गुरुकुल ५

# गुरुकुल ५ # पीथमपुर मेला # पद्म श्री अनुज शर्मा # रेल, सड़क निर्माण विभाग और नगर निगम # गुरुकुल ४ # वक़्त # अलविदा # विक्रम और वेताल १७ # क्षितिज # आप # विक्रम और वेताल १६ # विक्रम और वेताल १५ # यकीन 3 # परेशाँ क्यूँ है? # टहलते दरख़्त # बारिस # जन्म दिन # वोट / पात्रता # मेरा अंदाज़ # श्रद्धा # रिश्ता / मेरी माँ # विक्रम और वेताल 14 # विनम्र आग्रह २ # तेरे निशां # मेरी आवाज / दीपक # वसीयत WILL # छलावा # पुण्यतिथि # जन्मदिन # साया # मैं फ़रिश्ता हूँ? # समापन? # आत्महत्या भाग २ # आत्महत्या भाग 1 # परी / FAIRY QUEEN # विक्रम और वेताल 13 # तेरे बिन # धान के कटोरा / छत्तीसगढ़ CG # जियो तो जानूं # निर्विकार / मौन / निश्छल # ये कैसा रिश्ता है # नक्सली / वनवासी # ठगा सा # तेरी झोली में # फैसला हम पर # राजपथ # जहर / अमृत # याद # भरोसा # सत्यं शिवं सुन्दरं # सारथी / रथी भाग १ # बनूं तो क्या बनूं # कोलाबेरी डी # झूठ /आदर्श # चिराग # अगला जन्म # सादगी # गुरुकुल / गुरु ३ # विक्रम वेताल १२ # गुरुकुल/ गुरु २ # गुरुकुल / गुरु # दीवानगी # विक्रम वेताल ११ # विक्रम वेताल १०/ नमकहराम # आसक्ति infatuation # यकीन २ # राम मर्यादा पुरुषोत्तम # मौलिकता बनाम परिवर्तन २ # मौलिकता बनाम परिवर्तन 1 # तेरी यादें # मेरा विद्यालय और राष्ट्रिय पर्व # तेरा प्यार # एक ही पल में # मौत # ज़िन्दगी # विक्रम वेताल 9 # विक्रम वेताल 8 # विद्यालय 2 # विद्यालय # खेद # अनागत / नव वर्ष # गमक # जीवन # विक्रम वेताल 7 # बंजर # मैं अहंकार # पलायन # ना लिखूं # बेगाना # विक्रम और वेताल 6 # लम्हा-लम्हा # खता # बुलबुले # आदरणीय # बंद # अकलतरा सुदर्शन # विक्रम और वेताल 4 # क्षितिजा # सपने # महत्वाकांक्षा # शमअ-ए-राह # दशा # विक्रम और वेताल 3 # टूट पड़ें # राम-कृष्ण # मेरा भ्रम? # आस्था और विश्वास # विक्रम और वेताल 2 # विक्रम और वेताल # पहेली # नया द्वार # नेह # घनी छांव # फरेब # पर्यावरण # फ़साना # लक्ष्य # प्रतीक्षा # एहसास # स्पर्श # नींद # जन्मना # सबा # विनम्र आग्रह # पंथहीन # क्यों # घर-घर की कहानी # यकीन # हिंसा # दिल # सखी # उस पार # बन जाना # राजमाता कैकेयी # किनारा # शाश्वत # आह्वान # टूटती कडि़यां # बोलती बंद # मां # भेड़िया # तुम बदल गई ? # कल और आज # छत्तीसगढ़ के परंपरागत आभूषण # पल # कालजयी # नोनी

Friday, 26 April 2013

चिराग



चिराग आँधियों में ही जलाया जाये हौसला दिल में पालकर हर पल
चलो खोजें मिलकर जहां ऐसा जहां चिराग से चिराग जलाया जाये

मिल जाये गर एक हसीं मौका यूँ ही तेरे संग राह पर चलते चलते
करें सितम मुफ्त में किसी हंसते बच्चे को चलो आज रुलाया जाये

लोग खुश हैं मुफलिसी, दोज़ख में भी धूप साये में भी मस्त मौला हम
बंद कर आँख गाफिल जिन्दगी से भी दरख़्त दर्द का एक लगाया जाये

अमन चैन से सोते हैं पत्थरों पर नर्म तकिया बनाकर हाथ सिर के नीचे
मुख़्तसर  ज़िन्दगी से कभी बातें कर किसी आबाद  घर को जलाया जाये

न कर फैसला ज़माने की खातिर कौन होता है तू तेरा वजूद इम्तहां लेगा
तुम्हारा ही अक्श नज़र आयेगा तुम्हें आईना जब भी तुम्हे दिखाया जाये


लोग क्यूं खुश हैं ज़माने को बसाने में चलो पूरी बस्ती को उजाड़ा जाये
इंसानियत ओढ़कर बहुत जी चुके अब शैतानियत को आजमाया जाये

२० अक्टूबर २०११
तथागत ब्लॉग के सृजन कर्ता
श्री राजेश कुमार सिंह को समर्पित
   

Wednesday, 24 April 2013

अगला जन्म

मेरी ज़िन्दगी तेरे बिन ज़िन्दगी?


