गुरुकुल ५

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Thursday 1 August 2024

$ जोरन्धा $

अलगेच अलग आय फेर काबर कथें जोरन्धा
बिज्ञान कथे आउ सबो ज्ञानी मनषे मन कथें के सब अपन म अद्भुत
जोरन्धा आय त आँखि के परदा ह एके कस होही ?
कईसे मिल जाहि हांथ के अंगठा, अंगठि के चीन्हा ?
कपार के लिखा ह एके कस मोला तो कभू नई दिखिस ....?

डॉक्टर , बईद, सियान, ज्ञानी, पढन्ता मन के लिखा पोंछा ह
सब गुन अवगुन के हिसाब किताब लगा के बताथे के जोरन्धा के सब माया मछिन्दर काय काय हवय ....
सब सही आउ काय गलत.. पढ़, लिख, पोंछ, गुन डारे हवय,....

परमात्मा के खेला बड़ निराला....बबा Ravindra Sisodia जी
ओहि माटी म पुटू आउ ओहि माटी म गुलाब, आउ रंग रंग के फूल, पेंड़, नार, बिंयार ,बीज, बिन के पेंड़, अमरबेल अध्धर म, रोटहा, मोटहा, फोसवा मुनगा कस पेंड़, त निन्धा सइगोन, सरई, शीशम ,साल , कोंहुँ मेर मीठ, बोइर, कस्सा कैथ, बड़े मखना, चिरपोटी पताल, कोंहुँ मेर झूलत बड़े कौंहड़ा , लम्मा लौकी , त नार म झूलत तरोई, ओरमत मुनगा, त गद गद फरे भूंसा किरा कस तुत, 
मकोइया के कांटा, तेंदू के अध्धर पेंड़ , पपरेल के फूल, त ओहि मेर  मंदार के कई रंग के झूलत-डोलत फूल, आउ भांठा म बगरे बन बोइर, त टीबॉन्चु भटकटईया के फर आउ फूल , रात रानी, गोंदा, मोंगरा, चमेली, फेर चम्पा के बड़े पेंड़, अरे कतेक ल गिनवावा, ऊंच म फरे पिन खजूर, आउ नरियर एहि माटी म एहि माटी म....
माटी ओहि आउ बिधाता के रचना अपरम्पार , अनगिनत...

महतारी के एके कोंख म.....
जोरन्धा बेटा-बेटा त कभू बेटी-बेटा, त बेटी-बेटी घलो ....
रूप, गुन, बरन, सुभाव, रंग, अक्ल-नकल घला म एके कस  ?
एके कस  ? ,के भोरहा .... ? देखत आउ गुनत म  ?
सोंचथे मनषे एके कस आउ बिचार घलव करथे बरोबर एके कस ?
फेर जोरन्धा लईका मन के भाग्य आउ भाग ह नई मिलय त नई...

०१
मोर देखत जानत म जोरन्धा बड़े भाई के ०६ बेटाआउ ०१ बेटी
छोटे भाई के ०६ बेटी आउ ०१ बेटा... ओहु बेटा खइता होगे,....
सबके अपन करम, अपन धरम, रूप, गुन

०२ 
एक जोरन्धा बड़े भाई संजोग देखा कोई लोग लईका नई रहिस
त छोटे भाई के भरे पूरे परिवार ...धन, जन, विद्या के अशीष...
ओहि नेंग, ओहि नियम, धरम, जीवन बैपार फेर अलग संसार...

०३ 
दु जोरन्धा बहिनी मोर जान चिन्हारी म हवय...
बड़े बहिनी अति शांत , धिरन्त, गुनी आउ मुश्कियावत बान के
त छोटे बहिनी छिनमीनही आउ घेरी बेरी गुस्साए सुभाव के
एकेच घरी पहिली कोंख ले बाहिर आइस ,......
सुईन के नेरूहा छीनते छीनत म छोटकी घलो आगे
फेर बड़की आने त छोटकी ताने.....

