गुरुकुल ५

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Saturday, 28 September 2013

मेरा अंदाज़

मेरा अंदाज़ जुदा, प्यार जतलाने का


बोल कानों को अच्छा लगे गीत बन गये
कभी कभी अर्थहीन बोल भी शामिल हो गये
और कभी कभी शब्द नहीं मात्रा भी अर्थ को अमर कर गये

हे कृष्ण गोविन्द हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेव

इसे आप अलग अलग लय, सुर, ताल, राग में गाकर आनंद लीजिये
हर क्षण नवीन लगता है, आपका अंदाज़ जुदा होना चाहिए

कोशिश कर देखिये इस गीत को यदि थोडा भी ***?

मेरा अंदाज़ जुदा, प्यार जतलाने का
पा न पाया मैं तुझे, तुझ पे मिट जाने का
कैसा अंदाज़ तेरा, प्यार समझाने का
मुझको गर पा न सका, मुझ पे मिट जाने का?***


यही अंदाज़ मेरा प्यार जतलाने का
गर तुझे पा न सका , तुझ पे मिट जाने का

कैसा ये इश्क तेरा कैसा दीवानापन
कैसा अंदाज़ तेरा उस पे दीवानापन
ऐसा अंदाज़ तेरा और ये पागलपन
मिल न पाये गर कभी, गम को बतलाने का?***


मेरा अंदाज़ जुदा ,प्यार जतलाने का
पा न पाया मैं तुझे, तुझ पे मिट जाने का

कैसा अंदाज़ तेरा प्यार समझाने का
मुझको गर पा न सका, मुझ पे मिट जाने का?
*** 
कैसा रिश्ता ये  तेरा कैसा अनजानापन 
बोल न *** 
है जुदा प्यार मेरा उस पे दीवानापन 
चल *** 
साथ हम जी न सके ,साथ मर जाने का? 

29 april 2013
DEDICATED TO MY ZINDAGI

Friday, 20 September 2013

श्रद्धा

रामा { रमाकांत } का प्रणाम स्वीकारें 

एक कथा का आनंद लीजिये

पुराने समय में लीलागर नदी के तट पर रामा यादव अपने बेटा, बेटी, पत्नि के साथ
निवास करता था पूरा परिवार शिव भक्त था नदी के तट पर विराजित शिव जी की
नित्य सुबह शाम पूजा करता था अचानक एक दिन पत्नि को सांप ने डस लिया
और वह चल बसी रामा ने सोचा शिव की कृपा होगी,शिरोधार्य किया किन्तु बच्चों
की देखभाल में कमी आने लगी बच्चे बीमार पड़ गये और वे भी चल बसे

रामा उद्विग्न हो उठा मन उचट गया दीन दुनियां से लेकिन वक़्त कहाँ रुकता है


रामा मन में सोचने लगा मेरा क्या कसूर मेरी भक्ति भाव में कौन सी कमी रह गई
जो ऐसा हुआ अब वह प्रतिदिन सुबह शाम बिना नांगा सात लाठी शिव लिंग को

मारकर अपना क्रोध जताता रोज गाय बैल को खोलता दूध दुहता, लोगों को बांटता
शाम को सोने के पहले शिव जी को कोंसता, बन गया बिन बनाये रोजमर्रा  का काम,
पागलों की तरह चल पड़ता बिन खाये पिये जंगल को

दिन बीतते गये, मौसम भी बदला, जेठ की दोपहरी ढलने लगी, आसमान में

बादल छाने लगे एक दिन सुबह से ही मौसम खराब होने लगा था जानवर
अनमने से यहाँ वहां जाने लगे रामा जानवरों को चराने नदी के पार रोज की
तरह चला गया, आज घर में चूल्हा भी नहीं जला था, शाम को अचानक
आसमान बादलों से भर गया, शुरू हो गई बारिस उमड़ घुमड़ कर

जल मग्न हो गया जंगल का कोना कोना बिखर गये सभी जानवर अपनी जान

बचाने में और रामा लहुलुहान हो गया इन्हें सकेलने में आज कोई सुध नहीं रह
गई थी किसी काम की थका हारा उफनती नदी को जानवरों संग तैरकर जैसे तैसे
घर पहुंचा, जो बन गई थी बाढ़ का हिस्सा मन खीझ उठा, लगा आज सुबह से ही
कुछ छुटता चला जा रहा है, लेकिन सुध बिसरा गया था कैसे? क्या छुट गया?