आसमान से एक परी उतरी
मैंने परी से कहा

तुम मेरी ज़िन्दगी हो


मैं तुम्हे बेइन्तहा प्यार करता हूँ
परी ने कहा मुझे मालूम है

परी ने अचानक एक दिन कहा

मुझे लगता है
अब मेरे जाने का वक़्त आ गया

कहाँ?

जहाँ से मैं आई थी

मैंने कहा
एक वादा करो

तुम्हारा अगला जन्म मेरे लिये
उसने कहा क्यों नहीं?

वादा रहा

अगला जन्म आपके लिये ही

इस स्वार्थी दुनिया में
इतना टूटकर आज चाहता कौन है?

१० अप्रेल २०१३
समर्पित मेरी ज़िन्दगी को

चित्र गूगल से साभार



Friday, 19 April 2013

सादगी



*
सादगी अच्छी है
विचार ऊँचे हैं
स्वागत करते हैं
बशर्ते
इस पर कोई हँसे नहीं
वरना ये सादगी बदल जाती है
छिछोरेपन में
तुम मानो न मानो
लोग ऐसा ही कहते हैं

**
बंद कर मुट्ठी
चले आये यहां
बंद कर मुट्ठी
कल चले जाओगे
खोलकर मुट्ठी
गर बैठे उम्र भर
सोचो
तन्हा बैठोगे?
तन्हा चले जाओगे?

***
कैसा मातम
कैसी तन्हाई
तेरे जाने पर
कैसी ख़ुशी
ऐसा आलम
तेरे आने पर
ये मैं जानूं
या तू जाने

****
तुझसे मिलना भी
कसकता है
बिछड़ना होगा
फिर भी
इंतजार रहता है
मैं तेरा इंतजार करता हूँ
मैं तेरा इंतजार करता हूँ

चित्र गूगल से साभार
तथागत ब्लॉग के सर्जक
श्री राजेश कुमार सिंह को समर्पित

Monday, 15 April 2013

गुरुकुल / गुरु ३

यदि योग्य गुरु को अवसर दिया जाये विद्यालय सञ्चालन की जहाँ उसकी इच्छा के शिक्षक हों
तब उपलब्ध सुविधाओं में ही प्रत्येक छात्र छात्रा को तराशकर मेधावी बनाया जा सकता है
स्मरण होता है बचपन और गुरु का अगाध प्रेम आदरणीय दीनानाथ जी अकलतरा हाई स्कुल के प्रथम प्राचार्य, श्री उदय प्रताप सिंह चंदेल, श्री लक्ष्मीकांत ज्योतिषी जी,और श्री कौशल सिंह, श्री छत्रधारी सिंह, श्री मेदू लाल जी, जिनकी वाणी की प्रखरता और पांडित्य ने जिन शिष्यों की गरदन नापी वो आज अपने क्षेत्र और परिवार में इनके शिष्य कहलाने में गर्व अनुभव करते हैं।

गुरु के पास संग्रहित श्रेष्ठ ज्ञान सुपात्र शिष्य को दिया जाता है और उस विद्या में पारंगत करने की प्रक्रिया गुरु दीक्षा तथा पारंगत होने के बाद गुरु को यथेष्ट दान गुरु दक्षिणा कहलाती है? सिद्धि की प्राप्ति के लिये गुरु दीक्षा को सदैव अनिवार्य कर्म माना गया है? गुरु दीक्षा सदा सद्गुरु अर्थात उत्तम गुरु से लेनी चाहिये अन्यथा अयोग्य गुरु शिष्य में अपने समस्त अवगुण आरोपित कर कुपात्र शिष्य में परिवर्तित कर देते हैं?

