गुरुकुल ५

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Wednesday, 27 March 2013

विक्रम वेताल १०/ नमकहराम

नज़रें मिला लोगों से, तेरी जात और औकात का पता
ये तेरे पैरों के निशां, खुद ब खुद बोल जायेंगे बिन पूछे 


आज होली पर
राजा विक्रम
जैसे ही दातुन मुखारी के लिए निकला
वेताल खुद लटिया के जुठही तालाब के
पीपल पेड़ से उतर कंधे पर लद गया
दोनों निकल पड़े नगर के रेल्वे फाटक की ओर
रास्ते में एक क़स्बा मिला

सोनपुरा

राह में एक जीव देखकर
वेताल जिज्ञासा से भर उठा
सांवला थुलथुल शरीर, खिचड़ी बाल
साउथ इंडियन लुक किन्तु बंगाली मिक्स

वेताल ने राजन से कहा
राजन

मै हमेशा एक कहानी सुनाता हूँ
और आप मौन रहकर मेरा माखौल उड़ाते हो
किन्तु आज ऐसा नहीं करने दूंगा
आज की कहानी
किसी नमकहराम जीव से सुनें
किन्तु प्रश्न मैं ही पूछूँगा

आज सही उत्तर चाहिए
विधान सभा में प्रजाहित में
आज आपके
ज्ञान और सत्य की परीक्षा है

जो स्वीकार करता है
अपना गलिजपना
और एहसान फरामोशी
बिसरा दिया जिसने मिट्टी का क़र्ज़
और मृत्यु के बाद
करता है मिथ्या आरोप प्रत्यारोप
इस दोगले जीव को
किस जाति से पुकारें?

राजन
मुझे भारतीय होने पर गर्व है
तुम्हे उज्जैनीय होने पर गर्व है
तो इसे
अकलतरा निवासी होने पर गर्व क्यों नहीं?
क्या इसने या इसके पूर्वजों ने वहां भीख मांगी थी?

जिस मिट्टी में पला बढ़ा
जहाँ शिक्षा पाई
अन्न खाया गरीबी में भी
क्या संलिप्त रहा किसी दुष्कर्म में?

विस्मृत कर दिया
जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि .....?
या लोग पहचान लेंगे इस भिखारी को?
चलो कर दें अकलतरा को सोनपुरा?

मुझे कभी भी आपने पेड़ से उतार कर
जमीं पर पटका नहीं
बार बार कंधे पर लाद निकल पड़ते हो
नई कथा की तलाश में

राजन
ज़रा गौर करो इसके महान चरित्र पर
जिसे सोलह जगह से लात मारकर भगाया गया
राजधानी दिल्ली से भी सत्ताच्युत किया गया
सब कुछ सीखा अपनी भाभी से?
रिश्तों को ताक़ पर रखकर

और अब सिखाता है दुनिया को सदाचार का पाठ
अंपने ही भाई से विश्वासघात करके

नंगा नहाये निचोड़े किसको पहने किसको?

ज़रा पूछो इस टुच्चे से
थप्पड़ खाकर कहानी लिख लोगे?
छिछोरेपन से पेट कब तक भरोगे?
रहोगे सूअर के सूअर?

संस्कारों में जो मिला?
वही न दृष्टिगोचर होगा

विक्रम उद्विग्न हो उठे
गन्दी सुकर कथा सुनकर
जैसे ही म्यान से तलवार खीची
और कहा
किस नमकहराम की कथा सुना रहे हो?

राजा विक्रम का मौन भंग हुआ
वेताल खी खी करते हुए नंगे पैर भाग निकला
जुठही तालाब के बट वृक्ष की ओर
और जाकर खुद लटक गया

राजन
बुरा न मानो होली है?

चित्र गूगल से साभार

अकलतरा की माटी, विद्यालय, गुरुजनों,और निवासियों को समर्पित
जिनके प्रेम और मार्गदर्शन से मेरे गुण और अवगुण का विकास हुआ।

Saturday, 23 March 2013

आसक्ति infatuation

ज़िन्दगी बता मेरी खता क्या है?
क्या मेरा तुझे टूटकर चाहना? 