घर के बिखरे चीजों को देखते देखते अचानक याद आ गया भुला काम बस क्या था
चल पड़ा, न देखा अँधेरा न परवाह की अड़चन की, उफनती बौराती नदी को तैरकर
पहुंचा शिव मंदिर फिर क्या था, भांजी लाठी और तान तान कर सुबह और शाम का
हिस्सा दिया चौदह लाठी शिव जी के सिर पर झमाझम,
मारते वक़्त कहता जा रहा था
**ले तेरा दिया तेरे को ही दिया **मैंने तेरा क्या बिगाड़ा था

अचानक बिजली की कड़क और कौंध के साथ मृग छाला पहने शिव जी प्रकट हुए

और कहा रामा धन्य है तुम्हारी भक्ति और प्रेम इस बरसात में भी मैं तुम्हे याद रहा,
मांगो क्या चाहिये जो भी, अहा इतने कष्ट में भी यह अनन्य श्रद्धा
अचानक नंग धडंग शिव को मंदिर में देख रामा ने पूछा तुम कौन हो और यहाँ कैसे घर
जाओ बारिस में भींग जाओगे किन्तु उत्तर मिला
मैं शिव जी हूँ, रामा ने कहा अच्छा तो मैं हर हर महादेव हूँ, चलो जाओ अपने घर

शंकर जी ने कहा अरे भोले रामा मैं सचमुच शिव हूँ मैं तुम्हारी भक्ति पर प्रसन्न हूँ

हाँ तो, होगे शिव मैं क्या करूँ और मैं कैसे मानूं की तुम भगवान हो, चलो हो भी तो,

मुझे क्या लेना देना, जाओ अपने घर, खुद के पास पहनने को अंगरखा नहीं और …

भोलेनाथ मुस्कुराकर बोले चलो जो मन चाहे मांग लो मिल जायेगा बिना विलम्ब

रामा ने कहा अच्छा अभी बारिस बंद करो, बारिस बंद हो गई
अब चल पड़ा मांग और पूर्ति का खेल शुरू हुई मांग
घर चलो, शिव जी तुरत पहुंचे रामा को लेकर घर, घर बिखर गया है अभी ठीक करो,
गोठान को ठीकठाक करो, मेरा घर मेरी पत्नि और बच्चों के बिना सुना लगता है,

ये क्या बात मुंह से निकली और पूरी होते गई घर किलकारियों से गूंज गया
रामा मांगता गया और भोले महाराज देते गये रामा और बच्चों को अब ध्यान आया
अरे ये तो सचमुच ही शिव जी हैं पूरा परिवार चरणों में लोट गया
रामा कभी अवाक घर को देखता तो कभी भोले भंडारी को

शायद प्रेम और श्रद्धा लिये शब्द कम पड़ जाते है ये अनुभूति हो?  


रामा { रमाकांत } का प्रणाम स्वीकारें और अड़हा पर कृपा बनाये रखें 
  


चित्र गूगल से साभार

Wednesday, 11 September 2013

रिश्ता / मेरी माँ

मेरी माँ

क्यूं नहीं सोचता
ये अनोखा रिश्ता?

मेरी माँ
बहन
बेटी
दादी
नानी
माँसी
बुआ
काकी
सहेली
और रिश्तों से जुड़े रिश्ते
जो हमारे अपने हैं?

हर युग में
रिश्तों का दर्द?
क्यूं?