गुरु व्यक्त और अव्यक्त रूप से समग्र विश्व में व्याप्त हैं जो असहज को सहज बना देते हैं।

अर्जुन, कर्ण, एकलव्य, आरुणी जैसे शिष्यों ने गुरु मन्त्रों का स्मरण कर अन्तर्दृष्टि से अंतर्मन को जागृत कर स्पर्श द्वारा कुण्डलिनी शक्ति को जागृत कर अभीष्ट लक्ष्य को प्राप्त किया।

विद्यार्थी आज विश्व में खनिज की भांति प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं किन्तु अनन्य भक्त सूरदास की भांति परम शिष्य अर्जुन या कर्ण द्वापर युग को जीवंत कर जाते हैं।

सद्गुरु सदा ज्ञान रक्षा, दुःख क्षय, सुख आविर्भाव, संमृद्धि और सर्व संवर्धन का आशीर्वाद देते हैं। सद्गुरु से ही कष्ट क्षीण होता है और मन प्रफुल्लित रहता है योग्यतायें स्वतः विकसित होती चली जाती हैं।

जिससे उचित मार्गदर्शन, अन्तर्दृष्टि, प्रवीणता, काव्य प्रेम, आत्मज्ञान, वेद पुराण, आध्यात्मज्ञान, ज्योतिष ज्ञान, ज्ञान विज्ञान, और अध्ययन अध्यापन के प्रति जिज्ञासा जागृत हो और धर्म का भाव प्राप्त हो वही जनक की श्रेणी में आता है?

अध्यापन काल में रेखागणित का प्रश्न ....
समकोण त्रिभुज को नामांकित चित्र सहित समझाओ?

जिसमे भुजा अब की माप ४ से मी, भुजा बस ५ से मी और भुजा सद ५ से मी हो
*सर्वप्रथम रचना लिखवाई गई
सभी भुजाओं के माप, फिर रफ में बनवाया गया चित्र, आधार सहित सभी भुजाओं के माप का अंकन लिखा गया, कोंणों के माप को अंकित किया गया, भुजा को रेखाखण्ड की भांति दर्शाया, समकोण को अंकित किया गया, कोणों के माप का योग १८०अंश दर्शाया गया, अंत में लिखवाया इस प्रकार समकोण त्रिभुज अ ब स प्राप्त हुआ।
गुरु जी ने कहा अब तुम्हे कम से कम १० में ८ अंक मिल सकते हैं।

*कक्षा पहिली में कमल का क लिखना सिखलाया गया

एक छोटी सी आड़ी लकीर खीचो जी
उस आडी लकीर के बीच से उतनी ही बड़ी नीचे की ओर खड़ी लकीर खीचो जी
अब खड़ी लकीर के बीच में बायीं तरफ एक गोला बना डालो जी
अब खड़ी लकीर के बीच में दाहिनी तरफ भी एक गोला बना डालो जी लेकिन नीचे मत मिलाना ऐसे
प्रत्येक गतिविधी को गुरु स्वयं करके बतलाये और इस बीच हमारे मध्य घुमकर हाथ पड़कर दिशा निर्देश भी देते रहे समझाया भी, धमकाया अलग, और ठोंक ठठाकर दुरुस्त भी किया।

***तब गुरु शुभ ग्रहों से युक्त धार्मिक, सूर्य सा प्रचण्ड, नीति निपुण, निष्ठावान, शोधी, तीक्ष्ण ज्ञानदाता थे तब शिष्य विलक्षण हुए।

***आज माँ / बाप / पालक को फुर्सत नहीं और कम समय में अभीष्ट लक्ष्य की चाह
दबाओ कम्प्युटर का की बोर्ड और लिख डालो कमल नहीं कल्लू का क******

06जुलाई 2010
मो सम कौन कुटिल खल ......? ब्लॉग के सर्जक
श्री संजय अनेजा जी को समर्पित

चित्र गूगल से साभार

Saturday, 13 April 2013

विक्रम वेताल १२

** जाने क्या ढूढ़ती रहती हैं ये आँखें मुझमे राख के इस ढेर में शोला है न चिंगारी है **


गतांक से आगे

अब तक आपने पढ़ा ...वेताल को गुड़ाखू की तलब फिर जागृत हो गई और वह कुएं की जगत पर गुड़ाखू घिसने बैठ गया........................