*आसक्ति

ब्रज और मथुरा में
होली पर रंग गुलाल खेलते गोप गोपियाँ कहने लगे
यशोदानंदन मेरा है
किसी ने कहा बाँकेबिहारी
बस मेरा ही है तुम कहो?
मच गई धूम
सबने अपने रंगों में रंग दिया घनश्याम को बिन जाने कहके

*राधा* ने कहा
मैं नहीं जानती कृष्ण किसका है?
मैं तो बस इतना जानती हूँ कि
मैं जन्म जन्मों से कृष्ण की हूँ

** प्रेम

तेरी कुड़माई हो गई है?
देखता नहीं
ये रेशमी जड़ा हुआ शालू
इस बार
**उसने कहा था**
न शरमाई
न कहा धत
लहना सिंह लौटा गया था
लस्सी की दुकान से

अमर प्रेम कथा
चंद्रधर शर्मा गुलेरी की
शायद प्रेम में उत्सर्ग
वजीरा ज़रा पानी पिला
प्रेम में न्यौछावर होना लिखा था

***प्यार

मैं प्यार करता तुम्हे
अपनी ज़िन्दगी से ज्यादा

तुम मुझसे प्यार करती हो?

ऐ क्या बोलती तू?
आती क्या खंडाला?
ऐ क्या मैं बोलूं?
क्या करूँ आके मैं खंडाला?

समर्पण?
निष्ठा?
त्याग?
तपस्या?
शायद
प्रतिदान और प्रतिदान

२२ .०३ . २०१३
समर्पित मेरी * जिंदगी * को
जिसके बिना ज़िन्दगी अधूरी है

चन्दन ज्वेलर्स अकलतरा के कर्ता धर्ता
श्री मदन मामा जी की सुनाई कथा का लेखन

चित्र गूगल से साभार

Wednesday, 20 March 2013

यकीन २



मैं यकीन करती हूँ

ईश्वर पर
और उसके बनाये
दो कृतियों पर
नर और मादा

मादा और नर
परमात्मा ने बनाये
हमने अपनी खातिर गढ़े हैं
रिश्ते

रिश्ते
भगवान ने बनाये हैं?
हमने स्वीकार किये?
कुछ मन से
कुछ अनमने?

माँ ने कहा पिता है

हमने स्वीकार लिया भाई बहन
समाज ने लगवा दिए फेरे
बंध गये जन्म जन्मान्तर के बंधन में
मान लिया स्वामी जन्म जन्मों का?

मैंने बतलाया तो
तुम
मेरे पुत्र के पिता
मेरी बेटी के जन्मदाता
बायोलोजिकल
अन्यथा

क्या तो तुम?
क्या तुम्हारी हैसियत?

एक कथन से
बिखर जाते हैं रिश्ते?
टूट जाता है भ्रम
जननी जनक का?

मैं रिश्तों को जीती हूँ
मैं रिश्तों में जीती हूँ

तुम रिसतों को जीते हो
तुम रिसतों में जीते हो

चित्र गूगल से साभार

मौलिकता बनाम परिवर्तन की अंतिम कड़ी
समर्पित मेरी * ज़िन्दगी * को
ज़िन्दगी की जुबानी ज़िन्दगी की कहानी
अल्फाज़ उसके लेखनी मेरी

Friday, 15 March 2013

राम मर्यादा पुरुषोत्तम

मेरे राम 

*
राम मर्यादा पुरुषोत्तम
राघवेन्द्र सरकार, दशरथ नंदन,
और जनक नंदनी सीता के
ए जी
करुणानिधान श्री रामचंद्र जी

राम दूत मैं मातु जानकी। सत्य सपथ करुनानिधान की।।
यह मुद्रिका मातु मैं आनी। दीन्हि राम तुम्ह कहँ सहिदानी।।

जनकदुलारी का पति को संबोधन * करुनानिधान *जिसे *कोड* करके
पवन पुत्र ने मुद्रिका दी। [सुन्दरकाण्ड]
**
लाग न उर उपदेस जदपि कहेउ सिव बार बहु।
बोले बिहसि महेसु हरिमाया बलु जानि जिय।।

