गुरुकुल ५

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Friday, 15 November 2024

***** ररूहा @ # .com

बड़ पुन्न करिस मनषे त मानुष के जनम पाईस ...
नहीं त भगवान घलो ह तरस गे मनखे के जनम पाए बर...
ले चल बतावा बबा रविन्द्र सिंह सिसोदिया कोन भगवान ह कोन महतारी के कोंख ले जनम लिस ? 
त्रेता म ...भये प्रगट कृपाला दीनदयाला कौशल्या हितकारी ........
त द्वापर म ... यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ....
आउ अब कलजुग घलो म इही कस कुछु कांहीं होही काय..?

भगवान सबले सुजान मनषे ल बनाइस बड़ गुन समझके ....
सब गांव, धरम, लिंग, जात, कुजात, चिरई, चुरगुन, म बनावत टोरत फ़ोरत हेरत, धरत म ....होही रोठ मोठ घोंसत म ...
त खंग गईस होही माटी के लोंदा ह ...पेरऊसी बने नई सनाइस होही...हो सकत हे गिलगोटहा रहि गईस होही माटी का जानी ?
मोला लागथे ईंटकोटहा रहीगे रहिस काय सानत म .... ?
रहिस होही लुवाठ कुछु कांहीं खंगे-बढ़े .... हेरत धरत म.... ?
भगवानेच तो आय न ब्रम्हा घलो ह तो कई ठन बेरा म चूकगे हवय
गढ़त-गढ़ात म ढलंग के टूट गईस होही साँचा ह त.... ?
नई मिलय कोंहुँ मनशे ह एक दूसर कस .... मिलथे काय ...?
हमरे हाथ के चीनी अंगठि के चीन्हा ह ठेंगा कस चीन्हा कस नई मिलय न होवय.... अरे टार न दुनिया के लफंदर गोठ ल.....!

एके घर म दु झन जनम ले लीन एकेच गिरहा, नछत्तर म तभो ले
ऑन तान रहिबेच करही ...कतको मुँहरन ह एके कस होय....!
मनषे अपन करम म उदिम ऊपर उदिम करके,.....
,सन्ना के लिखे ल माथा के लिखना कस कपार म उबका डार ...?
आउ ए किस्सा आय ओइ सनहे किसकिस मनखे के.... !
मनषे कस कस मनखे ले बढ़िया आउ खिख भगवान गढेच नई
 सकिस आज तलक ... कई पीढ़ी कई जुग बदलगे.....
देख लेवा खोजा तो ..? आँखि मूंदके तमड़े देखा देश परदेश म..!
पीठ के हाड़ा वाला जात... ले गुजगुल जात ल ...!

फेर का सोंचके गढीस होही ***** ररूहा ***** मालिक जानय !

*** ररूहा *** एक किसिम आय मनखे के........?
न गुनी न अज्ञानी, अड़हा तो हई नो हय न जोजवा आय ...
न भखला, न सुजान, अलगेच किसिम आय मनखे म ....
सब गुन म सनाय फेर एकेच ठन गुन म अकारथ....
बस ओहि एक अकारथ गुन ओकर चिन्हारी बना दिस # ररूहा #
      " तभे तो कथें ररूहा बर कसार कलेवा ,,
अब तुंहर हमर कस बड़ सुजान मनषे एला... ए हाना ल ...
जोर देथें पेट के आगी भूख म ......?????

अरे सही आय का हो गुरु राहुल कुमार सिंह बतावा भला?
मोला भूख पेट के त तुंहला भूख ज्ञान के....
संत ल भूख ज्ञान के त तरवार ल भूख म्यान के
मोर समझ म मनखे लबालब भरे सब गुन म फेर बस ठन जिनिस ... बस देंह के भीतरी "$ जी $ ,, ( आत्मा ) कस
एकर महुँ अरथ ल गुन देखें फेर नई खोज पाएंव ...
उकील साहेब अशोक अग्रवाल तुंहर पोथी म लिखाये होही त बताहा हो ...चेत करे रहिहा ....!
मोर सोंच म आने त तुंहर सोंच म ताने ???
*** ररूहा *** सब ल देखे हवय... बस एहि एक ठन के छोंड़ ...
ई ल देखिस ,गुनिस ...देखके, गुनके ...आउ सुध ल... भुलागे ...भुलागे अपन अन्नो ... होगे चेत बीचेत ....
भुलागे अपन धरम, करम, नेंग, गुन, अवगुन के हिसाब किताब
फंसगे माया म ....कपार म लिखागे ररूहा ....
अब आज समझ म आइस त लाज के मारे नई कहे सकिस ...
परगट ही जाहि ओकर अड़हाई त अब एई ह सही आय ,..
न तो ओहर हबर हबर खाइस न करे सकिस  ...!