अब आगे

विक्रमार्क लघुशंका निवृति के बहाने थोड़ी दूर जाकर भूतकाल में जाने का सद्य: प्राप्त मन्त्र पढ़ने लगा।
तत्क्षण सब कुछ आँखों के सामने चलचित्र सा स्पष्ट हो गया। प्रसन्नता पूर्वक वह वेताल के पास जा  पहुंचा और उसे कंधे पर लाद रेलवे के अनमैन्ड खोंड फाटक की ऒर चलना आरम्भ किया

राजन ने कहा हे वेताल
अब जो मैं कहता हूँ ध्यान पूर्वक सुनो
इस जीव की पिछली पीढ़ी भारतीय रेल की सेवा करते देश के विभिन्न भू-भागों से गुजरी, वहां के निवासियों के गहन संपर्क में आई और इस जातक के जन्म में यथा शक्ति सभी भू -भागों के निवासियों ने अपना योगदान दिया। उसी के परिणामस्वरूप भारत की अनेकता में एकता जैसे शारीरिक लक्षणों से युक्त इस जीव का जन्म हुआ। कालान्तर में व्यक्तित्व विकास के अलग-अलग चरणों से गुजरते हुए रोजी रोजगार चलाने की प्रक्रिया में अचानक उसने पाया कि अंततः वह रचनाकार उर्फ़ पत्रकार जैसा कुछ बन गया।

तत्पश्चात यह जीव अलग-अलग पाला, खूंटा, मालिक, विचार ,निष्ठा बदलते हुए एक दिन सड़क पर छोटी सी भीड़ के पीछे जा लगा और संस्कृत कथा में पांडित्य प्राप्त अभिमानी चार ब्राह्मण युवकों सदृश्य " महाजनो येन गत: स पन्थाः" का अनुसरण करते हुए अपने को जीवन के अंतिम पड़ाव, श्मशान के वीराने में भ्रमित, चकित और अनाथ सा महसूस करते हुए खड़ा पाया। कुछ समय चहुँऒर देखने पर उसकी नज़र श्मशान में दूर खड़े कालिया नामक गर्दभ पर पड़ी, जिसे देखकर उसे उपरोक्त वर्णित ब्राह्मण युवकों की तरह एक दुसरे श्लोक-- निर्जन और वीराने में मिलने वाला जीव अपने बंधू के समान होता है का स्मरण हो आया, तत्काल ही उसके ह्रदय में किसी दैवीय प्रेरणा से बंधुत्व भाव जागृत हो गया। इस चौपाये के समीप पहुँच अपना परिचय देकर भातृभाव से पूछा-- हे रजक सहायक बन्धु श्रेष्ठ कृपाकर अपना परिचय सहित मार्गदर्शन दें।
हे वेताल,वैशाखनंदन ने अपना सक्षिप्त परिचय देते हुए जो कहा वह कथा इस प्रकार है---

यह कालिया गर्दभ अपने पुराने काम और मालिक को छोड़कर पलायित हो  " द ग्रेट  इन्डियन गंगा जमुना सर्कस" के विशाल पंडाल के समीप पहुँच अपना राग छेड़ने लगा। सर्कस मालिक के युवा बेटे को उसका यह राग नए किस्म के रिमिक्स की तरह जान पड़ा और उसने इस सड़कछाप जीव को अपने सर्कस में पनाह दे दी। सर्कस जब एक शहर से दुसरे शहर जाता तब कालिया बोझ ढ़ोता और सर्कस में दो करतबों के बीच फिलर के रूप में आकर दर्शकों को * गर्दभ रिमिक्स * सुनाकर उनका मनोरंजन करता। समय के साथ सर्कस के पुराने मालिक का इंतकाल हो गया और सर्कस को जगह -जगह ले जाने में बढ़ते खर्च के मद्देनजर मालिक के युवा पोते ने सर्कस को चिड़ियाघर में तब्दील कर स्थाई रूप से देश की राजधानी दिल्ली में स्थापित कर दिया।

गुजरते समय के साथ कालिया को चिड़ियाघर का मैनेजर बना दिया गया किन्तु कालिए को वहां की तमाम सुविधाओं के बीच अपने शहर की याद सताती तो वह कुछ दिनों की छुट्टी लेकर यमुना और गंगा के तट पर बसे अपने पुराने शहर में बिताता और पुराने मित्रों से मिलता। उन दिनों को याद करते धोबी घाट पर जाता और तात्कालिक समय की यौवन से पूर्ण की गदहियों की चुहलबाजियों की मीठी यादों में खो जाता, विशेष कर रानी नामक गधी की जो प्रचुर यौवन से भरी और सर्वाधिक ज्ञानवान थी जिस पर कालिया जी जान से फ़िदा था पर वह घास नहीं डालती थी किन्तु प्रियदर्शन नामक एक अन्य गर्दभ को अपना दिल दे बैठी थी और उसे "गर्दभ कुल कमल दिवाकर" मानती थी, का स्मरण होता तो वह श्मसान रोदन को विवश हो जाता।