पञ्च कन्यायें
मान्यताओं में ही?

क्यूं अविश्वास से भर गया
ये प्यार का रिश्ता?

मेरे पिता
भाई
बेटा
दादा
नाना
मौसा
फूफा
काका
मित्र
और तब लोग पुकारते थे
गाँव की बेटी अकलतरहीन ]
जो हमारे अपने थे

न जाने कैसे?
सिमट गये रिश्ते

आज सब अजनबी से क्यूं लगते हैं?
या सरोकार रह गया शरीर के माँ स से?

चित्र गूगल से साभार
समर्पित विश्व की माँ बहनों को
भादों मास कृष्ण पक्ष द्वादशी
२ सितम्बर २०१३

Thursday, 5 September 2013

विक्रम और वेताल 14



विनम्र आग्रह २ पोस्ट पर आये टिप्पणी कर्ता और सुधि जनों की कृपा से
परिवार में आई खुशहाली के लिये मेरा प्रणाम स्वीकारें आपका योगदान
यूँ ही समय पर मिलता रहेगा
आभार सहित आपका रमाकांत

वेताल ने कहा
राजन
आज आपके चेहरे पर गंभीरता की जगह हंसी
कहीं ऐसा तो नहीं
शहर के लोगों की तरह
मैं भी दृष्टि भ्रम का शिकार हो गया हूँ?
चलो आपके थकान हरने के लिये
एक सत्य कथा सुनाता हूँ
एक महानगर में
रमेश ने अपने मित्र आशा राम से पूछा
क्या हालचाल हैं मित्रवर?

आशा राम ने कहा
सब ठीक ठाक है

पत्नी आज कल जिम जाती है
जोड़ों में दर्द रहता है न
मैंने मोबाईल और गाड़ी का
माडल बदल दिया है
कार का एवरेज २० कि मी प्रति लीटर है
नौकर हर माह बदल जाते हैं
बेटा को अनुदान देकर
पढ़ने विदेश भेजा है
लड़की ने लव्ह मेरिज कर लिया है
दामाद और बेटी 
अलग अलग शहर में रहते हैं 

कुत्ते के कारण
घर में कोई नहीं आता
माँ विगत चार साल से 
अपने दामाद के घर है 
बाबूजी वेंटीलेटर पर हैं 
कोई चिंता नहीं है 

खाना होटल से ही आ जाता है
कपड़ा धोने की झंझट नहीं
धोबी सुबह शाम लेकर चला जाता है
क्रेडिट कार्ड है ना
ये घर भी किराये का ही है
पुस्तैनी मकान बेच दिया 
घर के मेंटेनेंस का भी पैसा बच जाता है 

रमेश ने कहा आशा राम जी मानना  पड़ेगा
आपकी व्यवस्था और सहनशीलता की पराकाष्ठा को

चलो आज मेरे घर भोजन करें 

नहीं मित्र डॉ से पूछकर ही बता पाऊंगा 

पिछले माह हार्ट सर्ज़री हुई है न
शुगर बढ़ गया था
सर्ज़री के बाद
नमक, तेल, मिर्च, मसाले पर रोक है न
डॉ ने उबला हुआ ही खाने को कहा है 
और कह रखा है
भले ही दिन में चार बार ही पीना  
लेकिन हेवार्ड सोडा मिलाकर ही पीना
और समुद्री झींगा
स्वास्थ के लिये ठीक रहेगा
कोई टेंशन नहीं है
इन्कम टेक्स का मामला अदालत में है
दो चार साल में  निपट जायेगा

बड़ा भाई स्वर्गवासी है
बहू ने मुक़दमा कर रखा है

मित्र ने पूछा और कुछ

आशा राम ने कहा 
सब ठीक ठाक है 

वेताल ने कहा 
राजन और 
विक्रम ने भी रौ में कह दिया 
सब ठीक ठाक है

बस क्या था 
वेताल भी लटक गया फ़ौरन 
वहीँ आश्रम के वट वृक्ष की डगाल पर 
विक्रम अवाक देखते रह गये
आश्रम की ऊँची दिवार और गेट को
आश्रम की दीवारों को लांघना …?

