1976 में लगभग 300 से अधिक प्रशिक्षार्थी शिक्षक
कर दिए गये पदस्थ बिन कहे बस्तर जिला में
तब था जूनून द्रोणाचार्य का, खोजूंगा अर्जुन वन में
दंतेवाड़ा प्रवास, युवा अवस्था, जिज्ञासु मन ठहर गया
शांत सुरम्य बस्तर की वादियों में
प्राचार्य श्री लक्ष्मीकांत ज्योतिषी जी, के. एल. राठौर जी, आर. एल. त्रिपाठी जी,
ए. आर. हन्फी जी, वी. एस. सलामे जी, एच. एस. सिंह जी, ए. महापात्रो जी, आर.
सातपुते जी, आर. दोलाई बहन जी, वीणा मिश्रा बहन जी,एम. आर. साहू जी,
एम. पी. फोगाट, टी. सी.पटेल जी, रमाकांत झा जी, श्रीवास्तव जी संग सीखा अध्यापन
श्री मति आर दोलाई बहन जी ने एक आप बीती सुनाई
मेरी माँ ने महारानी लक्ष्मी बाई छात्रावास में बर्तन मांजे
मेरे बड़े भाई को भूखे रहकर बड़े जतन से पढाया
भाई कुशाग्र बुद्धि था डिप्टी कलेक्टर बन गया
मुझे शिक्षिका बनना था मैं भी बन गई
कुछ दिनों बाद माँ ने भैया की शादी कर दी
कुछ दिन बड़े मजे में बीते पता ही नहीं चला
कार्यालय का काम बढ़ा, साथ ही बहु का दिमाग भी
अब चौके से बर्तन के साथ बहु भी बोलने लगी
एक दिन अचानक भाई ने माँ से कहा तुम्हे बुरा न लगे तो .....
माँ इस बात से चौक गई क्या हुआ आज जो बुरा लगे?
ऐसा नहीं आफिस का काम बढ़ गया है और देर हो जाती है
तो क्या हुआ बड़े अधिकारी हो काम तो रहेगा ही
रात रात भर काम करना पड़ता है मैं सोचता हूँ कि ........
बहु ने झट से कहा सरकारी बंगले में शिफ्ट हो जाते है
रमन और मैं लास्ट वीक में आपसे मिलने आते रहेंगे
माँ अवाक सुनती रही बहु के मुह से निकले बेटे के वाक्य
माँ ने भी दुनिया देखी थी बाल धुप में सफ़ेद कहाँ हुए थे
बेटा देखो न कुछ नहीं बदला न तुम न मैं
वही शाम, वही सुबह, वही रात, रुकमिनी भी वही है
ये घर, ये आँगन, ये तुलसी का चौरा
ऐसा मैंने कभी नहीं सोचा था जब मैं बर्तन मांजती थी तब
बेटा मैं कम अकल बर्तन माजने वाली आया
तुम्हे इन 27 बरसों में नया कुछ भी न सिखला सकी
बहु ने तुम्हें चंद रातों में सब कुछ सिखला दिया
ना ना अब कुछ भी कहने सुनने के लिये नहीं बचा
न दोष तुम्हारा न दोष मेरा किससे क्या कहूँ?
ये संसार ही ऐसा है
थोडा हटकर अलग, असहज
मैं कल तुम्हारा सामान पैक कर दूंगी
समय करवट बदलता है
सब लोग सहजता से बातें पचा लेते हैं
असहज होने पर दर्द बढ़ जाता है
नासूर पर नस्तर चलाया जाता है रिश्तों पर नहीं
आज कुछ भी न कहना मैं रोना नहीं चाहती
मैं परिवर्तन की गमक सुंघ चुकी थी
कहानी सुनाते सुनाते रुकमणी बहन जी की आँखें हो गई नम
मैं आज सोचता हूँ माँ ने बर्तन क्यों मांजे थे?
01 जनवरी 2013
ये कहानी हर माँ को समर्पित
और श्री मति रुकमणी दोलाई बहन जी को
[ गमक गंध ]