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Monday, 6 May 2013

बनूं तो क्या बनूं

बनूं तो क्या बनूं और आखिर क्यों बनूं?


बनूं तो क्या बनूं और आखिर क्यों बनूं?
बना इंसान तो नाहक मैं मारा जाऊंगा।

बना राम तो बनवास चला जाऊंगा
लक्ष्मण बन गया तो शक्ति सह पाऊंगा?
सीता बनी तो अग्नि परीक्षा होगी।
कैकेयी बनी तो भरत विमुख हो जायेगा
बना दशरथ तो पुत्र शोक सहना होगा।
उर्मिला बनी तो राह ताकनी होगी
रावण बना तो दसशीश बन पाऊंगा?

बनूं तो क्या बनूं और आखिर क्यों बनूं?
बना इंसान तो नाहक मैं मारा जाऊंगा।

कृष्‍ण बना तो महाभारत रचना होगा।
धृतराष्‍ट्र बना तो अंधा हो जाऊंगा।
गांधारी बनी तो पट्टियां बांधनी होंगी
कुन्ती बनी तो करन पाना होगा।
करण बना तो सारथी सूत कहलाऊंगा
भीष्‍म बना तो शर सेज ही पाऊंगा
बना अर्जुन तो स्वजन हत पाऊंगा?

बनूं तो क्या बनूं और आखिर क्यों बनूं?
बना इंसान तो नाहक मैं मारा जाऊंगा।


बना बुद्ध तो यातना सह पाऊंगा?
यशोधरा बनी तो राहुल पालना होगा।
लक्ष्मी बनी तो तलवार उठानी होगी।
आजाद बना तो खुद को मारना होगा।
बना भगत जो फांसी चढ़ पाऊंगा?
और जो बना गांधी गोली झेल पाऊंगा?

बनूं तो क्या बनूं और आखिर क्यों बनूं?
बना इंसान तो नाहक मैं मारा जाऊंगा।

10.06.2002

चित्र गूगल से साभार
दो टिपण्णी आदरणीया अमृता तन्मय जी
और श्री संजय भाष्कर जी के प्राप्त
पूर्व प्रकाशित रचना का पुनः प्रकाशन

22 comments:

  1. बनूं तो क्या बनूं और आखिर क्यों बनूं?
    बना इंसान तो नाहक मैं मारा जाऊंगा।

    वाह !!! बहुत खूब , रमाकांत कान्त जी ,,,बेहतरीन अभिव्यक्ति,,,

    RECENT POST: दीदार होता है,

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  2. बनूं तो क्‍या बनूं ??
    सच है !!

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  3. बनूं तो क्या बनूं और आखिर क्यों बनूं?
    बना इंसान तो नाहक मैं मारा जाऊंगा।
    बहुत गहन और उत्कृष्ट प्रस्तुति ....अनेक प्रश्न मन में उठ रहे हैं पढ़ कर ....!!
    बहुत सुन्दर रचना ...!!
    बधाई स्वीकारें ....

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  4. आप जो बने हैं इन पंक्तियों के रचनाकार, वो क्‍या कम है.

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  5. जो बनें उसका निर्वाह भी समुचित रूप से होता है- सोचना बेकार !

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  6. सही है ...
    यह खूबसूरत रचनाये देते रहें ..
    शुभकामनायें

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  7. ये सब तो बनना मुश्किल है ... और इंसान बन्ना तो और भी ज्यादा मुश्किल ...
    जीवन की कशमकश में जीना आसां नहीं ... पर अपना अपना किरदार तो निभाना ही होगा ...

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  8. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार ७/५ १३ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका वहां स्वागत है ।

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    Replies
    1. आदरणीया आपने रचना को इस काबिल समझा आपका ह्रदय से आभार किया जाता है .....

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  9. आदमी सब को धोखा दे सकता है , खुद को नहीं। दिल की सुनें।

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  10. दरअसल वे सारे लोग जिनके नाम इस कविता में आये हैं वे अपने उन्हीं गुणों के कारण वे हुए.. फिर भी कोई किसी के जैसा क्यों बने, क्यों न अपने आप में अनोखा बने, एक मिसाल!! दूसरा राम, कृष्ण या गांधी बनने से तो अच्छा होगा पहला रमाकांत सिंह बनना!! बहुत अच्छी कविता!!

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    Replies
    1. सलिल भाई साहब सुप्रभात आपने बड़ी जिम्मेदारी सौंप दी आपके आदेश का पालन करने का प्रयास किया जायेगा ******

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  11. बहुत सुन्दर रमाकांत जी , उत्तम प्रस्तुति !

    latest post'वनफूल'

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  12. बडी उलझन है! सुन्दर रचना

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  13. बनूं तो क्या बनूं और आखिर क्यों बनूं?
    सहज सरल शब्‍दों में बेहतरीन प्रस्‍तुति ...

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  14. बहुत सटीक प्रश्न उठाया है आपने..इंसान बनना ही तो सबसे कठिन है..इंसान बनने के साथ ही उठानी पड़ती हैं जिम्मेदारियां...जीने की और मरने की..

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  15. बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति! मेरी बधाई स्वीकारें।
    कृपया यहां पधार कर मुझे अनुग्रहीत करें-
    http://voice-brijesh.blogspot.com

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  16. ईश्‍वर ने आपको बहुत बढिया बनाया है। ईश्‍वर के निर्माण में मरम्‍मत करने की सोचिए भी मत। आप जैसे हैं, बहुत अच्‍छे हैं। ऐसे ही बने रहिए।

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  17. उत्तर चुप है..

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  18. यही फ़ैसला दुश्वार है सिंह साहब, इसलिये जो हैं वही अच्छे से बना जाये।

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  19. बहुत खूब लिखा और बहुत उम्दा सोच के साथ लिखा | बढ़िया

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  20. This comment has been removed by the author.

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