रमाकांत सिंह |
*
आसमां बादलों से परेशाँ क्यूँ है?
घर लोगों से बेवज़ह हैरां क्यूँ है?
ज़िन्दगी खुश है तेरे जानिब यूँ?
फिर ये चेहरा हंसीन वीराँ क्यूँ है?
**
रोशन है ये जहाँ दिल अन्धेरा क्यूँ है?
शोर दीवाली का फिर ये मायूसी क्यूँ है?
लोग खुश महफ़िल में आँखें नम क्यूँ है
जलजला आँखों में यूँ दिल बंज़र क्यूँ है
***
देख मुश्किलों में इन्सां मुस्कुराता क्यूँ है?
तैरकर दरिया में आज मन प्यासा क्यूँ है?
हर हंसीं चहरे पे हंसी है फिर मातम क्यूँ है?
राह अपनी आसां मंज़िल आज कांटे क्यूँ हैं
24 नवम्बर 2013
समर्पित मेरी ज़िन्दगी को
सवालों में उलझी ज़िन्दगी! यही यथार्थ है.
ReplyDeleteअगर इन सवालों के जवाब मिल पाते....तो नए सवाल खड़े हो जाते .....यह क्रम यूहीं ही अनवरत चलेगा ....और अपने सवालों का जवाब .हमें कभी नहीं मिलेगा
ReplyDeleteनहीं सरल हर एक भाव का रेखाञ्कन हो जाये । रेखाओं के चक्रव्यूह बिन चित्राञ्कन हो जाये । जीवन केवल घोर तपस्या कलाकार की है । नहीं जरूरी बीच तपस्या मूल्याञ्कन हो जाये ।
ReplyDeleteयही तो जीवन है .... शुभकामनायें आपको !
ReplyDeleteआपके द्वारा आज बुधवार को (27-11-2013) तिनके तिनके नीड़, चीर दे कई कलेजे :चर्चा मंच 1443 में "मयंक का कोना" पर **परेशाँ क्यूँ है?** को स्थान देने के लिए ह्रदय से आभार
ReplyDeleteन सवालों के जवाब मिल पाते...न जीवन ... चलता है यू ही जीवन...
ReplyDeleteन सवालों के जवाब मिल पाते...न जीवन ... चलता है यू ही जीवन...
ReplyDeleteक्यूँ है ? यह यक्ष प्रश्न ...शायद इसका कोई उत्तर नहीं है ...हर इंसान के सामने है !
ReplyDelete(नवम्बर 18 से नागपुर प्रवास में था , अत: ब्लॉग पर पहुँच नहीं पाया ! कोशिश करूँगा अब अधिक से अधिक ब्लॉग पर पहुंचूं और काव्य-सुधा का पान करूँ | )
नई पोस्ट तुम
Jeevan anek virodhabhason se buna huaa ek nakadjaal hai.. Aise kitne hi sawal ham khud se nahin poochhate haun, sochte han koi baahar se aayega inka uttar lekar.. Aapne is rachna ke maadhyam se mujhe yah vicharne ka awasar diya, aabhari hoon!
ReplyDeleteआपके विचारो के लिये हृदय से आभार
Deleteयह विचार जिन्दगी से साझा किया गया है और आपके स्नेह से सदैव मार्ग प्रशस्त हुआ,
बेहतरीन पंक्तियाँ ...ऐसे कितने ही प्रश्न हम सबके जीवन से जुड़े हैं .....
ReplyDeleteइन सवालों के मध्य कुछ नये सवाल फिर से जन्म ले रहे हैं ....
ReplyDeleteये सवाल खत्म होते हैं न इनके जवाब
बेहतरीन प्रस्तुति
इन्हीं विरोधाभासों में ही तो ज़िंदगी का ताना-बाना बुना है ऊपरवाले ने...बस! ऐसे ही उलझना है..सुलझना है ...
ReplyDelete~सादर
बेहतरीन पंक्तियाँ ...
ReplyDelete