गुरुकुल ५

# गुरुकुल ५ # पीथमपुर मेला # पद्म श्री अनुज शर्मा # रेल, सड़क निर्माण विभाग और नगर निगम # गुरुकुल ४ # वक़्त # अलविदा # विक्रम और वेताल १७ # क्षितिज # आप # विक्रम और वेताल १६ # विक्रम और वेताल १५ # यकीन 3 # परेशाँ क्यूँ है? # टहलते दरख़्त # बारिस # जन्म दिन # वोट / पात्रता # मेरा अंदाज़ # श्रद्धा # रिश्ता / मेरी माँ # विक्रम और वेताल 14 # विनम्र आग्रह २ # तेरे निशां # मेरी आवाज / दीपक # वसीयत WILL # छलावा # पुण्यतिथि # जन्मदिन # साया # मैं फ़रिश्ता हूँ? # समापन? # आत्महत्या भाग २ # आत्महत्या भाग 1 # परी / FAIRY QUEEN # विक्रम और वेताल 13 # तेरे बिन # धान के कटोरा / छत्तीसगढ़ CG # जियो तो जानूं # निर्विकार / मौन / निश्छल # ये कैसा रिश्ता है # नक्सली / वनवासी # ठगा सा # तेरी झोली में # फैसला हम पर # राजपथ # जहर / अमृत # याद # भरोसा # सत्यं शिवं सुन्दरं # सारथी / रथी भाग १ # बनूं तो क्या बनूं # कोलाबेरी डी # झूठ /आदर्श # चिराग # अगला जन्म # सादगी # गुरुकुल / गुरु ३ # विक्रम वेताल १२ # गुरुकुल/ गुरु २ # गुरुकुल / गुरु # दीवानगी # विक्रम वेताल ११ # विक्रम वेताल १०/ नमकहराम # आसक्ति infatuation # यकीन २ # राम मर्यादा पुरुषोत्तम # मौलिकता बनाम परिवर्तन २ # मौलिकता बनाम परिवर्तन 1 # तेरी यादें # मेरा विद्यालय और राष्ट्रिय पर्व # तेरा प्यार # एक ही पल में # मौत # ज़िन्दगी # विक्रम वेताल 9 # विक्रम वेताल 8 # विद्यालय 2 # विद्यालय # खेद # अनागत / नव वर्ष # गमक # जीवन # विक्रम वेताल 7 # बंजर # मैं अहंकार # पलायन # ना लिखूं # बेगाना # विक्रम और वेताल 6 # लम्हा-लम्हा # खता # बुलबुले # आदरणीय # बंद # अकलतरा सुदर्शन # विक्रम और वेताल 4 # क्षितिजा # सपने # महत्वाकांक्षा # शमअ-ए-राह # दशा # विक्रम और वेताल 3 # टूट पड़ें # राम-कृष्ण # मेरा भ्रम? # आस्था और विश्वास # विक्रम और वेताल 2 # विक्रम और वेताल # पहेली # नया द्वार # नेह # घनी छांव # फरेब # पर्यावरण # फ़साना # लक्ष्य # प्रतीक्षा # एहसास # स्पर्श # नींद # जन्मना # सबा # विनम्र आग्रह # पंथहीन # क्यों # घर-घर की कहानी # यकीन # हिंसा # दिल # सखी # उस पार # बन जाना # राजमाता कैकेयी # किनारा # शाश्वत # आह्वान # टूटती कडि़यां # बोलती बंद # मां # भेड़िया # तुम बदल गई ? # कल और आज # छत्तीसगढ़ के परंपरागत आभूषण # पल # कालजयी # नोनी

Saturday, 28 December 2024

*** घोरन ***

परिवार म नता-गोता के महत्तम हवय ...
बर-बिहाव, मरनी-हरनी, छट्ठी -छेवारी, सुख-दुःख, पढ़ाई-लिखाई, तीज-,तिहार, लेन देन, घर , ओनहा-जुनहा, खेती-खार, खरीद-बिक्री 
सब्बो परकार के काम म पूछ पुछाई होथे ...एक खासम खास मनखे के
ओखर राय, बात, रकम के बेंवत, लिखा-पढ़ी के हिसाब गज़ब रथे ...!
मन परथे त ओई ह बकलम घलाव कर देंथे, हरे खटके म गवाही ...

***
जे बुता आँखि के मिल्की मारे म निपट जाथे तेला सात दिन लाग जावय 
सोंच देखव ओकर मज़ा-दुख आउ करलई ल ...
गांव म समे के धनित्तर मनखे जनम लेथे कभू कभू सहर घलो म उदगरथे
जोंग दे कुछु बुता भले ओ ह मरनी के होवय के बिहाव के ...
हमर तुंहर कहे म न बिहाव के लगन रुकय न मरनी के घरी टरय ...
फेर *** घोरन *** फूफा खोज के एक नवा लफंदर फंसा देथे ...
जान बूझ के एके ठन सादा धोती ओहु सच्चा नीलम के पहिर के सगरी खने आ जाथे, आउ कोढ़ म खजरी ए उजबक रिसदीहींन बहुरिया ...
ए दे अं...अं....अं  कहत उलच दिस महाउर  घोरे बाल्टी ल मुड़ म ...
फूफा जी के मेघना बीड़ी के कट्टा संग माचिस घलो के सत्यानाश होगे ।
अब दूल्हा बरूंवा रिसाये बर जाहि ...ओला मनाके लाही कोन।   ?
" एक थे फूफा जी ,,    https://akaltara.blogspot.com/2018/07/blog-post.html जेकर सच्चा नीलम के धोती जेमा चटाई धरि रहय धरि के रंग नीला रहय 
बूढ़ी खार के पंजाबी के दुकान म मिलहि ओहु बेलासपुर म ...
बरूंवा रिसाये बर निकरे के पहिली फूफा के सरंजाम के खंजा मढ़ा ...!
फूफा दण्डरिहा चड्डी के ऊपर म ओहि सच्चा नीलम के धोती पहिरहि ...
अब रेंगव बेलासपुर ...फांद गाड़ी ...ला धोती ओहिच रंग आउ धरि के ...
फूफा बिन बरूंवा रिसाये वाला दूल्हा कइसे आही हटवारा ले लहुटके ...
बरात बिदा, दूसर दिन कंजी नाला म जेवनास, द्वार चार,समधी भेंट म फूलमाला , मंड़वा तरी पकवान संग घी के कटोरी, रात के सुते के बेवस्था,  मंड़वा म संदूक के गहना के रखवारी  , भांवर  म अशीष, सब म अगुवा फेर नखरा ओई *** घोरन *** बात बात म घर लहुट जाए के धमकी ...
ओ फूफा ल मना के लाही कोंन गुरु Rahul Kumar Singh  ?
जानथे गुरु ओकर कर नर के पाना पेंचीस के लम्बर ...

***
सुख तो सुख दुःख घलो म *** घोरन *** रिकीम रिकीम के मिलिस 
बिसनाथ सिंग के जवान बेटा नवल बाबू सांप चाबे  म मरगे...
अंकरस के नांगर फंदाये रहिस , सारे डोमी हवा खाये निकरे रहिस ?
के नांगर के हलचल म भागे के फिराक म मुड़ी हेरे बील तीर सपटे रहिस ?
बाबू के गोड़ काय माड़ीस खबा खब लऊक दिस ...उगल दिस जहर ...
नवल बाबू झट कारिस गोड़ ल त सांप के मुं छूटगे गोड़ ले ...
फेर लऊकीस सांप आउ संजोग देख फेर हबरा डारिस गोड़ ल ...
गेथल दिस दु घं आउ मातगे कल्लाई .... देखा देखा होगे ...
तुरत फुरत अस्पताल लाइन ...संगे संग दवा-,दारू चलिस... बेलासपुर लेगिन --- फेर भगवान के लिखा नवल बाबू परलोक सिधारगें ...ॐ शांति
बिसनाथ गउँटिया अब्बक हाथ म हाथ धरे रहिगे ...
दूसर दिन जुरगे बड़ बिहान ले नवल बाबू ल बिदा करे ...

 " घोरन घलो खोज लेथे घोरे के घरि  ,,

बहुत मुश्किल है 
भेंड़ों में भेंड़ खोज पाना 
भेड़ों में भेड़ खोज लेती है भेंड़ 
और भेड़ों में भेंड़ खोज लेता है भेंड़पाल ( चरवाहा )
या फिर घात लगाकर खोज लेता है भेड़िया ...
घोरन खोज लेथे बखत ....?
 *** घोरन *** कभू समे कुसमे नई गुनय ... न देखय ...
ओ ह अपन आदत के खातिर लचार रथे सुरु होगे ओकर गुन ...
तुरते पंडित बलवाके पंचक देखवा डारिस ...
गांव म टहलू करा हाँका परवा दिस लकरी छेना जोरा हो ...
बड़े नोनी पढ़े गे हवय बेंगलूर आये नई ये तभो चला चला ...
हबर तबर करके सबला हचपचवाके नवल बाबू के देंह ल बेलासपुर ले बलवा डारे रहिस भले लाश ह ओलियाये रहिस फिरिज म ...
बांस कटवाके मयाना बनवा डारिस ...महाराज खड़े होगे पिण्डा पारे बर
गांव भर के मनखे कोच कीच ले अंगना म भरे अगोरत अब काय होही 
ककरो हिम्मत नई परिस पूछ देखे के बाबू ल तला पार ले जाये बर  कब नहवाबो ? कब ले जाबो ? 
 नोनी के हवाई जिहाद नई आइस ... बादर पानी के सेतिर टरगे तिथि ...
ए दे ...ओ दे... चलत हन... होगे ... कहत सुनत सुनात घोर दिस दिन ल
गांव के मनखे कल्लागे  आखिर दीनदयाल बाबू बमागे ... कहि दिस ...
कस रे सारे रमाकांत तैं सारे रहे आखिर म जात चिन्हाऊ कबीरहा न
सारे पईनका आखिर मरनी घला म तोर कन्हिया डोला देहे न सारे घोरन
बिदा होइस नवल बाबू दिन बूड़तहा आगि मुं म परिस दिन बूड़त ...

****
फूफू दाई बछर के बछर आथे तीज, तिहार, छट्ठी, छेवारी म बिन संकोच
बहरतीन दीदी के मया काबा म नई धरावय न गाड़ा म सकलावय ...
सदा हंसमुख, सदा हाँसत आइस आउ बिन जोरन धरे घला हाँसत गईस
कका, काकी , भाई , बहुरिया जे मेर पाईन ते मेर खटिया तरी ढ़लँगगे 
तकिया, सुपेति, मच्छरदानी, के छोंड़व  बात हो ...बिहानियाँ ले संझा सबके खंझा देख के फेर जे अलवा-जलवा पाइस पेट म पाइस आउ खुस
बिहानियाँ उठके दतवन मुखारी करके कुंआ ले टेड़ा म पानी हेरके नहा लिस ...गज़ब के आदत ...साबुन तेल चुपरे बर मिलगे बड़ नीक ...
नई मिलिस त वाह वाह ...तेकर सेतिर माताराम ओकर खंजा ल पहिली के पहिली संगे संग बनाये राखिस उमर भर ....
दीदी उमर भर अपन मया म धोर के राखिस जम्मा घर ल...
घोरन मनखे ल बबा Ravindra Sisodia एके घरि म मुरली डीह के रद्दा धरा देंथें ! 

***
 फेर ओहि मेर हमर मौसी  गज़ब के नखरा आदत जबड़ घोरनहीन 
सहर म मौसिया के नौकरी के सेतिर बड़ नखरा
तीन ठन टुरी च टुरी लईका ओहु मन गत के न गढ़न के ...
बेन्द्री कस टूक लाल त कभू निमगा पींवरा, त झकनन हरियर रंग पहिरे 
मुड़ म पिलास्टिक के मटुक लगा ऐति ले ओती रेंहो चेंहों करत रहय ...
माताराम हमर बड़े भाई के बिहाव म नेवता पार के ले आइस ...
होंगे नखरा सुरु मैं तो हगनहा खोली वाला घर म रहिंहा नहीं तो ... 
माताराम अपन बहिनी सीता दाई घर ओकर बेवस्था करिस ...
बड़ घोरन रहिस मौसि दाई कभू एको ठन नेंग म समे म नई हबरिस 
न खाए के बेरा म संग दिस कभू कंघी, त कभू लिप्सटिक त कभू कुछु
रोज नवा नवा बहाना हक खवा दिस छै दिन म छत्तीस ठन निपोरा ...
चूल माटी खने म बेरा, मंत्री पूजा म कलर कईया , बर बिदा म तेरा ढेंगचाल , मौर परछे म लुगरा के तिन्नी सकेलत म बेर पहागे ...
संग म बहिनी पुनिमा के घलो गुंरवाठ बिहाव रहिस न ...
तेकर सेतिर सब नखरा नौटंकी चल गईस ...नहीं त बाबूजी ...
ऐति पुनिमा के बिदा होइस ओती हमर *** घोरन *** मौसी बिदा 

नौकरी,घर, परिवार, नता-गोता, समाज म अरे राजनीति, धरम, खेल, खिलाड़ी, गली, खोर, गांव सहर  म घोरन ह बड़ दुखदाई हवय ...

फेर कभू-कभू ई घोरन उकील Ashok Agrawal मन नठाये बुता ल बना घलो देंथें ।। सहर के कोरट म बोकरी चोरी के मामला ल घोरत घोरत छै बछर पेशि रेंगा देथें ।।

बस यूं ही बैठे-ठाले 
28 दिसम्बर 2024
मेरे गांव में ये चरित्र भरे पड़े हैं नाम अंकित करने पर उन्हें स्मरण करना कम उन्हें बदनीयती से बदनाम करना अपमानित करना ज्यादा होता है 
मेरे अपनों के पुण्य स्मरण में यह कथा जिनसे चाहे,- अनचाहे समय दुख और सुख में  कभी लम्बे हुए तो कभी क्षण भर में बीत गए ।

Monday, 23 December 2024

*** कौंरा ****

भरपेट अघाये मनषे कभू भूख ल बता पाहि  ?
न अरे भूखहा मनखे थिराके सांस रोके खाहि !

***
मोर बाबूजी मोला जात जात कहिस सुन बेटा ए ह सोरह आना सच आय
कभू झन सरकाबे तोर बर परसाये थारी ल आन बर 
भरम आय तोर ए ह ,...सात जनम अगोरत रही जाबे नई मिलय अपन ...
मनखे बड़ स्वारथ म जिथे नई सरकावय तोर बर आन ह अपन थारी ल 
मन कल्लागे त पूछें बाबूजी ल ... त तूं काबर थारी ल मोर कती घुंचाया ?
बाबूजी कहिस ... मैं धोखा खाएं ते ह अपन जगा हवय  ...
फेर तोर मनशे मन बर सदा बरत परेम नेम बने रहय टुटय झन तेकर बर ..
मनुसता ऊपर तोर भरोसा आउ बिसवास झन टुटय ते खातिर आय बेटा...
देख तो रुख राई ल ...सदा बोहात नदिया ल... आउ दुधारू गाय ल ...
कभू के मन ल लईका कस रोवत गात कल्लात देखे हस काय ? 

मुखिया मुख सो चाहिए खान पान सो एक
पलै पोसय सकल अंग तुलसी सहित विवेक 

तोर धरम तोर संग ...आउ ओकर करम ओकर संग ...
मनषे के मुं के कौंरा ह ओकर धरम के दगदगात चिन्हा आय ।
फेर ओहि ह रुख कस सब्बो झन ल बिन कल्लाये मिलय तौ  ?
सब अपन-अपन करम करथें त अपन मनके रद्दा उन्हेंच जाथे जेकर बर मन के सोंच ह बने रथे ...नहीं त लड़र-बड़र बारा बतर हो जाथे ।।
 " त तो कथें दस मर जाये त मर जाये दस के पोसईया झन मरय ,,

***
 मंझली भौजी Sarita Jaipal Singh कल्लागें ...अनियाय ल देखके
नई गुनिन छोटे बड़े के मरजाद ल जे हर सच आय ते ह सच आय आज
मुं ऊपर कहि दिन  अरे चण्डाल लईका के मुं के कौंरा ल झपटत हस ...
तोला लोक लाज के डर नई लागय अरे एहू ल छोंड़ अंतरजामी भगवान के घलाव डर नई आय ...ओकर तो आँखि के सरम कर निर्लज़्ज़ ...
सोंचा तो कतका बड़ खिख बूता ल कोनो करहि त ओला सुने बर परही

***** कौंरा ***** दार-भात-साग-चटनी-भाजी- घी- ,के लोंदा आय ?
कौंरा ह छप्पन भोग के न कुढ़ा आय न ओ ह पहार आय खजेना के  !
देंख तो कोंन-कोन कौंरा ल अपन-अपन मुंअखरा फरिया सकत हे  ?
बड़ मुश्कुल आय न हपकन कौंरा  ल एक सांस म बता पाना ....
एक कती कौंरा ह मोर जनमती अधिकार आय ... ए मेर पाना हवय !
त दूसर कोती कौंरा ह मोर लहू म बोहात धरम घला आय ... !
सुद्ध गोरस कस लहू ल दूह के देना हे त ए मेर *** कौंरा *** आय !
लूट के ले गए आन के मुं ले त कुकुर ले ओ पार ...सूंअरा    ?
आउ कोकरो मुं म डार देहे त तो बात ह आन होगे जनम भर बर...
अरे अपन जांगर पेर के ओकर बेंवत बना देहे त धरमराज जुधिष्ठिर ...
आउ कभू उमर भर के खंझा मढ़ा देहे त अंगराज  करन बनगे मालिक ...

