गुरुकुल ५

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Tuesday, 26 February 2013

मेरा विद्यालय और राष्ट्रिय पर्व

ये मेरा सौभाग्य है कि बच्चों के जीवन को प्राथमिक स्तर पर संवारने का दायित्व मुझे दिया गया।कोई भी विद्यालय या शिक्षक कभी भी अच्छा या बुरा नहीं होता उसमें अध्ययन करनेवाले छात्र उसकी गरिमा को स्थापित करते है। राष्ट्रिय पर्व मनाकर हम अपनी अस्मिता की रक्षा करते हैं। एक प्रयास राष्ट्र को समर्पित १५ अगस्त २०१२ और २६जनवरी २०१३ के पुनीत अवसर पर

बच्चों की उपस्थिति लेते साहू सर और उइके सर 


 
नागरिकों सहित शाला परिवार का गुलाल से स्वागत
                                             करते यादव जी परम्परा को जीवंत बनाते
                                             झंडातोलन कर नारी का सम्मान जगाती
                                            श्री मति आभा सिंह मेरी मानस पुत्री

प्रार्थना करते छात्र छात्राएं और निरिक्षण करते
                                                श्री पैकरा जी, साहू जी, और श्री मति आभा सिंह
                                                कभी कभी मैं रमाकांत भी शामिल इन संग


प्रार्थना करते शाला परिवार
                                                जिनकी कार्यशैली पर हमेशा मुझे गर्व होता है।
सरस्वती वंदना सिखाती श्री मति आभा सिंह और नैतिक शिक्षा संग शारीरिक स्वच्छता
का महत्व समझाती नित्य प्रति बच्चों से अन्तर्सम्बन्धो की कड़ी को मांजती और
निष्ठापूर्वक दायित्वों के प्रति सचेत करती

२६ फरवरी २०१३

Friday, 22 February 2013

तेरा प्यार

१*
ज़िन्दगी की किताब का हर्फ़ बनना ऐसे
फिर बनके ज़िन्दगी में बस जाना यूँ ही
जिसे पढ़ें बड़े जतन से उम्र भर प्यार से
वो खुशनसीब हैं सलाम उनके प्यार को

२**
यूँ इंतज़ार कैसा याद पल पल सता जायेगा
आँखें टिकी हैं तुझपे प्यार कैसा रंग लायेगा?

३***
जूझकर फिर किनारों से क्यूँ लौटता हूँ हर बार?
मैं जानता हूँ तेरा प्यार, तू जानती है मेरा प्यार?

४ ****
जाना मेरी किस्मत में था, जाना ने जाना रोक लिया?
मैं उसी मोड़ को तकता हूँ, तेरी परछाई बन आज भी

५ *****
ख्यालों में अक्सर तन्हा साया होता है
तसव्वुर बन जाये वो हमसाया होता है

22.02.2012
समर्पित मेरी ** ज़िन्दगी **को
जिसके बिना ज़िन्दगी **ज़िन्दगी **कहां

Saturday, 16 February 2013

एक ही पल में

छुप गया सूरज
क्षितिज में आज
नींद और सपने
जीवन की डोर
रूक गये पलकों पर
एक ही पल में

घर की दीवारें
मंदिर के कलश
गिरिजा के क्रास
मस्जिद के गुम्बद
हो गये दफ़न
एक ही पल में

बंद हो गई राहें
टूट गई पगडंडियाँ
तंग पड़ गये आंचल
फ़ैल गये सज़दे में
हिन्दू मुसलमां मेरे
एक ही पल में

ये हादसा क्यों?
एक ही पल में?
और इंतज़ार क्यों?
इन हादसों के लिये
मेरे घर का आँगन ही?
एक ही पल में

16 फ़रवरी 2013
भारत पाकिस्तान सीमा पर और
लीबिया भूकंप में मारे गये * विश्व धरोहर *
बच्चों की याद में समर्पित
यह रचना 27.अक्टूबर 2011 को
एक कमेन्ट सहित प्रकाशित का पुनः प्रकाशन
चित्र गूगल से साभार

Monday, 11 February 2013

मौत




वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभः
निर्विघ्नं कुरू मे देव सर्व कार्येषु सर्वदा

मंदिर, बारात, और मौत जहाँ रिश्ते नाते पड़ जाते हैं लघु?
दीर्घ हो जाता है जीवन कर्म और पात्र जो शामिल है उसमें?

1*****
ईश्वर के समक्ष मंदिर में किसी को भी प्रणाम करें?
हम ईश्वर के समक्ष उनसे भी बड़े हैं?
याचक होकर भी महानता का बोध?
तब केवल शिष्टाचार का निर्वहन?