बस एक ठन चूक जाने अनजाने म ....!
के हड़बड़ी म आउ होगे नाश...! 
बड़ गियानी मनशे के ......ल घुघुवा चाबथे हो ...!
छुआगे  देंह म के परगे जीभ म....अब कहे त ...
कहिबे काला...? सुनहि कौन...?
बइठे र पठेरा कस कौड़ी दांत निपोरत.....@ # .com
 " तोर घर तोर दुआर तैं खा चार जुआर ...!,,
जा धनतेरस मना जय श्री राम...

बस यूं ही बैठे- ठाले
धनतेरस 29 ,10, 2024

**** घण्टहा पीपर *****

अरे जा न मोर घण्टा परवा नई करय तोर कस किसबा मनके...

फदक गे झगरा महतारी के तीज नहावन के पांत रेंगत रेंगत...
गांव घर के सियान अब्बक ...बैकुण्ठ सिंह के बेटा के मन के जहर
आज परगट होगे जीभ म ..लईका,सियान, घर के आउ परजातक 
हितु पिरितु के आगू अंगना म पांच परगट होगे...
खुलगे कलई मनके सब करिया चाल उबकगे .माथा म ...
आके हिरदे के बात कण्ठ म होके हरियर जहर कस दिखगे 
बड़ कठिन अरे अड़बड़ मुश्कुल आय बेटा घलो ल समझ पाना...
बैकुण्ठ सिंह के बेटा मारखंडे मुंहूं खोल के कहि दिस ...
तैं जान तोर आत्मा परमात्मा जानय तोर बात... 
सब बिगड़े तोर.... सब बने मोर ...
तोर सासत तोर संकट, तोर चिन्हारी तोर धरम बेटा ल दस महीना तोर कोंख म सहना, मैं तो तोला जन्माये बर नई कहे रहें....
ई बेटा सारे दलिद्दर डौकी के कहे म मुं ऊपर कही देईस...
दाई के आत्मा कसमसा के रहिगे ...पहिली पता चलतीस त कोंख ल ढेंकी के मुसर म कुचर देतिस महतारी फेर अब का करय....
कुल के दिया बारे बर औंतारे मारखंडे ल फेर ई गति .....

समे के गति, मति,चाल, चलन, संग अवई-जवई म घण्टहा पीपर घलो ह पोंडा परगे रहिस आउ आज हदरके फाटगे रहिस...
सहर के झकनन ह बड़े बड़े गुनी मनखे के चित्त आउ धरम ल बीचेत कर देथे...सहर म मनषे जागथे रात भर ... उठथे दिन बूड़े म
त तो आज गांव उसलगे सहर म ....रही का गे गांव म...
आज गांव काला मिठावत हवय ?
सुन्ना गली, डहर म चारों कोती गरुवा, खेत के आगू म घुरूवा, 
आउ नहर के उदबास म खेत म नरवा ...सनसनात मच्छर...
कुछीछित मनखे, बिलबिलात किरा भरे नल्ली...
घाट, घठउघा म दतवन चिरी, किरा उपलाये पानी ....
ए दे आइस बिजली.... ए दे गईस ... बईठे रह बिहनियां ले संझा 
तैं धरे हस जियो के नेट ओ ह मरो होगे हवय गांव म ...
कभू एअरटेल चलिस त कभू आइडिया के अड़िया चलिस...
अप्पत डौकी कस कभू कहे नई करय ...
कोन गदहा सारे कहि देहे रहिस बैकुफ बनाये बर के * हमेरी *
मारे बर *** भारत की आत्मा गांवों में बसती है ***
भेंटते त सारे ल परघाते डोंगरे के पनही म तरुआ के जात ले ...

अरे बड़ अलकर होथे... कभू फंसे ह लुकडु फ़ान्दा म ..
सोंच लेवा जे दिन तुंहला पहुना ल समोखना हवय उहि दिन बछरू ढीला जाहि , एक दिन पहिली बरवाहि रहिस त कातिक राउत ले गए हवय गाय ल निचोके दूध ल ... अब बैठे रहो दांत निपोरे...
कभू कोकरो कटाये अंगठि म मुते नहीं त तोर कोन परवा करही
धरे र तोर BMW गाड़ी ल आउ ५०० रु के नवा नोट ...
जा चिचोरत र नोट ल गाड़ी भीतरी न तोर तीर म मनषे, न चीज
आत जात रह नता गोता म, चढ़त उतरत रह सीढ़िया म ...
त पता चलहि त गम पाबे के सीढ़िया आउ नता गोता म जंग थोरे लगे हवय ....नहीं त मुड़ भरसा गिर जाबे ...

बैकुण्ठ सिंग के घरवाली  कुमारी दाई के फूल सकलाही कईसे ?
बड़े बेटा डॉ संतोष अपन डौकी संग खुसरगे खोली म ...
मारखंडे तहसीलदार मुंहूं खोल के उगल दिस जहर बीच खोल
छोटे बेटा भरत बड़े मंझला के आगू म अकारथ बने .रहिगे ...
बेटी सरस्वती अपन बाप के मुंह देखत अगोरा म गोठ के...