***
कभू मन म बिचार करा तो मुँ के कौंरा कइसे बनत होही ...,?

तुलसी अपन राम ल रीझ भजय के खीझ 
खेत परिस ते ह जामगे उल्टा सीधा बीज

गुरु Rahul Kumar Singh जी करमईता मनखे घलो ल
,बिजहा के नाले के अल्लग बनिहार करके करपा कटवाये बर परथे 
नहीं त कमैलीन करके बिजहा के बाली बिनवाथे बड़ खटकरम लागथे ...
बोयें बर परिस बीजहा ल , खुर्रा बोये बर जोंताये रहिस होही खेत अंकरस 
अंकरस नांगर बर बईला लागथे ओहु ह जोंड़ा म ...ओहु जोड़ा ह बरोबर रहय न , नांगर के बईला पहिली ले सीखे सधे रहय नहीं त हरई म नई 
रेंगय ...न बरोबर कुंड़ धरावय ...चेत करके खेत जोंताये नई पाईस त ...,जगा जगा अड्डी छुटगे ..त तो खेत के बन बूचा जस के तस रहिगे ...
सनसना जाथे फेर सांवा संग दूबी आउ गदा बन ...,फेर ई बन ह चबकके
धर लेथे धान के जामत पेंड़ ल ...क़रर के खाये खोजथे जामत सुला ल...
फेर निंदाई, कोड़ाई , चलाई, खातू माटी, कटाई, डोहराई, खरही गंजाई,
दौंरी फंदाई,  मिसाई , रास बनाई, नपाई, फेर कोठी म झँपाई ....बनी नाप 
बनिहार खेती के सब काम बुता ल नेंत,-घात म जानय तौ न,,,...
लेई म धान बोयें त जरइ के तामझाम करे बर परथे संगी 
आउ थरहा लगाए बर गोड़ के पछीना मुंड़ म  ...
थरहऊटी , थरहा के रखवारी, जगाई , खातू माटी सबके खटराग 
फेर पावती बर नवा बोरा खिलवाये बर परथे कांही गोठ नई ए ।
पावती- अधिया-,कुता के फेर घर के बोंता धरबो कोठी म 
धान के कोठी बने हवय बांस के कमचाईल के पाखा म, तेमा कोदो पैरा आउ धान पैरा के पेरउसी सनाये माटी के छबना ...जे हर गोबर म सरबोटाय के लिपाये हवय चेत करके ..कोठी के मुड़का मियार, कड़ेरी सरई के ...तेकर ऊपर पोठ टीन के छांदी मोंखन बने ठोंकाय रहय कांड़ खिला म ...ई हर सुखोथे धान ल बिजहा बर आउ ए ई ह बनथे ...
खदुहन धान घला ... फेर निमार. पछिन, ढेंकी म कूट, त निकरथे सईघो चाउर ..ओकरो मेरखु ल फेर निमार पछिन त चाउर खाये लाइक बनथे  ...नवा चाउर ह गिलगोटहा भात बनथे तेकर सेतिर एक बछर जुन्ना धान ल खाये बर कुटवाथे । जादा जुन्ना धान के चाउर ह रांधे म सेवाद ह भसकन्हा लागथे । खदुहन धान के किसिम देख ...

अरे पढ़े-,लिखे उकील Ashok Agrawal  घलो कथे 
***** फोकट म नई मिलय मुं के *** कौंरा .*** ...
भितरहिंन ह पूरा निरमल मन ले रांधथे त ओ ह कौंरा बनथे ...
फेर साग-दार- घी-मसाला के सेवाद के पता चलथे .नहीं त सिट्ठा के सिट्ठा
हरष-भरश रांध के मढ़ा दिस त कौंरा मुं ले उगला जाथे ....
भितरहिंन के अन्तस् मिले रथे ...सब चीज एकदम नाप-जोंख म ,...
रांधे के बेरा म सौ ठन नियम धरम हवय ...महतारी मन जानथें
ओनहा, चेंदरा, करईहा, बटलोही,झारा, करछुल, आगि, पानी चुलहा,
से लेके मिरचा मसाला, सील, लोढ़ा सब सफ्फा सुग्घर रहय ...
दूध दही, अथान, बरी, बिजौरी, गुर घी, सबके अपन,- अपन ठउर ..
कभू अनचेतहा चुन्दी परगे त होगे मरे बिहान धन-धरम-जांगर...
थारी के भात तिरिया जाथे नहीं त फेर अंधन चढ़ाये बर पर जाथे ....!
कौंरा जे हर परमात्मा के किरपा ले हमर हाथ म धराइस...  मुं म माढ़ीस 
जेमा भितरहींन के मया, नेम,धरम सब लगे हवय जेला आत्मा ह पाइस,..
कौंरा जेमा न मिठास दाई के... न नेम धरम सुआरी के ...न बेटी के मया
नई कहावै ते ह अन्नपूर्णा के कौंरा ओ ह जहर बन जाथे...
बने निटोर के मन के पूरा बिख ल घोर के देहे कौंरा ह * दिनाही *कहाथे 

भाई जी Arun Rana कथें ...
कभू कोकरो देहे अन्न आउ कौंरा के अपमान झन कर ....!
फेर सोंच समझके कोकरो घर दुआर के अन्न ल कौंरा बना ...!
भोरहा-अंभोरहा कोकरो कचकुटहा अन्न झन खा ...!
बेर-,कुबेर भोगे बर पर जाहि ओकर गुन-अवगुन के त्रास ल , ...!
कौंरा जेमा तोर जांगर पेराय हवय पछीना निकरे हवय ते ह तोला फुरहि ।
लुटे-,झपटे अन्न जब हमर बबा ददा ल नई पचीस त हमर का औकात ।
तभे तो बबा Ravindra Sisodia ह कथे सुन बेटा चेत लगाके 
मघा के बरसे आउ महतारी के परसे म पेट भरथे
आउ ए जनम म महतारी के परसे म तोर पेट नई भरिस त ... 
कुछु जतन कर ले ..कोंहुँ परोसय कतको कन खा तोर दांदर नई पटावय !

*** कौंरा *** तोर भाग के भगवान के देहे परसाद आय  !
आँखि मूंदके पा माथा नवा दाई,-ददा-भाई-,बहिनी आउ हितु,-पिरितु ल

बस यूं ही बैठे-,ठाले
अगहन द्वादशी शुक्ल पक्ष २०२४

*** सईकिल ***

बंगला देश के सरनार्थी उतरीन गाड़ी-गाड़ी मुलमुला के भांठा म ...
देखनी हो गए रहिस मुलमुला भांठा आउ कोनार भांठा म तम्बू तनागे
रोग-राई झन होवै ...तेकर रखवारी बर सरकारी बईद दवा दारू संग 
ओकरो तम्बू जगा-जगा बनगे ... बसगे नवा गांव देखते देखत...
घर के दमांद ले जादा बेवस्था खाये खजुवाये के बनगे ...
चार कोस आगू-पीछू , ऐड़हा-बेड़हा, तरी-ऊपर ले हबरे सुरु कर दिन
ओ घनी हमर गांव ह मध्यपरदेश म रहिस तेकर भूपाल रजधानी ...
त चलय ओ बखत देष बन्धु बस ,...एक गोड़ के खेचेलाई वाला ,...
जे मेर पावै तेमेर ओकर हाथ गोड़, छाती, नारि, मुड़, कान, नठा जावय 
लम्मा दुरिहा जाए बर पछिन्दर गाड़ी जेडी रहय के नागपुर रेल पसिन्दर
गांव घर जाए आये बर बईला गाड़ी के भइंसा गाड़ा फंदा जावय ...
एक बछर हमर पास-परोस के सब्बो गांव के खेत म माहो संचरगे...
रात के भात म माहो माहो माहो चारों मुड़ा छवागे छबागे चारों मुड़ा ...
सरकार हवाई जिहाद म दवाई छिचे बर जहाज उड़वाइस...
दस कोस आगू पीछू ले मनखे जहाज देखे आइन ...
चुलहा म जावय खेत आउ खेत के माहो ...जहाज आउ जहाज आउ...

*****
पिउरा जीप, लाली जीप, फेर हरियर जीप  घलो रहिस गिनती के ...
माटी तेल आउ पिट्रोल म चलइया फटफटी घलो रहिस बने घर म 
फेर सबले जादा चलन रहिस ***** साइकिल ***** के 
साईकिल  " रेले-रज-हम्बर- हरकुलिस , एवन ए ही मन रद्दा म चलय ....
सइकिल म इनजिन लगगे बनगे हप के दउड़ईया जेलो  गाड़ी
टुरा जइसे फुंदरा गंथाके देवारी म राऊत नाचा म बेलो ,....
सइकिल के पयडील, लमरी सीट, गोल सीट, फेर सीट म लगे सप्रिंग,
सीट के चड्डी, ओकर हुक्सा, बरेक, बरेक रब्बर, हेंडिल,घंटी, हारन, पुकपुकि, चिमटा, कटोरी , छर्रा, टियूब, टाएर, बाल टियूब, फोफी, स्पोक, चक्का, फिरबील, कुत्ता, चैन, स्टैन्ड, केरियल, नट, बुलुट, स्पोक के मुंदरी, हब के फुंदरा, साइकिल के चुतर म लाल टिकला , सयकिल के हेंडिल म लगे ओकर कोकानी जे हर ओकर कम्पनी के चीन्हा...

*****
साइकिल के डॉक्टर घलो सब्बो बेमारी के दवा दारू नई जानय ...?
पेंचर होगे त टायर ले कांटी, खिला, कांटा हेरना बड़ मुशकुल ...
सुलेशन डब्बा वाला एक लम्बर तेला  टियूब म खपराईल म घोंस के लगाना फेर मुं म फुकके ओकर पाग देखके टियूब के कुटा जटकाना 
छोटे ऑपरेशन आय .....फेर भस्ट होगे त डंडा जोड़ मारना बड़े बुता...
टियूब के नाप म डण्डा बनाना आउ नाप जोंख म दूसर पार के टियूब ल लहुटाके खपरा म घोंसके सुलेशन चुपरना - चोप देखके तरी ऊपर चटकाना ,फूंक फूंक के सुलेशन के पाग आये के बाद ठोंक ठठाके चटकाना मंजाक नो हय .... पंचर ल बनाये बर हेरे टायर ल आउ सरगे हवय टायर के तार ह आउ ओ ह छोंड़ दिस त मोची के जूता खिले के सूजी म तुरते धागा चढ़ाना ह तुरते कुंआ कोड़ना कस बुता रहय ...
बड़े भस्ट ल भीतरी के पहिली जोड़ बनाना फेर ऊपर ले टिव जोड़ना मनखे के पेट के ऑपरेशन ले बड़े मुशकूल फांदा रहय ...

*****
साइकिल के घलाव बड़ बेमारी धरके आवय मनखे मन ,...
फिरि भील के कुत्ता छोंड़ देहे हवय ...
त डहर म फिरि भील म मूतके तीन चार घव पीछू चक्का ल पटक देखिस 
नई बनिस त लाये हवय ओमा छर्रा लगाना ...फेर गिरीस सिरा गए हवय
के ए ही परकार के सेंटर एक्सील के कटोरी म छर्रा लगाना बिन गिरिस के
त ...तव का बना ५५५-बार साबुन के लेपन नहीं त लाइफ बॉय साबुन के
त फेर चटकय छर्रा कटोरी म त बनय साइकिल मोर मालिक ...
चलत चलत फेंकागे पैडिल अब एक गोड़ के खेचे लाई कुटत ला 
छोड़ दिस ब्रेक त गोड़ म भुंइयाँ ल खोभत रोक साइकिल ....
ए दे ए दे होर होर नई रुकिस साइकिल फेल हो बिरेक त.....
 ठोंक दे कुछु मेंढ पार ल त होगे चक्का टेढ़वा टूटगे स्पोक ...
मनशे उलण्डगे खेल दिस उलान्दबादी थोथना के भार ...काबर के हबकहा
मारे रहिस आगू के बिरेक ल हचक के त टीनकोनिया डंडी म के एक ठन ह टुटगे... फाट घलो जावय एहि डंडी ह जेमा लईका बइठे छोटे सीट म
साइकिल के एहि ठाठ के तो कीमत आउ नाव रहय दाम रहय ...
एहि ठाठ के बड़े बिद्वान डॉक्टर रहिस पकरिया  के साधराम  बिसकर्मा ...
गरम करय अपन आगि वाला मशीन म डंडी ल फेर ठोंक अंईंठ के उलारय डंडी के लोहाटी बन्धना ल आउ फेर तिपोके ,...आने जुन्ना साइकिल के डंडी ल हेरके ऐमा खपों देंवय ...
जोरय पीतल के जोड़ लगावय सोहागा घोंस के ...ले तो बनगे नवा ठाठ...
एक कात ठन साइकिल के ठाठ म हवा भरे के पम्प घलो ओरमाये रहय
ठाकुर साहेब नाना श्री गोलन सिंह साइकिल, कुबरी, कोट, सेंट, गोठ , मांस, मछरी, मन्द, मउहा, घर, दुआर के बड़ शौखिन ....

*****
थूंक म वाल टिव कइसे लगाए जाथे सब साइकिल के दरोगा जानथे 
अरे हेंडिल टेढ़वा होगे त हाथ म हेंडिल टेढ़वा फेर साइकिल अपन सोझ म
एला कई घव गाड़ा के चक्का म फंसाके ..हरकके सोझ करन ...
सेंटर एक्सील ह अड़गे साइकिल न आगू न पीछू त अलगा के लेजा 
घोड़ा कस आगू टांग ल आज घलो मोटर साइकिल कस आड़ा बनाके ...
लईका रहेंन त ई बेरा म चिहो हों हों हों हों कहिहिके उटकावन ...
सेंटर एक्सील ल हेरत ठोंकत म ओकर घरूहां झर जावय के घोला जावय
त जनेऊ के ताग ल लपेटके फेर जुगाड़ म ठोंक पीट के अर्झा दन ...

*****
साइकिल मने दाऊ जी , गौंटिया, बड़े मालिक ....
अरे आज तो हेलीकाफ्टर म उतर तोर घर के छांधी म काला परवा हे 
तोर तोर कस चौदा गण्डायेन परे हवय गली खोर म सब गांव म...
घरो घर मोटर गाड़ी अरे मनखे आज खेत नींदे जाथे बोलेरो म चढ़के
मोर देखत म नरियरा म खेत बिसाइस बिजली कम्पनी ह ...
शौख म लिस फेर दारू पीके बेंच दिस फेर बोलेरो म गईस खेत नींदे 
साइकिल रहिस काल गौंटियानी चीन्हा आज हवय शरीर के ,* रच्छक *
साइकिल चला त बने रहिबे ...रैपुर राइस मिल वाला प्रभात भाई ...
घर म चार ठन मोटर फेर सायकिल म किंदरथे सरीर म हलचल बर ...
पिट्रोल डीजल होगे १०० रुपिया किलो ले अगरहा किम्मत म ...
फेर आहि दिन फेर बहुरहिं साइकिल ...
त फेर खोलिहां एकर डाक्टरी के दुकान अब लिखाही दुकान म

हेर *** फेंक *** सइकिल  दवाखाना ***
आज के  ४५, ००, ०००रुपिया के  BMW त काल के 280 रु के इहि दुगोड़िया जे हर भांवर किंदरे के पहिली हरियर मड़वा तरी मांढ़  जावय ।।
उकील Ashok Agrawal  कतको बड़ मील मालिक के बेटा रहिस फेर ओकर बिहाव म टिकावन म हरकुलिस गाड़ी तलक नई देईस ।।
बबा Ravindra Sisodia घलो के बिहाव म सेमरा के ददा नई टिकिस 
घोड़ा, गाड़ी, सइकिल, मोटर जे मन मंडवा के सुख रहय,..
बबा बताहिं अकलतरा म सबले पहिली कोंन नोनी सइकिल चढ़िस ,?
मोर गुरु Rahul Kumar Singh धरे हवय बेलासपुर के घर म सइकिल 
चढ़े घलो हवय लबारी होही त पूछ लेवा मुबाइल ल घन घनवा के 
बाबी के फटफटी आउ पिरिया CPL 333 संग अम्बसडर CPL 111 के रहत ले ... ओकर फिटिंग सिंटिंग आज घलो चकाचक हवय 
१९६७ ले १९७० ,तलक मोर सइकिल दुकान लगय कुटीघाट मेला म

बस यूं ही बैठे-ठाले 
१७ दिसंबर २०२४
मेरे युवावस्था के खूबसूरत पल जिन्हें जिया है मैंने बड़ी शिद्दत से
आज भी मुझे गर्व है अपने हुनर पर डण्डा जोड़ बिना रुके ...