2*****
विवाह संस्कार में हरिद्रालेपन पश्चात् बेटी या वर किस स्वरूप में?
विष्णु के पद प्राप्त व्यक्ति का शिष्टाचार किसी लघु को बारात में ?
लक्ष्मी मर्यादित करें स्पर्श चरण मण्डप में,विष्णु वरण पूर्व किसी के?
यद्यपि साक्ष्य और साक्षी इसी संस्कार के वंश संरक्षण में स्वजन

3*****
संवादहीनता जीव का जीव से आत्मा का परमात्मा से मिलन?
यम और प्रेत का संगम वहाँ अभिवादन किसी स्वजन का?
शामिल मृत्युकर्म में श्रद्धा, प्रेम,और बिदाई में मृत आत्मा के?
साक्षी विष्णु पार्षद सूक्ष्म स्वरुप में नन्द और सुनंद परम भाव से?

11.फरवरी 2013
चित्र गूगल से साभार

Wednesday, 6 February 2013

ज़िन्दगी

जन्म दिन की अनेक शुभकामनाये चिरंजीव दीपक सिंह दीक्षित
06 फरवरी 
1**
तुम्हारा अम्बर सा विस्तार
भा गया जग को
सब चाहते हैं तुम्हारे आँचल तले
घर बसाना
किन्तु तुम्हारे बस जाने पर
भरम टूट जायेगा
ये धोखा बना रहे
मैं ताने बुनता रहूँगा

2**
तुम गंगा सी पावन निर्मल
किन्तु जो लोग तुमसे मिले
ग्रहण किया गुन
और छोड़ गये अवगुन
पवित्र होकर भी
अपारदर्शिता
देखना चाहता हूँ आर पार
रह गई पारदर्शी?

3**
कुंदन सा चरित्र तुम्हारा
हर बार नये रूप में चमका
तेज ज्वाला में
मौन अक्षय तरुणाई ले
और तुम अभिमंत्रित तटस्थ
आहत होकर भी
स्वधर्म के निर्वहन में
लक्ष्य को समर्पित

4**
मैंने तुम्हे हर बार
वसुधा, धरा, वसुंधरा
प्रिये, प्रियतमे, प्रिया
न जाने कितने संबोधन दिये
और स्वीकारा तुमने
निर्लिप्त, निर्विकार,
बिना किसी बंधन को खोले
मैं विस्मित
तुम्हारी सहनशीलता देख

5**
शीतल, मंद, समीर बन
पिछले कई जन्मो से
सहचरी बन संकल्पित
प्रबल आवेग से
चुपचाप अपने सपने समेट
मेरे जीवन को शब्द देती
पूर्ण तन्मयता से
क्यों समझ नहीं पाता
तुम्हारी निष्ठा, त्याग, तपस्या,?

06.फ़रवरी 2013

समर्पित मेरी ****ज़िन्दगी ****को जिसके बिना
जीवन की कल्पना ही नहीं **मौत** बेहतर ...

चित्र गूगल से साभार

Friday, 1 February 2013

विक्रम वेताल 9



विक्रम ने हठ न छोड़ा
वेताल को कंधे पर लाद चल पड़ा
वेताल ने कहा
राजन तुम्हारा श्रम हरने के लिए
तुम्हे आज कल की कहानी सुनाता हूँ

उत्तर न देने पर तुम्हारा सिर
टुकड़े टुकड़े हो जायेगा

चार अंधों ने हाथी का स्वरुप बतलाया
जिन्हें क्रमशः पैर, पेट, कान, और पूंछ मिला

क्रमशः अनुभव आये

हाथी खम्भे जैसा है
यह तो सन्दूक समान है
नहीं यह सूप सदृश्य है
अरे छोडो
हाथी रस्सी जैसा है

अँधा भी प्रत्यक्ष दर्शी हो सकता है?
कौन है संजय?
जो धृतराष्ट्र को आँखों देखा हाल बतायेगा?
जो सच हो सच के सिवाय झूठ नहीं?

राजन
दिल्ली के शाम के चलन में
अकारन मारी गई दामिनी
अकलतरा के हवा में सिमट गई दिल्ली?
किसने किसे समेट लिया अपने आँचल में?

राजन दिग्भ्रमित मत होना
ज़रा बतलाओ दोषी कौन?

लड़की?
लड़का?
माँ?
बाप?
भाई, बहन, संगी, सहेली?
किसी के कह देने से पुलिस?
प्रशासन?
संस्कार?
या स्वछन्द विचार?
वा स्वेच्छाचारिता?

नाम और दाम की चाह?
या ये सब एक संग?

निष्पक्ष जांच हो?
बलात्कारी को फांसी की सजा हो?
किन्तु साक्ष्य सच्चे हों
जांच कर्ता निर्मल हो


राजन
हो गए न हाथ पैर सुन्न?
एक गलत फैसले पर
कितने गलत रास्ते खुलेंगे

सूक्ष्म, गहन, अवलोकन, परिक्षण
निरीक्षण, लड़की की भी हो?
कहीं ऐसा तो नहीं?
आज का सच्चा हमदर्द ही दोषी?

कहीं कोई हमें धोखा तो नहीं दे रहा है?
अपना बनकर
यदि देश भक्त पुलिस शक के दायरे में?
तो पक्ष और प्रति पक्ष क्यों नहीं?

किसी की निष्ठा पर प्रश्न चिन्ह?
और किसकी निष्ठा पर?

01.02.2013
चित्र गूगल से साभार