कभी कभी वह हरिश्चद्र घाट की ऒर निकल  जाता और गला खोलकर अपने जन्मजात राग में रेंकने लगता ऐसे ही एक प्रवास पर सोनपुर के इस विचित्र जीव को उसने देखा, जिसका जिक्र मैंने ऊपर किया है, इस मानवीय लक्षणों के काकटेल सदृश्य दुर्लभ जीव को पाकर कालिये के ह्रदय में भी वैसा ही बंधुत्व भाव जगा जैसा सोनपुर के इस विचित्र जीव में जागृत हुआ था

इस सोनपुरिया जीव का परिचय जानने उपरांत कालिए के मन में यह विलक्षण विचार कौंधा कि यदि वह इस विचित्र जीव के साथ अपना राग मिलाकर रीमिक्स रिकार्ड करवाये तो यह नूतन प्रयोग निश्चय ही बिकाऊ होगा, भले टिकाऊ न हो।परन्तु यह गान इस जीव का अंतिम गान बना .चिड़ियाघर के मालिक ने इस जीव के साथ अपने पुराने कर्मचारी कालिए को भी बाहर का रास्ता दिखाया। कालिये के साथ उसकी यह जुगलबंदी टिकाऊ साबित सिद्ध नहीं हुई। अलग -अलग मीडिया ठिकानों से यह जीव मालिकों के साथ विश्वासघात के दंड स्वरुप  नेपथ्य पर ** तात लात मोहिं मालिक मारा ** जैसे पाद प्रहार से प्रताड़ित हो हंकाला जाकर सोनपुरा के निकट नव निर्मित प्रदेश छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में आकर  मौत की पदचाप सुनते,वनों में चरने वाले पृथ्वी पर भार, हिरणों के स्वरुप अपने निरर्थक, दोगलेपन से भरे उपेक्षित जीवन का दंश झेलते अपना अंतिम समय बिताने लगा

अक्सर जब लोग इवनिंग वाक करते उसके घर के पास से गुजरते तो उन्हें ६0के दशक के पुराने गीत की पंक्तियाँ ** जाने क्या ढूढ़ती रहती हैं ये आँखें मुझमे राख के इस ढेर में शोला है न चिंगारी है **सुनाई पड़तीं
इस विचित्र जीव के जन्म रहस्य का इस प्रकार वर्णन कर राजन ने अपना उत्तर समाप्त किया ।


राजन का उत्तर समाप्त होते -होते वे रेलवे के मानवरहित खोंड फाटक तक आ पहुंचे।
अचानक खट्ट की आवाज़ हुई राजन ने झुक कर देखा तो गुड़ाखू की डिब्बी ज़मीन पर गिरी पड़ी थी।

वेताल ने कहा हे विक्रमार्क


मेरी सीमा यहीं समाप्त होती है। आगे दुसरे वेताल का क्षेत्र है और हम मानवों सदृश्य एक -दुसरे की सीमा का अतिक्रमण नहीं करते,गुड़ाखू और मानिकचंद के पाउच के लिए धन्यवाद,
***यू आर रियली जीनियस *** 
कहकर सोनपुरा की रात के अंतिम पहर की निस्तबधता को अट्टहास से तोड़ता हुआ जूठही रेल्वे लेवल क्रासिंग के पास के बूढ़े पीपल की सबसे ऊंची डाल पर जाकर लटक गया

इति कथा।

Thursday, 11 April 2013

गुरुकुल/ गुरु २

मेरी मानस पुत्री श्री मति आभा सिंह ने कहा सर रिचार्ज शिक्षक क्यों नहीं हो सकते?


कहाँ गये वो लोग? बड़ा दर्द होता है उन्हें खोकर उनकी कमी का एहसास क्या कहें? कोई पूरी कर सकता है उनका रिक्त स्थान? कैसे गुरु द्रोण या परशुराम की निष्ठा, कर्तव्य परायणता, समर्पण, सेवा पर हम प्रश्न चिन्ह लगायें यही आस्था गुरु शिष्य परम्परा के मील का पत्थर बन युगों से हमारा मार्गदर्शन कर रहा है और हम आज भी उन्हें प्रातः स्मरण कर अपना जीवन धन्य मानते हैं।

*एक फकीर ने मुझसे कोरबा विद्यालय जाते वक़्त ट्रेन में पूछा बाबू क्या करते हो? मैंने कहा बच्चों को पढाता हूँ। गुरूजी हो। ज़रा बतलाओ गुरु कैसा होना चाहिये? तपाक से उत्तर दे दिया दीये की भांति। फकीर ने कहा लेकिन वह तो अपने नीचे अन्धकार रखता है किसी को पूर्ण ज्ञान दे पायेगा या तुम्हारे अनुसार पूर्ण प्रकाशित कर पायेगा? उचित गुरु हो सकता है? विचार करना