*** बरसिहा ***

चइत पुन्नी के एक रुपिया के टिकस म लिख दिस बरसिहा के मजूरी एक बछर के  पुन्नी के पुन्नी ... आउ कर दिस बकलम ...दु गवाही संग ...

                        इकरारनामा
मन के मैं घुसू राम डोको वल्द माखन राम डोको गांव मुलमुला थाना पामगढ़ जिला बेलासपुर लिखत हंव के सरपंच रणधीर सिंह गांव मुलमुला  करा अपन घरु काम बर ७५० रुपिया उधार लेवत हावव । जेकर एवज़ म चइत पुन्नी ले चइत पुन्नी बिन नांगा करे बछर भर घर के आउ खेती के सब्बो काम ल करिहौं । मोला बछर भर खाये बर धान देहि जे हर जस के तस लहूटाये बर परही मूर के मूर । जदि मोर करा ए इकरारनामा ल टोरे जाहि त धान के दुगुन बाढ़ी संग ७५० रुपिया के कन्तर ५ रुपिया सैकड़ा महीना के देहे बर परही । ए ७५० रुपिया आउ मोर लेहे धान के एवज म 
मोर बाप माखन राम डोको पिता रामसाय डोको के नाव म दर्ज भांठा खार के भर्री कोदंन साव सही ह लिखावत हे ।
इकरारनामा लिख दे गईस ताकि सनद रहय वक़्त पै काम आवै ।

गवाह १               गवाह २            इकरार करता
                                               एक रुपिया के टिकस
बकलम कांतिकुमार सिंह गांव मुलमुला 
चइत पुन्नी बिक्रम सम्वत २०११
तारीख १४ जनवरी १९६०

*****
बरसिहा लगे हवय ......
०१ राउत ...चरवाही आउ बरवाहि 
०२ नाऊ...बर, बिहाव, मरनी-हरनी, ,पूजा-पाठ, छट्ठी-छेवारी, दाढ़ी-,मेंछा 
०३ पईकहा  ... नहना, बरही, पनही, भंदाई,   खात-खवाईत 
०४ धोबी ... नहावन-धोवन, बर-बिहाव,  खंघे-बढ़े 
०५ कमैलीन  गोबर कचरा,कोठा, खोर , दुआर के छरा-छींटका 
०६ आउ सबले ऊपर म पानी भरवईया राऊताईंन ....
ई सब पांचो मन मुं अखरा बरसिहा लगय आज घलो गांव के बेवस्था 

सबले अल्लग थल्लग ****
पईकिहिंन दाई नवा जनमे लोग-लईका के नेरूहा छीने खातिर
त बरेठीन दाई बिहाव म सोहाग देहे बर इंकर बिन जनम मरन नई होइस

बस यूं ही बैठे-ठाले
18 दिसम्बर 2024

**** रथी-सारथी ***

सारथी एक हमारी ग्राम्य जीवन की सामाजिक, परिवारिक, जातिगत, लिंगगत, परम्परागत ,व्यवहारिक व्यवस्था रही कमोबेश आज भी है जो हमारी अस्मिता का प्रतीक है जिसके चलते हमें ग्रामीण और किसान परिभाषित कर हासिये पर रखकर दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता है 
मुझे गर्व है कि मैं ग्रामीण और छत्तीसगढ़िया हूँ  ।
मेरे देश के गांव में जीवंत लोगों के जीवनशैली और जीवन दर्शन में जो हमें चुभती और गुदगुदाती भी है  । हम पीछे मुड़कर देखें तो हमारी बेबसी, लाचारी, अशिक्षा, सामाजिक मान्यता, बेरोजगारी, अंधविश्वास, कुप्रथा, अस्पृश्यता हमारा मुंह चिढ़ाती है ...मैंने जीया है उस दौर को मेरा एक प्रयास उस समय के कथा के अंकन का ...मेरे गुरु Rahul Kumar Singh जी  को समर्पित जो मेरे प्रेरणास्रोत हैं  !

                         *** सारथी  ***

सब घर परिवार के अपन-अपन काम धंधा आउ सब अपन-अपन म गगन मगन फेर गांव के गउँटिया का मजाल के कपार म चीन्हा पर जावय...
बीच गुंडी म बीड़ी चुहकत अजगर कस अंड़ियात काट दिन चार पीढ़ी
मुलमुला गांव म पूरा गांव म खेती नई होइस फेर गांव के गुंडी म ताश फेंटत गउँटिया बेलासपुर ले आये बड़े साहेब ल बईठ नहीं कहिस ...
डोरी जर के खुहार हो गए रहिस फेर अईंठ सारे जस के तस रहिस ...
रहीँन  किसिम किसिम के काम कमइया तेमा के कुछु एक नंजर ...

*** बरसिहा / अस्थिहा 
घुसू राम डोंको लिख दिस इकरारनामा बरसिहा के फेर अपन जांगर खंटो के पढ़ाइस अपन बेटा रमेश ल ...बनगे रमेश रेल गाड़ी म टिकिस कटवैया
बाबू अब रेल पछिन्दर सब्बो फिरि घूमे बुले जाए बर रात बिकाल ...
छुटागे घुसू के कंडील पोंछई, गाड़ा जोंताई, आउ दौंरी फंदाई...

*** रोजी 
बुधराम दास मानिक पूरी जी अपन मन के मालिक करिया बईला कस 
मन परिस त बुता करिस चोंगी ,माखुर ,,, आउ सिलेमा देखे बर...
काम बुता ह ओकर रोजी रहिस जेमा निखालिश रोटी के खंजा मांढ़ीस
बिहानियाँ बुता करिस आधा रोजी मिलिस १८० रुपिया ,...
ढिल्ला संढ़वा कस खाईस खजुवाइस जनम भर जस के तस 

*** सौंजिहा 
धनेसर बड़ बुधिमान फंसा डारिस अल्लर मनमुख्खी दिनेश गउँटिया ल
बहरा खेत ल सौंजिहा बोएँ बर खंधो डारिस ...खातू , माटी, निंदाई, 
कोड़ाई , चलाई, लुवाई, मिंसई  सब्बो म बरोबर लगाए बर फेर मिंस 
कूटके  आधा तोर आधा मोर... खातू लेगे दिनेश गउँटिया के किसान परची म हेरके आउ अपन खेत म छींच के आगे ... सौंजिहा खेत के आधा 
बींड़ा ल अपन खरही म समो दिस ...अब खोजत रह पावती ल...
बबा Ravindra Sisodia के खेती मुरली डीह म जतका बेर म मालिक गांव हबरिस ततका म खातू दवाई छिंचागे ...काकर म ?

*** भूतिहार 
बंधु भूतिहार बनके गईस अपन सासत म बेटी के इस्कूल के फीस भरे 
काय करय ...? जनम मिलिस बाम्हन कुल म त... नौकरी ...ठेंगा इल्ला
आधा रात के पैर डारिस...दौंरी फांदिस बईला खोज खोज के ... पैरा फेरत-हेरत-धरत-गांजत म बिहानियाँ होगे । दतवन, मुखारी, पैठू निपटा के असनांद खोर के फेर भिंड़ीस त धान ल असो के रास ल बांध के थिराइस , जानत रहिन उकील Ashok Agrawal  बन्धु महाराज संकोच म कुछु कहय नहीं त घर ले बनवा लाइन चुनी के अंगाकर रोटी ...
बरछा के गुर, घर के घी, मिरचा लसुन के चटनी बस पानी पिये के धरखन होगे ... कँहीया भर के रास टीपा म नापत , कोठी म झंपावत संझा होगे
महाराज अपन भूति ल नापिस आउ बोरी म धरिस ...
१९६० --६५ म कहाँ जादा पैसा लेन देन के चलन रहिस ...
जेला कमाए ओकरे भूति नाप आउ ओली, पागा, पिछौरी म ले जा ...
भूति नपावय, धरय, पावय, जांगर के बलदा म जिनिस ।

*** बनिहार
ए सारे रमाकांत चार किलास काय पढ़गे सब्बो बनिहार ल बिचका देथे
बुता के किसिम देखके बनि बताथे , खपरा ओईरे के आने बनि...
,कोठी ले धान हेरे के आने बनि ...त धान नींदे चाले, जगोये के आने बनि
मन परही त धान लेहि आउ मन परगे त पैसा ... सारे अल्लर नहीं त ओतके कन ल अंगोट के धरे रही अपन चौहर कस ... 
न करय न करे देंवय सारे किसिम किसिम के किस्सा कंथुली जानथे
जानत हवय काम बुता फदके हवय त रोज बेरा ल पहिली हबर जाथे
भगवारत घलो नई बनय ओकर किस्सा के सांटा म कभू कभू बुता घला देखते देखत सक्ला जाथे ...

*** अमानी
दीना के आगू म मुड़ पटक डार फेर ओ ह अमानी म ही बुता करहि 
जतका जांगर पुरिस लगे रहिहि अपन काम म अपन म मगन काम करत
न काहू से दोसती न काहू से बैर लगे हवय धीरे-धीरे...
बुता सिरागे मालिक ल कही दिस बांचे हवय मालिक जानय 
अपन रोजी, मंजूरी, बनि, भूति धरिस डौकी लईका करा घर रेंगीस

*** ठीका / ठीकेदार / सरदार 
खेत म थरहा जगाये बर हवय... सबले पहिली ..
सावन म घर के लिंटर ढारे बर हवय पानी गिरे के पहिली..
हबरस-तबरस दुरिहा -दुरिहा म खोंच के निपटा डार जगाई ल ...
हाँका लगाके बनिहार ल हचपचवाके...गोठ बात म बेंउझालके दिन बूड़े के पहिली सकेल दे रांपा-झौहा-तसला-तगाड़ी संग बाँहचे सिरमिट, कुधरा
फेर ठीका म मिले अतकीहा पैसा के चढ़ा ले भोले नाथ के परसाद ...
ठीकेदार कभू बुता नई करय ओह बुता ल उसराथे...तेकर बर ... खड़े होके बिन बुता करे अपन मुं के खाथे ... जनम भर ।

*** खाबा बनि
जनक साव जी बड़े मनखे संग रहे, बुले, गांव, गंवई जाए के शौखिन
गुंडी म सबके संग सिंधी सतल्ला ताश फेंटे के बड़ साध ...
धर ले संगत साधु के ..... हाना म परमारथ म जी देवइया प्रानी ...
जे मेर चिक्कन खाये खजुवाये के बेवस्था होगे ...पागा पनही तीयार 
आग लगे बस्ती म हम रहीं बस मस्ती म ...पर के दाना हकन के खाना

*** बेगारी 
आय तो ए ह बुता आउ बनिहारी, भूतिहारी ले जबड़ बुता आय ...
मोर मन परिस त ...मोर घर ले खाके संगी घर लकरी फोरे गयें ...
ओहु ह मोर हरे खटके म आथे मोर घर कभू पैरा धरे त कभू गाय दुहे
आन गांव घला कुछु समान पहुँचाए बर रथे तभो जाथे ...

*** सांफर 
बने नई होवय फेर सांफर म नांगर फांदथे आउ जांगर खंटाथे ...
न तो तोर बईला ल फेंके सकस न नांगर ल भुर्री बारे सकस त सांफर
जांगर के पुरत ले उठा सकाऊ काम बुता ल ले आउ दे जिनिस

*** मजूरी
बनिहार / भूतिहार / अमानी के मनखे लगगे बुता काम म धर लीन अपन ठीहा ...अतकीहा मनखे होगे ओह मजूरी म रहिगे ....
काम के दाम मिलिस नहीं त पुरोहित Neelmani Tiwari  धरा दिस 
कम , अतकीहा के बरोबर बनि, भूति, मजूरी सब मजूर कर लिस ।।

***सरदारीन
गउँटिया सब परकार के गुन अवगुन के मालिक त ओकर बुता कइसे होही
कड्डा  माई लोग अपन नंजर म बनिहारीन ले गईस आउ अपने आँखि म 
घर अमराइस टोली के टोली संगे संग घर त नवा बहुरिया, बेटी, बहिनी, सियान दाई समटर्र्क बुता करिन फेर अपन-अपन घर ...
न मालिक करा भूति लेहे गईस नवा बहुरिया न कांहीं बद्दी ...
सरदारीन फोकट म नई कहावै चिन्हथे मालिक के नंजर आउ नवतोरहा बहुरिया के लचक मचक तेकर सेतिर कभू कभू गारी घला चाल देथे ।

*** कमैलीन 
मोर काकी, बड़का दाई खोखरहींन , आदि-आदि 

*** कमिया 
मोर कमैलीन कस मालिक के कंडील पोंछईया और ओकर अंग रोग 
बस समझ लेवा मालिक के जासुक लम्बर एक ...
बैईठ के गउँटिया के माल मसाला के अकेल्ला चुहकवईया 

,*** गांवजल्ला बरसिहा 
राउत, नाउ, धोबी, आउ होंहि  काय ,...???
गाय चराये बर, राउत राधेश्याम गिंया 
मरनी-हरनी म धोवाई - कंचाई बर टेटकी दाई ...
मरनी-हरनी, छट्ठी, छेवारी म रामफल नाउ 
लोहार खेती किसानी के काम बर
पईकिहिंन दाई लोग लइका के छट्ठी छेवारी 

*****गांव जल्ला म मोर पैलगी  पइकहीन दाई जेकर बिन हमन अरे नहीं मोर जनम ह नेरूहा छिनाये बिन कहाँ बने रहितिस ...
आउ ओकर घरवाला जे हर आज घलो जात के उटका पंची ल झेलत जियत हवय, फेंक देंवन अमहा खेत म मरी ल ...तेकर खाल ल बिन संकोच पूरा गांव के जिनगी बर निकारके लेगे हवय, डहर म बाँहचे हाड़ा घलो ल जतने हवय मोर पैलगी ए करम के करईया ल ...

*** अधिया 
आज तो ए सारे बेंदरा के मारे कोनो मेर तील, राहेर बोंवत नई बनत हे
नहीं त रार के रार बोंत रहेन तिवरा, अंकरी, चना, मटर , मंटूरा
अरे भुलागे रहें हो उतेरा म डारे बर परय फेर अंकरी अपन मन के जुन्ना बिजहा जाम जावय, अंकरी, तिवरा, कोदो के लुवाई कभू बनी म नई पोसाइस , ए ह सदा बरत अधिया म ही लुवाई के खंजा परय ।
लू के मढ़ा दिन फेर मिंज के आधा ***कुना*** आधा दाना बांट के ले गे
कुना ह गाय, भैंस के गजब के खुराक बनथे आज घलो ।
खेत घलो आज घलो अधिया बोंथे मोर गांव म । सब्बो आधा आधा ।।

*****
गांव की व्यवस्था में पढ़ा लिखा व्यक्ति भी बनिहार बन जाता है ।
परिस्थितियों के अधीन हमने बेहतर लोगों को भूति में पाया ।
चालक व्यक्ति जीवन पर्यंत सौंजिया काम का आनंद लेता है ।
गरीब भूमि हीन इंसान रोजी कमाने निकल आता है गांव से शहर की डगर
पढ़ा लिखा जुगाड़ू इंसान ठेका लेकर ठेकेदारी करके कमीशन खाता  है ।
आलसी साला अमानी में आड़े वक़्त काम को अपने पास रखता है ।
मजबूर सांफर में वो सब करता है जिसे अभाव के कारण ना नहीं करता 
बरसिहा उसकी नियति बनी कारण एक नहीं अनेक बने बस वो जीता है
सरदार अपने वाकचतुर्यता का खाता है जुगाड़ और आड़ की कसम ले ।
सरदारीन चपल नारी जो लोगों के मर्म को समय की धार संग समझती है 
माफी सरदारीन कभी-कभी अपने मृदुल व्यवहार से संदिग्ध बन जाती है ।

बस यूं ही बैठे-ठाले
19 दिसम्बर 2024
पौष कृष्णपक्ष चतुर्थी 

जरूरी नहीं जिसे मैंने जिया है वो आपके मापदण्ड में खरा हो ।
भूल चूक और अवलोकन संग अनुभव भिन्नता की माफी ...

*** अकारथ ***

@ १...२ का ०४ और ०४...०२ का http://xn--d4bc.com/ बेर्रा
बारा मिंझरा ..बारा जतिया ...चुरगे त अब खोज ..अलग भाजी के सेवाद
खोवा गे भाजी नून मिरचा, दही, महि, बोइर, अमचूर, अमली सब डरागे
लाल भाजी, मखना भाजी, गुंर्रु भाजी, पोई भाजी, मेथी भाजी, मुनगा भाजी, खेंड़ा भाजी, चना भाजी, चौलाई भाजी, पालक भाजी, गोभी भाजी, करमत्ता भाजी,  सब छांट निमारके रांध दिन ...
परगे फोरन मिरचा, लसुन, के फेर देख ओकर मिठास ...

