सारथी एक हमारी ग्राम्य जीवन की सामाजिक, परिवारिक, जातिगत, लिंगगत, परम्परागत ,व्यवहारिक व्यवस्था रही कमोबेश आज भी है जो हमारी अस्मिता का प्रतीक है जिसके चलते हमें ग्रामीण और किसान परिभाषित कर हासिये पर रखकर दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता है
मुझे गर्व है कि मैं ग्रामीण और छत्तीसगढ़िया हूँ ।
मेरे देश के गांव में जीवंत लोगों के जीवनशैली और जीवन दर्शन में जो हमें चुभती और गुदगुदाती भी है । हम पीछे मुड़कर देखें तो हमारी बेबसी, लाचारी, अशिक्षा, सामाजिक मान्यता, बेरोजगारी, अंधविश्वास, कुप्रथा, अस्पृश्यता हमारा मुंह चिढ़ाती है ...मैंने जीया है उस दौर को मेरा एक प्रयास उस समय के कथा के अंकन का ...मेरे गुरु Rahul Kumar Singh जी को समर्पित जो मेरे प्रेरणास्रोत हैं !
*** सारथी ***
सब घर परिवार के अपन-अपन काम धंधा आउ सब अपन-अपन म गगन मगन फेर गांव के गउँटिया का मजाल के कपार म चीन्हा पर जावय...
बीच गुंडी म बीड़ी चुहकत अजगर कस अंड़ियात काट दिन चार पीढ़ी
मुलमुला गांव म पूरा गांव म खेती नई होइस फेर गांव के गुंडी म ताश फेंटत गउँटिया बेलासपुर ले आये बड़े साहेब ल बईठ नहीं कहिस ...
डोरी जर के खुहार हो गए रहिस फेर अईंठ सारे जस के तस रहिस ...
रहीँन किसिम किसिम के काम कमइया तेमा के कुछु एक नंजर ...
*** बरसिहा / अस्थिहा
घुसू राम डोंको लिख दिस इकरारनामा बरसिहा के फेर अपन जांगर खंटो के पढ़ाइस अपन बेटा रमेश ल ...बनगे रमेश रेल गाड़ी म टिकिस कटवैया
बाबू अब रेल पछिन्दर सब्बो फिरि घूमे बुले जाए बर रात बिकाल ...
छुटागे घुसू के कंडील पोंछई, गाड़ा जोंताई, आउ दौंरी फंदाई...
*** रोजी
बुधराम दास मानिक पूरी जी अपन मन के मालिक करिया बईला कस
मन परिस त बुता करिस चोंगी ,माखुर ,,, आउ सिलेमा देखे बर...
काम बुता ह ओकर रोजी रहिस जेमा निखालिश रोटी के खंजा मांढ़ीस
बिहानियाँ बुता करिस आधा रोजी मिलिस १८० रुपिया ,...
ढिल्ला संढ़वा कस खाईस खजुवाइस जनम भर जस के तस
*** सौंजिहा
धनेसर बड़ बुधिमान फंसा डारिस अल्लर मनमुख्खी दिनेश गउँटिया ल
बहरा खेत ल सौंजिहा बोएँ बर खंधो डारिस ...खातू , माटी, निंदाई,
कोड़ाई , चलाई, लुवाई, मिंसई सब्बो म बरोबर लगाए बर फेर मिंस
कूटके आधा तोर आधा मोर... खातू लेगे दिनेश गउँटिया के किसान परची म हेरके आउ अपन खेत म छींच के आगे ... सौंजिहा खेत के आधा
बींड़ा ल अपन खरही म समो दिस ...अब खोजत रह पावती ल...
बबा Ravindra Sisodia के खेती मुरली डीह म जतका बेर म मालिक गांव हबरिस ततका म खातू दवाई छिंचागे ...काकर म ?
*** भूतिहार
बंधु भूतिहार बनके गईस अपन सासत म बेटी के इस्कूल के फीस भरे
काय करय ...? जनम मिलिस बाम्हन कुल म त... नौकरी ...ठेंगा इल्ला
आधा रात के पैर डारिस...दौंरी फांदिस बईला खोज खोज के ... पैरा फेरत-हेरत-धरत-गांजत म बिहानियाँ होगे । दतवन, मुखारी, पैठू निपटा के असनांद खोर के फेर भिंड़ीस त धान ल असो के रास ल बांध के थिराइस , जानत रहिन उकील Ashok Agrawal बन्धु महाराज संकोच म कुछु कहय नहीं त घर ले बनवा लाइन चुनी के अंगाकर रोटी ...
