भरपेट अघाये मनषे कभू भूख ल बता पाहि ?
न अरे भूखहा मनखे थिराके सांस रोके खाहि !
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मोर बाबूजी मोला जात जात कहिस सुन बेटा ए ह सोरह आना सच आय
कभू झन सरकाबे तोर बर परसाये थारी ल आन बर
भरम आय तोर ए ह ,...सात जनम अगोरत रही जाबे नई मिलय अपन ...
मनखे बड़ स्वारथ म जिथे नई सरकावय तोर बर आन ह अपन थारी ल
मन कल्लागे त पूछें बाबूजी ल ... त तूं काबर थारी ल मोर कती घुंचाया ?
बाबूजी कहिस ... मैं धोखा खाएं ते ह अपन जगा हवय ...
फेर तोर मनशे मन बर सदा बरत परेम नेम बने रहय टुटय झन तेकर बर ..
मनुसता ऊपर तोर भरोसा आउ बिसवास झन टुटय ते खातिर आय बेटा...
देख तो रुख राई ल ...सदा बोहात नदिया ल... आउ दुधारू गाय ल ...
कभू के मन ल लईका कस रोवत गात कल्लात देखे हस काय ?
मुखिया मुख सो चाहिए खान पान सो एक
पलै पोसय सकल अंग तुलसी सहित विवेक
तोर धरम तोर संग ...आउ ओकर करम ओकर संग ...
मनषे के मुं के कौंरा ह ओकर धरम के दगदगात चिन्हा आय ।
फेर ओहि ह रुख कस सब्बो झन ल बिन कल्लाये मिलय तौ ?
सब अपन-अपन करम करथें त अपन मनके रद्दा उन्हेंच जाथे जेकर बर मन के सोंच ह बने रथे ...नहीं त लड़र-बड़र बारा बतर हो जाथे ।।
" त तो कथें दस मर जाये त मर जाये दस के पोसईया झन मरय ,,
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मंझली भौजी Sarita Jaipal Singh कल्लागें ...अनियाय ल देखके
नई गुनिन छोटे बड़े के मरजाद ल जे हर सच आय ते ह सच आय आज
मुं ऊपर कहि दिन अरे चण्डाल लईका के मुं के कौंरा ल झपटत हस ...
तोला लोक लाज के डर नई लागय अरे एहू ल छोंड़ अंतरजामी भगवान के घलाव डर नई आय ...ओकर तो आँखि के सरम कर निर्लज़्ज़ ...
सोंचा तो कतका बड़ खिख बूता ल कोनो करहि त ओला सुने बर परही
***** कौंरा ***** दार-भात-साग-चटनी-भाजी- घी- ,के लोंदा आय ?
कौंरा ह छप्पन भोग के न कुढ़ा आय न ओ ह पहार आय खजेना के !
देंख तो कोंन-कोन कौंरा ल अपन-अपन मुंअखरा फरिया सकत हे ?
बड़ मुश्कुल आय न हपकन कौंरा ल एक सांस म बता पाना ....
एक कती कौंरा ह मोर जनमती अधिकार आय ... ए मेर पाना हवय !
त दूसर कोती कौंरा ह मोर लहू म बोहात धरम घला आय ... !
सुद्ध गोरस कस लहू ल दूह के देना हे त ए मेर *** कौंरा *** आय !
लूट के ले गए आन के मुं ले त कुकुर ले ओ पार ...सूंअरा ?
आउ कोकरो मुं म डार देहे त तो बात ह आन होगे जनम भर बर...
अरे अपन जांगर पेर के ओकर बेंवत बना देहे त धरमराज जुधिष्ठिर ...
आउ कभू उमर भर के खंझा मढ़ा देहे त अंगराज करन बनगे मालिक ...
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कभू मन म बिचार करा तो मुँ के कौंरा कइसे बनत होही ...,?
तुलसी अपन राम ल रीझ भजय के खीझ
खेत परिस ते ह जामगे उल्टा सीधा बीज
गुरु Rahul Kumar Singh जी करमईता मनखे घलो ल
,बिजहा के नाले के अल्लग बनिहार करके करपा कटवाये बर परथे
नहीं त कमैलीन करके बिजहा के बाली बिनवाथे बड़ खटकरम लागथे ...
बोयें बर परिस बीजहा ल , खुर्रा बोये बर जोंताये रहिस होही खेत अंकरस
अंकरस नांगर बर बईला लागथे ओहु ह जोंड़ा म ...ओहु जोड़ा ह बरोबर रहय न , नांगर के बईला पहिली ले सीखे सधे रहय नहीं त हरई म नई
रेंगय ...न बरोबर कुंड़ धरावय ...चेत करके खेत जोंताये नई पाईस त ...,जगा जगा अड्डी छुटगे ..त तो खेत के बन बूचा जस के तस रहिगे ...
सनसना जाथे फेर सांवा संग दूबी आउ गदा बन ...,फेर ई बन ह चबकके
धर लेथे धान के जामत पेंड़ ल ...क़रर के खाये खोजथे जामत सुला ल...