*****
बेर्रा साग म माताराम पऊल दिस गोभी, गोभी के पान, ओकर डेटरा, भांटा, सेमी, कुंदरू, डोंड़का, तरोई, मखना, मखना भाजी, आलू, खेंड़ा,
चेंच के छोड़ें सब्बो भाजी, फेर कोंहड़ा आउ कलेरा के छोंडे सब्बो साग ओकर फोकला समेत गदबद ले चुरो दे सब्बो ल बीड़ के करईहा म ...
पूरा साग करछट रंगके हो जाथे ,अरे लसुन, जीरा, सरसों के फोरन घलो रथे राम जी तेमा धनिया, मसाला सब्बो डारके बड़बड़ ले चुरो डार...
आजकल एला मुक्स के मिक्स साग कथें सहर म ....

*****
बेर्रा रोटी के चलन होगे हवय नहीं त पहिली निमरा रोटी परोसाय ...
अंइरसा,गुलगुला, ठेठरी, खुरमी, खाजा मन किसिम -किसिम के खजेना
फेर सोंहरी, चीला, चाउर के अंगाकर, गहुँ के अंगाकर ... के बाते अल्लग
तेकर ले ... चुनी के रोटी म उरीद दार के फोकला संग गहुँ पिसान ...
अब तो गहुँ, चाउर, सोयाबीन, उरीद, चना, बाजरा, जौ, कोदो, कुटकी, 
सब ल साँझर मिंझर कर देथें फेर गदफदवा के सान दे ...
अब तरी म छेना के आगि फेर परसा के पान के पतरी तेकर ऊपर मिंझरा पिसान फेर ओला ओहि परसा पान म बरोबर तोप दे ...अब ओकर ऊपर फेर छेना के आगि ...चुरे दे मतंग मसमसहा छेना के आगि म रोटी ...
एहू सारे ह बेर्रा बेर्री रोटी आय ...
लाल के होवत ले चुरोय ए रोटी फूल जाथे देवढा अपन हिसाब ले ...

*****
दार घलो आजकाल बड़े बड़े डहर के होटल / ढाबा म मिंझरा चुरोत हवय
दार के घलाव महिमा अपरम्पार हवय ...
दार जेला पिसवा के बने जात के बघार के कढ़ी बना डार ।
फेर मन परय त नई चुरोये त घाम म बगराके सुखो डार, ।।
राहेर, मसूरी, लाखड़ी, उरीद, मूंग, चना, मटूरा, मटूरी , चनौरी, 
भाजी आउ दार के अंचरा आउ छाती के मया नेम धरम हवय ।
भथुवा भाजी संग मसूरी दार सैघो डार के बने दार ...डार 
लाल भाजी संग चना दार डार फेर लाल सुख्खा मिरचा के फोरन ...
चुरगे कभू मिंझरा दार त ओकर सेवाद पूछ झन 
काबर होगे बेर्रा दार कभू चेत करे ह ...? 
अरे सिरागे दार रांधत रांधत फेर थोर-थोर बाँहच गे बस होगे बेर्रा

*****
नून... शक्कर...गुर ...फिटकुरी...  संजोग एमन घूरगे पानी म 
कर देख अलग कतका असकट आउ किसकिस लागहि 
एहि कस फूत्का ...चाउर पिसान...चना पिसान... गहुँ पिसान मिंझरगे
अब सूपा-चलनी कामा ओला निमारबे , चालबे के पछिनबे ?
पवन हवा म घूरगे, मिंझरगे , धूंगिया , कुहीरा, काय जिनिस म छानबे ?
दूध म पानी मिला देहे चुरोके पानी ल उड़वा देबे के दूध ल अंउटवा देहे
पानी भाफ बनके उड़ीया गईस त बाँहचीस दूध ओहि गाय के ढेंटी  ले निचोये राउत के बाल्टिल म धरे  दुहे वाला ?
आ चल मिंझार दे सब तला के पानी म गंगाजल ल ...
गंगाजल ले पानी आउ पानी ले गंगाजल ल कइसे निकारबे ???
ए मन कुछु गांव के जनऊला नो हय ..., हमर जिनगी के कथा आय  !

*****
मिंझरगे जिनिस तेला निमारके कुछु उदिम करके फेर अलग कर लेबे ।
मिंझरगे हवय जुन्ना समे ले हमर बात, बेवहार, रहन-बसन, रीत,-रिवाज
धरम, लेन-देन, जिंहा बसेन ते घर , परवार, धरम संग नेंग ....
छत्तीसगढ़ म आके बसेन २५० बछर पहिली हमर जात... मिंझरगे
बर-बिहाव, मरनी-हरनी थोरकन हमर थोरकन ओकर सनागे एके म ...
का मतलब ओकर जस के तस रहे म काय नफा-नकसान ?
मिंझरगे , अलगेच हवय काय फरक परिस मानिस ते मानिस ...
नई मानिस ते ह एक नहीं एक हजार नवा रद्दा निकार डारिस  ।

***** अकारथ *****
लोक मरजाद ले बाहिर गईस जे काम, नेंग, नेम, धरम  के कतको बड़ बुता ...सुमेर पहार कस बुता कउड़ी काम के बरोबर नई रहय, मुरमुंग के फोकला तो आगि म डारबे त गूँगवा के भुंसड़ी भगोही फेर ए ह कांहीं काम के ? बंगहा कांस कस थारी के बटलोही कस होथे काय  ?
ऐमा धरे जिनिस झटकन कस्सा जाथे ...कतको जतन कर ...!
फेर एहू ह निमगा गल्लत ऊपर गल्लत आय के आन के स्वारथ म अपन जिनगी ल ख़पो आउ आखिर म मनशे राख कस बोहवा देंवय !
***** झन बन मरिसा के तीस साल जुन्ना दाना परे... गुर के तोला चिखत- चिखत सिरवा देंवय मनखे ओखद बनाके ....
***** झन बन कोला-बारी के झुनकी तरोई के डहर चलत गरुआ झटक के चर देवय ...
***** काय करबे लकठा के पीनखजूर बनके ....जे पाहि ते लबदेना मारके डहर चलती Rakesh Tiwari किलिक कर देहि ...
जे हमला पा गे बउरे बर तेकर बर हम बन गयेन भगवान ....!
आउ जे ह चूक गे के नई धराऊ परेन बस एहि एक झन बर * अकारथ *

एक दिन संझौति बेरा म गुरु जी Rahul Kumar Singh ल पूछ देखें

बनूँ तो क्या बनूँ ...?
और आखिर क्या बनूँ ...?
बना इंसान तो नाहक मैं मारा जाऊंगा ,...!

बस यूं ही बैठे-ठाले
प्रतीक्षा में कि इस बरस नया क्या हो जाएगा ?
22 दिसम्बर 2024

Friday, 15 November 2024

***** ररूहा @ # .com

बड़ पुन्न करिस मनषे त मानुष के जनम पाईस ...
नहीं त भगवान घलो ह तरस गे मनखे के जनम पाए बर...
ले चल बतावा बबा रविन्द्र सिंह सिसोदिया कोन भगवान ह कोन महतारी के कोंख ले जनम लिस ? 
त्रेता म ...भये प्रगट कृपाला दीनदयाला कौशल्या हितकारी ........
त द्वापर म ... यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ....
आउ अब कलजुग घलो म इही कस कुछु कांहीं होही काय..?

भगवान सबले सुजान मनषे ल बनाइस बड़ गुन समझके ....
सब गांव, धरम, लिंग, जात, कुजात, चिरई, चुरगुन, म बनावत टोरत फ़ोरत हेरत, धरत म ....होही रोठ मोठ घोंसत म ...
त खंग गईस होही माटी के लोंदा ह ...पेरऊसी बने नई सनाइस होही...हो सकत हे गिलगोटहा रहि गईस होही माटी का जानी ?
मोला लागथे ईंटकोटहा रहीगे रहिस काय सानत म .... ?
रहिस होही लुवाठ कुछु कांहीं खंगे-बढ़े .... हेरत धरत म.... ?
भगवानेच तो आय न ब्रम्हा घलो ह तो कई ठन बेरा म चूकगे हवय
गढ़त-गढ़ात म ढलंग के टूट गईस होही साँचा ह त.... ?
नई मिलय कोंहुँ मनशे ह एक दूसर कस .... मिलथे काय ...?
हमरे हाथ के चीनी अंगठि के चीन्हा ह ठेंगा कस चीन्हा कस नई मिलय न होवय.... अरे टार न दुनिया के लफंदर गोठ ल.....!

एके घर म दु झन जनम ले लीन एकेच गिरहा, नछत्तर म तभो ले
ऑन तान रहिबेच करही ...कतको मुँहरन ह एके कस होय....!
मनषे अपन करम म उदिम ऊपर उदिम करके,.....
,सन्ना के लिखे ल माथा के लिखना कस कपार म उबका डार ...?
आउ ए किस्सा आय ओइ सनहे किसकिस मनखे के.... !
मनषे कस कस मनखे ले बढ़िया आउ खिख भगवान गढेच नई
 सकिस आज तलक ... कई पीढ़ी कई जुग बदलगे.....
देख लेवा खोजा तो ..? आँखि मूंदके तमड़े देखा देश परदेश म..!
पीठ के हाड़ा वाला जात... ले गुजगुल जात ल ...!

फेर का सोंचके गढीस होही ***** ररूहा ***** मालिक जानय !

*** ररूहा *** एक किसिम आय मनखे के........?
न गुनी न अज्ञानी, अड़हा तो हई नो हय न जोजवा आय ...
न भखला, न सुजान, अलगेच किसिम आय मनखे म ....
सब गुन म सनाय फेर एकेच ठन गुन म अकारथ....
बस ओहि एक अकारथ गुन ओकर चिन्हारी बना दिस # ररूहा #
      " तभे तो कथें ररूहा बर कसार कलेवा ,,
अब तुंहर हमर कस बड़ सुजान मनषे एला... ए हाना ल ...
जोर देथें पेट के आगी भूख म ......?????

अरे सही आय का हो गुरु राहुल कुमार सिंह बतावा भला?
मोला भूख पेट के त तुंहला भूख ज्ञान के....
संत ल भूख ज्ञान के त तरवार ल भूख म्यान के
मोर समझ म मनखे लबालब भरे सब गुन म फेर बस ठन जिनिस ... बस देंह के भीतरी "$ जी $ ,, ( आत्मा ) कस
एकर महुँ अरथ ल गुन देखें फेर नई खोज पाएंव ...
उकील साहेब अशोक अग्रवाल तुंहर पोथी म लिखाये होही त बताहा हो ...चेत करे रहिहा ....!
मोर सोंच म आने त तुंहर सोंच म ताने ???
*** ररूहा *** सब ल देखे हवय... बस एहि एक ठन के छोंड़ ...
ई ल देखिस ,गुनिस ...देखके, गुनके ...आउ सुध ल... भुलागे ...भुलागे अपन अन्नो ... होगे चेत बीचेत ....
भुलागे अपन धरम, करम, नेंग, गुन, अवगुन के हिसाब किताब
फंसगे माया म ....कपार म लिखागे ररूहा ....
अब आज समझ म आइस त लाज के मारे नई कहे सकिस ...
परगट ही जाहि ओकर अड़हाई त अब एई ह सही आय ,..
न तो ओहर हबर हबर खाइस न करे सकिस  ...!

बस एक ठन चूक जाने अनजाने म ....!
के हड़बड़ी म आउ होगे नाश...! 
बड़ गियानी मनशे के ......ल घुघुवा चाबथे हो ...!
छुआगे  देंह म के परगे जीभ म....अब कहे त ...
कहिबे काला...? सुनहि कौन...?
बइठे र पठेरा कस कौड़ी दांत निपोरत.....@ # .com
 " तोर घर तोर दुआर तैं खा चार जुआर ...!,,
जा धनतेरस मना जय श्री राम...

बस यूं ही बैठे- ठाले
धनतेरस 29 ,10, 2024

**** घण्टहा पीपर *****

अरे जा न मोर घण्टा परवा नई करय तोर कस किसबा मनके...

फदक गे झगरा महतारी के तीज नहावन के पांत रेंगत रेंगत...
गांव घर के सियान अब्बक ...बैकुण्ठ सिंह के बेटा के मन के जहर
आज परगट होगे जीभ म ..लईका,सियान, घर के आउ परजातक 
हितु पिरितु के आगू अंगना म पांच परगट होगे...
खुलगे कलई मनके सब करिया चाल उबकगे .माथा म ...
आके हिरदे के बात कण्ठ म होके हरियर जहर कस दिखगे 
बड़ कठिन अरे अड़बड़ मुश्कुल आय बेटा घलो ल समझ पाना...
बैकुण्ठ सिंह के बेटा मारखंडे मुंहूं खोल के कहि दिस ...
तैं जान तोर आत्मा परमात्मा जानय तोर बात... 
सब बिगड़े तोर.... सब बने मोर ...
तोर सासत तोर संकट, तोर चिन्हारी तोर धरम बेटा ल दस महीना तोर कोंख म सहना, मैं तो तोला जन्माये बर नई कहे रहें....
ई बेटा सारे दलिद्दर डौकी के कहे म मुं ऊपर कही देईस...
दाई के आत्मा कसमसा के रहिगे ...पहिली पता चलतीस त कोंख ल ढेंकी के मुसर म कुचर देतिस महतारी फेर अब का करय....
कुल के दिया बारे बर औंतारे मारखंडे ल फेर ई गति .....

समे के गति, मति,चाल, चलन, संग अवई-जवई म घण्टहा पीपर घलो ह पोंडा परगे रहिस आउ आज हदरके फाटगे रहिस...
सहर के झकनन ह बड़े बड़े गुनी मनखे के चित्त आउ धरम ल बीचेत कर देथे...सहर म मनषे जागथे रात भर ... उठथे दिन बूड़े म
त तो आज गांव उसलगे सहर म ....रही का गे गांव म...
आज गांव काला मिठावत हवय ?
सुन्ना गली, डहर म चारों कोती गरुवा, खेत के आगू म घुरूवा, 
आउ नहर के उदबास म खेत म नरवा ...सनसनात मच्छर...
कुछीछित मनखे, बिलबिलात किरा भरे नल्ली...
घाट, घठउघा म दतवन चिरी, किरा उपलाये पानी ....
ए दे आइस बिजली.... ए दे गईस ... बईठे रह बिहनियां ले संझा 
तैं धरे हस जियो के नेट ओ ह मरो होगे हवय गांव म ...
कभू एअरटेल चलिस त कभू आइडिया के अड़िया चलिस...
अप्पत डौकी कस कभू कहे नई करय ...
कोन गदहा सारे कहि देहे रहिस बैकुफ बनाये बर के * हमेरी *
मारे बर *** भारत की आत्मा गांवों में बसती है ***
भेंटते त सारे ल परघाते डोंगरे के पनही म तरुआ के जात ले ...

अरे बड़ अलकर होथे... कभू फंसे ह लुकडु फ़ान्दा म ..
सोंच लेवा जे दिन तुंहला पहुना ल समोखना हवय उहि दिन बछरू ढीला जाहि , एक दिन पहिली बरवाहि रहिस त कातिक राउत ले गए हवय गाय ल निचोके दूध ल ... अब बैठे रहो दांत निपोरे...
कभू कोकरो कटाये अंगठि म मुते नहीं त तोर कोन परवा करही
धरे र तोर BMW गाड़ी ल आउ ५०० रु के नवा नोट ...
जा चिचोरत र नोट ल गाड़ी भीतरी न तोर तीर म मनषे, न चीज
आत जात रह नता गोता म, चढ़त उतरत रह सीढ़िया म ...
त पता चलहि त गम पाबे के सीढ़िया आउ नता गोता म जंग थोरे लगे हवय ....नहीं त मुड़ भरसा गिर जाबे ...

बैकुण्ठ सिंग के घरवाली  कुमारी दाई के फूल सकलाही कईसे ?
बड़े बेटा डॉ संतोष अपन डौकी संग खुसरगे खोली म ...
मारखंडे तहसीलदार मुंहूं खोल के उगल दिस जहर बीच खोल
छोटे बेटा भरत बड़े मंझला के आगू म अकारथ बने .रहिगे ...
बेटी सरस्वती अपन बाप के मुंह देखत अगोरा म गोठ के...

सकलागे कुमारी गौंटिन के फूल बन्धागे घन्टहा पीपर म मरकी...
मुंह म आगि ढ़ीलिस छोटे बेटा भरत...
किरिया करम कईसे होही चूल्हा म गये ....बेटा-बहुँ अलमारी के तारा टोर के सकेल डारिन सबो गहना ......

