गुरुकुल ५

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Wednesday, 26 September 2012

आदरणीय


1

हे परम आदरणीय
आप प्रतिदिन आते थे
सब्जी खरीदने वास्ते
सौ का नोट रोज दिखलाते थे

हमें कहाँ अकल थी
मुफ्त में आश्वासन पा जाते थे
चिल्हर नहीं होने पर फ़ोकट में
साग सालन घर पहुंचा आते थे

हे तात
चौराहे पर
हम आपके सिवाय
किसकी मूर्ति लगवाते

 2

हे गुणी
घर में भूखे बच्चों
फटेहाल माँ, बहन, बीबी
दर्द से कराहते पिता को
अँधेरे में तनहा छोड़कर

रास्ते की अंधी भिखारन को
एक रूपया का सिक्का उछालकर
रखैल से मिलने का
पथ प्रशस्त कर लिया?

 20.09.2o12
चित्र गूगल से साभार         

Friday, 21 September 2012

बंद


विक्रम ने हठ न छोड़ा
कर दिया बंद का ऐलान
वेताल ने कहा
कल तुमने किया था बंद
बिना लोगो की सहूलियत को जाने?
तुम्हें कोई मलाल नहीं?

आज मैं तुमसे पूछूं?
राजन जरा सोचो
लोगो को सच का पता लग गया?
तो तुम्हारे कहाँ पर लात मारेंगे?
बिना तुमसे पूछे

किसे परवाह है तुम्हारे बंद की
न ये स्व स्फूर्त बंद था
न ही किसी जायज मांग पर
ये तो एक परंपरा का निर्वहन है

कल के बंद का कारण बतलाओ?
तुम खुद आज के बंद का कारन जान जाओगे?
कभी बंद से कुछ बदला या बदल पाओगे?
क्या बंद और क्या खुला?

तुम्हारे आवाज पर जिन्होंने बंद किया था
बिना तुम्हे बतलाये खोल दिया?
बुरा मान गये?
मैं तो तुम्हारी सहनशीलता का कायल हूँ

बसें चलीं मां की दवाई ला पाया?
गर्भवती बहन ने क्यों दम तोड़ दिया?
किराना दुकान खुला मिला?
रामू क्यों भूख से रोता रहा?

कितना बेचता, कितना लुटाता
कितना लुटता,क्या घर लाता?
जनरल स्टोर भी नहीं खुला न ही होटल
आज मंगलू को जूठन भी नसीब हुआ?

डर से बंद रहे पाठशाला?
खुली मिली बिन कहे मधुशाला?

वेताल ने झकझोर कर विक्रम को नींद से जगाया
राजन ये क्या?

तुमने देखा जिन लोगों ने बंद किया था?
खोल दिए उन्होंने ही दरवाजे तमाशे के बाद
डर से सड़ न जाये टमाटर और मिठाइयाँ
सावित्री भी सौदा सुलफा लेकर घर चली गई?

वेताल ने कहा राजन
अद्भुत है तुम्हारी ख़ामोशी
और दुधारी तलवार
कौन कटता है, कौन काटता?

एक और त्रासदी

सुनसान सडकों पर अचानक जुट गए लोग
किसी को कोई ऐतराज नहीं हुआ
कौन रोक पाया जानेवाले को?
बंद का असर हो गया बेअसर?

भारत बंद रहा?

लेकिन वो निकल लिये अकेले यात्रा पर
हल्की बारिश की फुहार में भी चल पड़े
संग संग बेटी, पत्नी, बहन, मित्र,सगे सम्बन्धी
नहीं रोक पाए ये यात्रा अनन्त

फिर कैसा बंद?

सन्नाटा भी गूंजता है?
और शोर में भी श्मशान की ख़ामोशी तैरती है?

हर सुबह की शाम होती है?
हर शाम की रात होती है?
हर रात की उजली सुबह होती है?
बंद का असर सूरज की किरणों पर?

कोई भी पार्टी?
कोई भी मुद्दा?
संकट के अवसर पर?
या निदान की खोज में? 

सर्वमान्य हल?
सर्वग्राह्य आज?
सर्वत्याज्य कल?
बंद कल, बंद आज, बंद कल?

