गुरुकुल ५

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Sunday, 27 January 2013

विक्रम वेताल 8

चित्र बी. बी. सी. हिंदी समाचार से साभार


वेताल ने राजा विक्रम से कहा
राजन मैं आश्चर्य चकित हूँ

आपके न्याय से 

पूरी दुनिया कहती है 
मृत्यु दण्ड?
आपने कहा 
मृत्यु तक दण्ड?

अपराध अक्षम्य?
स्वीकारोक्ति?
साक्ष्य गढ़ दिए गये?
अथवा साक्ष्य स्वयं सिद्ध?

घटना महानगर की
वा किसी कस्बे की
पूरा देश एक ही रंग में रंगा?
बलात्कार बलात्कार 

राजन कहीं ऐसा तो नहीं?
साक्ष्य गढ़ दिये जाते हैं?
साक्ष्य मिटा दिये जाते हैं?
रक्षक ही भक्षक?

वेताल ने कहा
राजन धन्य है तुम्हारी दूर दृष्टि

मृत्यु दण्ड में जीवन कहाँ?
और मृत्यु तक दण्ड में जीवन?
जीवन मूल्यों की रक्षा के लिए 
जीवन या मृत्यु?

एक घटना दिल्ली में घटित
एक घटना अकलतरा में
कल किसी और जगह 
बेटी मेरी या बेटा तुम्हारा?

न्याय 
सर्वकालिक?
सर्वमान्य?
सार्वभौमिक?

तब मृत्यु तक दण्ड क्यों?
मृत्यु दण्ड क्यों नहीं?
राजन तुम्हारी मति मारी गई है?
या चलन बढ़ गया झूठ का?

या नाम और दाम की चाह?
चलो देख लो एक बार?
क्या जाने कितने लोग फसेंगे?
न जाने किसके सिर तोहमत होगी?

28. 01. 2013
चित्र बी. बी. सी. हिंदी समाचार से साभार
      
  

Sunday, 20 January 2013

विद्यालय 2



संसार में शायद तीन जगह सब बराबर हैं

1 मंदिर  भगवान के समक्ष जहां किसी के सामने सिर नहीं झुकाना चाहिए
2 खेल का मैदान जहां सब अपनी क्षमता, और योग्यता के आधार पर होते हैं
3 विद्यालय जहाँ ज्ञान और गुरू सुपात्र शिष्य की प्रतीक्षा में बाहें फैलाये रहते हैं

यहाँ कहाँ होता है रंग, जाति, वर्ग, समुदाय, धर्म, और लिंग का भेद?

बरसता है ज्ञान सावन की रिमझिम फुहार बन
सूरज की तेज किरणों से आता है ओज
अध्यापक बच्चों के हृदय धरा पर प्रेम अंकुरित कर
गगन तक फैलने का समान अवसर दे जाते हैं
जहाँ अनल की प्रखरता में कुंदन सा चमक ले
निखर उठते हैं छात्र छात्राएं इन्द्रधनुषी छटा संग
और गणवेश समता का पाठ पढ़ाती है

एक ऐसे ही अवसर को आप सब से साझा करता है
पूर्व माध्यमिक शाला पाटियापाली
विकास खंड करतला, जिला कोरबा **छत्तीसगढ़**




गणवेश का महत्व समझाती श्रीमती आभा सिंह





 श्री लखन लाल उइके जी चित्र लेते


पेड़ की छाँव जहाँ हम प्रतिदिन प्रार्थना करते हैं
अगली कड़ी में यही आम का पेड़ अपनी कथा लेकर




सहायक आयुक्त श्री एन .के . दीक्षित जी
और वि . खण्ड शि . अ . श्री एस . के पांडे जी
का वरद हस्त शासन की योजना के क्रियान्वयन में


बच्चों की बातें साझा करते हम सब


गणवेश वितरित करते क्रमशः के आर पैकरा, एम आर साहू,
श्री मति सुषमा पंकज, और श्रीमती आभा सिंह दीक्षित

क्रमशः
विद्यालय में मेरे सहयोगी जिनके सहयोग के बिना कोई भी काम
कर पाना आसान नहीं होता वरन मुश्किल ही होता है।
सर्व श्री के . आर . पैकरा
श्री के . एस . पैकरा
श्री मति आभा सिंह दीक्षित
श्री मति सुषमा पंकज
श्री लखन लाल उइके
श्री एम . आर . साहू
श्री बी . आर .यादव
आभार सहित रमाकांत सिंह

