?

2*****
विवाह संस्कार में हरिद्रालेपन पश्चात् बेटी या वर किस स्वरूप में?
विष्णु के पद प्राप्त व्यक्ति का शिष्टाचार किसी लघु को बारात में ?
लक्ष्मी मर्यादित करें स्पर्श चरण मण्डप में,विष्णु वरण पूर्व किसी के?
यद्यपि साक्ष्य और साक्षी इसी संस्कार के वंश संरक्षण में स्वजन

3*****
संवादहीनता जीव का जीव से आत्मा का परमात्मा से मिलन?
यम और प्रेत का संगम वहाँ अभिवादन किसी स्वजन का?
शामिल मृत्युकर्म में श्रद्धा, प्रेम,और बिदाई में मृत आत्मा के?
साक्षी विष्णु पार्षद सूक्ष्म स्वरुप में नन्द और सुनंद परम भाव से?

11.फरवरी 2013
चित्र गूगल से साभार

15 comments:

  1. अर्थपूर्ण पंक्तियाँ

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  2. . सार्थक अभिवयक्ति......

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  3. बहुत गहन भाव..

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  4. उद्वेलित करती हुई..

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  5. शाश्वत सत्य मृत्यू... गहन अर्थपूर्ण रचना...

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  6. सवाल पर सवाल, दनादन?

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  7. बेहद गहन ... एवं सार्थक प्रस्‍तुति

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  9. यह सब जो बाहर का उद्वेग है मह्त्व उसका नहीं है महत्व उसका है जो हमारे अन्दर साक्षात्क्रित होता है चरम तन्मयता का क्षण जो हमें सीपी का तरह खोल जाता है इस तरह मानों हम ,हम नहीं रहे

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