***-नरी के गहना ***  सुंता, पुतरी, कटवा, दस्तबन्द, गलपटिया , गुलु बन्द, तिलरी, दुलरी, कदमाहि तिलरी, गंहुँ दाना, मटर दाना , मरीच दाना, गोप, कंठी, चार दाना, रानी हार, लक्ष्मी हार, चोकर, 

*** कान के गहना *** ढ़ार, करन फूल, फूल संकरी, ऐरन, खूंटी, झुमका, बारी, तीतरी, बाला, 
नाक के गहना ...सरजा के नथ, नथ, फुल्ली , बुंलाक

 *** माथा के गहना *** माँग टीका, बेंदी, बोडला, पटिया, 

*** हाथ के गहना *** चुरी ... बाजू बन्द, नांगमोरी बहुँटा, ककनी, बनुरिया, खग्गा, गुजरी, देवरइंहा, परछईहां, हांथ फूल, मुंदरी

*** कन्हिया के गहना *** कमर पट्टा, संकरी

**** गोंड के गहना*** .झांझ, लच्छा, पायजेब, पँजिना, पैरी, कटहर, टोंड़ा , साँटी, पांव पोंछ, पायल, पैर पट्टी, अंगठहा, मुंदरी, चुटकी, बिछिया

कतका बेर आगे पोद्दार धनदास तखरी लेके आउ बिन पूछे-गंउन्छे
गहना तीन कूटा म बंटागे चोटरी मोटरी बन्धागे .....
बैकुण्ठ सिंग ल तला ले आये के बाद पता चलिस ए बेटा मनके 
किसबाई त बलाइस गांव के सिदार अशोक अग्रवाल पटेल, आउ अपन जोंड़ के सियान संग  महराज अशोक तिवारी मन ल आउ सुना दिस ....

अपन फैसला .....लम्बर एक******
देखा भाई ए सब सोन चांदी ह मोर कुमारी गौटिन के गहना आय ..
जेला मैं हर ओकर सौंख बर बनवाये रहें ...कोकरो करा लुकाये छुपाए के कुछु मोर करा बात नई हवय, सब जानत हवव...
१९९० के बछर के पहिली नहर नई रहिस न मोर ददा खेलावन सिंग आउ महतारी कोनरहिंन दाई ह गहना छोंड़के गए रहिस ...
ए सब गहना ह मोर बिसाये धरे आय त सब गहना ल तिजोरी म जस के तस धर दिए जावय अभी के अभी आउ चाबी ल सरस्वती के हाथ सौंप देंवा ....का मजाल कोंहुँ कुछु कतीस पोद्दार छुपेचुप सब गहना गुरिया ल तिजोरी म धरके कूची सौंप दिस ...

अब सुनो भाई ददा मोर फैसला लम्बर दु *****
मैं मोर घर दुआर आउ परिवार ल छोंड़के न बेटा मनके घर जूठा चाटे जावव न बेटी के ओसारी राखे जावव ....
मोर पुरखारत म जतका पुरीस लईका मन ल पढ़ा लिखा देंहें 
ओमन अपन बुद्धि बिबेक के हिसाब म नौकरी चाकरी पागे
सहर म सबके घर दुआर बनगे हवय, लईका मन पढ़त लिखत हावय बस अपन अपन म मगन रहव भाई ...
खंघे बढ़े आवा गांव म तुंहर सेवा मैं करिहौं .....
कोकरो करा कोई कुछु न पूछना हे न बताना न सुनना....
सरस्वती नोनी संग काल प्रयागराज जाना है दिन बूड़े के पहिली 
कुमारी गौटिन के किरिया करम ४ था दिन ले १२ दिन तलक के
पिण्डा बिसर्जन प्रयागराज म करींहा उन्हे रहीके....
मोर हितु पिरितु के जिम्मे घर दुआर सोन,  चांदी,  गरुआ, बछरू, धान, चाउर, रहिहि तेरही ल नेंवत देहा सब ल आबो त पंगत म 
बईठके खाबो ....चला भाई सब ल चाय पानी करवावा...
दिन बूड़े खोजत हवय कोई तरक कुतरक नहीं ...

बैकुण्ठ सिंह पहुंचगे नाउ संग नाती मनोहर ल लेके पानी डारे
**** घन्टहा पीपर साच्छी पुरखा मनके......
बार दिस लाल मरकी के भीतरी दिया , भर दिस मरकी म पानी
काल चलबो कुमारी गौंटिन प्रयागराज कहा सुना माफी देबे
काय करबे समे बदलगे फेर जनम लेबे मोरे बर....
संसो झन करबे तोला अगोरिहा आगू जनम घलो म ओ...

बस यूं ही बैठे-ठाले
गुरुदेव राहुल कुमार सिंह और बबा रविन्द्र सिंह सिसोदिया को समर्पित भूल चूक की माफी सहित ।

Thursday, 1 August 2024

$ जोरन्धा $

अलगेच अलग आय फेर काबर कथें जोरन्धा
बिज्ञान कथे आउ सबो ज्ञानी मनषे मन कथें के सब अपन म अद्भुत
जोरन्धा आय त आँखि के परदा ह एके कस होही ?
कईसे मिल जाहि हांथ के अंगठा, अंगठि के चीन्हा ?
कपार के लिखा ह एके कस मोला तो कभू नई दिखिस ....?

डॉक्टर , बईद, सियान, ज्ञानी, पढन्ता मन के लिखा पोंछा ह
सब गुन अवगुन के हिसाब किताब लगा के बताथे के जोरन्धा के सब माया मछिन्दर काय काय हवय ....
सब सही आउ काय गलत.. पढ़, लिख, पोंछ, गुन डारे हवय,....

परमात्मा के खेला बड़ निराला....बबा Ravindra Sisodia जी
ओहि माटी म पुटू आउ ओहि माटी म गुलाब, आउ रंग रंग के फूल, पेंड़, नार, बिंयार ,बीज, बिन के पेंड़, अमरबेल अध्धर म, रोटहा, मोटहा, फोसवा मुनगा कस पेंड़, त निन्धा सइगोन, सरई, शीशम ,साल , कोंहुँ मेर मीठ, बोइर, कस्सा कैथ, बड़े मखना, चिरपोटी पताल, कोंहुँ मेर झूलत बड़े कौंहड़ा , लम्मा लौकी , त नार म झूलत तरोई, ओरमत मुनगा, त गद गद फरे भूंसा किरा कस तुत, 
मकोइया के कांटा, तेंदू के अध्धर पेंड़ , पपरेल के फूल, त ओहि मेर  मंदार के कई रंग के झूलत-डोलत फूल, आउ भांठा म बगरे बन बोइर, त टीबॉन्चु भटकटईया के फर आउ फूल , रात रानी, गोंदा, मोंगरा, चमेली, फेर चम्पा के बड़े पेंड़, अरे कतेक ल गिनवावा, ऊंच म फरे पिन खजूर, आउ नरियर एहि माटी म एहि माटी म....
माटी ओहि आउ बिधाता के रचना अपरम्पार , अनगिनत...

महतारी के एके कोंख म.....
जोरन्धा बेटा-बेटा त कभू बेटी-बेटा, त बेटी-बेटी घलो ....
रूप, गुन, बरन, सुभाव, रंग, अक्ल-नकल घला म एके कस  ?
एके कस  ? ,के भोरहा .... ? देखत आउ गुनत म  ?
सोंचथे मनषे एके कस आउ बिचार घलव करथे बरोबर एके कस ?
फेर जोरन्धा लईका मन के भाग्य आउ भाग ह नई मिलय त नई...

०१
मोर देखत जानत म जोरन्धा बड़े भाई के ०६ बेटाआउ ०१ बेटी
छोटे भाई के ०६ बेटी आउ ०१ बेटा... ओहु बेटा खइता होगे,....
सबके अपन करम, अपन धरम, रूप, गुन

०२ 
एक जोरन्धा बड़े भाई संजोग देखा कोई लोग लईका नई रहिस
त छोटे भाई के भरे पूरे परिवार ...धन, जन, विद्या के अशीष...
ओहि नेंग, ओहि नियम, धरम, जीवन बैपार फेर अलग संसार...

०३ 
दु जोरन्धा बहिनी मोर जान चिन्हारी म हवय...
बड़े बहिनी अति शांत , धिरन्त, गुनी आउ मुश्कियावत बान के
त छोटे बहिनी छिनमीनही आउ घेरी बेरी गुस्साए सुभाव के
एकेच घरी पहिली कोंख ले बाहिर आइस ,......
सुईन के नेरूहा छीनते छीनत म छोटकी घलो आगे
फेर बड़की आने त छोटकी ताने.....

गुनी ज्ञानी मनषे मन बताथे के हमन के लहू म कोडोमोड़ोजोम रथे
ओइ ह कुछु संझार मिंझर होके गुन ल आन तान कर देथे ।।

अरे होही जी हमला काय लेना देना ...अपन डहर जा अपन म आ..
अरे एके महतारी के कोंख ले अवतरे त एके कस रहय न जी 
फेर एके हाथ म पांच अंगरी , जेवनी ले डेरी देख त....
ठेंगा, निटोरे के अंगरी, बड़े अंगरी, मुंदरी अंगरी, त कानी अंगरी
अंगरी मन तो छोटे ,बड़े, रोठ, मोठ, आउ कानी हे त.......?
ओहि कोंख ओहि नार, एके लहू एके पानी फेर कईसे उलट बानी.?

बड़ गुने त मोला लागिस ** जोरन्धा**  ह पेंड़ के दुथांगी नो हय ..
नो हय ए ह रेल लाइन के लोहा के गाडर जे ह बिछाय रथे एक संग
मिलय कभू नहीं फेर दसाथें बड़ जतन करके....
जोरन्धा ह संजोग आय परमात्मा के जेला ओकर किरपा कहि दे...
जोरन्धा ह रेखा गनित में समानांतर सोझ डाँड़ घलाऊ नो हय ,..
जोरन्धा ह नो हय नंदिया के दुनो पाठ जे हर संगे संग रेगय ....
नंदिया के दुनो पाठ अपन-२ गुन-अवगुन आउ चरित्तर संग

देखें ,गुने , सुनें, आउ ओरखें त मोला **जोरन्धा ** ह भासिस .....

*** जोरन्धा *** ह आय भुइयां के ऊपर के पवन.......
कोंहुँ मेर जुड़ मन ल थिरवात संतोष देवत  त कोनो मेर धधकत आगी कस सुभाव, कोंहुँ मेर गर्रा बड़ोरा त कोंहुँ मेर सर्रात टोरत फोरत गुन संचरे, कोंहुँ मेर सकेलत बादर ल गरजत घुमरत

*** जोरन्धा *** ह भुंइया कस घला लागिस मोला
कोंहुँ मेर सरपट आँखि के पुरत ले नंजर भर देख ले
त कोंहुँ घानी नंजर नई पुरत हे देखे म ... आँखि चोन्धियागे
कौंहु मेर डीपरा त दतकि कन दुरिहा म बड़ खंचवा 
किसिम किसिम के रंग मटासी, डोंडसहुँ, कछरी, कन्हार, ...

*** जोरन्धा *** म लागिस मोला आगी कस सुभाव...
चूल्हा म परिस् त चुरो ले दार भात पेट के आगी थिरवाय बर
परगे मसान घाट म चिता म त लेस दिस मुर्दा ल
आउ कल्यान बर बार दे हवन भीतरी त ओहो..आहा ,.....
अपन मन के बरगे के बार दिस त बन घला ल ....
नई देखिस अपन आन जे ह डहर म आइस लेस दिस जी जंतु संग

कभू कभार मोला *** जोरन्धा *** ह पानी कस लागिस
जेकर भाग म परिस तेकर आत्मा ल जुड़वा दिस 
कोंहुँ बेरा म तीपगे त उसन के घर दिस बने मईहन सबो ल
बने राखे सके त जीवन दाई कस लागिस 
कभू उमड़ घुमड़ गे त बड़े ले बड़े पहार ल ओदार देथे
माढ़गे तला, पोखरी म निर्मल, साफ देख ले भीतरी म माढ़े घोंघी

 ज्ञानी अंतरजामी कस आँखि मुंदके देख तो *** जोरन्धा *** ल
अगास आय जेकर ओर आय न छोर .....
अनंत, अपार, अथाह, अबूझ, जतका जाबे ओतके दुरिहा 

बस यूं ही बैठे-ठाले
एकादशी 31 जुलाई 2024
आज मेरे सेवा निवृत्ति का दिन 2015 शानदार 09 बरस
ए लिखा पोंछा आप ल समर्पित...सादर पैलगी संग
१९९१ म " एक रात दिसम्बर के ,, गुरुदेव Rahul Kumar Singh
मोर फेर से गुरु बने के कथा लिखिहं जियत जागत रहें त ।।

***** कचकूटहा *****

रामदयाल दाऊ के एक ठन बेटी शहर के पढ़े लिखे 
घर के सब्बो बुता म गुनिक , रान्धे पसाये , जुनहा, फटहा , ओनहा घला ल अतक बढ़िया संवार के खिल देवय त गांव के भौजी, फूफू , भाई, बबा, कका, काकी, के तो बाते छोड़ा, पास परोस के बहुरिया ओकर बान के मारे ओला दीदी दीदी कहत थक जाय ....
एक बूंद माथा म टपक के थिरा भर जावय त नहा डारिस...
दिखे म ०८ कोस म ओकर ले सुघ्घर कुंआरी बेटी कोंहुँ नई रहिंन ।

ओकर दाई कौशिल्ला नान पन म छेवारी म कच्चा परगे त ....
भगवान घर चल पराईस .... पहिली पहल गांव घर म लइकई म पर्रा म बइठार के भाँवर किन्दार देवय ...कम उमर म पठऊनि कर देवय .... आउ गांव म छट्ठी छेवारी कर देवय त पहिलीच गोड़ ह गरू होईस तेहि छट्ठी म कौशिल्ला ह फौत खा गे ।। गिरगे गाज सब करे धरे म अन्धमन्धागे रामदयाल दाऊ फेर छाती ल पोठ करके सह लिस ...दाऊ बर घातकन बिहाव बर सोर आइस ... फेर बाह रे मंझला दाऊ ...हिरक के नई निहारिस कोंहुँ माई लोग ल ..... काट दिस बैरी कस रात उमर ल

रामदयाल ०२ भाई एक बहिनी दीनदयाल ओकर पठियरा भाई  एके ठन बहिनी सुनीता ...तुलसी कस चौरा....
गुन म अपन दिन म ओकर छां ल नई खुन्दे पाइन ओकर संगी सांथी मन ......भाई... दाई... ददा... आउ अपन फूफू के गुन पा गे रहिस बस नाक के सोझ म आउ ओहि म आइस

जेकर जइसन घर दुआर तेकर तइसन फईका ,,
,आउ जेकर दाई ददा तेकर तइसन लईका ....

बस ईँ हाना ल उतार दिस यमुना अपन फूफू सुनीता कस गुन आउ बान म .... जे डहर म रेंग दिस मनषे सुरता करिन फूफू ल...
जइसे सुनीस सुनीता के लल्ली  भौजी छोंड़ दिस मोर मइके के अंगना... सोर के संगे संग बिन दुआरी ओधाय आगे सोरहार संग
अपन मइके आउ दसा दिस अपन अँचरा ल भाई के आगू 
भाई ददा जनम भर तोर करा कुछु नई मांगे ग .....
आज मोर अँचरा ल उन्ना मत करबे ...ग ...
एकर बाद जनम भर कुछु नई मांगव भइया ....
रामदयाल सन्न परगे हे राम काय खंग गे सुनीता ल राम जी...
बोल नोनी का लेबे अरे घर तो तोरेच आय ...बोल भईया काय...
सुनीता मांग दिस रामदयाल के करेज्जा के कूटा ** दीदी ** ल
भईया दे दे दीदी ल मोला मैं ओकर महतारी बनके पोंस लेंहा ।।
रामदयाल बहिनी के मया पा आंसू म हदर गे .....
रोवत रोवत कहिस नोनी दीदी ह तोर तोरेच अंश आय जी
मैं भाइ तैं मोर बहिनी एकेच तो आन नोनी काय फरक हावय...
फेर देख तो काल ब मनषे मन कही देंही नोनी ...
ए मनखे बान आउ सुभाव ल मोर ले जादा तैं जानत हवस जी

हड़िया के मुंह म पराई ल टोप बे , मनखे के मुंह म काय तोपबे जी

दुनों भाई बहिनी एक दूसर ल रपोट के सुधा भर रोईन ...
फेर थीराके दाऊ कहिस एकर नां धर दे ..नोनी 
अभी अवइया जवईया मन घर म एला दीदी.... दीदी कथन ...
भइया नदिया कस निरमल हवय नोनी त जमुना धर दे .....
परगे दीदी के स्कूली नाम यमुना देबी फेर रहिगे दीदी के दीदी 

कोन कथे *** खदुहन धान बादशाह भोग, देवभोग, कुबरी मौहा, बासमती, एच एम टी, जीरा फूल, *** धान के करगा नई होवय.....
अरे होथे मालिक होथे जी सब म करगा होथे ....जी
अईसनहे मनषे घला म करगा होथे ......
कांसा के थारी लोटा, गिलास, चरु ,सैकमी, बटलोही, गंगार ....
कांस के सब्बो बरतन मन  मिंझरा धातु के बने हवय .....
नेर कांस आउ फूल कांस म तामा आउ गिलट ह 12 आना मने कि ७८ % आउ  ४ आना मन कि २२ % म मिंझरा रथे त ठीक ठाक ...
,नहीं त ....दतकी कन होगे आन तान त होगे मरे बिहान ....
ईँ ही कांस ह अपन मनके बँगहा हो जाथे .......
बने सुग्घर रान्धे पसाय दार, भात, साग ल मढ़ा दे.... एकेच घरी म कस्सा जाथे । इही बुजा पूत ह आय  
                ***** कचकुटहा *****
सोंचत हवव के कच + कुट + हा कईसे बने होही
बबा ह जी बबा Ravindra Sisodia कछु सुर लमावा हो...
कच +कुटहा कुछु गुनत नई बनत आय एकरे कस .....
जेकर जात ,धरम, बरन, लिंग, बान, सुभाव,  चरित्तर के कांहीं ठिकाना नई ये जेकर चिन्हारी खोजे बर पर जावय ओहि हर आय
 # कचकूटहा # थोरकन कुछु कांहीं कर परिस त छन्न ले कई कुटा
सकेले म दुख पर जावय , दतकिकन भोरहा म चूक होईस त कटाये, बोंगाये के पूरा बुता हो जाये ।। 
कारन  ओ ह आय ननजतिया होगे ओकर गुन धरम ऑन के तान...

