* मुस्कुराकर मृत्यु ने
बढाकर हाथ बड़े प्यार से
स्वागत किया
बड़े भोर
* रोती ज़िन्दगी ने
सम्हलने न दिया
हर राह हर एक मोड़ पर
ताने लिये
* ज़िन्दगी आज ही
क्यूँ लगती है अपनी?
पीपल ठूंठ पर बैठा
खोजता साया धूप के
* सिसकता बचपन मेरा
लगाता रहा गले
हर बार मुड़कर
ग़म और मायूसी को
* धीरे धीरे मेरे अपनों ने
छुड़ाया दामन
मैं बेबस अवाक रहा
अँधेरी रात में
* देखता हूँ नसीब
नहर के ठहरे
गंदले धार पर
चेहरा बड़े विश्वास से
* ज़रूरत अब कैसी और कहाँ?
सब कुछ बीत गया?
भरम भी टूटा
बंद दरवाजे से
* समझा जिसे बेगाना
चला आया वही शाम से
बांटकर दर्द
सारे ले गया
22.10. 2012
समर्पित मेरी * ज़िन्दगी * को
जो हर बार मेरे दर्द बाँट
ले जाती है संग अपने
चित्र गूगल से साभार