गुनी ज्ञानी मनषे मन बताथे के हमन के लहू म कोडोमोड़ोजोम रथे
ओइ ह कुछु संझार मिंझर होके गुन ल आन तान कर देथे ।।

अरे होही जी हमला काय लेना देना ...अपन डहर जा अपन म आ..
अरे एके महतारी के कोंख ले अवतरे त एके कस रहय न जी 
फेर एके हाथ म पांच अंगरी , जेवनी ले डेरी देख त....
ठेंगा, निटोरे के अंगरी, बड़े अंगरी, मुंदरी अंगरी, त कानी अंगरी
अंगरी मन तो छोटे ,बड़े, रोठ, मोठ, आउ कानी हे त.......?
ओहि कोंख ओहि नार, एके लहू एके पानी फेर कईसे उलट बानी.?

बड़ गुने त मोला लागिस ** जोरन्धा**  ह पेंड़ के दुथांगी नो हय ..
नो हय ए ह रेल लाइन के लोहा के गाडर जे ह बिछाय रथे एक संग
मिलय कभू नहीं फेर दसाथें बड़ जतन करके....
जोरन्धा ह संजोग आय परमात्मा के जेला ओकर किरपा कहि दे...
जोरन्धा ह रेखा गनित में समानांतर सोझ डाँड़ घलाऊ नो हय ,..
जोरन्धा ह नो हय नंदिया के दुनो पाठ जे हर संगे संग रेगय ....
नंदिया के दुनो पाठ अपन-२ गुन-अवगुन आउ चरित्तर संग

देखें ,गुने , सुनें, आउ ओरखें त मोला **जोरन्धा ** ह भासिस .....

*** जोरन्धा *** ह आय भुइयां के ऊपर के पवन.......
कोंहुँ मेर जुड़ मन ल थिरवात संतोष देवत  त कोनो मेर धधकत आगी कस सुभाव, कोंहुँ मेर गर्रा बड़ोरा त कोंहुँ मेर सर्रात टोरत फोरत गुन संचरे, कोंहुँ मेर सकेलत बादर ल गरजत घुमरत

*** जोरन्धा *** ह भुंइया कस घला लागिस मोला
कोंहुँ मेर सरपट आँखि के पुरत ले नंजर भर देख ले
त कोंहुँ घानी नंजर नई पुरत हे देखे म ... आँखि चोन्धियागे
कौंहु मेर डीपरा त दतकि कन दुरिहा म बड़ खंचवा 
किसिम किसिम के रंग मटासी, डोंडसहुँ, कछरी, कन्हार, ...

*** जोरन्धा *** म लागिस मोला आगी कस सुभाव...
चूल्हा म परिस् त चुरो ले दार भात पेट के आगी थिरवाय बर
परगे मसान घाट म चिता म त लेस दिस मुर्दा ल
आउ कल्यान बर बार दे हवन भीतरी त ओहो..आहा ,.....
अपन मन के बरगे के बार दिस त बन घला ल ....
नई देखिस अपन आन जे ह डहर म आइस लेस दिस जी जंतु संग

कभू कभार मोला *** जोरन्धा *** ह पानी कस लागिस
जेकर भाग म परिस तेकर आत्मा ल जुड़वा दिस 
कोंहुँ बेरा म तीपगे त उसन के घर दिस बने मईहन सबो ल
बने राखे सके त जीवन दाई कस लागिस 
कभू उमड़ घुमड़ गे त बड़े ले बड़े पहार ल ओदार देथे
माढ़गे तला, पोखरी म निर्मल, साफ देख ले भीतरी म माढ़े घोंघी

 ज्ञानी अंतरजामी कस आँखि मुंदके देख तो *** जोरन्धा *** ल
अगास आय जेकर ओर आय न छोर .....
अनंत, अपार, अथाह, अबूझ, जतका जाबे ओतके दुरिहा 

बस यूं ही बैठे-ठाले
एकादशी 31 जुलाई 2024
आज मेरे सेवा निवृत्ति का दिन 2015 शानदार 09 बरस
ए लिखा पोंछा आप ल समर्पित...सादर पैलगी संग
१९९१ म " एक रात दिसम्बर के ,, गुरुदेव Rahul Kumar Singh
मोर फेर से गुरु बने के कथा लिखिहं जियत जागत रहें त ।।

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