**एक बार फकीर ने फिर मुझसे कहा चलो बतलाओ गुरु और कैसा होना चाहिये इस बार विचार कर कहा चन्दन की तरह। क्यों बाबू? मैंने कहा चन्दन की लकड़ी के साथ किसी भी अन्य लकड़ी को रख दें वह भी चन्दन की भांति सुवासित हो जाता है। फकीर ने झट एक दूसरा प्रश्न दाग दिया गुरु जी आपने कभी विचार किया चन्दन की खुश्बू कौन फैलाता है? हवा। फिर खुश्बू बिखराने वाला माने शिष्य हवा की तरह चंचल और तरल, पारदर्शी होगा कितना कठिन होगा ऐसा शिष्य खोजना और शिक्षित कर पाना। ज़रा विचार करो कर्ण और एकलव्य को शिक्षा किस प्रकार प्राप्त हुई और कर्ण क्यों श्राप ग्रस्त हो गया?

***इस बार फकीर ने मेरे माथे पर पड़ते बल को देखकर कहा चलो एक और इन्ही सामान उच्च गुरु की तलाश करें? कुछ सोचकर कह दिया पारस पत्थर की तरह जो लोहे को सोना बना दे। वाह क्या गुरु सुझाया, किन्तु  यहाँ भी विडम्बना देखो जिसमे परिवर्तन करना है वह दृढ, ठोस, पहले से ही निश्चित आकार , आयतन आदि गुणधर्म युक्त शिष्य और गुरु अपने ही समुदाय [ पत्थर ] के लिये अनुपयोगी।

*फकीर ने कहा गुरु श्रेष्ठ कौन?
*किस गुरु से शिक्षा लें?
*अवगुण युक्त गुरु ज्ञान के लिए उत्तम?
*गुरु के गुण या अवगुण शिष्य में आरोपित नहीं होंगे?
*ऐसी स्थिति में गुरु कैसा होना चाहिए?

मैं हतप्रभ रह गया।
फकीर ने कुछ रुककर कहा
तुमने कभी कौवा को हमारी भांति बुढा होकर या बीमार होकर मरते देखा है?
नहीं न। तब ये कहां जाते हैं? कहाँ मरते होंगे या नया यौवन कैसे मिलता होगा?
मेरे गुरु से सुने मिथक का तुम भी आनंद लो
कौवा कहाँ जाते है? ये किष्किन्धा पर्वत से टकराकर पुनः नव जीवन प्राप्त कर लौट आते है।

फकीर ने तड़ से फिर पुछ लिया तुमने कभी भौंरा का छोटा बच्चा देखा है?
मेरे गृह ग्राम मुलमुला में घर से लगा लगभग ४५ एकड़ का तालाब बंधवा कमल से सुशोभित है
स्वाभाविक है भौंरों का गुनगुनाना किन्तु आज तक नहीं देख पाया नन्हा भौंरा।
सुनो भौंरा किसी भी कीड़े को पकड़कर अपने घरौंधे में ले जाता है और उसके कान में गुनगुनाता है और उसकी गुनगुनाहट से वह कीड़ा भौंरा में परिवर्तित हो जाता है, घरौंधे से कीड़ा नहीं भौंरा निकलता है।

मैं सोचता हूँ शिष्य किसी भी जाति, धर्म, समुदाय, वर्ग, लिंग, रंग,और वर्ण का हो गुरु ऐसा श्रेष्ठ हो जो  बिन भेदभाव ज्ञान देकर अपनी भांति ज्ञानवान बना दे जो विश्व बंधुत्व को पोषित और पल्लवित करे।

कहानी सुनाकर फकीर आगे बढ़ गया उसे प्रणाम कर मैं आपसे साझा कर बैठा।   
                           
११अप्रेल २०१३
समर्पित मेरी मानस पुत्री श्री मति आभा सिंह को
चित्र गूगल से साभार   

Monday, 8 April 2013

गुरुकुल / गुरु


WE MUST FIND PLACE TO GROW AND BRANCH OUT 


गुरुकुल जहाँ बालक के शारीरिक, मानसिक, चारित्रिक विकास के साथ साथ आध्यात्मिक और नैतिक विकास के चतुर्दिक द्वार खुलते हैं। त्रेता में श्री राम सहित अनुज भरत, लक्ष्मण, सत्रुहन और द्वापर में कृष्ण और बलराम ने गुरु शिष्य परम्परा को आज तक जीवित रखा है। आदरणीय गुरु श्रेष्ठ वशिष्ठ, विश्वामित्र, परशुराम जी, बलराम जी, और अर्जुन, कर्ण, एकलव्य, युधिष्ठिर, भीम, दुर्योधन सहित सभी शिष्यों को मेरा प्रणाम स्वीकार हो।