बरछा के गुर, घर के घी, मिरचा लसुन के चटनी बस पानी पिये के धरखन होगे ... कँहीया भर के रास टीपा म नापत , कोठी म झंपावत संझा होगे
महाराज अपन भूति ल नापिस आउ बोरी म धरिस ...
१९६० --६५ म कहाँ जादा पैसा लेन देन के चलन रहिस ...
जेला कमाए ओकरे भूति नाप आउ ओली, पागा, पिछौरी म ले जा ...
भूति नपावय, धरय, पावय, जांगर के बलदा म जिनिस ।
*** बनिहार
ए सारे रमाकांत चार किलास काय पढ़गे सब्बो बनिहार ल बिचका देथे
बुता के किसिम देखके बनि बताथे , खपरा ओईरे के आने बनि...
,कोठी ले धान हेरे के आने बनि ...त धान नींदे चाले, जगोये के आने बनि
मन परही त धान लेहि आउ मन परगे त पैसा ... सारे अल्लर नहीं त ओतके कन ल अंगोट के धरे रही अपन चौहर कस ...
न करय न करे देंवय सारे किसिम किसिम के किस्सा कंथुली जानथे
जानत हवय काम बुता फदके हवय त रोज बेरा ल पहिली हबर जाथे
भगवारत घलो नई बनय ओकर किस्सा के सांटा म कभू कभू बुता घला देखते देखत सक्ला जाथे ...
*** अमानी
दीना के आगू म मुड़ पटक डार फेर ओ ह अमानी म ही बुता करहि
जतका जांगर पुरिस लगे रहिहि अपन काम म अपन म मगन काम करत
न काहू से दोसती न काहू से बैर लगे हवय धीरे-धीरे...
बुता सिरागे मालिक ल कही दिस बांचे हवय मालिक जानय
अपन रोजी, मंजूरी, बनि, भूति धरिस डौकी लईका करा घर रेंगीस
*** ठीका / ठीकेदार / सरदार
खेत म थरहा जगाये बर हवय... सबले पहिली ..
सावन म घर के लिंटर ढारे बर हवय पानी गिरे के पहिली..
हबरस-तबरस दुरिहा -दुरिहा म खोंच के निपटा डार जगाई ल ...
हाँका लगाके बनिहार ल हचपचवाके...गोठ बात म बेंउझालके दिन बूड़े के पहिली सकेल दे रांपा-झौहा-तसला-तगाड़ी संग बाँहचे सिरमिट, कुधरा
फेर ठीका म मिले अतकीहा पैसा के चढ़ा ले भोले नाथ के परसाद ...
ठीकेदार कभू बुता नई करय ओह बुता ल उसराथे...तेकर बर ... खड़े होके बिन बुता करे अपन मुं के खाथे ... जनम भर ।
*** खाबा बनि
जनक साव जी बड़े मनखे संग रहे, बुले, गांव, गंवई जाए के शौखिन
गुंडी म सबके संग सिंधी सतल्ला ताश फेंटे के बड़ साध ...
धर ले संगत साधु के ..... हाना म परमारथ म जी देवइया प्रानी ...
जे मेर चिक्कन खाये खजुवाये के बेवस्था होगे ...पागा पनही तीयार
आग लगे बस्ती म हम रहीं बस मस्ती म ...पर के दाना हकन के खाना
*** बेगारी
आय तो ए ह बुता आउ बनिहारी, भूतिहारी ले जबड़ बुता आय ...
मोर मन परिस त ...मोर घर ले खाके संगी घर लकरी फोरे गयें ...
ओहु ह मोर हरे खटके म आथे मोर घर कभू पैरा धरे त कभू गाय दुहे
आन गांव घला कुछु समान पहुँचाए बर रथे तभो जाथे ...
*** सांफर
बने नई होवय फेर सांफर म नांगर फांदथे आउ जांगर खंटाथे ...
न तो तोर बईला ल फेंके सकस न नांगर ल भुर्री बारे सकस त सांफर
जांगर के पुरत ले उठा सकाऊ काम बुता ल ले आउ दे जिनिस
*** मजूरी
बनिहार / भूतिहार / अमानी के मनखे लगगे बुता काम म धर लीन अपन ठीहा ...अतकीहा मनखे होगे ओह मजूरी म रहिगे ....