जौं तुम्हरे मन अति संदेहू। तौ किन जाइ परीछा लेहु।।
तब लगि बैठ अहऊँ बटछाहीं। जब लगि तुम्ह ऐहहु मोहि पाही
होइहि सोई जो राम रचि राखा। को करि तर्क बढ़ावै साखा।।
अस कहि लगे जपन हरिनामा। गई सती जहँ प्रभु सुखधामा।।

शिव जी कहते है हे पार्वती प्रभु के चरित पर कभी संदेह नहीं होना चाहिये।
यदि है तो जाओ परीक्षा ले लो किन्तु .........परिणाम [ बालकाण्ड ]
***
एक बार ऋषि याज्ञवल्क जी से राजा जनक ने अपने भाग्य पर प्रश्न पर पूछा
ऋषि ने कहा हे राजन अपना भाग्य जानकर क्या करोगे,
जीवन में ज्ञान हेतु जिज्ञासा आवश्यक है
किन्तु किसी की परीक्षा के लिए कदापि नहीं
वैसे भी अपना भाग्य जानकर दुःख होगा।
जब जनक जी द्वारा भाग्य पर ज्यादा बल दिया गया तब ऋषि राज ने कहा
राजन अभी अभी मेरे पैर छूकर रानी सुनयना ने आशीर्वाद लिये
जानते हो पूर्व जन्म में यह तुम्हारे किस रिश्ते में थी?
राजन ये पूर्व जन्म में आपकी माता थीं।
विदेह राज जी तब से जीवन पर्यन्त
रानी सुनयना के प्रति मातृवत व्यवहार में रहे।
****
लछिमन बनहिं जब लेन मूल फल कन्द।
जनकसुता संन बोले बिहसि कृपा सुख बृंद।।

सुनहु प्रिया ब्रत रुचिर सुसीला। मैं कछु करबि ललित नरलीला।
तुम्ह पावक महुं करहु निवासा। जौं लगि करौ निशाचर नासा।।

जबहिं राम सब कहा बखानी।प्रभु पद धरि हियँ अनल समानी।
निज प्रतिबिम्ब राखि तहँ सीता। तैसह सील रूप सुविनीता।।
[ अरण्य काण्ड ]
*****
प्रभु के वचन श्रवन सुनि नहिं अघाहिं कपि पुंज।
बार बार सिर नावहिं गहहिं सकल पद कंज।।

पुनि प्रभु बोलि लियउ हनुमाना। लंका जाहु कहेउ भगवाना।।
समाचार जानकिहि सुनावहु। तासु कुसल ले तुम्ह चलि आवहु।।

सीता प्रथम अनल महुं राखी। प्रगट किन्हि चह अंतर साखी।।

प्रभु के बचन सीस धरि सीता। बोली मन क्रम बचन पुनीता।।
लछिमन होहु धरम के नेगी। पावक प्रगट करहु तुम्ह बेगी।।
पावक प्रबल देखि बैदेही। हृदय हरष नहिं भय कछु तेही।।
जौं मन बच क्रम मम उर माहीं। तजि रघुबीर आन गति नाहीं।।
तौ कृसानू सब कै गति जाना। मो कहुं होउ श्रीखंड समाना।।
[ लंका काण्ड ]

******
श्री रामचंद्र जी अवतरित हुए और उनके चरित का हमने श्रवण,
गायन और दर्शन का लाभ लिया। हम यदि पम्पासरोवर की भांति
निर्मल जल से भर जावें तो हंस और चक्रवाक पक्षी उसमें विचरेंगे
सरोवर के चारों ओर रसीले फलदार वृक्षों के समूह स्वतः उग आयेंगे
ऐसे पवित्र स्थान पर श्री रामचंद्र जी वनवास के समय भी गुजरेंगे ही,
उनसे मिलने नारद जी संग संत समाज आयेंगे, देव गण पुष्प बरसायेंगे
और कौन नहीं कहेगा जीवन धन्य हो गया?