आज एक बटन दबाओ कोई भी वर्ण लिख जाता है न समझने का झंझट न समझाने की परेशानी और कुछ आगे बढ़ने पर एक बटन दबाइए बहुत कुछ एक साथ छप जायेगा। तकनीक का विकास और ज्ञान का सत्यानाश एक साथ समान्तर क्रम में चलने लगा। मूलभूत बातें या कहूँ प्राथमिक मौलिक बातें अदृश्य होती जा रही हैं और तकनीक के फेर में हम भी इन बारीकियों को बिसराते चले जारहे हैं।

चलिए याद करके बताइए
*आपने बारह खड़ी अपने बच्चे को कब सिखलाया था?
*वर्णमाला के ५२ वर्ण कौन कौन से हैं?
*एक पाव पाव दो पाव अद्धा पहाड़ा जानते हैं?
*दादा जी के छाती पर सोकर सुनी अंतिम कहानी कौन सी है?
*रात खुली छत पर तारे कब गिने?
*अपने बच्चों को कभी एरावत हाथी की राह milky way बतलाया?
*हमने सिखलाया बच्चों को नदी की विपरीत धारा में तैरना?
*खुले मैदान के सूक्ष्म पौधों को पहचानना?
*हवा में उड़ते पखेरुओं के गान का स्वर भिन्नन?
*शेर से ज्यादा खतरनाक हम कब और कैसे?
*मनुष्य से ज्यादा मर्यादा पालन मूक जीवों में?

हमने आज बच्चों को विकसित कर दिया तकनीक में और हमें फ़ुर्सत मिली कि देख लें उन्होने इस सुविधा का कितना लाभ लिया या आप भी डूब गये उसमे दिशाहीन, लक्ष्य को भुलाकर।
मैं सोचता हूँ कि मैंने वक़्त को मुट्ठी में बाँध लिया है। जिस दिन चाहूँगा समेट लूँगा जहां अपनी आगोश में
लगभग ९० प्रतिशत लोग मेरी भांति सोचते है आपकी क्या राय है?
आपको पता है मेरी ढुलमुल राय?

क्रमशः
चित्र गूगल से साभार
08.04.2013

Wednesday, 3 April 2013

दीवानगी


राजा विक्रम अज्ञात वास में शायद परियों के देश में 

१*
पहले मेरे प्यार और नेमत के काबिल बन जा
फिर उठा हाथ सज़दे में या कुछ माँगने खातिर
२ **
मेरा इश्क मेरी दीवानगी मयखाने में नज़र आती है
कभी झाँका है उन आँखों को जिनमे डूबा उभरा फिर
३ ***
तुमने रुख से ज़रा नकाब ए हया क्या खींचा
लोग चिल्ला उठे तौबा ये क़यामत है या बला
४ ****
माना कि ज़िन्दगी हसीं है जानां
यूं जीना तेरे बगैर मुमकिन होगा?
५ *****
ये कैसी दीवानगी तेरी यूं दीवानापन
आये क्यूँ हर शै में तेरा अक्श नज़र
६ ******
कैसी दीवानगी तुम पर कैसा दीवानापन
के तेरे यादों में हरेक शै को भुल जाता हूँ
७ *******
कर बंद मुट्ठी ले समेट सारा जहां इसमें
हद फांदकर तू लगा जहां भी खुद बसेरा
८ ********
अभी रात है मैं मानता हूँ जानती है तू
सुबह होती ही है हौसला रख सूरज पर

९ *********
चुनी खुद राह अपनी फिर नज़रें नीची क्यूँ हैं?
शर्मिन्दगी फैसले पर या जहां को जान लिया?


चित्र गूगल से साभार
समर्पित मेरी  * जिंदगी * को
हर लम्हा जो मेरी सांसों में   

Monday, 1 April 2013

विक्रम वेताल ११




सुधि ब्लॉग के सृजन कर्ता से विनम्र आग्रह  कि परती परीकथा, गोदान, उसने कहा था, मृत्युंजय, रामायण, रामचरितमानस, महाभारत,जैसे किसी भी ग्रन्थ का मान और मूल्य मानवीय धरातल पर सदा सर्वकालिक, सर्वमान्य, सर्वग्राह्य है चाहे हम उसे कथा कहें या उसे पौराणिक काल्पनिक कथा मानें लेकिन जब कभी सड़ांध फैलाती कोई घटिया काल्पनिक साहित्य *फ्रंट लाइन* का सर्जन होगा विक्रम वेताल को कंधे पर लाद निकल पड़ेगा यात्रा में ............भले ही कुछ लोग जान पायेंगे पात्र, परिस्थिति, देश, और काल


विक्रमार्क ने हठ न छोडा और लटिया के जुठही फाटक के पास के बूढ़े पीपल से वेताल के शव को उतार, सोनपुरा की ऒर रेल पांतों के साथ-साथ चलने लगा। चलते-चलते वे सोनपुरा  के पश्चिमी रेल केबिन तक आ पहुंचे ,पर ख़ामोशी छाई रही.