सकलागे कुमारी गौंटिन के फूल बन्धागे घन्टहा पीपर म मरकी...
मुंह म आगि ढ़ीलिस छोटे बेटा भरत...
किरिया करम कईसे होही चूल्हा म गये ....बेटा-बहुँ अलमारी के तारा टोर के सकेल डारिन सबो गहना ......

***-नरी के गहना ***  सुंता, पुतरी, कटवा, दस्तबन्द, गलपटिया , गुलु बन्द, तिलरी, दुलरी, कदमाहि तिलरी, गंहुँ दाना, मटर दाना , मरीच दाना, गोप, कंठी, चार दाना, रानी हार, लक्ष्मी हार, चोकर, 

*** कान के गहना *** ढ़ार, करन फूल, फूल संकरी, ऐरन, खूंटी, झुमका, बारी, तीतरी, बाला, 
नाक के गहना ...सरजा के नथ, नथ, फुल्ली , बुंलाक

 *** माथा के गहना *** माँग टीका, बेंदी, बोडला, पटिया, 

*** हाथ के गहना *** चुरी ... बाजू बन्द, नांगमोरी बहुँटा, ककनी, बनुरिया, खग्गा, गुजरी, देवरइंहा, परछईहां, हांथ फूल, मुंदरी

*** कन्हिया के गहना *** कमर पट्टा, संकरी

**** गोंड के गहना*** .झांझ, लच्छा, पायजेब, पँजिना, पैरी, कटहर, टोंड़ा , साँटी, पांव पोंछ, पायल, पैर पट्टी, अंगठहा, मुंदरी, चुटकी, बिछिया

कतका बेर आगे पोद्दार धनदास तखरी लेके आउ बिन पूछे-गंउन्छे
गहना तीन कूटा म बंटागे चोटरी मोटरी बन्धागे .....
बैकुण्ठ सिंग ल तला ले आये के बाद पता चलिस ए बेटा मनके 
किसबाई त बलाइस गांव के सिदार अशोक अग्रवाल पटेल, आउ अपन जोंड़ के सियान संग  महराज अशोक तिवारी मन ल आउ सुना दिस ....

अपन फैसला .....लम्बर एक******
देखा भाई ए सब सोन चांदी ह मोर कुमारी गौटिन के गहना आय ..
जेला मैं हर ओकर सौंख बर बनवाये रहें ...कोकरो करा लुकाये छुपाए के कुछु मोर करा बात नई हवय, सब जानत हवव...
१९९० के बछर के पहिली नहर नई रहिस न मोर ददा खेलावन सिंग आउ महतारी कोनरहिंन दाई ह गहना छोंड़के गए रहिस ...
ए सब गहना ह मोर बिसाये धरे आय त सब गहना ल तिजोरी म जस के तस धर दिए जावय अभी के अभी आउ चाबी ल सरस्वती के हाथ सौंप देंवा ....का मजाल कोंहुँ कुछु कतीस पोद्दार छुपेचुप सब गहना गुरिया ल तिजोरी म धरके कूची सौंप दिस ...

अब सुनो भाई ददा मोर फैसला लम्बर दु *****
मैं मोर घर दुआर आउ परिवार ल छोंड़के न बेटा मनके घर जूठा चाटे जावव न बेटी के ओसारी राखे जावव ....
मोर पुरखारत म जतका पुरीस लईका मन ल पढ़ा लिखा देंहें 
ओमन अपन बुद्धि बिबेक के हिसाब म नौकरी चाकरी पागे
सहर म सबके घर दुआर बनगे हवय, लईका मन पढ़त लिखत हावय बस अपन अपन म मगन रहव भाई ...
खंघे बढ़े आवा गांव म तुंहर सेवा मैं करिहौं .....
कोकरो करा कोई कुछु न पूछना हे न बताना न सुनना....
सरस्वती नोनी संग काल प्रयागराज जाना है दिन बूड़े के पहिली 
कुमारी गौटिन के किरिया करम ४ था दिन ले १२ दिन तलक के
पिण्डा बिसर्जन प्रयागराज म करींहा उन्हे रहीके....
मोर हितु पिरितु के जिम्मे घर दुआर सोन,  चांदी,  गरुआ, बछरू, धान, चाउर, रहिहि तेरही ल नेंवत देहा सब ल आबो त पंगत म 
बईठके खाबो ....चला भाई सब ल चाय पानी करवावा...
दिन बूड़े खोजत हवय कोई तरक कुतरक नहीं ...

बैकुण्ठ सिंह पहुंचगे नाउ संग नाती मनोहर ल लेके पानी डारे
**** घन्टहा पीपर साच्छी पुरखा मनके......
बार दिस लाल मरकी के भीतरी दिया , भर दिस मरकी म पानी
काल चलबो कुमारी गौंटिन प्रयागराज कहा सुना माफी देबे
काय करबे समे बदलगे फेर जनम लेबे मोरे बर....
संसो झन करबे तोला अगोरिहा आगू जनम घलो म ओ...

बस यूं ही बैठे-ठाले
गुरुदेव राहुल कुमार सिंह और बबा रविन्द्र सिंह सिसोदिया को समर्पित भूल चूक की माफी सहित ।