*******अवतार, लीला, चरित और जन्म में शायद कुछ भेद है?********

और शायद यही अंतर हमारे भी जीवन में कहीं कहीं झलक जाता है
जब कभी हम रंगमंच पर अपनी भूमिका में दिखलाई पड़ते हैं
चाहे भोले शिवशंकर हों, विश्वमोहिनी के रूप में विष्णु जी,
या कुरुक्षेत्र में सुदर्शन चक्र धारण कर वचन तोड़ते यशोदानंदन जी


15 मार्च 2013
समर्पित माता श्री कुमारी देवी और
आदरणीया मंझली मामी श्री मति आशा देवी को
जिनकी कृपा और मार्गदर्शन हरि कथा हेतु सदा बनी रही
चित्र गूगल से साभार
[एक विनय लिपि की त्रुटी के लिए क्षमा]

Tuesday, 12 March 2013

मौलिकता बनाम परिवर्तन २


चुनी खुद राह अपनी फिर नज़रें नीची क्यूं हैं?
शर्मिंदगी फैसले पर या जहां को जान लिया?
विवाह क्या है?
धर्म का धारण?

निजता की चाह?
धर्म धारण बार बार?
धर्म वरण वा परिवर्तन?
सजातीय विवाह में धर्म उल्लंघन?

वस्त्र की भांति बदलना न्याय संगत?

शास्त्रीय, लौकिक, व्यक्तिगत वा वैचारिक
परम्परागत, परिपक्व,
चिन्तनशील मेधा बने
निर्णायक और वाहक धर्म ध्वजा का?

एक धर्म का ज्ञान पूर्ण?
पश्चात् दुसरे धर्म का आश्रय ज्ञानार्जन में?
या बदलाव और तृप्ति के लिये?
किसी संकल्प या बहकावे में?

सभी धर्मों से निम्न पाया निज धर्म को?
धर्म निरपेक्ष जननी से पाई अनुमति?
दो अलग धर्मों की आत्मा एक संग?
संग संग विचरण, निर्वहन, निर्विकार भाव से?

चलो माना होगा सब सम्भव
दो विपरीत ध्रुवों का होगा अटूट बंधन?

एक नई सोच
धर्म ध्वज फहराने?
दे दें आहुति जीवन की?
धर्म भीरु बन?
या संभावनाओं पर?
कर दें अर्पण?
समय की मांग है?
बदलते मानदण्ड पर?
नई राह की खोज में?

जियो और जीने दो की चाह में?
नये युग के सूत्र पात्र में?

भुगत लेंगे?
सकारात्मक या नकारात्मक?
स्वेछाचारिता का फल भोगने?
स्वच्छंद उड़ने गगन में
बसाने अंतरिक्ष में नीड़

निज विवेक से?
अहम् की तुष्टि में?
कर लें गठबंधन?
अनमोल जीवन का?

बन जायें बरगद***

१२ मार्च २०१३
क्रमशः *ये रिश्तों की कड़ी है
*ये मेरी सोच का एक और पहलू
*अगली कड़ी में रिश्ते
समर्पित युवा पीढ़ी को जो सजातीय और विजातीय
प्रेम विवाह में विश्वास रखते हैं

चित्र गूगल से साभार

Friday, 8 March 2013

मौलिकता बनाम परिवर्तन 1



बचपन में किसी विद्वान का कहा वाक्य सुना

** सुन्दर सजी किन्तु अश्लील पुस्तक और रूपवती वेश्या **
कभी भी सम्मान के पात्र नहीं बन पाते चाहे लाख जतन करो।

कोई भी देश, प्रदेश, जिला, तहसील, गाँव, और उसमें बसने वाली
जाति, वर्ग, समुदाय, जीव या कोई भी महान जीवित या मृत वस्तु
अपनी मौलिकता के लिये जाना और पहचाना जाता है
जो उसे ईश्वर की अनुपम एक मात्र कृति के रूप में स्थापित करता है।

प्रत्येक जाति की परम्परा, रीति रिवाज, खान पान, रहन सहन,
जीवन दर्शन, मूल्य, आदर्श, नीति, नियम, का नियत स्थान है?
जिसे बदलना संभव ही नहीं है और बदलने का औचित्य श्रेष्ठ?
तर्क के लिये तर्क, रात काली करने के लिये बातें उचित माने?