 20.09.2012
चित्र फ्लिकर से साभार
श्री नंदकिशोर गुप्ता जी जिन्हे प्रेम से सभी नंदू बाबू कहते हैं
20.09.2012 को अनंत यात्रा पर निकल पड़े . उन्हे मेरी श्रद्धांजली 

Sunday, 16 September 2012

अकलतरा सुदर्शन

सुबह सकारे अशोक बजाज जी के ग्राम चौपाल पर पढ़ा श्री के सी सुदर्शन जी नहीं रहे
घूम गया बचपन, झनझना गया शरीर, टूट गई तन्द्रा, जी उठे पल
एक सौम्य, शांत, गठीला, धीर, गंभीर व्यक्तित्व मानस पटल पर
अकलतरा के साफ सुथरे सड़क पर अपने बालसखा लल्ला जी संग

स्व दुखीराम ताम्रकार लल्ला भैया, रमेश कुमार दुबे, स्व नर्मदा प्रसाद देवांगन,
पुनीत राम देवांगन, हीरालाल देवांगन, जगदीश अग्रवाल कुकदिहा, पुनीत राम
सूर्यवंशी, संग स्व प्रताप सिंह जी ये सब बालसखा अपने परंपरागत गणवेश में
शामिल नज़र आये धुंधले धुंधले से, स्टेशन के सामने चट्टान पर संघ दक्ष कराते

स्मृति में घूमने लगे बड़े बुजुर्ग श्री रामाधीन जी दुबे, शिवाधीन जी दुबे, नर्मदा
प्रसाद दुबे जी, भुवन प्रसाद दुबे जी, स्व पुकराम जी, रामलाल जी जायसवाल
लम्बी फेहरिस्त में शामिल थे राधेश्याम शर्मा, स्व छगन लाल शर्मा, शेखर दुबे,
नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमि ... ... प्रार्थना करते कभी गोल घेरे में राष्ट्रगान

अकलतरा का प्रतीक दल्हा पहाड़ या दल्हा प्रतीक मैकल श्रृंखला का एकमात्र
अकेला पर्वत आज सदियों से लोगों को आकर्षित करता अचल, अडिग, मौन
समय का साक्षी जिसे नागपंचमी को उलटे तरफ से चढ़ने का साहस किया
शायद 1955 56 में सुदर्शन जी संग लल्ला भैया, रमेश दुबे, प्रताप सिंह जी,
अपने बालमित्रों की टोली बना जो आज भी परंपरा में शामिल हर बरस

शांतिलाल पुरोहित जी का आवास, चूना भट्टा के समीप जहाँ की शान्ति
विस्तृत मैदान बौद्धिक चर्चा को विस्तार देती शामिल रहते सुबह की किरणें
लटिया, कल्याणपुर से कोटमीसोनर की पगडण्डी आज भी साक्षी भाव से
स्मरण करते श्री के सी सुदर्शन जी को भीगी आँखों से भाव भीनी श्रद्धांजली ले

बाल ब्रह्मचारी सुदर्शन जी का अपनत्व अकलतरा से ऐसा जुड़ा कि वो
यहाँ के हो गये और अकलतरा उनका हो गया, आपको रायगढ़ संघ के
प्रचार और प्रसार का दायित्व सौपा गया और श्री यादव राव कालकर जी
को बिलासपुर का प्रभार दिया गया बिलासपुर का संघ कार्यालय का नामकरण
कालकर के ही नाम पर किया गया है. दो कुर्ता, दो धोती, दो बंडी, दो लंगोट, और
एक गमछा कुल संपत्ति. जो मिला खा लिया, कोई मांग नहीं, कोई शिकायत नहीं

शायद नागपुर के बाद अकलतरा को संघ का दूसरा या तीसरा बड़ा केंद्र कहना अति नहीं होगा
तिलई निवासी स्व श्री गौरीशंकर कौशिक जी को भी याद करना ज़रूरी रहा
ग्राम तिलई भी संघ संचालन का ग्रामीण केंद्र रहा जहाँ इन्हें असीम प्रेम मिला
अकलतरा रेलवे स्टेशन के सामने चावल मिल मैदान संघ संचालन का मूल केंद्र रहा

एक घटना का जिक्र किया गया जो उनकी सहनशीलता की पराकाष्ठा को
बतलाता है शायद ये वाकया हो बापू महात्मा गाँधी के हत्या के आसपास की
शिवरीनारायण में किसी सज्जन ने सुदर्शन जी पर हाथ उठा दिया कान का पर्दा
फट गया, खून निकल आया लोगों ने विरोध जताने को कहा किन्तु उन्होंने माफ़ कर दिया

अकलतरा सरस्वती शिशु मंदिर उद्घाटन के साथ ही साक्षी है इनका प्रेम
अपने बालसखा लल्ला भैया स्व श्री दुखीराम जी ताम्रकार के घर का गृह प्रवेश.
अकलतरा नगर और इनके सानिध्य में रहे जन उनके निधन का समाचार सुनकर
याद कर उठे उनका अकलतरा के प्रति निश्छल प्रेम और संघ की दीवानगी
दक्षिण भारतीय ब्राह्मण कुल में जन्म लेकर सादगी की झलक दिखी उनके चरित में.

