गुरुकुल ५
Saturday, 31 December 2011
चल संगी चल
रथिया पहागे रे, गरूआ ढि़लागे रे,
कोकड़ा लगाये हवय दांव,
चल संगी चल जाबो गांव.
संग म संगवारी रे, संगी मोटियारी,
लाली-लाली लुगरा, पहिरे हवय बारी,
लपर-झपर जइसे करय, भांटों करा सारी,
सावन के रिमिर-झिमिर, भादों के अंधियारी,
कइसे तोर सुरता भुलांव,
चल संगी चल--1
मैना कस बोली रे, पखना कस छाती,
सुवा जइसे नाक तोर, मन के सुहाती,
करिया तोर आंखी मोहय, मोला आती जाती,
तोर-मोर संग बनही, जइसे दिया बाती,
कइसे तोर अंचरा छोड़ांव,
चल संगी चल--2
माथा के टिकली, सांटी पैजनियां,
नारी के ककनी, संझा बिहनिहा,
हाथ के बनुरिया, कड़के मंझनिया,
खुनुर-खइया तोर बाजय, रथिया करधनिया,
गोड़ के महाउर घोरवांव,
चल संगी चल--3
गरूआ के बरदी रे, रद्दा के धुर्रा,
गाड़ी के बइला, टिकला अउ बर्रा,
केंवट के चना-लाई, केंवटिन के मुर्रा,
जेठ के भंभोरा, मांघ के सुर्रा,
कइसे मैं बेरा पहांव,
चल संगी चल--4
परवा के धुंगिया ओ, संझा के बेरा,
टुकना म लालीभाजी, हाथे म केरा,
मसकत हे तोर नोनी, कन्हिया के घेरा,
उड़थे चिरईया, खोजे बर डेरा,
काला मैं तोर बर गोहरांव,
चल संगी चल--5
पुन्नी दशरहा रे, कातिक के गउरा,
मोंगरा अउ गोंदा म, खेलत हवय भंवरा,
डारी म चुकचुक ले, फरे हवय अवरा,
फदके मयारूख तोर, तुलसी के चौंरा,
तोर संग जंवारा बोंवांव,
चल संगी चल--6
रमाकांत सिंह 4/5/1978
चित्र गूगल से साभार
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gajab nikale ha kabitt.
ReplyDeleteसुन्दर ...
ReplyDeleteबहुत खूब लोकगीत सरीखी कविता.
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