Monday, 14 January 2013

विद्यालय


कुछ विचार आपसे साझा करने के लिए 

1  नक़ल करना और नक़ल लिखना एक कला है
2  शुद्ध वाचन से आत्म ज्ञान बढ़ता है
3  शुद्ध लेखन मष्तिष्क से ध्वनि का समन्वय स्थापित करता है
4  वाद विवाद आत्म अभिव्यक्ति का सहज सरल माध्यम है
5  गायन से आत्मा का सम्बन्ध परमात्मा से जुड़ता है
6  चित्र कला अंतर अभिव्यक्ति का मौन किन्तु सशक्त माध्यम है
7  गृह कार्य अपने ही कार्य के मूल्यांकन का श्रेष्ठ उपाय है
8  गणवेश हमारे व्यक्तित्व को चार चाँद लगाता है
9  शालेय या व्यक्तिगत स्वच्छता हमारा व्यक्तित्व मापक यंत्र है
10 बागवानी हमें प्रकृति के निकट लाती है
11 केश विन्यास हमारा स्वरुप निर्धारित करती है
12 खेलकूद हमारे आत्मा और चरित्र का निर्माण करती है
13 अभिनय के माध्यम से हम अंतर आत्मा में झांकते हैं
14 नाटक हमें सामाजिक परिवेश से जोड़ता है
15 नृत्य हमारा आत्मिक संतुलन दृढ करता है
16 वृक्षारोपण हमें पैतृक ऋण से मुक्ति दिलाते हैं
17 पेड़ों को पानी डालकर हम अपनी परम्परा को जीवित रखते हैं
18 स्वयं के प्रति सम्मान हमारे स्वाभिमान की रक्षा करता है
19 शिक्षक को प्रणाम कर स्व को जागृत करते हैं
20 शिक्षा ग्रहण कर माँ बाप के ऋण से मुक्त होते हैं
21 वार्षिक सम्मलेन हमारे समग्र चरित्र का प्रदर्शन करता है
22 राष्ट्रिय पर्वों को मनाकर हम अपनी अस्मिता की रक्षा का संकल्प लेते हैं
23 महापुरूषों की जयंती हमारा मार्गदर्शन करती हैं
24 रंगोली हमारे जीवन में नित नये रंग भरती है
25 तैरने से हमारी कल्पनाशीलता को नया आयाम मिलता है
26 प्रति पल प्रयास हमें अभिष्ट लक्ष्य के निकट लाती है
27 अनुशासन विद्यार्थी और विद्या का मूल आधार है
28 आज्ञाकारी शिष्य ही सम्मान का पात्र होता है
29 परीक्षा लक्ष्य को निर्धारित करने वाले कार्य का मूल्यांकन करते हैं
30 साहित्य का सर्जन समाज की दशा और दिशा का लेखा जोखा है
31 सांस्कृतिक कार्यक्रम हमारे संस्कृति का संवर्धन करते हैं

 06. 07. 1992
चित्र गूगल से साभार 

Thursday, 10 January 2013

खेद



All mighty GOD
created this world
a universal house of love
spread the fragerence
all the way
to make others happy
and to be happy

Provide comfort
and light the world

My heart was open
ever forever
closed to none
without distinction

I always prayed
to design and direct
my soul
heart
and mind
like child

But
I hurt
and sink in the pain

GOD created
colour?
cast?
creed?
or gender?

away from Hnduism?
far away from Muslimism?
broken heart of shikhism?
or based on Christianity?
with crueality and brutality?

I feel
since few back
through distance of religion
the difference between human

My heart
closed to all
ever forever
without any regret
with smile and pride

14.12.1995
picture form google
published on 17.01.2012
and republish
  

Thursday, 3 January 2013

अनागत / नव वर्ष



पागल मन सोचने लगा
21 वीं सदी में
सूरज पूरब से नहीं
पच्छिम से निकल आवेगा

हवा का रुख बदल जायेगा
नक्षत्र अपना स्थान बदल लेंगे
नभ से बादल दूध बरसायेंगे
पहाड़ी झरनों से झरेंगे मोती

आसमान से बरस पड़ेगा अमृत
किसी ने कहा
अनहोनी कुछ नहीं
जो हुआ
अच्छा हुआ

जीवन वृत्त पर ही
विचरता है जीव
अरे
आज भी डूब गया
सूरज फिर पश्चिम में

पंछी चहक उठे शाखाओं पर
रवि के ताप से
चमक उठे तारे आसमान में
चाँद भी कहाँ निकल धरती से

कुत्ते की पूंछ आज भी
पोंगरी के इंतज़ार में
वही गाँव वही शहर
आदमी उगलता ज़हर

बहती नाली टूटा नहर
औरत और बेटी पर टूटता कहर
न बदला कल
ना ही कल

परछाइयों ने कभी  साथ छोड़ा
कहाँ जला हाथ बरफ से
दिशा भ्रम हो जाये
ऐसी हवा कहाँ चली

