मैं जीना चाहता हूँ जिंदगी तेरे संग |
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ज़िन्दगी तुझसे तंग आ गया हूँ?
सोचता हूँ तुझसे होकर पृथक
एक नई पारी को अंजाम दूँ
बंध जाऊं नये बंधन में
जिसे मैं चाहता हूँ अपनी जान से ज्यादा
जो रहेगी बन सहचरी मेरे संग?
ज़िन्दगी के आखरी सांस तलक
तेरी तरह बिन कहे भरेगी माँग मेरी खातिर
या है सिर्फ छलावा है वो
ऐ क्या बोलती तू?
मरुथल की मृगमरीचिका सी कौंधती बिजली बन?
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चलते चलते शशि भाई ने कहा
पाजामे की क्रीज और गाड़ी का एवरेज
ज़िन्दगी को सफल बनाता है?
भाई साहब
आप करते रहिये पुत्रेष्टि यज्ञ
डालते रहिये समिधा
और पढ़ते रहिये पहाड़ा
माथे की सलवटे भले ही बदल जाये
नसीब में नहीं लिखा है तो
कुआँ में पानी, और चुनाव में जीत?
और प्रेम?
उम्र भर सांस फुल जाएगी
नाहक परेशां होंगे और संग में पड़ोसी जागेगा ताउम्र?
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आज सूरज की किरणों की तरह
केवल तुम्हे महसूस करता हूँ
विक्षुब्ध, बेबस हो बरस चुकी दिन रात
अब बनी रहो धूप छांव सी
आज तेरी फुहार नहीं भिगोती
तन और मन को
चचल हवा के झोके की तरह
छूकर चली जाती है
अंजुरी से फिसलते ज़िन्दगी ने कहा
मैं जीना चाहता हूँ जिंदगी तेरे संग
क्यूं पूरी जिंदगी गुजर जाती है उहापोह में कसमसाते?
क्रमशः
समर्पित मेरे छोटे भाई दीपक सिंह दीक्षित को
जिसका जीवन दर्शन और चिंतन प्रेरित करता है।
चित्र गूगल से साभार