रेल पांत के किनारे पानी से भरे जोहड़ देख वेताल ने चुप्पी तोड़ी और कहा -जरा सुस्ती सी हो रही है, हाथ भट्टी की कच्ची का हैंगओवर तनिक ज्यादा देर तक रह जाता है कभी - कभी। फिर ठंडी आह भर कर बोले हमारे ज़माने में कितने ही किस्म और ब्रांड के गुड़ाखू मिलते थे। मंदिर,हाथी ,बन्दर,तोता और गाय छाप . दो -तीन तो " मेड इन सोनपुरा " ही थे।,

खैर गुजरे ज़माने की बातें हैं। जरा देखना तुम्हारी जेब में कोई खैनी पाउच पड़ा हो, अरे तुम तो मानिकचंद ही खाते होगे, राजन ने एक पाउच फाड़ वेताल को ससम्मान पेश किया और कहा-नोश फरमाइए,वेताल झिड़कता सा बोला तुम्हारी जात बदल रही है, सोनपुरा के एक युवक की तरह,कायदे से तुम्हे कहना चाहिए- आरोगिये।

चलो आज मैं तुम्हे सोनपुरा  की कहानी सुनाता हूँ।
मैं संजय की सी दृष्टि क्षमता,जो भूत दिखाती है,थोड़ी देर के लिए तुम्हें देता हूँ ,कहकर रहस्यमयी आवाज में दुहराने लगा वर्तमान की दीवारें हट जाओ,बाधाएँ दूर हो जाओ और चार दशक पीछे जाओ। फिर एक मन्त्र सा पढ़ते हुए कहा-राजन आँखें बंद करो, हाथ फैलाकर कहो-ॐ फट,गुड़ाखू की डिब्बी ला फटाफट। राजन ने जब मन्त्र दुहरा कर आंखे खोली तो मेड इन सोनपुरा गुड़ाखू की एक डिब्बी हाथ पर थी,

राजन आश्चर्यचकित हो गदगद स्वर में बोले-गुरु जब आप अभी भी भूत काल में जाने और उस गुजरे कल के किसी प्रोडक्ट को पैदा करने की ताकत रखते है, तब जोहड़ में पानी देख ठंढी आहें क्यों भर रहे थे।
वेताल ने कहा,हे राजन वेताल किसी चीज़ की इच्छा कर तो सकते है पर जीवित मानव के सहयोग बिना उसे नहीं प्राप्त कर सकते,न ही वापर सकते, टेशन कुए की जगत पर चैन से गुड़ाखू घिसने पश्चात् बोले
" नाऊ आई एम फीलिग़ फ्रेश"

विक्रम उन्हें पुन :कंधे पर लादकर पलेटिअर बंगले की दिशा में बढ़ चला। वेताल ने रेलवे क्वाटर्स की दिशा में इशारा करते हुए कहा-उस अजीब से जीव को देखो,पैर के पंजे आदिमानव से छितराए,पतली टांगों पर टंगी बनिए सी झूलती तोंद,कृष्ण के राज्य द्वारिका के निवासियों सदृश्य गोल मटोल चेहरा, द्रविड़ देश के लोगों जैसे बाल और मछली सी गंध लिए उत्पन्न मनुष्य तन को मैं तुम्हारे ज्ञान,अंतरदृष्टि और सूझ की परीक्षा लेने पूछता हूँ,क्या जान सकते हो इस मानव काकटेल कृति का जन्म रहस्य।

विक्रमार्क सोच में पड़ गया,कई ख्याल आ रहे थे पर स्पष्ट और निश्चयपूर्वक कहने हेतु किन्तु कुछ भी तय नहीं हो पा रहा था। अब तक वे अकलतरा स्थित रा. कु. उ. मा. शाला के कुएं तक आ पहुंचे थे वेताल को गुड़ाखू की तलब फिर जागृत हो गई और वह कुएं की जगत पर गुड़ाखू घिसने बैठ गया

अगले अंक में समापन

चित्र गूगल से साभार
01. अप्रेल २०१३