०५ सितम्बर २०१३
शिक्षक दिवस के अवसर पर 
मेरे बच्चों को समर्पित 
जिनके कारण मुझे जाना जाता है 
चित्र गूगल से साभार  

Sunday, 1 September 2013

विनम्र आग्रह २


विनम्र आग्रह 

आपसे विनम्र आग्रह पोस्ट को बिना पढ़े टिप्पणी न चिपकायें
अपने मित्रों और विद्वान हितैषी को भी पोस्ट अग्रेषित करें

आपका एक नकारात्मक विचार माँ या पिता को आहत करेगा
और संतान भी माँ बाप से अलग हो जायेगा, समाज को दिशा दें
किन्तु निर्विकार विचार दें किसी कुंठा से परे हों

मैं रमाकांत आपका जीवन भर आभारी रहूँगा

ज़रा विचार करें क्यों टूटता जा रहा है एक प्रबुद्ध परिवार?

अहम् की तुष्टि?
बदलती परिस्थितियाँ?
समाज से अलग रहने की चाह?
स्वेच्छाचारिता?
नए युग की चाह?
नये युग का सूत्रपात?
सकारात्मक सोच ?
नकारात्मक विचार?

कहीं ऐसा तो नहीं?

किसी आकर्षण में?
बंधन मुक्त जीवन की आकांक्षा?
किसी को आहत करने के लिए?
किसी बहकावे में?
गलत संगत में?
कोई प्रयोग धर्मिता?
हमारी उदारता?
हमारी हठ धर्मिता?

या फिर

प्रेम की कमी?
सामंजस्य की कमी?
काम का दबाव?
शुरू से ही गलत जीवन शैली?
अभावों में जीवन?
महत्वाकांक्षा?
हमारी कोई कमजोरी?

हमने विचार कर लिया?

किसी का दुरुपयोग?
पारिवारिक दबाव?
कोई कुंठा?
किसी का आश्रय?
अलग बसने की चाह?
विश्वास की कमी?
विश्वास का टूटना?
धोखेबाजी अपनों की?

हम झेल रहे हैं

एक तरफा प्रताड़ना ?
किसी की भी मनमानी ?
हमेशा झूठ बोलना ?
कोई अफवाह ?
कोई बड़ा लाभ ?
हानि पहुँचाने की मंशा ?
अविश्वास की मार
चरित्रहीनता है नहीं
किन्तु गलतफहमी पैदा करने वालों से घिरे

आँखों पर किसी ने पट्टी बाँध दी हो?

बसा हुआ परिवार टूटता है कारण कुछ भी हो
उसकी आंच में जल उठते हैं जुड़े लोग अकारण

कोई बाध्यता नहीं फिर भी एक आग्रह तो है
हम सब अपनी सीमा में अपनी मर्यादा संग साथ रहें

कौन छोटा, कौन बड़ा, किस पैमाने से नापा जाये?
कौन नापेगा, राजा भोज के राज्य का गड़रिया
कहीं नाप तौल गलत हो गया तो किसकी खता?
जीवन हमारा है निर्णय हमारा ही हो विवेक से

ये वो मार्ग है जो वन वे है जाना या आना एक बार
ज़रा सोचो मैं मर गया तो दुबारा मिलूँगा तुम्हे?

अलगाव भी मृत्यु जैसी ही संवादहीनता है?
तब चाहकर भी कुछ नहीं किया जा सकता

हमारा दुर्भाग्य और प्रेम संग विश्वास की कमी?
अनुरोध
बनो विशाल, समाहित कर लो मुझे अपने में

समर्पित मेरे अपनों को जिनसे मेरा जीवन है
०१ सितम्बर २०१३