घर-परिवार-समाज म
बर , बिहाव , मरनी , हरनी, तीज , तिहार  म कांस के बरतन के बड़ महत्तम हवय ,,,,, बिहाव के पंचहड़, फेर कन्या दान म सैकमी के तरी परात मढ़ा के रोचन पानी म दाई ददा संग भाई ह संग रथे कन्या दान आउ बिहाव के बड़े साछि ...
पथरा के सील संग गंगार लोटा के जोरन के महात्तम काय कहव ...
पुरखौती बेरा म एक तो माटी के बने हंडिया म भात, दार, साग चुरय नहीं त नवा बहुरिया होगे त फूटे फाटे ले दुरिहा कांस के बटलोही म दार भात के अन्धन  मढ़ा देवय चुरत हे बुड़ुक बुदुक...
बटलोही के मुंह म माढ़े कांस के मलिया अपन बजन के मारे बिन कहे सरक के तोपना बन जाथे आज काल सिटी परोये बर परथे ।।
नेर कांस के बरतन बगबग ले सुग्घर .. राख म मांज दे त ऐना कस .
मोला सुरता हे मोर बड़का दाई करा एक ठन जुन्ना कलदार धरे के कांस के बने हंडा हवय जेला घुरूवा म गाड़े रहिंन आजो तस के तस माँजीस त रग ले नवा के नवा ....

फूल कांस के थारी नई बदलय अपन रंग न जात
कांस के थारी म दुबराज के भात, बटलोही म चूरे राहेर के दार,
कांस के गोड़हा लोटा म घर कुंआ के निरमल पानी, कारी गाय के परो दिन के मथे लेवना के ठोमहा भर घी, पीढ़ा म बड़ जतन करके परोसिस जमुना अपन बाबू रामदयाल दाऊ ल ......तसमहि, बोबरा, बरा, सोंहारी , नूनचरा, मेंथी आलू के साग ....फेर.....
कांस के मलिया म परोसे मखना, बोदी, सकर कन्द के अमटहां साग एके घरी म कस्सा गे ....***** कचकुटहा ***** कांस के मलिया सब परोसे दार, भात, घी, के सेवाद ल खिख्ख कर दिस ...
एक ठन  " कचकुटहा ,, कांस के मलिया ह नोनी के पूरा जतन के बनाये सब रान्धे चूरे ल .....

खदुहन धान के करगा तो चीन्हा जाथे , बने देख देहे म 
कचकुटहा कांस घला ह चीन्हा जाथे त तिरिया देथें ....
फेर अपन नता गोता म के .....…. चीन्हात ले चुन्दी पाक जाथे ...
सारे ***** कचकुटहा *****  मनषे मरे के दिन म चीन्हाथे ....
अब मरे के दिन म आखिरी बेरा म काय कर लेबे ?
अरे परोसी ल छोंड़ देबे त काम चल जाहि ....
भाई, बहिनी, फूफा, भांटो, दीदी एकर कचकुटहा ल कोन मेर तिरियाबे ...आउ कै घरी बर, फेर तैं तो तिरिया देहे ...आउ ओ ह किन्नी कस चटक के रही गे त...?
बड़ मुश्कुल आय अपन लहू म परे कचकुटहा ल अलगीयाना....
इही किसिम के कचकुटहा गत किसकिस रहिस बड़ घिनहा रामदयाल दाऊ के भाई .... दीनदयाल ...अपन नाम के उल्टा
कभू कोकरो बने नई सोंचीस ...कोकरो लागत गाय, मया करत घर दुवार, नौकरी करत बहुरिया, बुता म मगन किसान, हरियाये खेत भरे कोठी...सब ओकर आँखि म रेती कस कसके लागय ...
जमुना ओकर आँखि के फ़ांस बन गए रहिस ....
कब रामदयाल के आँखि मुँदावय आउ जमुना के भाँवर परय ...
बेटी बिदा होवय त बहरा खेत संग घर म कब्जा करव....
इही गुंताड़ा म दिन बीतय दीनदयाल के .....
फेर भगवान घला के लाठी के कांहीं जवाब नई ए ....
मंगलवार के बड़े फ़ज़ल दीनदयाल के मुंह ह एकंगू अईठागे
मार दिस लोकवा .....बँगहा कांस कस छन्न ले फुटगे 
अब दाऊ दीनदयाल दिन गिनत खटिया म करम ल  गिनत परे हे ।।

बस यूं ही बैठे -ठाले 
२४ जुलाई २०२४
शायद मेरी गलत सोच हो कि हम सभी का भला नहीं चाहते
लोग कुछ तो आज भी जिंदा हैं जो दूसरों की पीड़ा में सुखी
चलो चिंतन कर देखें ऐसा क्यों ?

Thursday, 18 July 2024

@#.com ***** पानी & पानी *****


कथे हमर सियान Ravindra Sisodia बूड़ गए रहिस संसार
मनु आउ सतरूपा बाँहचे रहिन हम सब ओकरे लोग लईका आन
पूरा संसार ...म तब नई रहिस होही जात, धरम, बरन , टूरि-टुरा...
पानी रहिस त बाँहच गयेन एला बैज्ञानिक मन कथें
जिनगी उहें ले सुरु होईस ...कथें किरा मकोरा फेर बनीस मनषे....

फेर आज मनखे के *** आँखि के पानी मरगे ***
सरेहन बीच रद्दा म माई लोग ल नंगरी किंदार दिस......
एकेक डेढ़ डेढ़ लाख के मुबाइल धरे मनषे फोटू खिंचते रहीगे
एक झन अपन अंगरखा म ओकर देंह ल नई तोपिन....
बड़ सोर गुल गुल होईस त गम पाइन बड़ खोज बिन म...
के अरे ए तो फलाना के बेटी आय जे ह देस रच्छा म सहीद आय
किस्सा नो हय न कंथुली रोज बीतत हवय....
मनषे के आँखि के पानी मरगे हवय.....
बड़े भाई चुनदिया के मारत हे दाई ददा ल घिल्ला घिल्ला....
छोटे बेटा डौकी के तोलगी धरे खेंडा चुहकत पर हे ....
परसंग ल बदल दे मोरे मुंह म करिया पोताय हवय ....
*****
फेर का बात रे मनराखन दाऊ काय करम करे रहिस होही
ओकर कस दान पुन्न करईया मनखे के*** देंह म पानी *** परगे
नित नियम बिहनियां पूजा पाठ करना, सांझ के बेरा म रमायन गाना ,सबके मरनी म बड़ मन लगाके चिता रंचना ओकर धरम....
बिहनियां के हे कृष्ण गोविंद ....के मण्डली के मुख करता धरता
फेर देखते देखत नख करिया परिस आउ अंगठि गर के गिरगे....
तभे कहय हमर बबा ह तोर उखाने म न बनय  न बिगड़य...
कुछ करनी कुछ करम गति, कुछ पुरबल के भाग
बिगड़े रहिस होही जान अनजान म ...लोक परलोक म...
तभे भगवान के देहे चीज भगवान लेगे बिन कहे बोले .....
*****
मनषे सब गांव जात, धरम घर के देखेन फेर शसन गउँटिया एक लम्बर के ....बाप मरिस आँखि ले एक बूंद पानी नई गिरीस ....
मरगे बाप बेटा के मुंह ले दु आखर बने बने सुने बर...
जेवान बेटा पीपर पेंड़ म दबा के सांस छोंड़ दिस देंह छोड़ दिस ...
बहनोई ओकरे घर आके शरीर तियाग दिस .....
दाई उमर भर मोर नानकन मोर नानकन कहत थकगे...
बहिनी मरगे नान पन ले सेवा करत ....फेर का बात रे आँखि
न ऑंखि म आइस न दिखिस न ढ़रकीस कोकरो देखत म ...
मनषे बिदेह राजा ले ओ पार ....न हूँकिस न भुंकिस ....
 " बिन मानी-बानी-पानी ,, के आज घला मुड़ उठा के जियत हे ।
*****
मरगे *** बिन पानी *** बछिया के धनसाय ......
एक ठन बेटा जनम भर बाप के मुंह ल नई देखिस ....
रख्खी डौकी के चक्कर म खेत-खार सब जँहड़ बिंहड़ होगे....
भादों के महीना म झोर झोर के  *** पानी *** गिरीस 
नदिया , नरवा , तला, झोरकी, गांव, गली, खोर जला थल होगे
जुन्ना कोठी के दीवार गिरगे मुंढर घर के ऊपर म.....मुंढर घर के देवार ह लदक दिस रेंगान के  केड़ेरी ल, फेर का धारन डोलगे ... होगे बुता मुड़का गिरगे धनसाय के मूड़ म....
बिहनियां ***** पानी थिराइस ***** त मनखे निकरिन घर ले
देखा देखा म देखिन टारींन मुड़का मियार ल त पाइन...
मरगे रहिस ***** बिन पानी ***** धनसाय
*****
***** पानी उतरगे ***** देखते देखत त गम पाइस अपन औकात
जेला पावय तेला अपन गाड़ी,  घोड़ा , सोन, चांदी, घर, खेत-खार
नौकरी, बंगला इंहा तलक सारे पोंसवा कुकुर के रंग आउ पूछी के टेढ़वा नीक ल बता के सबके अपमान करना अपना धरम समझय
बेटी ल परदा म राखय, कोंहुँ घर म आगे त रेंगान म बईठार के एक कप चाहा पिया के रेंगा देवय, बेटा बेटी होगे रहिन मनमुख्खी....
मनखे ल मनषे कम कुकुर ले जादा नई हेज़य....
किंदारिस भगवान घला ह अपन बाँसड़ा के लौड़ी ल.....
उतान परगे छत नारी जुड़ागे .... थू ...थू होगे ...
बेटी भागगे डरा वर संग सब्बो सोन चांदी ल धरके रातों रात...
बेटा लाज म घर छोंड़ के नौकरी म परदेश निकरगे ...
घरवाली ल बेटी के करम के जियान परगे त लुकुवा मार दिस
अब कुकुर के हागे उठात परे हवय घर म
तभे कथें बमरी मत बों, अंगूर नई फरय  राम जी ।
*****
शिवरीनारायण म महानदी के पुल बुड़गे एकेच घरी म ...
कहाँ ले आइस होही रेला पानी के मंदिर के दुआरी ले चढ़के 
महानदी के जल भगवान के चरन पखारे लागिस .....
पूरा ह खरौद के लखनेश्वर जी के घला पैलगी करे पहुंचगे ...
भुनेश्वर महाराज के मंझली बेटी सुकन्या सांवर देह के रहिस ,,,, 
लागथे महतारी के छांव परे रहिस काय नाक नक्शा एक नम्बर फेर 
सुंदर गत, गढ़न , बात, बेवहार, बानी, पानी, सुभाव होए के बाद घलो बिहाव नई हो पाए रहिस, परमात्मा के किरपा ले सुकन्या के बिहाव नरियरा व्यास परिवार म अनुज व्यास जी बर होगे ।।
ससुरार म सास, ससुर, जेठ, जेठानी सबके मया मिलिस आउ अपन बात बेवहार म सब ल रपोट डारिस *** चढ़गे पानी ***
पहिली पठौनी ले घर लहुटीस त महतारी जनकदुलारी रो डारिस
सांवर सुकन्या मंदिर के दुआरी चढीस आउ महाराज रामसुंदर दास जी के गोड़ छू के आशीष लिस त पुछिन के नोनी ह काकर बेटी आय ।।। # चढ़गे # पानी प्रेम, नेम आउ बिहाव के हरदी के ...

पानी देखके हमर पुरखा मन गांव म बसीन ,, पानी देखके बर बिहाव लगाइन ,, पानी बर तला कोड़वाइन आउ पानी बानी बर मर घलो गईंन ....फेर आज बदलगे काय जमाना के चलन ????
सुरुज घलो उत्ति बूड़ती होथे स्वागत करा नवा बिहान के

बस यूं ही बैठे-ठाले
निहारता महानदी के निर्मल जल को
04 जुलाई 2024

***** फोकट *****

अजगर करे न चाकरी पंछी करे न कांव ।
दास मलूका कह गईंन सबके दाता राम ।।

फेर एकरो लो ओ पार

फोकट के दाना हकन के खाना ,, मर जाना त का पछताना । ।

काबर करिन होहिं देवता आउ राछस मन सागर मंथन
जब देंवता मन ल मनषे भोग लगा देथे फेर ओकरो ले ओ पार
न देंवता ल खाये कमाए, भूख, पियास , नींद के संसो....
कुछु तो कमी बेसी लागिस होही तभे सब जुरीन फेर मथिन
मोर सोंच म नई सागर मंथन के पहिली ....
बिष, कामधेनु गाय, उच्चैश्रवा घोड़ा, ऐरावत हाथी, कौस्तुभमणि,
कल्पवृक्ष, रम्भा कस अप्सरा, लच्छमी जी, वारुणी, चंद्रमा, पारिजात के फूल, पाञ्चजन्य शंख, धन्वन्तरि आउ अमरित ...

देंवता आउ दानव के जुरना, एक संग एके बुता ब हं कहना...
बड़ मानमनौव्वल करे बर परिस होही सुमेरु परबत ल ओकर धरम मरजाद ले घुंच के बुता करे बर मनाए बर ,अटल अचल सुमेरु कईसे आइस होही सागर के बीचों बीच म , फेर एकरो ले ओ पार बासुकी नाथ नाग महाराज ल डोरी कस लपेट के मथानी कस मथना, झन डोलय सुमेरु तेकर बर खुदेच बिष्णु जी शंख, गदा, पद्म, चक्र संग सुमेरु के ऊपर म रखवार बन पहरा दिन ।।
मथागे जिनगी सागर कस निकरिस बिस लकलकात हरियर ....
एला पिहि कोन अब खोज चिमनी धरके जटाशंकर....
निकरगे लक्ष्मी अति चञ्चल खोज ओकर बर जोग्य बर...
सब्बो सोंचत हे अमर हो जांवां आउ फंदोत रहौ फांदा ...पियत रहौ धरम करम करईया मनखे के लहू .रोज रंच दव नवा लुकडु फांदा ..
मानले कतको चेत करे ओ ह बैमानी कर दिस त काटे सक ओकर नरी ल , कोन चलाही सुदर्शन चक्र जे ह फूंके सकय पाञ्चजन्य शंख ल , आउ कभू शंख के जगा अन्ते ह बाजगे त .....
वारुणी, कलप वृक्ष, कामधेनु ऐरावत सब्बो रत्न मन ल जोग्य हाथ धरना धराना घलो ह बड़ मुड़ पीरा के जिम्म्मेदारी आय ।
मथे बर परथे जिनगी ल त हिसाब किताब ह बरोबर होथे ....
जेकर खाये तेकर देहे बर परथे ...कभू कभू तोर बर नई आय तभो मांग जांच के देंहें हे हमर सियान मन जे ह माढे हवय त जियत हन
चलिस सुदर्शन चक्र सांप घलो मरिस आउ लाठी घलो नई टूटिस

रचें हवय भगवान ह संसार ल ....बने हवय पञ्चतत्व ले संसार.....
कर न जी ओकर रच्छा ओकरे बर तो तोला मनखे गढ़ीस ...
निमरा एक ठन ...करबे कुछू कहिके बुद्धि घलो दिस ....
झन काट बन म अपन मनके उपजे पेंड़ ल ..तोर ददा नई लगाये हे
खोज साजा, साईगौन, खम्हार आउ बना खईलर मथे बर दही
झन धरा टंगिया के बेंठ बन आउ अपने नाश करे बर...
जा खोज पटुवा नहीं त खोद खोज के परसा जरी ..फेर थूथर ओला नेत लगाके बना ढ़ेरा तेमा आंट त बनहि डोरी त खईलर रेंगहि जी
नई पावस ***** फोकट ***** म सब्बो जिनिस ल ....फोक्कट

दूध चुरहि कुंडेरा म... कुंडेरा बनहि सीझे माटी ले...भुंइया के सेवा करबो त ओ ह अपन गुन जस ल बनाये रखही...
महात्तम हवय सबो पंचतत्व के अपन अपन हिसाब म....
दूध ह हवा म नठा जाथे...चुरोये बर परथे आगी म ....त घोंस चकमक पथरा खोज लोहा ....बन अगरिया फेर उठा आगी आउ सिपचा गोरसी ल ...नहीं त अगोरा कर बन म बांस के रगराय के मिलहि आगी फेर धूंगिया जाहि अगास ले पताल तलक....
दूध ल कुकुर खा देहि के बिलाई पी देहि त बनाये बर परही कौड़ा
तेमा मुसुर मुसुर सिपचहि पलपला त मिठाहि अउंटे दूध ...
कुकुर बिलाई के छेंका बनथे तोपना…. माटी के ...किरा, मकोरा , कचरा , कूटा ले घला बांच जाथे..... आउ गुरतुर चुरथे ...
कतका कन असकट बुता करे बर परही  रोजेच रोज ....
तेकर ले जा बजार 50 रुपिया फेंक चूरे दूध ल धर ला .....
फेर झन देख के पूछ के कोन तला, डबरी के पानी मिलिस के मिला दिस दूध बनाये बर चप्पल के रंग रोगन के मिलगे यूरिया खातू....

