सुबह सकारे अशोक बजाज जी के ग्राम चौपाल पर पढ़ा श्री के सी सुदर्शन जी नहीं रहे
घूम गया बचपन, झनझना गया शरीर, टूट गई तन्द्रा, जी उठे पल
एक सौम्य, शांत, गठीला, धीर, गंभीर व्यक्तित्व मानस पटल पर
अकलतरा के साफ सुथरे सड़क पर अपने बालसखा लल्ला जी संग
स्व दुखीराम ताम्रकार लल्ला भैया, रमेश कुमार दुबे, स्व नर्मदा प्रसाद देवांगन,
पुनीत राम देवांगन, हीरालाल देवांगन, जगदीश अग्रवाल कुकदिहा, पुनीत राम
सूर्यवंशी, संग स्व प्रताप सिंह जी ये सब बालसखा अपने परंपरागत गणवेश में
शामिल नज़र आये धुंधले धुंधले से, स्टेशन के सामने चट्टान पर संघ दक्ष कराते
स्मृति में घूमने लगे बड़े बुजुर्ग श्री रामाधीन जी दुबे, शिवाधीन जी दुबे, नर्मदा
प्रसाद दुबे जी, भुवन प्रसाद दुबे जी, स्व पुकराम जी, रामलाल जी जायसवाल
लम्बी फेहरिस्त में शामिल थे राधेश्याम शर्मा, स्व छगन लाल शर्मा, शेखर दुबे,
नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमि ... ... प्रार्थना करते कभी गोल घेरे में राष्ट्रगान
अकलतरा का प्रतीक दल्हा पहाड़ या दल्हा प्रतीक मैकल श्रृंखला का एकमात्र
अकेला पर्वत आज सदियों से लोगों को आकर्षित करता अचल, अडिग, मौन
समय का साक्षी जिसे नागपंचमी को उलटे तरफ से चढ़ने का साहस किया
शायद 1955 56 में सुदर्शन जी संग लल्ला भैया, रमेश दुबे, प्रताप सिंह जी,
अपने बालमित्रों की टोली बना जो आज भी परंपरा में शामिल हर बरस
शांतिलाल पुरोहित जी का आवास, चूना भट्टा के समीप जहाँ की शान्ति
विस्तृत मैदान बौद्धिक चर्चा को विस्तार देती शामिल रहते सुबह की किरणें
लटिया, कल्याणपुर से कोटमीसोनर की पगडण्डी आज भी साक्षी भाव से
स्मरण करते श्री के सी सुदर्शन जी को भीगी आँखों से भाव भीनी श्रद्धांजली ले
बाल ब्रह्मचारी सुदर्शन जी का अपनत्व अकलतरा से ऐसा जुड़ा कि वो
यहाँ के हो गये और अकलतरा उनका हो गया, आपको रायगढ़ संघ के
प्रचार और प्रसार का दायित्व सौपा गया और श्री यादव राव कालकर जी
को बिलासपुर का प्रभार दिया गया बिलासपुर का संघ कार्यालय का नामकरण
कालकर के ही नाम पर किया गया है. दो कुर्ता, दो धोती, दो बंडी, दो लंगोट, और
एक गमछा कुल संपत्ति. जो मिला खा लिया, कोई मांग नहीं, कोई शिकायत नहीं
शायद नागपुर के बाद अकलतरा को संघ का दूसरा या तीसरा बड़ा केंद्र कहना अति नहीं होगा
तिलई निवासी स्व श्री गौरीशंकर कौशिक जी को भी याद करना ज़रूरी रहा
ग्राम तिलई भी संघ संचालन का ग्रामीण केंद्र रहा जहाँ इन्हें असीम प्रेम मिला
अकलतरा रेलवे स्टेशन के सामने चावल मिल मैदान संघ संचालन का मूल केंद्र रहा
एक घटना का जिक्र किया गया जो उनकी सहनशीलता की पराकाष्ठा को
बतलाता है शायद ये वाकया हो बापू महात्मा गाँधी के हत्या के आसपास की
शिवरीनारायण में किसी सज्जन ने सुदर्शन जी पर हाथ उठा दिया कान का पर्दा
फट गया, खून निकल आया लोगों ने विरोध जताने को कहा किन्तु उन्होंने माफ़ कर दिया
अकलतरा सरस्वती शिशु मंदिर उद्घाटन के साथ ही साक्षी है इनका प्रेम
अपने बालसखा लल्ला भैया स्व श्री दुखीराम जी ताम्रकार के घर का गृह प्रवेश.
अकलतरा नगर और इनके सानिध्य में रहे जन उनके निधन का समाचार सुनकर
याद कर उठे उनका अकलतरा के प्रति निश्छल प्रेम और संघ की दीवानगी
दक्षिण भारतीय ब्राह्मण कुल में जन्म लेकर सादगी की झलक दिखी उनके चरित में.
16.09.2012