काम के दाम मिलिस नहीं त पुरोहित Neelmani Tiwari धरा दिस
कम , अतकीहा के बरोबर बनि, भूति, मजूरी सब मजूर कर लिस ।।
***सरदारीन
गउँटिया सब परकार के गुन अवगुन के मालिक त ओकर बुता कइसे होही
कड्डा माई लोग अपन नंजर म बनिहारीन ले गईस आउ अपने आँखि म
घर अमराइस टोली के टोली संगे संग घर त नवा बहुरिया, बेटी, बहिनी, सियान दाई समटर्र्क बुता करिन फेर अपन-अपन घर ...
न मालिक करा भूति लेहे गईस नवा बहुरिया न कांहीं बद्दी ...
सरदारीन फोकट म नई कहावै चिन्हथे मालिक के नंजर आउ नवतोरहा बहुरिया के लचक मचक तेकर सेतिर कभू कभू गारी घला चाल देथे ।
*** कमैलीन
मोर काकी, बड़का दाई खोखरहींन , आदि-आदि
*** कमिया
मोर कमैलीन कस मालिक के कंडील पोंछईया और ओकर अंग रोग
बस समझ लेवा मालिक के जासुक लम्बर एक ...
बैईठ के गउँटिया के माल मसाला के अकेल्ला चुहकवईया
,*** गांवजल्ला बरसिहा
राउत, नाउ, धोबी, आउ होंहि काय ,...???
गाय चराये बर, राउत राधेश्याम गिंया
मरनी-हरनी म धोवाई - कंचाई बर टेटकी दाई ...
मरनी-हरनी, छट्ठी, छेवारी म रामफल नाउ
लोहार खेती किसानी के काम बर
पईकिहिंन दाई लोग लइका के छट्ठी छेवारी
*****गांव जल्ला म मोर पैलगी पइकहीन दाई जेकर बिन हमन अरे नहीं मोर जनम ह नेरूहा छिनाये बिन कहाँ बने रहितिस ...
आउ ओकर घरवाला जे हर आज घलो जात के उटका पंची ल झेलत जियत हवय, फेंक देंवन अमहा खेत म मरी ल ...तेकर खाल ल बिन संकोच पूरा गांव के जिनगी बर निकारके लेगे हवय, डहर म बाँहचे हाड़ा घलो ल जतने हवय मोर पैलगी ए करम के करईया ल ...
*** अधिया
आज तो ए सारे बेंदरा के मारे कोनो मेर तील, राहेर बोंवत नई बनत हे
नहीं त रार के रार बोंत रहेन तिवरा, अंकरी, चना, मटर , मंटूरा
अरे भुलागे रहें हो उतेरा म डारे बर परय फेर अंकरी अपन मन के जुन्ना बिजहा जाम जावय, अंकरी, तिवरा, कोदो के लुवाई कभू बनी म नई पोसाइस , ए ह सदा बरत अधिया म ही लुवाई के खंजा परय ।
लू के मढ़ा दिन फेर मिंज के आधा ***कुना*** आधा दाना बांट के ले गे
कुना ह गाय, भैंस के गजब के खुराक बनथे आज घलो ।
खेत घलो आज घलो अधिया बोंथे मोर गांव म । सब्बो आधा आधा ।।
*****
गांव की व्यवस्था में पढ़ा लिखा व्यक्ति भी बनिहार बन जाता है ।
परिस्थितियों के अधीन हमने बेहतर लोगों को भूति में पाया ।
चालक व्यक्ति जीवन पर्यंत सौंजिया काम का आनंद लेता है ।
गरीब भूमि हीन इंसान रोजी कमाने निकल आता है गांव से शहर की डगर
पढ़ा लिखा जुगाड़ू इंसान ठेका लेकर ठेकेदारी करके कमीशन खाता है ।
आलसी साला अमानी में आड़े वक़्त काम को अपने पास रखता है ।
मजबूर सांफर में वो सब करता है जिसे अभाव के कारण ना नहीं करता
बरसिहा उसकी नियति बनी कारण एक नहीं अनेक बने बस वो जीता है
सरदार अपने वाकचतुर्यता का खाता है जुगाड़ और आड़ की कसम ले ।
सरदारीन चपल नारी जो लोगों के मर्म को समय की धार संग समझती है
माफी सरदारीन कभी-कभी अपने मृदुल व्यवहार से संदिग्ध बन जाती है ।
बस यूं ही बैठे-ठाले
19 दिसम्बर 2024
पौष कृष्णपक्ष चतुर्थी
जरूरी नहीं जिसे मैंने जिया है वो आपके मापदण्ड में खरा हो ।
भूल चूक और अवलोकन संग अनुभव भिन्नता की माफी ...
No comments:
Post a Comment