हमर सियान मन चलाईंन खईलर गियान के आउ मथ दिन जुग ल
त कुढ़ाये रहिस धान, औंहारी, गाय, गोरु, चारा, भूंसा, खरी, कोठा, संकरी, कोटना, पैरा, कोढ़ा, गहुँ, तिल, नून, अलमल....
 त कहाइन गौंटिया, मालगुजार, जमींदार ..धाक रहिस 50 कोस म
चातर खेत मेंड़, पार जेमा बोंवाये रहत तील , राहेर ..…
धान कटिस त उतेर दिन अंकरी संग मटर आउ बटुरा दाना ...
खेत के उपज कभू फरक नई परिस कौंहु दिन बादर म ...
कन्हार म गरु, त मटासी म थोरकन हरू आउ टिकरा म कोदो कुटकी, रेगहा अधिया म आँखि मुंदके धरा दिन .....
त संझउति बेरा म कंडील के काँछ पोंछा जावय ...
गाय, गरुआ संग नांगर, गाड़ा, के बेंऊत बने रहय.....

आज सब्बो लेन देन ह लिख, पोंछ, फेंक, संग कलदार के माथा म माढ़गे , जेला देख तेला पों पों करत गाड़ी म आइस, बड़े बड़े रुख राई ल एके घरी म काट बोंगके डोहार दिस, नदिया नरवा ल राखड़ म पाट के नवा फैक्टरी लगा दिस, उड़त हवय धूंगिया बोहात हवय दवाई मिंझरा पानी नदिया म, बन रातों रात उजर जावत हे, रेंगत हवय रात दिन चिर चिट चिर चिट करत करेंट ह बड़े बड़े खंभा म
आंच आही संगवारी कुछु कर नवा जुन्ना नई त पठेरा कस कौड़ी दांत ल नीपोरे परे रहिबे अस्पताल के ढेंकी कुरिया म....
गुंथाये रहिही किसिम किसिम के नारा फांदा मुंह, कान, छाती, गोड़ ,आँखि म मनषे घटरत परे रही ......
 
नई मिले हवय फोकट म कुछु सोंच तो भगवान के देहे बेटा बेटी दाई ददा असमय कईसे देखते देखत दिया कस लौ अलोप होगे
संसार तोला दिस ओमा मिंझार मिला ओकर ले जादा ओला दे
बने रहिहि तखरी के कांटा बीच म ...तुंहर मन ....
पानी गिरत नई आय त चिंता पेल दिस ए बछर का होही 

बस यूं ही बैठे-ठाले
08 जुलाई 2024

गुरुदेव Rahul Kumar Singh सादर प्रणाम


संदर्भ आपका 07 जुलाई का पोस्ट
 अज्ञानी बेकूफ़ की टिप्पणी 
 " जानते हो किससे बात कर रहे हो ,,,मुझे पढ़ो फिर बात करो  ,, 

एक हाना सुरता आइस सर जी
कुंवार म कोल्हिया जनमिस, कथे अषाढ़ म बड़ पूरा आये रहिस

एक अक्षर ज्ञानी गंवार की टिप्पणी पर मेरा एतराज़ दर्ज  करें ...
सुनो  ससुर के नाती टिप्पणीकार ...उर्फ सरहा साहित्यकार ...
हे अक्षर ज्ञानी गंवार तुम हिंदी साहित्य के विकास के आदिकाल में पैदा हुए ही नहीं और भक्तिकाल की संतान लग नहीं रहे हो क्योंकि तुम्हारा  अहंकार तुम्हे उबरने नहीं दे रहा है लगता है कोई सामान्य पढ़ा लिखा व्यक्ति तुमसे चर्चा करे, रीतिकाल में जब तुम्हारे पूर्वजों ने पांव धरा ही नहीं तब इसकी चर्चा व्यर्थ है । अब आती है आधुनिक काल की  जिसकी संतति तुम हो ही नहीं सकते ।। यह मेरा भ्रम नहीं पूर्ण विश्वास है ।

कहीं पढ़े हो कि "" साहित्य समाज का दर्पण होता है ,,,,
सर्जक, लेखक , कवि, कवियत्री , व्यंगकार, कलाकार ....
इनकी भाषा , इनकी सम्प्रेषणीयता, इनका शिल्प विधान इन्हें सर्वकालिक, सर्वमान्य, सर्वग्राह्य और लोकप्रिय पूज्य बनाता है , 
ऐसा मेरा मानना है, किन्तु जो व्यक्ति किसी को पूर्णतः जानता ही नहीं वह अभद्र टिप्पणी करे यह नाकाबिले बर्दास्त है ।
रामायण, वेद, शास्त्र, पुराण, ग्रंथ, काव्य, सर्वकालिक .... हैं  ?
ये क्यों आज भी पूजे जाते हैं माथे से लगाये जाते हैं चिंतन करो ?

टिप्पणी कार का अभिमान कहता है .... मुझे पढ़ो.....
मैं और मेरी बात तो छोड़ो कोई भी तुम्हारी सड़ी पुस्तक पढ़े क्यों?
तुम महान हो तो नोबल पुरुष्कार जीतो और महान बनो ।
निश्चित ही तुम्हारी पुस्तक का स्तर *** पम्मी दीवानी *** सा होगा 
तुम्हे पढ़कर कोई भी व्यक्ति निश्चित ही भ्रमित होगा ही ...
क्या तुम्हारे पूर्वज या तुम हिंदी साहित्य के स्वर्णयुग से हो ?
या तुम्हारी तथाकथित रचना आदरणीय रामधारी सिंह दिनकर, सूरदास, मीरा, कबीर, रहीम, रसखान के समकक्ष है ?
दाऊ जी तुम्हारा वास्ता भी रीतिकाल / भारतेन्दु युग / शुक्ल युग 
के किन आदरणीय को स्पर्श करता है ?

तुम्हारी उदण्डता, तुम्हारे टिप्पणी में व्यक्त होती है वही तुम्हारे विचारों की अभिव्यक्ति में होगी यह मेरा दृढ़ विश्वास है ।
जरा चिंतन करो क्या तुम्हारी रचनाएं रीतिमुक्त काव्य धारा की हैं, 
जहां बिहारी जी के दर्शन होते हैं, या रीति सिद्ध काव्यधारा में चिंतामणि जी, केशवदास, रतिराम जी की रचनाओं के चरण रज के बराबर भी हैं ? कभी घनानंद जी, आलम, बोधा ठाकुर को पढ़ो और कढ़ो फिर किसी लेखन पठन, पाठन की चर्चा का औचित्य बनता है ।
एक बात स्मरण रखो आदरणीय निराला जी, पंत जी, महादेवी वर्मा, जयशंकर प्रसाद जी को छू पाना तुम्हारी औकात के बाहर है
रांगेय राघव जी का नाम तुमने सुना है ?????

तुम्हारा लेखन नवीन है या संकलन मात्र कभी बिचार करना 
तुम्हारा बौद्धिक स्तर किस महान लेखक ,साहित्यकार के समकक्ष
तुम्हारे साहित्य का मूल प्रतीक किसका प्रतिबिम्बन करता है
नवीन सोचो किन्तु नवीनता में कोपलों का सौंदर्य हो 
नवीनता की चाह में गन्दा सृजन न हितकारी न मंगलकारी....

बेवकूफ इंसान एक बात स्मरण करना भूल जाता है कि 
किसान किसी कृषि वैज्ञानिक से ज्यादा जानता है बस उसके पास लेखन, अभिव्यक्ति, आंकड़ों का संकलन, के लिये जीवन की आपाधापी में समय नहीं । 
 ***** मेरे जैसा सामान्य फेसबुकिया लेखक जिन लोगों के बीच बैठकर उनकी चर्चा सुनता है बस उनका लेखन नहीं सात दिन का लेखा जोखा एक खण्ड काव्य बन जायेगा  *****
पुरातत्व, धर्म, दर्शन, परम्परा, लोकजीवन, जीवनशैली, साहित्य,
समाज, जाति का अति सूक्ष्म ज्ञान इनके जीवनशैली के आभूषण हैं कभी बैठो ऐसे लोगों के बीच और सुनने की क्षमता बनाओ ...
आग्रह नहीं आदेश टिप्पणी के पूर्व अपनी प्रोफाइल का स्वयं आंकलन करो फिर अपनी बात करो ।।
जो व्यक्ति अपने जनक को मात्र मांसाहारी होने पर नीच कहे...
उसका स्तर क्या हो सकता है ? अति चिंतनीय....

बस यूं ही बैठे-ठाले 
14 जुलाई 2024 
अपमान मेरे किसी भी श्रद्धेय का माफी कदापि नहीं 
अपनी सीमाएं तय करके रखिये जनाब ....

छेड़ना नहीं सैलाब हूँ , बहा ले जाऊंगा  ।
साहिल पर ठहरता हूँ , घरी ....दो घरी  ।।

..... अड़गसनी ....

        ***** मान झन मान मोर साढू के काय खँघत हे

त्रेता जुग म बाली आउ एक झन राच्छस के घन घोर जुद्ध होईस
कथें  जी बंहचाये बर राच्छस खुसरगे जुन्ना खोह म......
ओ किल्ली परत ले पटका पटकी मार पिटाई.... अनसम्हार लड़ाई
देर सबेर खोहरा ले लहू के नदिया बोहगे ....बाली के छोटे भाई सुग्रीव मन म बिचार करिस गये ददा रे ए चण्डाल राच्छस मोर बड़े भाई बाली ल मार डारिस त तो अतका कन लहू बोहात हे ....
बाहिर निकरही त मोरो बुता ल बनाही ....इही सोंच बिचार म
बस भोरहा आउ जी के डर म खोहरा के मुँहड़ा म ओधा दिस बड़का जनिक पखना ल , हरप दिस पखना ..... 
ओला ढकेल के निकर आइस बाली फेर तो पूछ झन....

जगत माता पार्वती जी घला देबी देंवता मन के बेर कुबेर आये आउ बरदान मांगे म धीरज टोर डारे रहिंन होंहि त शंकर जी करा बिनती करके सोन के लंका ल बनवाये रहिंन, घर म गोड़ नई मढ़ा पाए रहिंन ...भुछि दछिना म रावण मांग लिस लंका ल ....
नहीं त तीनों लोक चौदहों भुवन म पहिली जग के महतारी  होतिस जेकर घर पहिली ***** अड़गसनी ***** लगे दिखतीस ।।

सब मन म बिचार करिन होहिं के झन टरय के टारे सकय ओधा ल
मोर बिचार म त कौंहु सियान Ravindra Sisodia  मन्त्रा दिस होही लगा दे कुछु अड़गड़ बेड़ा करके त हेरे धरे म थोरकन तो बेरा लागहि । फेर का..... लगा दिखींन होंहि बेंढ़ा लकरी के छेंका ....
,तभे  एकर ना परिस होही ***** अड़गसनी ***** गुनत रहव 
मोला लागथे ओ समे म घर कुरिया नई सिरजे रहिस होही ...
त कहाँ के तारा आउ काय के कूची फेर ओ बेरा म चोर चिंहाट नई रहिस होही कहाऊक नई लागय ? ... आज घलो कथें शनि सिंगनापुर म कोंहुँ घर म तारा कुची न लगय न कोंहुँ लगावय ।

एक दिन किन्दरत बुलत भेंट करे बड़े बखरी अकलतरा 
राघव राजा Raghavendra Singh Akaltara  के हबेली म देखत देखत म एक ठन सरई के मुसर कस दुआरी के तीर म गोल लकरी देखें.... मन म बिचार ह कल्थी मारिस  ए ह काय होही ।।
गुरु  Rahul Kumar Singh बताइन के ए ह दुआरी के  आड़ा आय , मैं पूछ पारें ...फेर संकरी घलो तो लगे हवय ...
आउ लोहा के सिटकिनी घलाव ...ओइ मेर डोलत हवय ....
बताइन सब्बो के अपन अपन कथा किस्सा आउ कंथुली हवय ...
फेर चोर बर न तारा बने हवय न अड़गसनी, न संकरी ....
ओ ह कुछु ल टोर देहि कुछु ल उसाल देहि चोर के काय धरम ...

जुग बदलिस , मनषे बदलीन संगे संग सोंच बिचार घलो बदलिस 
फेर मनखे के हंकार मनषे के बदलत बेरा लागिस होही तभे बनाय होंहि हमर सियान मन ***** अड़गसनी *****
आज के जुग म सहर म *** $ चेप्टी लॉक $ ***
बड़ मनषे न दिन देखए न बार बर्रा बईला कस मुँहू धरिस कतको बेर कुबेर धमकगे कोकरो घर, मोला लागथे जुन्ना दिन घलो म अइसन्हे होत रहिस होही नहीं त कुकुर बिलाई के रोका छेंका बर दुआरी के आगू पीछू लगा दिन होंहि .....अड़गसनी ?

बस यूं ही बैठे-ठाले
10 जुलाई 2024
                  ***** विनम्र आग्रह *****
मैं नही लगा पाया अड़गसनी नीच रिश्तों के लिए आपसे आग्रह आप अवश्य लगाए अपने घर ***** अड़गसनी ***** विचारों की चेतना की ताकि अवांछित व्यक्ति आपकी मर्यादा को आहत न कर जाए, मनुज से बड़ा और खतरनाक पशु भगवान बना ही नही पाए 
अड़ गसनी एक ऐसा अवरोध जिसे आप स्वीकार और अस्वीकार कर सकते हैं, जिसके लिए जाने अनजाने तर्क कुतर्क रखा जा सकता है । जीवन में अपूरणीय क्षति का निदान ***अड़गसनी ***

मैंने खोया है अपना सुकून, मान, मर्यादा, मां और बहन ।।
10 जुलाई 2021 को मेरे पिता की मणि की माला टूट गई थी 
मेरी छोटी बहन सुनीता सिंह को उसके पुत्र युवराज सिंह ने मुखाग्नि दी थी ... एक विचार जिसे साझा किया  ।

बस चिंतन करें मन लगे तो अमल करें

***** अनाम दाई *****



बड़ दुख लागिस ......आँखि आंसू म झुंझरागे....
पर साल के आगू साल श्राद्ध  करे गयेन त बड़ नियम, धरम, नेंग चार, बुलऊआ पुरखा मन के नवा नवा बात जाने बर मिलिस ...
श्राद्ध, तरपन, फेर पिंडा दान करे बर लगारी लगाके ....
प्रयागराज ,फेर बनारस, फेर गया जी जाए बर परही .....
त सब्बो जगा पुरखा संग हितु पिरितु मन के पिण्ड दान करे बर परही ,, फेर महाराज कहिंन के सब्बो झन तो इही लोक के माया ले उबरे नई ये ,,,,, हम पूछ पारेंन त इंकर मुक्ति गति कईसे बनहि ।।
व्यास जी कहिंन जावा सब्बो झन ल सादा चाउर धरके नेवता पारके संग म ....धरा .... कहाँ ले ?  जावा मुर्दावली ओमन ल संगे संग धरा मुर्दावाली ले आउ संसार के मोह- माया  ले मुक्ति देहे बर ....फेर ओहि मनके आगू म पिंडदान करके ओमन ल बिदा करा नहीं त भटकत रहीं ओकर जी इहें .....
फेर जब पितर पाख म बलाहा अलग अलग तिथि म त आँहिं तुंहर ओरी छांव म तुंहर रान्धे पसाय जिनिस ल खाये जुड़ाय...