फेर निंदाई, कोड़ाई , चलाई, खातू माटी, कटाई, डोहराई, खरही गंजाई,
दौंरी फंदाई, मिसाई , रास बनाई, नपाई, फेर कोठी म झँपाई ....बनी नाप
बनिहार खेती के सब काम बुता ल नेंत,-घात म जानय तौ न,,,...
लेई म धान बोयें त जरइ के तामझाम करे बर परथे संगी
आउ थरहा लगाए बर गोड़ के पछीना मुंड़ म ...
थरहऊटी , थरहा के रखवारी, जगाई , खातू माटी सबके खटराग
फेर पावती बर नवा बोरा खिलवाये बर परथे कांही गोठ नई ए ।
पावती- अधिया-,कुता के फेर घर के बोंता धरबो कोठी म
धान के कोठी बने हवय बांस के कमचाईल के पाखा म, तेमा कोदो पैरा आउ धान पैरा के पेरउसी सनाये माटी के छबना ...जे हर गोबर म सरबोटाय के लिपाये हवय चेत करके ..कोठी के मुड़का मियार, कड़ेरी सरई के ...तेकर ऊपर पोठ टीन के छांदी मोंखन बने ठोंकाय रहय कांड़ खिला म ...ई हर सुखोथे धान ल बिजहा बर आउ ए ई ह बनथे ...
खदुहन धान घला ... फेर निमार. पछिन, ढेंकी म कूट, त निकरथे सईघो चाउर ..ओकरो मेरखु ल फेर निमार पछिन त चाउर खाये लाइक बनथे ...नवा चाउर ह गिलगोटहा भात बनथे तेकर सेतिर एक बछर जुन्ना धान ल खाये बर कुटवाथे । जादा जुन्ना धान के चाउर ह रांधे म सेवाद ह भसकन्हा लागथे । खदुहन धान के किसिम देख ...
अरे पढ़े-,लिखे उकील Ashok Agrawal घलो कथे
***** फोकट म नई मिलय मुं के *** कौंरा .*** ...
भितरहिंन ह पूरा निरमल मन ले रांधथे त ओ ह कौंरा बनथे ...
फेर साग-दार- घी-मसाला के सेवाद के पता चलथे .नहीं त सिट्ठा के सिट्ठा
हरष-भरश रांध के मढ़ा दिस त कौंरा मुं ले उगला जाथे ....
भितरहिंन के अन्तस् मिले रथे ...सब चीज एकदम नाप-जोंख म ,...
रांधे के बेरा म सौ ठन नियम धरम हवय ...महतारी मन जानथें
ओनहा, चेंदरा, करईहा, बटलोही,झारा, करछुल, आगि, पानी चुलहा,
से लेके मिरचा मसाला, सील, लोढ़ा सब सफ्फा सुग्घर रहय ...
दूध दही, अथान, बरी, बिजौरी, गुर घी, सबके अपन,- अपन ठउर ..
कभू अनचेतहा चुन्दी परगे त होगे मरे बिहान धन-धरम-जांगर...
थारी के भात तिरिया जाथे नहीं त फेर अंधन चढ़ाये बर पर जाथे ....!
कौंरा जे हर परमात्मा के किरपा ले हमर हाथ म धराइस... मुं म माढ़ीस
जेमा भितरहींन के मया, नेम,धरम सब लगे हवय जेला आत्मा ह पाइस,..
कौंरा जेमा न मिठास दाई के... न नेम धरम सुआरी के ...न बेटी के मया
नई कहावै ते ह अन्नपूर्णा के कौंरा ओ ह जहर बन जाथे...
बने निटोर के मन के पूरा बिख ल घोर के देहे कौंरा ह * दिनाही *कहाथे
भाई जी Arun Rana कथें ...
कभू कोकरो देहे अन्न आउ कौंरा के अपमान झन कर ....!
फेर सोंच समझके कोकरो घर दुआर के अन्न ल कौंरा बना ...!
भोरहा-अंभोरहा कोकरो कचकुटहा अन्न झन खा ...!
बेर-,कुबेर भोगे बर पर जाहि ओकर गुन-अवगुन के त्रास ल , ...!
कौंरा जेमा तोर जांगर पेराय हवय पछीना निकरे हवय ते ह तोला फुरहि ।
लुटे-,झपटे अन्न जब हमर बबा ददा ल नई पचीस त हमर का औकात ।
तभे तो बबा Ravindra Sisodia ह कथे सुन बेटा चेत लगाके
मघा के बरसे आउ महतारी के परसे म पेट भरथे
आउ ए जनम म महतारी के परसे म तोर पेट नई भरिस त ...
कुछु जतन कर ले ..कोंहुँ परोसय कतको कन खा तोर दांदर नई पटावय !
*** कौंरा *** तोर भाग के भगवान के देहे परसाद आय !
आँखि मूंदके पा माथा नवा दाई,-ददा-भाई-,बहिनी आउ हितु,-पिरितु ल
बस यूं ही बैठे-,ठाले
अगहन द्वादशी शुक्ल पक्ष २०२४