मूल्यवान से मूल्यवान कोहिनूर हीरा को लें या आक्सीजन
अपने केंद्र में निश्चित इलेक्ट्रान, प्रोटान, और न्युट्रान संग
एक निर्धारित चक्र में, एक नियमबद्ध मौलिक क्रम में स्थित
क्रम, चक्र, उर्जा, स्थान और उसके घटक ही बनाते हैं *हीरा*

आन, बान, शान ही निर्धारित करते हैं जीवन मूल्य?
मूल्यवान वस्तु के साथ मूल्यहीन वस्तु को मिला दें
मूल्यवान वस्तु अपना मूल्य स्वयमेव खो देती है?
माना कि मिला दिये गये तो बंध प्राकृतिक चिर स्थाई?

संश्लेषित कर दिया गया हाइड्रोजन और आक्सीजन?
अब मिलकर दोनों तत्व बन गये जल, स्वाद, रंग, गंधहीन?
विलोपित हो गए गुणधर्म दोनों महान तत्वों के क्षण में?
करो जतन विश्लेषण के जब तुम्हे ज़रूरत तुम्हारी?

माना कि जल ही जीवन है, जल जीवन का आधार है।
बिन पानी सब सून, श्रृष्टि जल मग्न हो गई तब?
जल प्लावन पश्चात् जीव एक कोशीय अमीबा?
करते रहो जीवन पर्यन्त प्रयोग पीढ़ी दर पीढ़ी

अन्वेषण, जीवन लक्षणों की व्याख्या और समीक्षा?

जल प्यास बुझायेगा, संदेह उत्तम विलायक है?
शक्कर, नमक से लेकर जहर तक घोल डालेगा स्वयं में?
लोक कल्याण में कैसी भूमिका सम सामयिक?
अथवा प्रजातांत्रिक अपने ही अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह?

मान लो जल प्रदूषित हो गया जल निर्मल रह पायेगा?
कितनी और कौन कौन सी संक्रामक बिमारियों का
संवहन और संचरण किन स्वस्थ प्रजातियों पर होगा?
तब इस प्रयोग, संश्लेषण, विश्लेषण पर आत्म ग्लानि?

यदि हम ५ रूपया प्रति किलो के टमाटर को छांट सकते हैं?
तो विश्व कल्याण के लिए अनुभूत जीवन दर्शन क्यों नहीं?

जिस समाज, माता, पिता, सगे संबंधियों, हितचिंतकों की
छाया में पले, बढ़े, आश्रय पाया कर दें अनसुनी अपनों की?

हम क्या कर रहे हैं ज़रा दिल पर रखें हाथ करें विचार?

क्रमशः
*ये रिश्तों की कड़ी है
*मेरी सोच का एक पहलू
*अगली कड़ी में रिश्ते
*फिर एक नई सोच
समर्पित युवा पीढ़ी को जो सजातीय और विजातीय
प्रेम विवाह में विश्वास रखते हैं
चित्र गूगल से साभार         

Sunday, 3 March 2013

तेरी यादें


१ *
सींचकर अश्क-खूं तेरा प्यार दिल में पाला है
तेरी मर्ज़ी है पनपने दे या तोड़ दे मेरी खातिर

२ **
तेरी यादें तेरा एहसास कैसे मखमली हैं?
मैंने जाना ये कसकती हैं प्यार के बाद

३***
हवा का रुख बदल जाये ऐसी तासीर अपना लो
के उस तकदीर को पढ़कर खुदा भी मुस्कुरा बैठे

४ ****
मेरी सांसे ये धड़कन मेरा वजूद है फ़क़त तेरी खातिर
तू मुड़कर देख ये आंखें तेरे कदमों के निशां ढूढ़ती हैं

५ *****
सांस रुकती नहीं ये दर्द थमता क्यूं नहीं
यादों ही यादों में बस रात कटती जाती है

०३  मार्च २०१३
समर्पित मेरी * ज़िन्दगी * को
चित्र गूगल से साभार