न ही बढ़ा दरिया का पानी
सब कुछ रहा यथावत
मदहोशी में कब
झंकृत हो गये तंतु

संग में बैठे ठाले
हम नाहक परेशां होते रहे
ऐसे अनागत के
प्रतीक्षा और स्वागत में

31.12.2000
चित्र गूगल से साभार
25.12 2011 को शून्य कमेन्ट के साथ
प्रकाशित रचना का पुनः प्रकाशन 

Tuesday, 1 January 2013

गमक




1976 में लगभग 300 से अधिक प्रशिक्षार्थी शिक्षक
कर दिए गये पदस्थ बिन कहे बस्तर जिला में
तब था जूनून द्रोणाचार्य का, खोजूंगा अर्जुन वन में
दंतेवाड़ा प्रवास, युवा अवस्था, जिज्ञासु मन ठहर गया

शांत सुरम्य बस्तर की वादियों में

प्राचार्य श्री लक्ष्मीकांत ज्योतिषी जी, के. एल. राठौर जी, आर. एल. त्रिपाठी जी,
ए. आर. हन्फी जी, वी. एस. सलामे जी, एच. एस. सिंह जी, ए. महापात्रो जी, आर.
सातपुते जी, आर. दोलाई बहन जी, वीणा मिश्रा बहन जी,एम. आर. साहू जी,
एम. पी. फोगाट, टी. सी.पटेल जी, रमाकांत झा जी, श्रीवास्तव जी संग सीखा अध्यापन

श्री मति आर दोलाई बहन जी ने एक आप बीती सुनाई

मेरी माँ ने महारानी लक्ष्मी बाई छात्रावास में बर्तन मांजे
मेरे बड़े भाई को भूखे रहकर बड़े जतन से पढाया
भाई कुशाग्र बुद्धि था डिप्टी कलेक्टर बन गया
मुझे शिक्षिका बनना था मैं भी बन गई

कुछ दिनों बाद माँ ने भैया की शादी कर दी
कुछ दिन बड़े मजे में बीते पता ही नहीं चला
कार्यालय का काम बढ़ा, साथ ही बहु का दिमाग भी
अब चौके से बर्तन के साथ बहु भी बोलने लगी

एक दिन अचानक भाई ने माँ से कहा तुम्हे बुरा न लगे तो .....
माँ इस बात से चौक गई क्या  हुआ आज जो बुरा लगे?
ऐसा नहीं आफिस का काम बढ़ गया है और देर हो जाती है
तो क्या हुआ बड़े अधिकारी हो काम तो रहेगा ही

रात रात भर काम करना पड़ता है मैं सोचता हूँ कि ........
बहु ने  झट से  कहा सरकारी बंगले में शिफ्ट हो जाते है
रमन और मैं लास्ट वीक में आपसे मिलने आते रहेंगे
माँ अवाक सुनती  रही बहु के मुह से निकले बेटे के वाक्य

माँ ने भी दुनिया देखी थी बाल धुप में सफ़ेद कहाँ हुए थे
बेटा देखो न कुछ नहीं बदला न तुम न मैं
वही शाम, वही सुबह, वही रात, रुकमिनी भी वही है
ये घर, ये आँगन, ये तुलसी का चौरा

ऐसा मैंने कभी नहीं सोचा था जब मैं बर्तन मांजती थी तब
बेटा मैं कम अकल बर्तन माजने वाली आया
तुम्हे इन 27 बरसों में नया कुछ भी न सिखला सकी
बहु ने तुम्हें चंद रातों में सब कुछ सिखला दिया

ना ना अब कुछ भी कहने सुनने के लिये नहीं बचा
न दोष तुम्हारा न दोष मेरा किससे क्या कहूँ?
ये संसार ही ऐसा है
थोडा हटकर अलग, असहज

मैं  कल तुम्हारा सामान पैक कर दूंगी

समय करवट बदलता है
सब लोग सहजता से बातें पचा लेते हैं
असहज होने पर दर्द बढ़ जाता है
नासूर पर नस्तर चलाया जाता है रिश्तों पर नहीं

आज कुछ भी न कहना मैं रोना नहीं चाहती
मैं परिवर्तन की गमक सुंघ चुकी थी
कहानी सुनाते सुनाते रुकमणी बहन जी की आँखें हो गई नम
मैं आज सोचता हूँ माँ ने बर्तन क्यों मांजे थे?

01 जनवरी 2013
ये कहानी हर माँ को समर्पित
और श्री मति रुकमणी दोलाई बहन जी को
  [ गमक गंध ]