गुरुकुल ५

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Tuesday 21 August 2012

दशा

1

धरती ने सूरज से कहा
तुम सदा
पूरब से ही क्यों निकलते हो?
बदलकर देखो अपनी दिशा?
एक बार

2

भूखा कभी भूख की
परिभाषा लिख पाता है?
भर पेट भूख को
परिभाषित कर जाता है

3

अरे नादां
पैर के नीचे
धरती
सिर के ऊपर
आसमां
फिर तू कैसे
हो गया महान?

21.08.2012
चित्र गूगल से साभार

23 comments:

  1. क्या बात है.. गहरे अर्थों को समेटे सीधी सच्ची क्षणिकाएं!!

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  2. अरे नादां
    पैर के निचे
    धरती
    सिर के ऊपर
    आसमां
    फिर तू कैसे
    हो गया महान?

    इतना ही तो समझ नहीं पा रहे है.....

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  3. भूख और उपजी क्षणिका बेहद प्रभावित करती है।

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  4. अच्छी क्षणिकाएं रचनाओं की एकरसता तोड़ने के लिए बधाई

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    1. This comment has been removed by the author.

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    2. सर आप अपने वादे को ध्यान नहीं दे रहे हैं यह दिल तोड़ने वाली बात नहीं वादा खिलाफी के अंतर्गत आता है कृपया प्रेम पत्र लिख ही डालिए .

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  5. वाह,,,, बहुत खूब मन को प्रभावित करती सारगर्भित क्षणिकाएं,,,,रमाकांत जी,,,,

    RECENT POST ...: प्यार का सपना,,,,

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  6. भर पेट भूख को
    परिभाषित कर जाता है-

    वाह! वाह! वाह!!
    एक अमिट सत्य लिख दिया.

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  7. "भूखा कभी भूख की
    परिभाषा लिख पाता है?
    भर पेट भूख को
    परिभाषित कर जाता है"


    सच बात कही है सर!

    सादर

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  8. सभी क्षणिकाएं सार्थक और सारगर्भित है.. बहुत सुन्दर.. आभार..

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  9. आपकी क्षणिकाएं, ''देखन में छोटे लगें...'' जैसी असरदार हैं.

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  10. वाह ... बहुत ही बढिया

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  11. भूखा कभी भूख की
    परिभाषा लिख पाता है?
    भर पेट भूख को
    परिभाषित कर जाता है

    वहुत गंभीर मर्मयुक्त रचनाएं .....

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  12. बहुत सुंदर क्षणिकायें...भूखे के लिये रोटी ही परिभाषा है..महान होने की अभिलाषा ही तो नचाती है मानव को..

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  13. जीवन से जुडी सुन्दर क्षणिकाएं .

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  14. बहुत सुन्दर और अर्थपूर्ण क्षणिकाएं.....
    बहुत बढ़िया..

    सादर
    अनु

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  15. सुन्दर क्षणिकाएं .

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  16. वाह सर जी..
    बहुत बेहतरीन क्षणिकाएं है..
    अति उत्तम...
    :-)

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  17. तीनों रचनाओं के प्रश्न सारगर्भित हैं. बहुत अच्छी रचना, शुभकामनाएँ.

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  18. प्रभावशाली क्षणिकाएं..

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