चित्र बी. बी. सी. हिंदी समाचार से साभार |
राजन मैं आश्चर्य चकित हूँ
आपके न्याय से
पूरी दुनिया कहती है
मृत्यु दण्ड?
आपने कहा
मृत्यु तक दण्ड?
अपराध अक्षम्य?
स्वीकारोक्ति?
साक्ष्य गढ़ दिए गये?
अथवा साक्ष्य स्वयं सिद्ध?
घटना महानगर की
वा किसी कस्बे की
पूरा देश एक ही रंग में रंगा?
बलात्कार बलात्कार
राजन कहीं ऐसा तो नहीं?
साक्ष्य गढ़ दिये जाते हैं?
साक्ष्य मिटा दिये जाते हैं?
रक्षक ही भक्षक?
वेताल ने कहा
राजन धन्य है तुम्हारी दूर दृष्टि
मृत्यु दण्ड में जीवन कहाँ?
और मृत्यु तक दण्ड में जीवन?
जीवन मूल्यों की रक्षा के लिए
जीवन या मृत्यु?
एक घटना दिल्ली में घटित
एक घटना अकलतरा में
कल किसी और जगह
बेटी मेरी या बेटा तुम्हारा?
न्याय
सर्वकालिक?
सर्वमान्य?
सार्वभौमिक?
तब मृत्यु तक दण्ड क्यों?
मृत्यु दण्ड क्यों नहीं?
राजन तुम्हारी मति मारी गई है?
या चलन बढ़ गया झूठ का?
या नाम और दाम की चाह?
चलो देख लो एक बार?
क्या जाने कितने लोग फसेंगे?
न जाने किसके सिर तोहमत होगी?
28. 01. 2013
चित्र बी. बी. सी. हिंदी समाचार से साभार
समय खराब है..कुशासन..अव्यवस्था ..साधारण इंसान का जीवन दुश्वार.
ReplyDeleteसामायिक कविता.
न्याय
ReplyDeleteसर्वकालिक?
सर्वमान्य?
सार्वभौमिक?,,,,,,सामायिक उम्दा प्रस्तुति ,,,,
recent post: कैसा,यह गणतंत्र हमारा,
प्रश्न तो उठेंगें ही....अगर न्याय न हुआ .....
ReplyDeleteअपराध और दण्ड में उलझी, सिसकती मानवता.
ReplyDeleteतब मृत्यु तक दण्ड क्यों?
ReplyDeleteमृत्यु दण्ड क्यों नहीं?
राजन तुम्हारी मति मारी गई है?
या चलन बढ़ गया झूठ का?
सार्थक प्रश्न करती गहन रचना ।
साक्ष्य गढ़ दिये जाते हैं?
ReplyDeleteसाक्ष्य मिटा दिये जाते हैं?
रक्षक ही भक्षक?
आज के कानून की हालत देखकर तो ऐसा ही लगता है..
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 29/1/13 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है
ReplyDeleteआदरणीया राजेश कुमारी जी आपके आशीर्वाद और स्नेह के लिए आभार ...
Deleteसही सवाल हैं।
ReplyDeleteअभी बहुत उलझन है।
सवाल ही सवाल हैं
ReplyDeleteन्याय
सर्वकालिक?
सर्वमान्य?
सार्वभौमिक?
जवाब अब भी अधूरा... सटीक अभिव्यक्ति...आभार...
चिंतन योग्य रचना..
ReplyDeleteवो सुबह कभी तो आएगी ...........
ReplyDeleteपरिवर्तन होना चाहिए।
ReplyDeleteक़ानून प्रक्रिया की जटिलताओं और उलझाव को बारीकी से बयान करती एक सामयिक रचना!!
ReplyDeleteवाह रमाकांत जी ...कई बार पढ़ा ..और हर बार एक नया अर्थ मिला ...बहुत सुन्दर विचारोतेजक रचना ...मृत्यु तक दंड ,,इससे बड़ा और अच्छा फैसला नहीं हो सकता ....आदमी जिए भी और अपनी करनी के अहसास तले घुटे ज़िन्दगी भर ...वाह ...!!!
ReplyDeleteबेताल के माध्यम से कानून पर गहरी चोट की आपने ....!!
ReplyDeleteसभी प्रश्न बहुत उचित, सर !
ReplyDeleteराजन फिर सोचते ही रह गए होंगे ... बेताल के सवालों का, उनके पास कभी कोई जवाब मिला है आज तक ......
~सादर!!!
आपकी कविता पढ़ कर यूँ लगा जैसे सारा देश, दिशा विहीन बस चलता ही जा रहा है, कहीं पहुंचना कोई लक्ष्य ही नहीं है।
ReplyDeleteबुरा मत मानियेगा, सच में घबराहट हो गई मुझे तो इसे पढ़ कर ...और फ्रस्ट्रेशन की इन्हाँ भी :(
बहुत ज्यादा अफ़सोस है इस बात का, हम क्या देकर जा रहे हैं, अपने बच्चों को विरासत में, एक ऐसा समाज जिसमें रीढ़ की हड्डी ही नहीं है ???
ये सारे मसले ही मानो बिक्रम बेताल के खेल हो गए हैं, सवालों के अम्बार लगे हैं लेकिन जवाब एक भी नहीं। अगर कहीं कोई जवाब है भी तो फजूल के सवालों की घेराबंदी का मारा हुआ है बेचारा :(