गांव, घर , परिवार, गोत म नेंग चार , धरम, करम आउ ......
लोकाचार , बेवहार एक नहीं सगरी परकार के निभाये बर परथे 
अकेल्ला तो जिनगी चलय नहीं संगी , संफरिहा, संगवारी, कमिया, कमैलीन, बुता करईया, चिरई, चुरगुन, गाय, गोरु, कतका ल गिनावव एकर संग खुद पिंडा परवईया के कुल, गोत, प्रवर, बंश, श्रेनी के महतारी पच्छ आउ ददा पच्छ के सात पीढ़ी तरी ऊपर कहि देवा के उत्ति बुड़ती सबके तरन-तारन होथे ।।
सोज्झे काय गुने म गिनाही खोज पांच पीढ़ी उत्ति ले ....
करमनीया डोलगे सबके ना सकेलत म .....

श्राद्ध करवाइया जजमान Ravindra Sisodia 
जात क्षत्रिय , कुल सिसौदिया, प्रवर .... श्रेणी ......... , कुल देबी ....., कुल देंवता........, अस्त्र........, शस्त्र......., बंश........,
सबके हिसाब किताब संग म ददा ...बबा...आजा... पर आजा... फेर ओकर बाप ....फेर ओकर बाप .....मिलगे आउ मिलिचगे
ए दे ....ए दे फदक गे दाई पच्छ म आके .......
श्राद्ध करवइया जजमान जस के तस बबा Ravindra Sisodia 
माताराम विद्यावती जौजे गो लोक बासी श्री भुवन भूषण सिंह (नक्की बाबू)बड़े भाई भुवन भाष्कर सिंग, ...तेकर बड़े भाई ..सत्रुघ्न सिंह उकील ददा.ओकरो बड़े भाई डॉ चंद्रभान सिंह... तकरो बड़े भाई ....बैरिस्टर ददा छेदीलाल जी......
दाई विद्यावती देवी इंकर सास सोन कुंवर दाई जी  फेर ...इनकर सास, ....अनाम इंकर बूढ़ी सास...आजी सास....पर आजी सास
बस ई ही महतारी मन जुरगें अपन नां संग गांव के नाम जइसे कुंती, माद्री, कौशल्या इहु घला मन उँकर जनम देश, गांव के नाम धरके
हूंत करावँय......भाष्करींन दाई घरवाला के सेतिर आज घला खटोला मालगुजारी के हमर दाई के चिन्हारी हवय ।

गोत्र ह तो मिली जाथे बर बिहाव मरनी हरनी म सुने सुनाय....
 *** अत्री, भारद्वाज, भृगु, गौतम, कश्यप, वशिष्ठ, विश्वामित्र ***
कोंहुँ न कोंहुँ त होबेच करथे .......मिली जाथे...
प्रवर :- जेमा कुल नाम, परम्परा संगे संग गोत्र आउ जिनगी के करम, धरम, नेंग चार , चरित्तर, गुन, दोस, अकार, परकार, रंग जम्मो कोंहुँ बेर अबेर छट्ठी, छेवारी आत जात दिख जाथे ...
कुल :- घलो ल पूछथे ईँ ह बड़ मुश्कुल हो जाथे काय....….?
लहू के मिजान ....मेल आय तो बड़ सहज, सरल, पानी कस आर पार दिखईया फेर नछत्र, गोत्र, संग पूजा पाठ, जे ह फोकटीहा 
लागथे ....बिज्ञान म लपटाय रथे हमर नेरूहा कस .....
कुल के पयडग़री बने रहय तेकर सेतिर पूछ पुछारी करे रथें ...

आके सटक जाथे बुद्धि सब्बो झन के महतारी कुल म....
मोर दाई के नाव कुमारी, ममा दाई तिरजुगी दाई, बूढ़ी ममा दाई पीली दाई अब ओकर आगू  आजी ममा दाई कोनरहींन दाई , पर आजी ममा दाई रिसदिहीन दाई, ओकर दाई फेर होगे नरियरहींन दाई...खोजत रही गयेन ना ...धराये रहिस होही फेर सुरता ....
होंगे हमर दाई मन  ***** अनाम *****
दाई जे ह हमर बंश ल जनम देथे तेकरे नाम ह अनाम हो जाथे
         ***** अनाम दाई *****
जेह ७ भाँवर किदर काय परिस ओकरे होगे जनमा दिस बाबू नोनी
घर के लच्छमी बनके आइस त दुनों कुल ल तार दिस ..…
मरगे देहरी नई डाँहकिस जनम भर  कुल के मरजाद खातिर ....
मनखे ल बाप के पदबी धरा दिस मुड़ी ले अंचरा नई ढ़रकिस
महतारी घर के बाहिर निकरिस नहीं फेर बाहिर म चिन्हारी दिस
अपन कुल, गोत्र, घर दुआर ल जनम भर तियाग के संग धरिस ...
दाई, ददा, भाई, बहिनी सबके मोह माया छोंड़ के आन घर आइस 
सुरुज उईस आउ बुडगे उमर भर मोर डेहरी कस छां बने रहिस
दाई के एक घं छां ह अलोप होईस त कुलुप अंधियार होगे जिनगी .
भले चारों कती बग बग ले सुरुज नारायन के अंजोर हवय .....
गुरु Rahul Kumar Singh  भला तूं ही बतावा तो ईँ ह आय ?
         ***** अनाम दाई *****

बस यूं ही बैठे-ठाले
१७ जुलाई २०२४

आइए स्मरण कर देखें पूर्वजों के नाम अपने नाम संग चढ़ते क्रम में
देखें हमने कितनी पीढ़ियों को सहेज रखा है मानस पटल पर
भूले से भी स्मरण करने का प्रयास न करें मातृ पक्ष की पीढ़ियों को 
पीड़ा होगी शायद हो जाये आत्मग्लानि कि हम कैसे भूल गए चार पीढ़ी ऊपर के हमारे कुल रक्षक जननियों के नाम को .....
बस स्मरण रहे उनके जन्मस्थान जिसने उन्हें नाम दिया ।।
    " अनाम दाई अकलतरहींन ,,

Thursday, 13 June 2024

***** चाण्डाल ( रमाकांत )

एक कथा सदियों पुरानी
एक नगर में यशश्वी राजा मार्तण्ड रानी मीनाक्षी देवी संग
इनकी कीर्ति चारों दिशाओं में चंदन सी महक रही थी
सुदूर घने जंगल मे एक तपस्वी अपनी तपस्या में मगन
पशु, पक्षी, जानवर निःशंक एक संग जीवन यापन में

एक दिन राजा बन की शोभा देखने निकले और भटक गये
घने जंगल में दूर आग जलती दिखी, आश्रय हेतु निकल पड़े
राजा मुनि आश्रम के सुचिता में पूरा श्रम थकान भूल गए
आश्रम में भार्गव मुनि के अतिरिक्त कोई न था 
किन्तु जरूरत की सभी वस्तुओं से आश्रम परिपूर्ण था
रात्रि विश्राम और मुनि के आतिथ्य सत्कार से अभिभूत हो उन्हें नगर आमंत्रित किया और सेवा का अवसर मांगा

कालांतर में भार्गव मुनि काल की प्रेरणा से नगर पहुंचे
राजा और रानी देव् तुल्य मुनि को पाकर अति प्रसन्न हुए
उन्होंने मुनि की रुचि और प्रतिष्ठा अनुरूप स्वागत किया
राजा ने रानी  को शयन कक्ष मुनि को देने आग्रह किया
रानी मीनाक्षी ने शयन कक्ष सुसज्जित कर सौंप दिया

शयन कक्ष में दीवाल पर एक संगमरमर में राजहंस बना था
उसके सामने खूंटी पर नित्य नियम रानी मीनाक्षी
अपने पिता की अंतिम दी गई निशानी मोतियों की माला
बड़े जतन से टांग दिया करती और प्रातः पुनः धारण करती

संजोग जो था रानी मीनाक्षी की उस दिन वो माला वहीं रह गई
भार्गव मुनि समय से आराम करने लगे किन्तु अर्धरात्रि को
अचानक निद्रा टूटी और देखते हैं कि राजहंस सशरीर
धीरे-धीरे एक एक मोटी के मनके को निगल रहा है

मुनि स्तब्ध रह गए अरे ऐसा क्यूं कर ,, क्या यह संभव?
मुनि ने मन मे विचार किया शायद यह मेरा भ्रम होगा
शायद थकान या राजाश्रय में चित्त का विकार होगा
चित्र सजीव हो और ऐसा कृत्य कदापि सम्भव नहीं !

ऐन केन प्रकारेण रात बीती, प्रातः वंदन कर राजा से विदा मांगी, राजा ने आग्रह किया एक दिन और रुकें .....
किन्तु काल ने कुछ और ही लिख रखा था ,, 
मुनि रवाना होने को उद्यत हुए और रनिवास से खबर आई

शयन कक्ष में टँगी मोतियों की माला खूंटी पर नहीं है!!!!

रानी मीनाक्षी के पिता की अंतिम निशानी रनिवास से गुम
मुनि स्तब्ध हो गए ,,,, उन्होंने राजन से रात की बात कही
राजन कल रात राजहंस मोतियों की माला निगल रहा था
कौन करता विश्वास,,,, चित्र कभी सजीव होगा .....
राजा किंकर्तव्यविमूढ़... मुनि को अंगरक्षक बन्दी कर गए

पूरा राज्य इसी चिंता में आकुल रहा कि आखिर मुनि...
सब सोचने लगे राज्य के सन्यासी का ऐसा आचरण

इसी उहापोह में दिन बीत गया राजा मार्तण्ड चिंता मग्न
रात कटे न कटे अचानक शयन कक्ष में एक आहट हुई
राजा की आंखे खुली उन्होंने एक अनोखी बात देखी
राजहंस धीरे-धीरे मोतियों की माला उगल रहा था .....

राजा मार्तण्ड सोचने लगे मन का वहम होगा ,,, 
किन्तु भोर में जैसे ही आंखे खुली ...खूंटी पर माला

राजा का मन पश्चाताप से भर गया,
सिर झुकाये मुनि के समक्ष पूरे वृत्तांत संग क्षमायाचना

भार्गव मुनि ने कहा ......राजन ! ...ये होनी थी जो घटी 
कल प्रातः से रात तक मैने भी समाधि ले चिंतन किया
आखिर इस प्रकार ये होनी कैसे घटित हुई , 

तब ज्ञात हुआ .....प्रारब्ध

मैने आपके ही समान 50 वर्ष पूर्व जनकपुर में
रामाधीन का आतिथ्य स्वीकार कर अन्न ग्रहण किया था

राजन ने प्रश्न किया
मुनिवर आतिथ्य और अन्न का इस घटना से क्या संबंध है?

मुनि ने कहा होता है राजन! 
आप मानो न मानो 

तभी तो राजहंस का चित्र रानी मीनाक्षी की माला निगल गया 
जाने अनजाने पाप और पुण्य के फल भी भुगतने होते हैं

राजन मैने रामाधीन के बरछा खेत का अन्न खाया था ।
बरछा खेत के निकट एक अशांत श्मशान है
जहां बरसों पहले चाण्डाल ( रमाकांत) को जलाया गया था
इस चांडाल ने अपनी मां , पिता , भाई  बहन सबको कष्ट दिया
उन्हें इस कदर अन्न के एक एक दाने के लिए तरसाया,
अन्तोगत्वा वे सब भूखे प्यासे समय पूर्व मर गए।।

लोग मुरदे की राख नदी में बहाना भूल गये थे ।

एक सांड क्रोधित होकर उसे खुरों से खुरच रहा था 
अपना क्रोध चांडाल के जले स्थान पर उतार रहा था ।।
उसकी राख उड़कर उस खेत तक गई, जहां अन्न उपजा
अन्न कर के रूप में राजकोष में 
राज्य को संताप और राजा को आत्मग्लानि
रानी मीनाक्षी का मन क्लांत होना ,विधान में लिखा था 
और दोष मेरे भाग्य में लिख गया ।।

राजन स्मरण रखें 
दोष जाना अनजाना सब हमारे भाग और भाग्य का होता है ।

13 जून 2020 रात्रि 3.31

Saturday, 30 March 2024

***** भितरहीन आउ खवईया *****

बड़ महात्तम आय खवईया के जे मानिस ते जानिस

आज होरी म गुलाल लगिस गाल आउ कपार म ..…
आउ रंग ह उबकगे अन्तस् ले छाती म ..आँखि के कोर ह चुचुवागे
दु महीना पहिली ले बनत रहिस फांदा ...देला बलाबो ...देला घलो
सब सियान के सुरता करेन , कईसे मया करै बबा हमर...
लईका ल तो बबा ह बिगारथे... नाती कुछु गलती करबेच नई करय
कभू बद्दी देहे चल देहे त तोर सात पुरखा तरगे ...
भोलेनाथ ल बिनोबे आज ले कभू नई जावव कोकरो घर बद्दी देहे 
लईकाई म पागे कोकरो सइकिल त ..खेचेक खेचेक डंडी के भीतरी ले हाफ पईडिल म गोड़बोजवा चलिस गाड़ी, फ्रीभील ह छोंड़ देवय
नाँहीं त सटकगे त दुनो पार रेंगे धर लिस सइकिल ...होगे बुता

पहिली कहाँ खाई खजेना .... हटरी म गुलगुल भजिया, बरा, मुर्रा के लाड़ू, करी के लाड़ू, चना फुटेना, आउ मेला म जिलेबी, आलू के  गुलाब जामुन, चना चरपटी बस होगे लइकईँ के खंजा...
फेर कभू कभार कोंहुँ मर हरगे पर गे छुट्टी त ....
इंदिरा उदीयान के चार, मकोईया गड़ेन दे कांटा हाथ गोड़ म फेर..
अमरताल भांठा के बोइर, बनाहील, खटोला, के गंगा अमली,
आउ गिरगे पानी त पूरेनहा, दोखही, पर्रि, रामसागर , लख्खी के धार म चढ़त मछरी ....बाम्हन घला केंवट के सेतिर घर दिस ...
फुर फुंदी उड़ातहे अध्धर ले धरे जानिस तेकर निशाना उच्चे...
केकरा, बिछी के डाढ़ा म डोरी बांध डारिस ते बड़े दाजुगर आय...

जेहर ए डारि ले ओ डारी बेंदरा कस कूद दिस ते ह हमर जोंडी...
ठूठी बीड़ी बबा के कलेचुप धर लाइस आउ संग म दु ठन सईघो बीड़ी संग माचिस के कांडी आउ माचिस फोफि के पट्टी ...
ओकरे कहे म चुरय अमली पेंड़ के निकरे कौआ अंडवा....
बारा बतर के रहय लइकाईँ के फांदा...
हपट गयेन कभू त माड़ी कोहनी छोलागे त संगी मुत दिस...
आज तो सगे बियाये लईका कटाय म नई मुतय .ओरजन घट जाहि 
नाक फुटगे नून पाल , डंडा पचरंगा, ईभ्भा खेलत म त सूंघ ले गोबर आज कोंहुँ ल सुंघों दे त सीधा परलोक धर लेहि ।

कोंहुँ ले बुलके आइस लईका *खवईया* के पहिली दिख जावय
खवईया***** मुखिया मुख सो चाहिए, खान - पान सो एक ।
                     पालय पोषय सकल अंग, तुलसी सहित विवेक ।।
जेकर अन्न पाये के बाद आन के थारी लगय ....
आज घलो मरनी-हरनी, बर-बिहाव के पूजा-पाठ म हवय सियान
ओहि ल ओकरे बर भितरहीन हेरही पहिली थारी...
जुन्ना दिन म पोतिया पहिर के रांधय दार भात ...
बटलोही म चुरय दार, त कुंड़ेरा म दूध , करिया हंडिया म भात
खसखस लोहाटी करईहा म चुरय साग ...त कोन बीमार परय ?
आजो कथें हमर दुआरी ओसारी म ....
महतारी के परसे आउ मघा के बरसे ... बिस्तुर नई जावय ...
आज काल बदलगे भितरहीन ...रान्धथे बिन मया दया के
कोई नेंग चार नई ये कांही श्रद्धा नई ए ...
फुस ले करिस चूर गे, फोस ले करिस उतरगे...
ओलिया दिस फिरिज़ म खा जुड़ाये ल ...पर बेमार...
पहिली तात तात भात, निकरत हे धुआं महकत हे साग
दूध, दही, गुर, घी, अथान, चटनी, बरी, बिजौरी, 
मढ़ाये हवय पठेरा म कौंरा सिराये नई पाइस परोसा होगे ।।

बबा Ravindra Sisodia कहत रहिस नंदागे सब ....
आउ आगू नई सुरता राखहिं काय, 
अलोप हो जाहि बाती कस लव सबो नियम धरम आउ मया...

बस यूं ही बैठे - ठाले
होली की शाम सबको सादर प्रणाम