16.09.2012

Tuesday, 11 September 2012

विक्रम और वेताल 4


राजा विक्रम ने जैसे ही
सिहासन बत्तीसी को छुआ
वेताल ने कहा
राजन आज नहीं
आज आपके लिये हॉट सीट है

किसी भी प्रश्न के उत्तर पर
मन मांगी मुराद
सभी ऑप्शन हैं
फोन अ' फ्रेंड
डबल डिप
बुला लो एक्सपर्ट
या करो ऑडिएंस पोल

राजन स्मरण रखना
यह जीवन और मरण का उत्तर है
किसी चलचित्र का कैसेट नहीं
जिसे रिवाइंड कर लो
फारवर्ड कर डालो
रिवर्स कर फिर बजा डालो
कोई ऑप्शन नहीं
प्ले और ऑफ़

राजन चिंतन नहीं
ये तुम्हारा धीरज है?
या मज़बूरी तुम्हारी?
वा नियति हम सबकी?
जहाँ हम सब मूक दर्शक?
आज घड़ी की सुई भी थम गई है?

गीता का उपदेश मत सुनाना
जो हुआ अच्छा हुआ
जो होगा अच्छा होगा
तुम जानते हो पुत्र शोक?
पिता का आहत हृदय?
शरीर का पञ्चभूत में मिलना?

राजन मौन तोड़ो
तर्क नहीं उत्तर
व्यथित मन शांत कैसे हो?
पिता शोकमुक्त कैसे हो?
बहन हँसे कैसे?
दादी के आंसू कौन पोछेगा?
माँ दिया कब जलायेगी?
परिवार कभी हँस पायेगा?

10.09.2012
बी.एस.पाबला भाईजी को समर्पित
बाबू गुरप्रीत सिंह की याद में

Thursday, 6 September 2012

क्षितिजा

तुमने हर बार मुझे पुकारा
क्षितिजा-क्षितिजा-क्षितिजा

हम मिले
जमीं और आसमां की तरह
तुमने कब याद रखा?
मैं मिली तुमसे
पहाड़ों के सर्पिल मोड़ पर
चांदनी की रोशनी में
ख़ुशी में झूमते
ग़मों से दूर गाफिल
संग-संग मुस्कुराते
काले घने बादलों के बीच
कह दिया तुमने
क्षितिजा
तब भी मुझे

हम कभी मिले
समंदर की लहरों पर
सूरज की किरणों संग
इन्द्रधनुष बन
सुबह की ओस में
भीगी संध्या में
भीनी पुरवईया में
हर बार तुमने
पुकारा मुझे
क्षितिजा-क्षितिजा-क्षितिजा

मैं जीना चाहती हूँ
हर जनम
क्षितिज दर क्षितिज
तुम्हारी ही क्षितिजा बन

23.08.1998
चित्र फ्लिकर से साभार

Sunday, 2 September 2012

सपने

युवराज सिंह
सुबह की किरणों ने आँगन को
उजाले से भर दिया
लेकिन
रात को चूल्हा नहीं जल पाया
सोमवार को लकड़ी गीली थी
मंगलवार को मिशराइन ने
चावल नहीं दिये थे

बेटा बुधवार को रामबाई चाची संग
आटा पिसवाने गई थी
तू तो जानता है,
गुरुवार लक्ष्मी का वार है

पिछले इतवार हमने क्या खाया था?
चल चूल्हा जलाते हैं
इस शुक्रवार नहीं करेंगे
संतोषी माता का व्रत

और सुन मेरे राजा लल्ला
हम नहीं जायेंगे
प्रसाद खाने नहर किनारे
शनि मंदिर, आज शनिवार है

शानू ने अपनी माँ के गले में
बड़े प्यार से बाहें डाली
और धीरे से कहा
कोई बात नहीं

चलो सो जाते है
सपने में राहुल की माँ आयेगी
मालपुआ लायेगी
दोनों खायेंगे?

तुम काम पर चले जाना
मैं स्कूल चला जाऊंगा
दिन तो रोज ही आते हैं
ऐसे सपने कहाँ आते हैं ?

02.09.2012